विज्ञ छंद सागर
. २७२ छंद मय विधान
. 'विज्ञ'
. छंद सागर
............................. © बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
---+---------+----------++------++-------+------+-----------
विज्ञ रचित - *प्रमुख १०१ मात्रिक छंद*
१. ~ हरिगीतिका-छंद ~
११२१२,११२१२,११२१२,११२१२
चार चरण समतुकांत हो
. ~ ईश वंदन ~
. ~~~~~
हर श्वाँस में मन आस ये,
निभती रहे जग में प्रभो।
मन में प्रभा बन आप की,
विसवास से तन में विभो।
तन आपके चरणों पड़ा,
नित चाहता पद वंदनं।
मन की कथा कुछ भिन्न है,
मम कामना तव दर्शनं।
. ~~~~~
हर मौज में व्यवहार में,
प्रभु, आप ही रखवार हो।
हम से न सेवन बंदगी,
हरि, नाम खेवनहार हो।
हमको करो मत दूर हे,
हरि ,आप तारनहार हो।
दुख शोक रोग वियोग में,
हरि,आप पालनहार हो।
. ~~~~~
हम दीन हीन अनाथ हैं,
प्रभु पार तो हमको करो।
नव आस त्राण विधान दें,
वह मान भी सबको सरो।
जन दास *लाल* तिहार है,
अवमानना हरि क्यो़ं करो।
तन तार दे , मन मार दे,
तम कामना मन की हरो।
. ~~~~~
इस लोक में तम नाश हो,
हरि रोशनी तुम दीजिए।
तव लोक में मम वास हो,
मम आस पूरण कीजिए।
भव तार दे मन आस है,
हरि काज ये मन लीजिए।
हरि "लाल" के तन त्रास भी,
दुख पीर पय सम पीजिए।
. ~~~~
©~~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ
२. लावणी छंद
विधान:- १६+१४ प्रति चरण
चरणांत स्वैच्छिक
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
. __नमन__
वीणा पाणी, ज्ञान प्रदायिनी,
ब्रह्म तनया माँ शारदे।
सतपथ जन प्रिय सत्साहित,हित
कलम मेरी माँ तार दे।
मात शारदे नमन् लिखादे,
धरती, फिर नभ मानों को।
जीवनदाता प्राण विधाता,
मात पिता भगवानों को।
मात शारदे नमन लिखा दे,
सैनिक और किसानों को।
तेरे वरद पुत्र,माँ शारद,
गुरु, कविजन, विद्वानों को।
मात शारदे नमन लिखा दे,
भू पर मरने वालों को।
अपना सर्व समर्पण कर के,
देश बचाने वालों को।
मात शारदे नमन लिखा दे,
संसद अरु संविधान को।
मातृ भूमि की बलिवेदी पर,
अब तक हुए बलिदान को।
मात् शारदे नमन् लिखा दे,
जन मन मान कल्याण को।
भारत माँ के सत्य उपासक,
श्रम के पूज्य इंसान को।
मात शारदे नमन लि खादे,
माँ भारती के गान को।
मैं तो प्रथम नमामि कहूँगा,
माँ शारदे वरदान को।
- ---------
©~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा"बौहरा"
३. सार छंद
विधान:-- १६,१२ मात्राएँ प्रति चरण
. चरणांत मे गुरु गुरु
. ( २२,२११,११२,या ११११)
. नेह नीर मन चाहत
ऋतु बसंत लाई पछुआई,
बीत रही शीतलता।
पतझड़ आए कुहुके,कोयल,
विरहा मानस जलता।
नव कोंपल नवकली खिली है,
भृंगों का आकर्षण।
तितली मधु मक्खी रस चूषक,
करते पुष्प समर्पण।
बिना देह के कामदेव जग,
रति को ढूँढ रहा है।
रति खोजे निर्मलमनपति को,
मन व्यापार बहा है।
वृक्ष बौर से लदे चाहते,
लिपट लता तरुणाई।
चाह लता की लिपटे तरु के,
भाए प्रीत मिताई।
कामातुर खग मृग जग मानव,
रीत प्रीत दर्शाए।
कहीं विरह नर कोयल गाए,
कहीं गीत हरषाए।
मन कुरंग चातक सारस वन,
मोर पपीहा बोले।
विरह बावरी विरहा तन मे,
मानो विष मन घोले।
विरहा मन गो गौ रम्भाएँ,
नेह नीर मन चाहत।
तीर लगे हैं काम देव तन,
नयन हुए मन आहत।
काग कबूतर बया कमेड़ी,
तोते चोंच लड़ाते।
प्रेमदिवस कह युगल सनेही,
विरहा मनुज चिढ़ाते।
मेघ गरज नभ चपला चमके,
भू से नेह जताते।
नीर नेह या हिम वर्षा कर,
मन का चैन चुराते।
शेर शेरनी लड़ गुर्रा कर,
बन जाते अभिसारी।
भालू चीते बाघ तेंदुए,
करे प्रणय हित यारी।
पथ भूले आए पुरवाई,
पात कली तरु काँपे।
मेघ श्याम भंग रस बरसा,
यौवन जगे बुढ़ापे।
रंग भंग सज कर होली पर,
अल्हड़ मानस मचले।
रीत प्रीत मन मस्ती झूमें,
खड़ी फसल भी पक ले।
नभ में तारे नयन लड़ा कर,
बनते प्रीत प्रचारी।
छन्न पकैया छन्न पकैया,
घूम रही भू सारी।
. ____ ©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
.
४. विष्णुपद छंद
विधान --- १६,१० चरणांत गुरु
चार चरण,दो-दो चरण समतुकांत
........... क्या क्या जतन करें ?
. °°°°°°°
तुम्ही बताओ राधा रानी, क्या क्या जतन करें।
मन मोहन गिरधारी छलिया, काहे नृतन करे।
गोवर्धन को उठा कन्हाई, गिरधर नाम किये।
उस पर्वत से भारी जग में, बेटी जन्म लिये।
बेटी के यौतक पर्वत सम, कैसे पिता भरे।
आज बता हे नंद दुलारे, चिंता चिता जरे।
तुम्ही...........
लाक्षागृह से बचवाकर तू, जग को भ्रमित कहे।
घर घर में लाक्षा गृह सुलगे, क्या वे विवश दहे।
महा समर लड़वाय कन्हाई, रण मे नृतन करे।
घर-घर में कुरु क्षेत्र बने अब, रण के सत्य भरे।
तुम्ही..................
इक शकुनी की चाल टली कब?नटवर स्वयं बने।
अगनित नटवरलाल बने अब, शकुनी स्वाँग तने।
मित अर्जुन का मोह मिटाने, गीता कहन करे।
जन-मन मोहित माया भ्रम में, समझे मथन करे।
तुम्ही बताओ.........
नाग फनों पर नाच कन्हाई, हर फन कुचल दिए।
नागनाथ कब साँपनाथ फन,छल बल उछल जिए।
अब धृतराष्ट्र,सुयोधन घर पथ, सच का दमन करे।
भीष्म,विदुर,सब मौन हुए अब, शकुनी करन सरें।
तुम्ही बताओ.........
एक कंस हो तो हम मारे, इत उत कंस यथा।
नहीं पूतनाओं की गिनती,तम पथ दंश कथा।
मानव बम्म बने आतंकी, सीमा सदन भरे।
अन्दर बाहर वतन शत्रु अब, कैसे पतन करें।
तुम्ही बताओ..........
