गगनांगना छंद विधान

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~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
.           *गगनांगना छंद विधान*
मापनी मुक्त सम मात्रिक छंद है यह।
१६,९ मात्रा पर यति अनिवार्य चरणांत २१२
दो चरण सम तुकांत,चार चरण का छंद
{सुविधा हेतु चौपाई+नौ मात्रा(तुकांत२१२)}
.                   *शरद पूनम*
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सागर मंथन अमरित पाकर,विषघट त्यागते।
अमर हुये सब देव दिवाकर, शिव घट धारते।
सूरज  देता दिवस  उजाला,  ऊर्जा  जानिये।
चंद्र  चंद्रिका  अमृत  प्याला,  बरसे  मानिये।
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शरद काल की  है सूचकता, पूनम आज की।
भोज खीर तन रहे दमकता,सजते साज की।
पथ्य अपथ्य परखना खाना,अमरित खीर है।
मेवा  मिश्री  चाँवल  पय में, सब का  सीर है।
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करता  ही  रहता  हूँ  अपने, मन से  मंत्रणा।
क्यों देता कब कौन किसी को, ताने  यंत्रणा।
बिकते सारे खुले गरल प्रभु, द्वय हर हाट में।
सूर्य शक्ति चंदा अमरित दे, जब दिन रात में।
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दाता के दर  भज गुरु सादर, हरि मनमीत है।
भज हरि भावन गीत मनोहर, शुभ संगीत है।
खीर बनाकर  रखो चाँदनी, अमरित  योग है।
अर्द्ध रात  को, भोग  लगाओ, मिटते  रोग है।
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पुण्य  शरद की  पूनम आई, कर ले आरती।
ऋतुसम पवन भाव सुखदाई, धरती भारती।
खावें खीर, बना साथी फिर, कर आराधना।
चंद्र चंद्रिका इमरत बरसे, कर शशि साधना।
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माँ  कमला  भंडार भरेंगी, पूनम को सखे।
श्री विष्णो के संगत आएँ, पय उनको रखें।
रखना क्षीर अमृत बरसेगा, आधी रात को।
सबसे ही साझी कर लेना, साथी  बात को।
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श्वाँस दमा के रोगी भोगी, खायें खीर जो।
भारत भूमि रही अभिमानी,पायें वीर जो।
चंद्र   किरण   देती  संदेशे, धारो  धीरता।
मात भारती हित बलिदानी, मानो वीरता।
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खीर प्रथम पकवान हमारे, वैदिक काल से।
सभी खिलायें आज  सजाएँ, चंदा थाल से।
भारत की यह रीत पुरानी, सब  पहचानिये।
चंद्र,धरा का नेह मनुज का,  मातुल मानिये।

✍©
बाबू लाल शर्मा, बौहरा
सिकंदरा,दौसा राजस्थान
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Comments

  1. वाह आदरणीय आपका बहुत-बहुत आभार

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