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Showing posts from April, 2020

जर्जर नौका गहन समंदर

🦢🦢🦢🦢🦢🦢🦢🦢🦢 ~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ* . 🦚 *गीत/नवगीत*  🦚 *जर्जर नौका गहन समंदर* .          🦢💧🦢 मँझधारों में माँझी अटका, क्या तुम पार लगाओगी। जर्जर नौका गहन समंदर, सच बोलो कब आओगी। भावि समय संजोता माँझी वर्तमान की तज छाँया अपनों की उन्नति हित भूला जो अपनी जर्जर काया क्या खोया, क्या पाया उसने तुम ही तो बतलाओगी। जर्जर ................... ।। भूल धरातल भौतिक सुविधा भूख प्यास निद्रा भूला रही होड़ बस पार उतरना कल्पित फिर सुख का झूला आशा रही पिपासित तट सी आ कर तुम बहलाओगी।  जर्जर......................।। पीता रहा स्वेद आँसू ही रहा बाँटता मीठा जल पतवारें दोनों हाथों से  खेते खोए सपन विकल सोच रहा था अगले तट पर तुम ही हाथ बढ़ाओगी। जर्जर..................।। झंझावातों से टकरा कर घाव सहे नासूरी तन चक्रवात अरु भँवर जाल से हिय में छाले थकता तन तय है जब मरहम माँगूगा तुम हँस कर बहकाओगी। जर्जर......................।। लगे सफर अब पूरा होना श्वाँसों की तनती डोरी सज़धज के दुल्हन सी आना उड़न खटोला ले गोरी शाश्वत प्रीत मौत केवट को तय है तुम तड़पाओगी। जर्जर...

जीवन है अनमोल

🦢🦢🦢🦢🦢🦢🦢🦢🦢🦢🦢 ~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा, *विज्ञ* .         🌼 *जीवन है अनमोल* 🌼 .                     ( दोहा छंद ) .                        🤷🏻‍♀🤷🏻‍♀    दुर्लभ मानव  देह जन, सुनते  कहते  बोल। मानवता हित 'विज्ञ' हो, जीवन है अनमोल।। .                       ✨✨✨ धरा  जीव  मय  मात्र ग्रह, पढ़े यही भूगोल। सीख 'विज्ञ' विज्ञान लो, जीवन है अनमोल।। .                       ✨✨✨ मानव में क्षमता बहुत, हिय दृग देखो खोल। व्यर्थ  'विज्ञ'  खोएँ नहीं, जीवन है अनमोल।। .                       ✨✨✨ मस्तक 'विज्ञ' विचित्र है,नर निजमोल सतोल। खोल अनोखे  ज्ञान पट, जीवन  है अनमोल।। .            ...

गीतमाला ४२

. 🦢 *गीतमाला* 🦢 © सर्वाधिकार सुरक्षित ® बाबू लाल शर्मा बौहरा *विज्ञ*   सिकंदरा,दौसा, राजस्थान (भारत) के ४२ छंदाधारित चुनिंदा *गीत/नवगीत* का  अनूठा संग्रह १""""""""""""""""बाबूलालशर्मा *विज्ञ* .        *प्रेम/प्यार करूँ*       .           🌹🌹 मन में शुभ भाव उमड़ते हों, तब मैं भी चाहूँ,प्यार करूँ। जब रिमझिम वर्षा आती हों, ज्यों  गीता  ज्ञान  सुनाती हो। खिड़की से तान  मिलाती हो, मुझको  मानो  उकसाती  हो। श्वेद संग वर्षा में  गाऊं, मै,भी जब कुछ श्रम साध्य करूं। मात का उज्जवल भाल सजे, तब मैं भी चाहूँ प्यार करूँ।। भाती है  दिल  आलिंगन सी,  स्वर सरगम हिय के बंधन सी। मन मे  शुभ भाव  सँवरते हो, जब  नेह   दुलारे   रिश्तें  हों। क्यूँ ना चल कर  पतवार बनूं, बिटिया को शिक्षादान करूं, कुछ अपने पन की बातो से, तब मै भी  चाहूँ  प्यार करूँ, जन  की सेवा हरि  की सेवा, हरि जन सेवा  काज  सभी। मैं...