इक मीरा को बचा लिए थे, जिस से गरब थके।
घर घर मीरा घुटती मरती, कब तक रोक सके।
शिशू पाल मदमाते हर पथ, कैसे शयन करे।
कुन्ती गांधारी सी दुविधा, पट्टी नयन धरे।
तुम्ही............
विप्र सुदामा मित्र बना कर, तुम उपकार कहे।
बहुत सुदामा, विदुर घनेरे, लाखों निबल रहे।
जरासंध से बचते कान्हा, शासन सिंधु करे।
गली गली में जरासंध है, हम कित कूप परे।
तुम्ही बताओ.........
मन मोहन गिरधारी छलिया, काहे नृतन करे।
. --------
© ~~~~~~ बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
५. ककुभ छंद
विधान:--
. १६,१४...... मात्रा प्रति चरण
चरणांत.२२ गुरु गुरु
चार चरण, दो-दो समतुकांत
. __नव उम्मीदें__
नव उम्मीदें,नया आसमां,
यही विकासी सपना है।
जागृत हुआ गौर से देखा,
सारा भारत अपना है।
साहित्यिक सेवा भी करनी ,
. सत्य विरासत होती है।
नव उम्मीद..रूपमाला के,
. हम तुम सच्चे मोती हैं।
.
हर मोती की कीमत होती,
. सच ही यह सच्चाई है।
सब मिल जाते माला बनती,
. अच्छी यह अच्छाई है।
बनकर अच्छे मीत प्रलेखूँ
. सुन्दर माला का मोती।
जन गण मन की पीर लिखूँ जो,
. भारत माता को होती।
.
नव उम्मीदें,नया आसमां,
. तब नव आयाम रचेंगे।
काव्य कलम मुखरित हो जाए,
. फिर नव साहित्य सजेंगे।।
नव उम्मीदें, नया आसमां,
. सुधिजन रचनाकारों का।
सबके सब मिलके कर देंगे,
. युग को नव आकारों का।
.
चाहे जितनी बाधा आए,
. कवि का धर्म निभाना है।
नई सोच से नव उम्मीदें,
. नव पथ भी दिखलाना है।
मुक्त परिंदे बन के हम तो,
. नित फिर आसमान नापें।
नव उम्मीद भरेंगें मिलकर,
. बाधाओं से क्या काँपें।
.
निज नीड़ों को क्यों भूलें हम,
. भारत की संस्कृतियों को।
पश्चिम की आँधी को रोकें
. मिलकर सब विकृतियों को।
हिन्दी के हित नव उम्मीदें,
. देश,धरा मानवता की।
नया आसमां हम विचरेंगे,
. कविता गाने सविता की।।
. ------+---
©~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ
६. दोही छंद
विधान:- दोहे की तरह चार चरण होते हैं।
विषम चरण- १५ मात्रा, चरणांत २१२
सम चरण में- ११ मात्रा, चरणांत २१
. सावन
. .............
. १
सावन शृंगारित कर रहा, वसुधा, नारि, पहाड़।
सागर सरिता शिव सत्य हैं, नाग विल्व वन ताड़।।
. २
दादुर पपिहा पिक मोर शुक, नारी धरा किसान।
सबकी चाहत जल नेह की, सावन सरस सुजान।।
. ३
नारि केश पिव घन नीर को, देख नचे मन, मोर।
निशदिन ही सपन सुहावने, पिवमय चाहत भोर।।
. ४
लता लिपटती तन पेड़ से, धरा चाहती मेह।
जीव जन्तु नर सब रत रति, विरहा चाहत नेह।।
. ५
कंचन काया सी कामिनी, प्राकृत मय ईमान।
पेड़ लगाले जल संचयन, सावन काज महान।।
. ________
© ~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा,"बौहरा" विज्ञ
७. सगुण छंद
विधान:-- १९ मात्रा प्रति चरण
१,६,११,१६,१९ वीं मात्रा लघु हो।
चरणांत- १२१ हो।
चार चरण, दो-दो समतुकांत
. __पावन प्यार__
सुनें हम मन की कहें सत्य विचार।
करें हम मन की, सुनें भिन्न प्रकार।
पथी हम सब हैं, चले राह सँभाल।
मिले पथ पर भी, कई चाल कुचाल।
रहें श्रम रत ही लिए हाथ कुदाल।
लगे तरु पथ में बनें छाँव कमाल।
बढे हर पग तो बजे सावन राग।
मिले जन जन से, सजे पावन फाग।
रहे नभ घन में गिरे रिमझिम धार।
बजे लय स्वर से खिंचे सरगम तार।
मिले प्रिय मन से लिए साजन हार।
बहे रस मधु सा पले पावन प्यार।
. -------------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ
८. सुमेरु छंद
विधान:-- प्रति चरण में, १२+७=१९
या १०+९=१९ मात्रा होती है।
१,८,१५ वीं मात्रा लघु अनिवार्य है।
चरणांत २२१,१२१,२१२,२२२ वर्जित
चरणांत २२ से छंद अच्छा बनता है।
. ..........
. प्रीत पालन
. १
चढ़ी घटा नभ काली, रात सजना।
कहे हवा पुरवाई, चैन तजना।
खड़ी सखी सब हँसती, दंत भींंचे।
बया युगल रति क्रीड़ा, ध्यान खींचे।
. २
लता लिपट तरु शाखा, देख लजती।
कभी विरह फिर यादें, स्वप्न सजती।
डरूँ कभी तन कंपन, रात सावन।
करूँ विनय मन साजन, प्रीत पालन।
. ३
गये बहुत दिन बीते, याद आती।
निशा गहन मन मचले, गीत गाती।
कहूँ आज मन बतियाँ, प्रीत भावे।
महा मिलन यह सावन, रीत लावे।
. ---------------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९. शास्त्र छंद
विधान:--- २० मात्रा प्रति चरण
१,८,१५,२०,वीं मात्रा लघु हो
चरणांत २१ गुरु लघु हो
चार चरण, दो-दो समतुकांत
. __मानस__
सभी का सावन सा जीवन हो नित्य।
प्रकाशित हो मन में पावन आदित्य।
सुवासित हो वन भी मानव की प्रीति।
प्रभावित मानस भव सागर की रीति।
सदा ही मानव का यौवन आनंद।
जरापन जीवन मे व्यापित पैबंद।
हरा हो सावन सा फागुन में गीत।
चलें वे फागुन की सावन में रीत।
प्रवाहित हो जल में नीरज मकरंद।
प्रताड़ित हैं मन से मानव मतिमंद।
नदी के सागर से उत्तम सम्बन्ध।
सभी के मानव से पावन अनुबंध।
. -------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१०. सिन्धु छंद
विधान:-- २१ वर्ण प्रति चरण
१,८,१५ वीं मात्रा लघू हो
चार चरण, दो-दो समतुकांत
. __भुला दे प्रीत परदेशी__
हिमालय ताज कहलाता रजत जैसा।
बहाती गंग नद पानी अमृत जैसा।
हमारा देश अपना है हृदय मानो।
