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नेह प्यासे आज पनघट

👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀 ~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा  *विज्ञ* 👁 *मुक्तक- नेह प्यासे आज पनघट* 👁 मापनी - २१२२  २१२२,  २१२२  २१२२ १. घाट  तीरथ  सभ्यताएँ, स्वाति सम तरसे किनारे। चंद्र रवि शशि मेघ नीरस, ताकते  नभ से सितारे। खींच तन से रक्त भू का, क्यूँ उलीचा तोय मानुष। खेत  प्यासे  पेड़  प्राणी, आज  पंछी  मौन  सारे। २. शर्म आँखो की गई वह, भूमि-जल संगत सरूरी। घाट-गागर  में  ठनी  है, आज  क्यूँ तन नेह दूरी। हे  छलावे  दानवी  मन, सत्य का पथ छोड़ने से। नेह  हारा  नीर  हारा ,  प्रीत  की  बाजी  कसूरी।  ३. कूप नदियाँ ताल बापी, घाट वे जल नेह जमघट। स्रोत रीते  हो गये सब, नेह  प्यासे आज पनघट। आपदा को दे निमंत्रण, मर्त्य  निज सपने सँजोए। बोतलों में बन्द पनघट, याद भूलें कान्ह  नटखट। ४. वारि बिन वन पेड़ पौधे, जीव  जंगम  खेत  सूने। रेत  पत्थर  ईंट   गारे,  नीड़  सड़के   नित्य  दूने। आज वसुधा र...

हल्दीघाटी: एकलिंग दीवान....

🦢🦢🦢🦢🦢🦢🦢🦢🦢 ~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ* 👁 *हल्दीघाटी:* 👁 *एकलिंग दीवान.....* .     .🌹 *गीत* 🌹 .             👀👀 मन करता है गीत लिखूँ मैं, एक लिंग  दीवाने पर। मातृ भूमि के रक्षक राणा, मेवाड़ी  परवाने पर।।✍ १ चित्रांगद का दुर्ग लिखूँ जब, मौर्यवंश नि: सार  हुआ। मेदपाट की पावन भू पर, बप्पा का अवतार हुआ। कीर्ति वंश बप्पा रावल के,  मेवाड़ी  पैमाने पर। मन करता है गीत लिखूँ मैं, एक लिंग दीवाने पर।।✍ २ अंश वंश बप्पा रावल का , सदियों प्रीत रीति निभती। रतनसिंह तक रावल शाखा, शान मान हित तन जगती। पद्मा-जौहर, खिलजी- धोखा, घन गोरा  मस्ताने पर,। मन करता है गीत लिखूँ मैं,  एक लिंग दीवाने पर।।✍ ३. सीसोदे हम्मीर गरजते, क्षेत्रपाल-लाखा- दानी। मोकल - कुम्भा - चाचा - मेरा, फिर ऊदा की हैवानी। कला, ग्रंथ निर्माण नवेले, विजय थंभ बनवाने पर, मन करता है गीत लिखूँ मैं, एकलिंग दीवाने पर।।✍ ४. अस्सीे घाव लिखूँ साँगा के, युद्धों के घमसान बड़े। मीरा की हरि प्रीत लिखूँ फिर,   वृन्दावन  भगवान खड़े।। बनवीरी...

और दम्भ दह गये

*आज का गीत* 🤷🏻‍♀🤷🏻‍♀🤷🏻‍♀🤷🏻‍♀🤷🏻‍♀🤷🏻‍♀🤷🏻‍♀🤷🏻‍♀ ~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ* 🌼🦚 🦅 *गीत* 🦇 🦚🌼 🤷🏻‍♀ *और..दम्भ  दह  गये* 🤷🏻‍♀ .          °°°°°°° घाव ढाल बन रहे .    स्वप्न साज बह गये। .          पीत वर्ण पात हो .             चूमते  विरह  गये।। काल के कपाल पर .    बैठ गीत रच रहा .  प्राण के अकाल कवि .      सुकाल को पच रहा .      सुन विनाश गान खग रोम की तरह गये। पीत वर्ण..........।। फूल  शूल से लगे मीत भयभीत छंद रुक गये विकास नव .    छा रहा प्राण द्वंद .   अश्रु बाढ़ चढ़ रही डूब बहु ग्राह गये। पीत...............।। चाह घनश्याम मन . रात श्याम आ गई .   नींद एक स्वप्न था .     खैर  नींद भा गई .    श्वाँस  छोड़ते बदन वात से जिबह हुये। पीत.................।। जीवनी विवाद मय जन्म  मर्त्य  कामना  .देख  रहे  भीत  बन ....