विज्ञ छंद सागर
. २७२ छंद मय विधान . 'विज्ञ' . छंद सागर ............................. © बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ ---+---------+----------++------++-------+------+----------- विज्ञ रचित - *प्रमुख १०१ मात्रिक छंद* १. ~ हरिगीतिका-छंद ~ ११२१२,११२१२,११२१२,११२१२ चार चरण समतुकांत हो . ~ ईश वंदन ~ . ~~~~~ हर श्वाँस में मन आस ये, निभती रहे जग में प्रभो। मन में प्रभा बन आप की, विसवास से तन में विभो। तन आपके चरणों पड़ा, नित चाहता पद वंदनं। मन की कथा कुछ भिन्न है, मम कामना तव दर्शनं। . ...