भुला दे प्रीत परदेशी वतन जानो।
महासागर चरण धोता सजल करता।
जहाजो का सुगम पंथी वचन भरता।
हमारा देश जग नेता गगन चढ़ता।
उठालें वीर बस ऐसा कदम बढ़ता।
किसानी कर्म दाता का उदर भरना।
जवानी धर्म मानव का समर मरना।
हमारा देश मानित है जगत गुरु था।
भगाए यवन हमने ही, नृपति पुरु था।
. --------+--------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
११ . दिगपाल/मृदुगति छंद
विधान:-- २४ मात्रा प्रति चरण
१२,२४ वीं मात्रा पर यति
आदि में समकल हो
५,८,१७,२०, वीं मात्रा लघु हो
. __भारत लगे सुहाना__
पावन रहे सदा ही धारा नदी बहे तो।
सावन रहे धरा पर मानव श्रमी रहे तो।
सूरज करे प्रकाशित भू को कृपा विधाता।
मौसम सदा सुवासित भावन लगे सुहाता।
धरती सदा सुहागिन लगती रहे हरी तो।
जननी रहे सपूती अपनी हरी भरी तो।
भारत लगे सुहाना वीरों तुम्ही भरोसे।
आरत मिटा भगाओ धीरों खुशी परोसें।
सीमा बने सुरक्षित अपनी भुजा उठाओ।
दुश्मन रहे सशंकित ऐसी जुगत बिठाओ।
मानव बने विचारक ज्ञानी सहज सनेही।
शासन सरल स्वतंत्र हमारा निभे विदेही।
. -------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१२. बिहारी छंद
विधान:-- २२ मात्रा प्रति चरण
१४,२२वीं मात्रा पर यति
५,६,११,१२,१७,१८ वीं मात्रा लघु हो।
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
__नटवर नागर मेरे__
हे कृष्ण तुम्ही हो नटवर, नागर मेरे।
मैं शरण तुम्हारी गिरधर, प्रेम चितेरे।
हे श्यामल मीरा बन कर, गीत सुनाऊँ।
राधे बन श्याम बिलखकर, मीत बनाऊँ।
हूँ द्रुपद सुता सा भय मय, चीर बढाओ।
मैं गरल सनेही पथ पर,अमिय पिलाओ।
हे नाथ सुदामा द्विज दर, मीत निभाना।
यह ठीक नहीं यूँ दर दर, भीख मँगाना।
मैं भक्ति विलासी कविजन, नेह रचाता।
ले कलम कबीरा सत पथ, छंद बनाता।
हे पार्थ सखे हे गुरु वर, स्वप्न् बिहारी।
ले प्राण भले ले तन धन, 'विज्ञ' विचारी।
. ----------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१३. कुण्डलिनी छंद
. (विषम मात्रिक)
विधान:-- २४ मात्रा प्रति चरण
दोहा + अर्द्ध रोला
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
छंद के आदि का शब्द अंत में हो।
. राजा
. °°°°°°°
राजा रजवाड़े सभी , राजतंत्र अंग्रेज!
शाह सल्तनत रानियाँ, हुए आज निस्तेज!
हुए आज निस्तेज, हटे था समय तकाजा!
जीवित सभी निशान, शान से रहते राजा!
राजा लड़ते थे सदा, रही फूट में लूट!
लाभ उठाते गैर थे, नीति विदेशी कूट!
नीति विदेशी कूट, बजाते अपना बाजा!
टला नहीं दुर्भाग्य, लड़े अब भी नव राजा!
. __भोला__
भँवरे भामा भामिनी, भंग भजन भगवान!
भाव भलाई भावना, भावुक भले भवान!
भावुक भले भवान, यथा मति जीवन सँवरे!
भाग्य भरोसे भास, भ्रमें मत मानस भँवरे!
. °°°°°°°°°°°
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१४. निश्चल छंद
. (सम मात्रिक)
विधान :-- २३ मात्रा प्रति चरण
१६,२३ वीं मात्रा पर यति
चरणांत २१ गुरु लघु हो
चार चरण, दो दो समतुकांत
. भोर
. ---------
भोर काल जल्दी उठ भाई, बिस्तर छोड़।
आलस मत खोवे तरुणाई, मानस मोड़।
जग कर नमन करो तुम धरती, माता मान।
दूजा नमन पिता अरु जननी, हैं अरमान।
नीर नवाया पी भर लोटा, हितकर पान।
श्वाँस कभी मत लेना छोटा, यह लो जान।
शौच क्रिया कर मंजन करना, साथी नित्य।
तन में आलस कभी न भरना,भर आदित्य।
आसन बैठ कलेवा करना, घर का शुद्ध।
दैनिक जीवन हेतु सँवरना, जैसे युद्ध।
सत्य अहिंसा रखना मन में, पावन प्रीत।
अवगुण दूर रखो जीवन में, सुन लो मीत।
. ------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१५. शंकर छंद
विधान :-- २६ मात्रा प्रति चरण
१६,२६ वीं मात्रा पर यति
चरणांत गुरु लघु ( २१ )
चार चरण, दो-दो समतुकांत
. __मानव मानस पशु में अंतर__
शिक्षा जीवन का है मोती, सत्य सुन मनमीत।
सबको आवश्यकता होती, मित्र गाओ गीत।
मानव मानस पशु मे अंतर, विज्ञ कर पहचान।
शिक्षा से बढ़ रहा निरंतर, सिद्ध भव विज्ञान।
शिक्षा से जनजीवन सँवरे,सिंधु शोध विधान।
बिन शिक्षा के भटके भँवरे, बिना पंख उड़ान।
रोजगार के अवसर मिलते, योग्य युवको हेतु।
शिक्षा से सरोज मन खिलते, सिंधु बाँधे सेतु।
आज समस्या बेरुजगारी, बनी यह विकराल।
आलस ने सब बात बिगारी, पूत खोए काल।
शिक्षा सहित बने श्रमजीवी, श्वेद चमके भाल।
नर दोनों बिन बन परजीवी, विज्ञ बाबू लाल।
. ------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१६. पदपादाकुलक छंद
विधान-- १६ मात्रा प्रति चरण
आदि में द्विकल अनिवार्य है
चार चरण, दो-दो समतुकांत
__पाँचों पूज्या पावन माई__
प्रात: नमन मात को करना।
धरती गौ माँ सम आचरना।
माँ धरती सम धरती माँ सम।
मन से वन्दन करना हर दम।
गौ माता भी मात सरीखी।
बचपन से ही हमने सीखी।
माँ गंगा है पतिता पावन।
यमुना सबको हृदयाभावन।
शारद माता विद्या देती।
तम अज्ञान सभी हर लेती।
पाँचो पूज्या पावन माई।
शर्मा 'विज्ञ' छंद मय गाई।
. ------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१७. जयकरी / चौपई छंद
विधान:-- १५ मात्रा प्रति चरण
चरणांत में गुरु लघु २१ हो
चार चरण दो-दो समतुकांत हो
. __मनभावन प्रीत__
. .....
