और दम्भ दह गये

*आज का गीत*

🤷🏻‍♀🤷🏻‍♀🤷🏻‍♀🤷🏻‍♀🤷🏻‍♀🤷🏻‍♀🤷🏻‍♀🤷🏻‍♀
~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
🌼🦚 🦅 *गीत* 🦇 🦚🌼
🤷🏻‍♀ *और..दम्भ  दह  गये* 🤷🏻‍♀
.          °°°°°°°
घाव ढाल बन रहे
.    स्वप्न साज बह गये।
.          पीत वर्ण पात हो
.             चूमते  विरह  गये।।

काल के कपाल पर
.    बैठ गीत रच रहा
.  प्राण के अकाल कवि
.      सुकाल को पच रहा
.      सुन विनाश गान खग
रोम की तरह गये।
पीत वर्ण..........।।

फूल  शूल से लगे
मीत भयभीत छंद
रुक गये विकास नव
.    छा रहा प्राण द्वंद
.   अश्रु बाढ़ चढ़ रही
डूब बहु ग्राह गये।
पीत...............।।

चाह घनश्याम मन
. रात श्याम आ गई
.   नींद एक स्वप्न था
.     खैर  नींद भा गई
.    श्वाँस  छोड़ते बदन
वात से जिबह हुये।
पीत.................।।

जीवनी विवाद मय
जन्म  मर्त्य  कामना
 .देख  रहे  भीत  बन
.    काल चाल सामना
.       शेर से दहाड़ हम
छोड़ कर जिरह गये।
पीत ...................।।

देश देश की खबर
.  काग चील हँस रहे
.    मौन कोकिला हुई
.    काल ब्याल डस रहे
.       लाश लापता हुई
मेघ शोक कह गये।
पीत................।।

 शव  सचित्र घूमते 
 . मौन होड़ पंथ पर
. गड़ रही निगाह अब
.   भारतीय  ग्रंथ  पर
. शोध के  बँबूल सब
सिंधु की सतह गये।
पीत.................।।

शून्य पंथ ताकते
. रीत प्रीत रो पड़ी
.   मानवीय भावना
.   संग रोग हथकड़ी
.      दूरियाँ सहेज ली
धूप ले सुबह गये।
पीत.............।।

खेत सब पके थके
. ले किसान की दवा
.    तीर विष बुझे लिए
.       मौन साधती हवा
.      होंठ सूख वृक्ष के
अश्रु मीत बह गये।
पीत................।।

ताण्डवी मशान से
.  मजार है मिल रही
.     कब्र की कतार में
.    मौत वस्त्र सिल रही
.     कफन की दुकान के
गुबार हम सह गये।
पीत.................।।

काट वृक्ष भूमि तन
.  स्वास्थ्य मूल खो रहे
.    सिंधु नीर सर नदी
.        जगत गंद ढो रहे 
.       काल की मजार ले
फैसले सुलह नये।
पीत...............।।

देव स्वर्ग में बसे
.  काल दूत डोलते
.    रक्त बीज बो रहे
.      गरल गंध घोलते
.  नव विषाणु फौज के
खिल रहे कलह नये
पीत..................।।

विहंग निज पर कुतर
.    प्रेम  पत्र  ला   रहे
.       पेड़ फूल डालियाँ
.     गिरि शिखर हिला रहे
.         सिंधु  आँच  दे  रहे
और  दम्भ दह गये।
पीत................ ।।

कामिनी सजा रही
.  गात मौत मीत के
     ढूँढ रही मौत शव
.       गीत संग रीत के
.        प्रीत की उमंग में
छंद दंग रह गये।
पीत..............।।

स्वदेश में प्रवास से
.  जागरूक  भारती
.   शूल बन फूल संग
.       यत्न कर्म पालती
.       हार गई  मौत तब
देख हम  फतह हुये।
पीत..................।।

चल दिए छंद छोड़
.  पीढ़ियाँ सहेज कर
.   सह लिए घाव ताप
.    सच से परहेज कर
.    आज नींद सी खुली
लोक पुण्य ग्रह गये।
पीत.................।।

बीत गये रोग सब
सोच प्राण हँस रहा
भव के अकाल भूल
.  मोह मान फँस रहा
. जग रहा *अहम* भाव
*वयम्* अन्त गृह गये।
पीत.....................।।

ताक रहे विश्व जन
.  विहँस  रही  भारती
. विश्व  जीत देश मम
.    देह  मान आरती
.    सर्व  लोक मान्यतम्
विश्व  गुरू  कह  गये।
पीत... वर्ण.. पात..हो
चूमते... विरह...गये।।
.     👀🤷🏻‍♀👀
✍©
बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
बौहरा भवन,३०३३२६
सिकंदरा, दौसा राजस्थान, ३०३३२६
मो.नं. ९७८२९२४४७९
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