सावन मास पुन्य मनमीत।
मोर पपीहा दादुर गीत।
नभ में छाएँ बादल श्याम।
रिमझिम वर्षा प्रात: शाम।
पूजे कनक चढ़ा जल आक।
मूर्ति शिंभु सेवक नित ताक।
झूलन चाह कुमारी पींग।
याद रहे नट कान्हा धींग।
हर्षित कृषक बावरे खेत।
भरते गमले पौधे रेत।
सर सरिता वन बाग तलाव।
नीर भार खुशहाली बाव।
प्रियतम से मिलने की होड़।
जड़ चेतन तट बंधन तोड़।
सावन पावन वर सुख रीत।
भक्ति शक्ति मनभावन प्रीत।
. ------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१८. पादाकुलक छंद
विधान:-- १६ मात्रा प्रति चरण
चार चौकल हों, त्रिकल वर्जित
चार चरण, दो-दो समतुकांत
__पालीथिन के खतरे__
क्या देखोगे दिन में तारे।
पाँलीथिन के खतरे भारे।
पालीथिन बढ़ता धरती पर।
मैं कहना चाहूँ विनती कर।
गौ माता अपनी माता है।
कहना ही सबको आता है।
आवारा सड़को पर डोले।
कचरा पालीथिन पर टोले।
भारत माँ धरती को कहते।
कैसे अपमानों को सहते।
व्यापित है हर नद रेती में।
पालीथिन ज्यो फल खेती में।
----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१९. शुद्ध गीता छंद
विधान:-- २७ मात्रा प्रति चरण
१४,२७ वीं मात्रा पर यति
आदि में २१ होता है।
३,१०,१७,२४,२७ वीं मात्रा लघु रहे।
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
. __मिलन मीत__
. १
भोर कुहासा ऋतु शीतल,
तैर रहे घन दल मेह।
बाग बगीचे विमल बनें,
वन तरु जाने नभ नेह।
तृषित पपीहा तप भीषण,
बोल मेह के हित शोर।
पावस समझे विपद इसे,
कोयल कामी जन चोर।।
. २
चाह फूल से मन मेले,
मन भँवरे हर नर देह।
पंथ निहारे मिलन मीत,
याद करे सब हिय गेह।।
रीत बसंती विपद सहे,
सावन सिमटे नम नैन।
विरह कोकिला कुहुक रही,
'विज्ञ' मानसिक तज चैन।
. ~~~~
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
२०. सारस छंद
विधान :-- २४ मात्रा प्रति चरण
१२,२४ वीं मात्रा पर यति
आदि में विषम कल हो
३,४,९,१०,१५,१६,२१,२२ वीं
मात्रा अनिवार्यतः लघु हो।
. धूप सहे यौवन भी
. °°°°°°°
. १
धूप दुपहरी चुभती,
पकती फसलें झरती।
शाम सुबह ये मधु सी,
नष्ट विषाणू करती।
माह फरवरी लगते,
मंद पछुवात चलती।
धूप सहे यौवन भी,
फसल तपे से पकती।
. २
धूप खिले कलियाँ भी,
फूल तितलियाँ चखती।
चमक पलाश चमकती,
नारि विरह में तकती।
फसल पकेगी तप सह,
तन मन रंग सरगमी।
फाग मय राग जलती,
यौवन होली गरमी।
. °°°°°°°°°°
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
२१. मुक्तक
विधान:- सम मात्रिक
किसी भी छंद आधारित या मापनी आधारित चार चरण की रचना।
चारों चरण में मात्रा भार समान हो।
१,२,४,चरण समतुकांत हो जबकि तृतीय चरत अतुकान्त हो
. __विधाता छंद मुक्तक__
. __सपूतों की सदा जय हो__
विदेशी, राजतंत्री निज, फिरंगी तंत्र ढोने तक।
गुलामी की निशानी से, वतन आजाद होने तक।
धरा को *लाल* कर दी थी, सपूतों ने लहू से ही।
नही झिझकी महा माता, करोड़ों पूत खोने तक।
तिरंगा जा रहा नभ तक,झलक लगती रुहानी है।
शहीदों की बदौलत ही, विरासत की कहानी है।
करोडों *लाल* खोए तब, हुए आजाद हम साथी।
शहादत की इबादत में, अमानत यह बचानी है।
सिपाही देश के सैनिक, जवानों की सदा जय हो।
हमारे अन्न दाता की, किसानों की सदा जय हो।
किये आजाद निज सिर वे,वतन आजाद होने को।
शहीदों के पिताओं की, सपूतों की सदा जय हो।
शहीदों की चिताओं पर, यही सौगंध ले लेना।
रखें हम मान भारत का, यही सौगात दे देना।
पड़ोसी हो, पराया हो, नहीं भू इंच भर देंगे।
जमाने को यही साथी, सदा पैगाम कह देना।
. -------+-------
©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
२२. रोला छंद
विधान:-- २४ मात्रा प्रति चरण
विषम चरण-११ मात्रा, चरणांत २१, सम चरण - १३ मात्रा चरणांत २२ वाचिक भार
११पर यति पश्चात त्रिकल हो।
चार चरण, दो-दो समतुकांत
__गीता के उपदेश__
गीता के उपदेश, पार्थ को कृष्ण सुनाते।
अर्जुन त्यागो मोह, सभी तो आते जाते।
रिश्ते नाते नेह, सभी जीवित के नाते।
मृत्यु सत्य सम्बंध, साथ नही कोई पाते।
क्या लाए थे साथ, नहीं लेकर कुछ जाना।
अमर आत्म पहचान, लगे बस जाना आना।
सभी ईश मुख जाय, निकलते सभी वहाँ से।
करते रहो सुकर्म, ईश दें सुफल यहाँ से।
लगे धर्म को हानि, अवतरे ईश धरा पर।
संतो हित सौगात, मरे सब दुष्ट सरासर।
उठो पार्थ तत्काल, धर्म हित करो लड़ाई।
करो पूर्ण कर्तव्य, भावि में मिले बड़ाई।
धरा मिटे संताप, अधर्मी पापी मारो।
सत्य धर्म हित मान, कौरवी दल संहारो।
समझो सब को मर्त्य,मिले अमरत्व मनुजता।
सृष्टि चक्र सु विचार,मिटे बल सोच दनुजता।
. ---------+---------
©~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
२३. कुण्डलिया छंद
विधान-- २४ मात्रा प्रति चरण
एक दोहा+ एक रोला
६ चरण का छंद है, दो-दो समतुकांत हो।
जिस शब्द से प्रारंभ हो उसी से अंत हो।
__ऋतु बासंती प्रीत__
आता है ऋतुराज जब,चले प्रीत की रीत।
तरुवर पत्ते दान से, निभे धरा-तरु प्रीत।
निभे धरा-तरु प्रीत, विहग चहके मनहरषे।
रीत प्रीत मनुहार, घटा बन उमड़े बरसे।
शर्मा बाबू लाल, सभी को मदन सुहाता।
जीव जगत मदमस्त, बसंती मौसम आता।
भँवरा तो पागल हुआ, देख गुलाबी फूल।
कोयल तितली बावरी, चाह प्रीत, सब भूल।
चाह प्रीत,सब भूल, नारि-नर सब मन महके।
चाहे पुष्प पराग, काम हित खग मृग बहके।
शर्मा बाबू लाल, मदन हित हर मन सँवरा।
विरह-मिलन के गीत, सुने सब गाता भँवरा।
चाहे भँवरा पुष्परस, मधुमक्खी मकरंद।
सबकी अपनी चाह है, हे बादल मतिमंद।
हे बादल मतिमंद, बरस मत खारे सागर।
रीत प्रीत की ढूँढ, धरा मरु खाली गागर।
बासंती मन *लाल*,भरो मत विरहा आहें।
कर मधुकर सी प्रीत, चकोरी चंदा चाहे।
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©~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
२४. विधाता छंद
विधान-- २८ मात्रा प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
मापनी १२२२ १२२२, १२२२ १२२२
__प्रार्थना__
सुनो ईश्वर यही विनती, यही अरमान परमात्मा।
मनुजता भाव हो मुझमें,बनूँ मानव सुजन आत्मा।
रहूँ पथ सत्य पर चलता, सदा आतम उजाले हो।
करूँ इंसान की सेवा, इरादे भी निराले हो।
गरीबों को सतत ऊँचा, उठाकर मान दे देना।
यतीमों की करो रक्षा, भले अरमान दे देना।
प्रभो संसार की बाधा, भले मुझको सभी देना।
रखो ऐसी कृपा ईश्वर, मुझे अपनी शरण लेना।
सुखों की होड़ में दौड़ूँ, नहीं मन्शा रखी मैने।
उड़े आकाश में ऐसे, नहीं चाहे कभी डैने।
नहीं है मोक्ष का दावा, विदाई स्वर्ग तैयारी।
महामानव नहीं बनना, कन्हैया लाल की यारी।
रखूँ मैं याद मानवता, समाजी सोच हो मेरी।
रचूँ मैं छंद मानुष हित, करूँ अर्पण शरण तेरी।
करूँ मैं देश सेवा में, समर्पण यह बदन अपना।
प्रभो अरमान इतना सा, करो पूरा यही सपना।
यही है प्रार्थना मेरी, सुनो अर्जी प्रभो मेरी।
नहीं विश्वास दूजे पर, रही आशा सदा तेरी।
. -----------
©~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
२५. सरसी छंद
विधान
१६ + ११ मात्रा ,पदांत २१(गाल)
चौपाई+दोहा का सम चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
__हम तुम छेडें राग__
बीत बसंत होलिका आई, अब तो आजा मीत।
फाग रमेंगें रंग बिखरते, मिल गा लेंगे गीत।
खेत फसल सब हुए सुनहरी, कोयल गाये फाग।
भँवरे तितली मन भटकाएँ, हम तुम छेड़ें राग।
घर आजा अब प्रिय परदेशी, मैं करती फरियाद।
लिख कर भेज रही मैं पाती, रैन दिवस की याद।
याद मचलती पछुआ चलती, नही सुहाए धूप।
बैरिन कोयल कुहुक दिलाती, याद तेरे मन रूप।
साजन लौट प्रिये घर आजा, तन मन चाहे मेल।
जलता बदन होलिका जैसे, चाह रंग रस खेल।
मदन फाग संग बहुत सताए, तन अमराई बौर।
चंचल चपल गात मन भरमें, सुन कोयल का शोर।
निंदिया रानी रूठ रही है, रैन दिवस के बैर।
रंग बहाने से हुलियारे, खूब चिढ़ाते गैर।
लौट पिया जल्दी घर आना, तुमको मेरी आन।
देर करोगे, समझो सजना, नहीं बचें मम प्रान।
. ---------+--------
©~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
२६. सार छंद
विधान-- २८ मात्रा प्रति चरण
(१६,१२ मात्राएँ) चरणांत मे गुरु गुरु
( २२,२११,११२,या ११११)
. __नेह नीर मन चाहत__
ऋतु बसंत लाई पछुआई, बीत रही शीतलता।
पतझड़ आए कुहुके,कोयल,विरहा मानस जलता।
नव कोंपल नवकली खिली है,भृंगों का आकर्षण।
तितली मधु मक्खी रस चूषक,करते पुष्प समर्पण।
बिना देह के कामदेव जग, रति को ढूँढ रहा है।
रति खोजे निर्मलमनपति को,मन व्यापार बहा है।
वृक्ष बौर से लदे चाहते, लिपट लता तरुणाई।
चाह लता की लिपटे तरु के, भाए प्रीत मिताई।
कामातुर खग मृग जग मानव, रीत प्रीत दर्शाए।
कहीं विरह नर कोयल गाए, कहीं गीत हरषाए।
मन कुरंग चातक सारस वन, मोर पपीहा बोले।
विरह बावरी विरहा तन मे, मानो विष मन घोले।
विरहा मन गो गौ रम्भाएँ, नेह नीर मन चाहत।
तीर लगे हैं काम देव तन, नयन हुए मन आहत।
काग कबूतर बया कमेड़ी, तोते चोंच लड़ाते।
प्रेमदिवस कह युगल सनेही, विरहा मनुज चिढ़ाते।
मेघ गरज नभ चपला चमके, भू से नेह जताते।
नीर नेह या हिम वर्षा कर, मन का चैन चुराते।
शेर शेरनी लड़ गुर्रा कर, बन जाते अभिसारी।
भालू चीते बाघ तेंदुए, करे प्रणय हित यारी।
पथ भूले आए पुरवाई, पात कली तरु काँपे।
मेघ श्याम भंग रस बरसा, यौवन जगे बुढ़ापे।
रंग भंग सज कर होली पर,अल्हड़ मानस मचले।
रीत प्रीत मन मस्ती झूमें,खड़ी फसल भी पक ले।
नभ में तारे नयन लड़ा कर, बनते प्रीत प्रचारी।
छन्न पकैया छन्न पकैया, घूम रही भू सारी।
. ------+------
©~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
२७. आल्हा/वीर छंद
विधान:-- १६,१५ ,पर यति कुल ३१ मात्रा
मात्रिक छंद ,दो पंक्तियों मे
तुकांत गुरु लघु
. __हल्दीघाटी समर__
हल्दीघाटी समरांगण में,सेना थी दोनो तैयार।
मुगलों का भारी लश्कर था,इत राणा,रजपूत सवार।
आसफ खाँन बदाँयूनी भी,लड़ते समर मुगलिया शान।
शक्ति सिंह भी बागी होकर,थाम चुका था मुगल मचान।
राणा अपनी आन बान की,रखते आए ऊँची शान।
मुगलों की सेना से उसने,कीन्हा युद्ध बड़ा घमसान।
सूरी हाकिम खान दागता,तोपें गोले बारम्बार।
तोप सामने जो भी आते,मुगलों की होती बरछार।
तोप धमाके भील लड़ाके,मुगल अश्व हाथी बदकार।
मानसिंह बेचैन हो गया,उत काँपे अकबर दरबार।
राणा घायल थकित समर में,चेतक होता लहूलुहान।
झाला मान वंश बलिदानी,आया बीच समर में मान।
आन बान को खूब निभाया,चेतक स्वामिभक्त बलवान।
राणै नैन मेघ से झरते,चेतक सखा वीर वरदान।
युद्ध विजेता किसको कह दूँ,धर्म विजेता शक्ति प्रताप।
ऐसे वीर हुए जिस भू पर,हरते मातृभूमि संताप।
वन वन भटका था वो राणा,मेवाड़ी रजपूती भान।
हरे घास की रोटी खाकर,रखता मातृभूमि की आन।
धन्य धन्य मेवाड़ी धरती, राणा एकलिंग दीवान।
गढ़ चित्तौड़ उदयपुर वंदन,हल्दीघाटी धरा महान।
मन के भाव शब्द बन जाते, लिखता शर्मा बाबू लाल।
चंदन माटी हल्दीघाटी,उन्नत सिर मेवाड़ी भाल।
जून अठारह सन पन्द्रह सौ,साल छिहेत्तर की है बात।
महाराणा प्रताप प्रतापी,मायड़़ की अनुपम सौगात।
. -------+-----
©~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
२८. मधुमालती छंद
विधान. २२१२, २२१२
चार चरण, दो-दो समतुकांत
. __माँ...जानकी__
.
पद पायलें, अनमोल थी,सिय राम के,मन बोल थी।
दसकंठ ने, हर जानकी,बाजी लगा, दी जान की।
हाः राम जी,प्रभु मान भी,मानी न मैं,वह आन भी।
दशकंठ ली, हर पातकी,दोषी बनी ,निज जानकी।
क्रोधी जटायू था भिड़ा,जाने न दे ,सिय को अड़ा।
सिय राम के,हित मान की,चिंता नहीं , तब जान की।
पथ में लखे,कपि थे भले,पटकी वही,..पद पायलें।
मग शैल वे, पहचान की,मन सोच के,तब जानकी।
वन राम जी, मग डोलते,खोजत फिरे ,मन बोलते।
बजती,सुने,सिय मान की,मन पायले, बस जानकी।
हनुमान जी, द्विज वेष में,प्रभुभक्ति के, परिवेश मे।
प्रभु से कही,अरमान की,वन राम के, मन जानकी।
गिरि पे मिले, सुग्रीव से,मन मीत से, भगवान से।
कहि बंधु के,वरदान की,करि खोजने,प्रण जानकी।
प्रभुराम जी,कहि भ्रात से,लक्ष्मण सुनें,मन ध्यान से।
पायल यही ,क्या जानकी,भैया, क्षमा,मम जान की।
पद पूज्य वे ,पहचान के,रज पूजता ,पद मात के।
पर पायलें, नहि भान की,पदरज नमन,माँ जानकी।
जग मात है, वरदान है,सिय भारती ,पहचान है।
रघु वंश के ,सन् मान की,रघुवर प्रिया,माँ जानकी।
. -------+-----
©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
२९. चौपाई छंद
विधान-- १६ मात्रा प्रति चरण
चार चरण दो-दो समतुकांत
चरणांत- २२ वाचिक भार
. __माँ__
एक दंत का नाम उचारूँ। हंस वाहिनी भाव विचारूँ।।
मात पिता गुरुजन की सेवा। शरण रहूँ गौरी गण देवा।।१
प्रात नमन माता को करना। धरती गौ माँ सम आचरना।।
माँ धरती सम धरती माँ सम। मन से वंदन करलें हरदम।।२
गौ माता है मात सरीखी। बचपन से ही हमने सीखी।
माँ गंगा है पतितापावन। यमुना सबको हृदयाभावन।।३
शारद माता विद्या देती। तम अज्ञान सभी हर लेती।।
माँ से बढ़कर नाम न कोई। इस से छोटा शब्द न होई।।४
प्रथम गुरू कहलाती माता। ईश्वर तुल्य जन्म नर पाता।।
माँ है त्याग क्षमा की मूरत। देखी प्रथम उसी की सूरत।।५
माँ तक ही खुशियों का मेला। माँ जाए मन हुआ अकेला।।
माँ की महिमागान असंभव। करले सेवा तो सब संभव।।६
ईसा ईश्वर पीर संत वर। माँ के उदर पले धरनी पर।।
प्रसव काल लख संकट भारी। धरती गर्भ सृष्टि संचारी।।७
तन मन सुख न्यौछावर करती। सारे दुख सहती सम धरती।।
भूख प्यास सुख चैन भुलाती। पहले निज शिशु कौर खिलाती।।८
जन व्यवहारी शिक्षा देती। संतति हित जग से लड़ लेती।।
माँ हमको आजीवन सहती। संतति हित सब बातें कहती।।९
भारत माता हमको प्यारी। वस्त्र तिरंगा शुभ तनधारी।।
धन्य जन्म मानस जो पाए। माता वृद्धाश्रम क्यों जाए।।१०
ममता त्याग प्रेम की सूरत। दया भावना माता मूरत।
शर्मा बाबू लाल दुहाई। माँ पितु को अर्पित चौपाई।।११
. -------+-----
©~~~~~~~~~~~`बाबूलालशर्मा
३०. ताटंक छंद
विधान-- ,३० मात्रा प्रति चरण
१६,१४, मात्रिक छंद,चरणांत में,
तीन गुरु (२२२) अनिवार्य है।
दो, दो चरण समतुकांत हो।
चार चरण का एक छंद होता है।
. __दीप शिखा__
. (रानी झांसी से प्रेरणा )
सुनो बेटियों जीना है तो,शान सहित,मरना सीखो।
चाहे, दीपशिखा बन जाओ,समय चाल पढ़ना सीखो।
रानी लक्ष्मी दीप शिखा थी,तब वह राज फिरंगी था।
दुश्मन पर भारी पड़ती पर,देशी राज दुरंगी था।
बहा पसीना उन गोरों को,कुछ द्रोही रजवाड़े में।
हाथों में तलवार थाम मनु,उतरी युद्ध अखाड़े में।
अंग्रेज़ी पलटन में उसने,भारी मार मचाई थी।
पीठ बाँध सुत दामोदर को,रण तलवार चलाई थी।
अब भी पूरा भारत गाता,रानी वह मरदानी थी।
लक्ष्मी, झाँसी की रानी ने, लिख दी अमर कहानी थी।
पीकर देश प्रेम की हाला,रण चण्डी दीवानी ने।
तुमने सुनी कहानी जिसकी,उस मर्दानी रानी ने।
भारत की बिटिया थी लक्ष्मी,झाँसी की वह रानी थी।
हम भी साहस सीख,सिखायें,ऐसी रची कहानी थी।
दिखा गई पथ सिखा गई वह,आन मान सम्मानों के।
मातृभूमि के हित में लड़ना,जब तक तन मय प्राणों के।
.
नत मस्तक मत होना बेटी,लड़ना,नाजुक काया से।
कुछ पाना तो पाओ अपने,कौशल,प्रतिभा,माया से।
स्वयं सुरक्षा कौशल सीखो,हित सबके संत्रासों के।
दृढ़ चित बनकर जीवन जीना, परख आस विश्वासों के।
.
मलयागिरि सी बनो सुगंधा,बुलबुल सी चहको गाओ।
स्वाभिमान के खातिर बेटी,चण्डी ,ज्वाला हो जाओ।।
तुम भी दीप शिखा के जैसे,रोशन तमहर हो पाओ।
लक्ष्मी, झांसी रानी जैसे,पथ बलिदानी खो जाओ।
बहिन,बेटियों साहस रखना, मरते दम तक श्वांसों में।
रानी झाँसी बन कर जीना, मत आना जग झाँसों में।
बचो,पढ़ो तुम बढ़ो बेटियों,चतुर सुजान सयानी हो।
अबला से सबला बन जाओ, लक्ष्मी सी मरदानी हो।
दीपक में बाती सम रहना,दीपशिखा, ज्वाला होना।
सहना क्योंं अब अनाचार को,ऐसे बीज धरा बोना।
नई पीढ़ियाँ सीख सकेंगी,बिटिया के अरमानों को।
याद रखेगी धरा भारती,बेटी के बलिदानों को।
शर्मा बाबू लाल लिखे मन,द्वंद छन्द अफसानों को।
बिटिया भी निज ताकत समझे,पता लगे अनजानों को।
बिटिया भी निजधर्म निभाये,सँभले तज कर नादानी।
बिटिया,जीवन में बन रहना,लक्ष्मी जैसी मर्दानी।
. ----+----
©~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
३१. शिव छंद
विधान-
. ११ मात्रा प्रति चरण
३,६,९, वीं मात्रा लघु अनिवार्य
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
__मानस मतदान हो__
देश राग कामना।
शुद्ध भाव भावना।
आन बान शान हो।
मानस मतदान हो।
जन्म भूमि भारती।
नित्य सत्य आरती।
वीरवर गुमान हो।
मानस मतदान हो।
वतन में अमन रहे।
शांति की मलय बहे।
संविधान मान हो।
मानस मतदान हो।
रीत प्रीत की निभे।
मीत गीत गा शुभे।
गर्व राष्ट्र गान हो।
मानस मतदान हो।
. -----+----
~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
३२. गीता छंद
विधान-
. २६ मात्रा प्रति चरण
२२१२ २२१२ २२१२ २२१
१४,१२ पर यति,
चार चरण, दो-दो पद समतुकांत
. " पंछी पिया कलरव करे "
होली मचे फागुन रमें, फसलें रहे आबाद।
पंछी पिया कलरव करे, उड़ते फिरे आजाद।
मैं तो हुई बेचैन हूँ, मिलने तुम्हे पिव आज।
आओ प्रिये फागुन चला,अबतो सँवारो काज
फसलें पकी हैं झूमती,मिलके करें खलिहान।
सखियाँ सभी है खेलती, बिगड़े हमारी शान।
आजा विदेशी पाहुने, खेलें स्वदेशी रंग।
साजन हमारे साथ हों, फरके पिया मम अंग।
कोयल सनेही बोलती,लागे अगन सुन गीत।
ये रंग भँवरे फूल पर, वह राग भी सुन मीत।
फागुन सनेही मीत है, तू मान मेरी बात।
कैसे बताऊँ भोर की, जो बीतती है रात।
कब तक निहारूँ बाट मैंं, साजन बने बे पीर।
नदिया बनीे आँखे बहे, अब पीव हम दो तीर।
मिलना लिखे हो भाग्य में,होली निहारूँ बाट।
कैसे मिलूँ मै जीवती, पकड़ी मनो हूँ खाट।
,. -----+---
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
३३. तंत्री छंद
विधान- प्रतिचरण ३२ मात्रायें
८,८,६,१० मात्रा पर यति
चरणांत २२, चार चरण
दो दो चरण समतुकांत।
. " नयन तीसरा नही खोलना "
हे कैलाशी , घट घट वासी,
मन मेरा ,दर्शन अभिलाषी।
हे शिव शंकर , प्रलयंकारी,
तांडव कर,भोले अविनाशी।
डमरू वाले , गौरी शंकर,
कर त्रिशूल, बाघम्बर धारी।
हे,जगपालक, जगसंहारक,
भूतनाथ, शिव मंगलकारी।
कंठ हार में, नाग सोहते,
नीलकंठ, भोले त्रिपुरारी।
जटाजूट सिर, चन्द्र गंग है,
भंग विल्व, संगत आहारी।
हे परमेश्वर , करता सेवा,
विनती सुन, ले नाथ हमारी।
दुष्टदलन कर,भक्तों के हित,
निर्मल जग,देना अविकारी।
नयन तीसरा, नहीं खोलना,
समय नहीं, देवा आया है।
सृष्टि हमारी ,कृपा आपकी,
चलने दो, प्रभु की माया है।
ध्यान रखों प्रभु,ध्यान लगाते,
उत्तम पथ, मानव मन धारें।
अन्यायी अरु, आतंकी के,
सम्मुख प्रभु,हम कभी न हारे।
. ------+-----
©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
३४.. सोरठा छंद
विधान-
सोरठा चौबीस मात्रिक छंद है। चार चरण होते हैं।
दोहे से उलट - विषम चरण ११ मात्रिक और सम चरण १३ मात्रिक होते हैं।
विषम चरण समतुकांत हो,चरणांत २१ गुरु लघु अनिवार्य है।
सम चरणांत २१२ गुरु लघु गुरु हो।
. 'सोरठा सृजन'
पटल करे सम्मान, नये सृजक आवें भले।
१११ १२ २२१, १२ १११ २२ १२
एक यही अरमान, सीखें हिन्दी हिन्द हित।
२१ १२ ११२१, २२ २२ २१ ११
लिखूँ सोरठा छंद, शारद माता ज्ञान दे।
रहा अभी मतिमंद, शर्मा बाबू लाल तो।।
आओ मिलकर साथ, पुण्यपटल पर सीखलें।
कलम बढ़ाओ हाथ, लिखें छंद सोरठ सखे।।
दोहे से विपरीत, विषम चरण समतुक रखो।
लिखें छंद हे मीत, कठिन नहीं सोरठ सृजन।।
चौबिस मात्रिक छंद, ग्यारह तेरह गिन लिखें।
मीत विषम चरणांत, समतुकांत भावन भरे।।
. "दोहा-सोरठा-दोहा सम्बंध
दोहा-
सीखें साथी से अमित, कृपा करें नंदलाल।
चाहत सोरठ सीखना, शर्मा बाबू लाल।।
सोरठा-
कृपा करें नंदलाल, सीखें साथी से अमित।
शर्मा बाबू लाल, चाहत सोरठ सीखना।।
. -----+----
©~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
३५. दोहा छंद
विधान - २४ मात्रा १३+११
विषम चरण १३ मात्रा, चरणांत २१२
सम चरण ११ मात्रा, चरणांत २१
. " जीवन है अनमोल "
.
दुर्लभ मानव देह जन, सुनते कहते बोल।
मानवता हित 'विज्ञ' हो, जीवन है अनमोल।।
धरा जीव मय मात्र ग्रह, पढ़े यही भूगोल।
सीख 'विज्ञ' विज्ञान लो, जीवन है अनमोल।।
मानव में क्षमता बहुत, हिय दृग देखो खोल।
व्यर्थ 'विज्ञ' खोएँ नहीं, जीवन है अनमोल।।
मस्तक 'विज्ञ' विचित्र है,नर निजमोल सतोल।
खोल अनोखे ज्ञान पट, जीवन है अनमोल।।
'विज्ञ' सत्य ही बोलिए, वाणी में मधु घोल।
जन हितकारी सोच रख, जीवन है अनमोल।।
थिर रख 'विज्ञ' विचार को,वायुवेग मत डोल।
शोध सत्य निष्कर्ष ले, जीवन है अनमोल।।
'विज्ञ' होड़ मन भाव से, रण के बजते ढोल।
समरस हो उपकार कर, जीवन है अनमोल।।
कठिन परीक्षा है मनुज,खेल समझ मत पोल।
सजग 'विज्ञ' कर्तव्य पथ, जीवन है अनमोल।।
कर्तव्यी अधिकार ले, करिए कर्म किलोल।
देश हितैषी 'विज्ञ' बन, जीवन है अनमोल।।
दीन हीन दिव्यांग की, कर मत 'विज्ञ' ठिठोल।
सबको शुभ सम्मान दो, जीवन है अनमोल।।
'विज्ञ' छंद दोहे गज़ल, शब्दों की रमझोल।
शर्मा बाबू लाल यह, जीवन है अनमोल।।
. ------+-----
©~~~~~~~~~,~~~~~बाबूलालशर्मा
३६.. रास छंद
विधान-- २२ मात्रा प्रति चरण
चार चरण दो-दो समतुकांत
( शिल्प:- ८+८+ ६ चरणांत--१ १ २ )
. __पर्यावरण विषयक__
.
पेड़ लगाले, पुण्य कमाले, धीर पथी,
धरती अंबर, शुद्ध रहेगा, रश्मि रथी।
सागर-नदियाँ,ताल-तलैया,उज्ज्वल हो,
मानुष प्राणी, प्राकृत वायू, निर्मल हो।।
.
स्वच्छ हवा हो,पावन जल हो,अमल सभी,
पेड़ लगायें, तरु रखवारे, सँभल अभी।
धरा सुरक्षा, सब की रक्षा , मदद करो,
पर्यावरणन, हो संरक्षण, सनद करो।।
.
ओजोन परत,विकिरण नाशी,कवच बड़ा,
उत्तर प्रहरी, हिमगिरि,ऊँचा, अटल खड़ा।
गंगा , यमुना , नर्मद सलिला, सरित बहे,
हो संरक्षण, वचन विनय के, सहित कहे।।
.
अपनी धरती, सागर अंबर, तरु नदियाँ,
अपनी खेती, फसलें होंगी, शत सदियाँ।
सब का तन मन ,हो संजीवन, रोग हरें,
जल, वायु ,धरा, नहीं प्रदूषण, लोग करें।।
. ~~~~~
©~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
.
३७. पुनीत छंद
विधान:- १५ मात्रिक
चार चरण
दो दो चरण समतुकांत
चरणांत ~२२१
. ~~~
. लिख कवि......
. ~~~~~
मीत सुनो प्रिय रचनाकार,
कविता को दें नव आकार।
लिख कवि देशधरा के गान,
मात भारती हित के मान।
लिखना पहले सीना तान,
जय जवान,भारत सम्मान।
पीर किसानी लिखना मीत,
जय विज्ञान निभाती प्रीत।
देश प्रेम रचना संगीत,
इंकलाब मत वाले गीत।
जोश जगाने वाले नाद,
लिखने भगतसिंह आजाद।
लिखना प्यारे रचनाकार,
वीर सपूतो का आभार।
संविधान संसद आवाम,
नई चेतना , नव आयाम।
बिटिया के हित में आवाज,
शिक्षा का हो नव आगाज।
गुरबत संग वतन ईमान,
लिखना देश भक्ति के गान।
लिखना कवि नूतन संवाद,
बच्चों के लिखना आल्हाद।
तोप सामने पाकिस्तान,
लिख मेरे दिल हिन्दुस्तान।
• °°°°°°
©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
.३८. त्रिभंगी छंद
विधान- १०,८,८,६ कुल ३२ मात्रा
पदांत गुरु ,जगण रहित,
दो पद सम तुकांत,
प्रथम,द्वितीय चरण समतुकांत
. ------------
. __भारत वंदन__
जय भारत वंदन,जन अभिनंदन,
सैनिक सीमा, रखवाला।
जहँ बहती गंगा, शान तिरंगा,
देश हमारा, मतवाला।
सबकी अभिलाषा, हिन्दी भाषा,
संविधान है, अरमानी।
हम शीश नवाते, वंदन गाते,
भारत माता, सन मानी।
जय हिन्दुस्तानी,रीत सुहानी,
मात भारती,भयहारी।
सागर पद परसे,जन मन हरषे,
लोकतंत्र जन, सुखकारी।
इतिहास पुराना,सब जग जाना,
विश्व गुरू जो,कहलाता।
था स्वर्ण पखेरू,गिरिय सुमेरू,
रजकण जन शुभ,फल दाता।
गंगा अति पावन,जन मन भावन,
यमुना भावे, नद सारी।
बह निर्मल धारा, कूल किनारा,
तीरथ दर्शन, त्रिपुरारी।
हिमगिरि है अविचल,गिरि विन्ध्याचल,
मुकुट मेखला,शुभकारी।
मिट्टी बलिदानी,अमर कहानी,
वतन हिफाजत, हितकारी।
रह वतन सलामत, करें इबादत,
जन गण मंगल, सुखदायी।
मम मात भारती,करें आरती,
मातृभूमि हे, शुभदायी।
खेती लहराती,वर्षा गाती,
जय किसान धन, उप जाए।
वन बाग सुहाने, कलरव ताने,
कोयल मैना ,स्वर गाए।
. -----+----
©~~~~~~~~~~~~~`~बाबूलालशर्मा
३९. . विजात छंद
विधान--
१२२२ १२२२ (१४ मात्रिक)
. .........
मनेंगी होलिका फिर से
. ●●●●●
गुलाबी रंग फूलों में।
सजा है संग शूलो में।
सजे ये ओस के मोती।
धरा अहसास के बोती।
कहें ऋतु फाग होली की।
हवाएँ गीत बोली की।
दहकना है पलाशों का।
गया मौसम हताशों का।
प्रकृति सौगात देती हैं।
धरा उपहार लेती है।
तभी तो रीति होली हो।
सही मन प्रीत भोली हो।
मिलेंगे कृषक खेतों में।
खिलें फसलें चहेतों में।
परीक्षा छात्र अब देते।
मिले जो कर्म फल लेते।
सुहानी याद रह जाती।
बसंती याद बस आती।
पड़ेगा ताप जब आगे।
सभी रौनक लगे भागे।
रहेगी छाँव की चाहत।
मिलेगी नीर से राहत।
करें बस याद यादों की।
सुहाने प्रीत वादों की।
रहेंगे याद हम जोली।
बने जो मीत इस होली।
तिरंगा मान के खातिर।
मिलेंगे मीत हम हाजिर।
पुरानी बीत जाएगी।
नई ऋतु साल लाएगी।
घटाएँ लौट आएँगी।
बहारें फाग गाएगी।
मनेंगी होलिका फिर से।
चलेंगी टोलियाँ घर से।
निराशा क्यों रहे मन में।
भरें आशा सभी जन में।
. •••••
©~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
४०. कुण्डल छंद
विधान-- २२मात्रिक छंद--१२,१० मात्रा पर यति,
यति से पूर्व व पश्चात त्रिकल अनिवार्य,
चरणांत में गुरु गुरु (२२)
दो दो चरण समतुकांत हो।
चार चरण का एक छंद कहलाता है।
..... ------
नीर नेह हारा
. ......
जल ने आबाद किया,सुने है कहानी।
जीवन विधाता बंधु , रीत रहा पानी।
पानी बर्बाद किया, भावि नहीं देखे।
पीढ़ी आज कह रही, कौन देय लेखे।
खोज रहा नीर धीर, मान मानवो में।
खो गया है जो आज,राम दानवों में।
सूख रहे झील ताल ,नदी बाव सारे।
युद्ध से न मान हार, नीर बिन हारे।
सूख गया नैन नीर, पीर देख भारी।
सत्य बात मान मीत,रीत गई सारी।
सिंधु नीर बढ़ रहा, स्वाद याद खारा।
मनुज देख मनुज संग,नीर नेह हारा।
कूप सूख गए नीर, कृषक हताशे है।
नीर देते घट आज, स्वयं पियासे हैं।
नलकूप खोदे नित्य, धरा रक्त खींचे।
मनुज नीर दोउ मीत,नित्य चले नीचे।
सरिताएँ डाल गंद , नीर करें गंदा।
हे मनुज माने मातु , नदी बुद्धिमंदा।
बजरी निकाली रेत,खेत किये खाली।
फूल पौधे खा गये, बाग वान माली।
छेद डाले भू खेत, खोद कूप डाले।
पेड़ नित्य काट रहे, और नहीं पाले।
रेगिस्तान बढ़ रहा, बीत रहा पानी।
कौन फिर तेरी सुने, बोल ये कहानी।
रक्षा कर मीत नीर, जीव जंतु प्यासे।
सारे जल स्रोत रक्ष, देख अब उदासे।
जल बिना जीवन नहीं,सोच बना भाई।
जीवन बचालो बंधु , बात यह भलाई।
. ~~~~
©~~`~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
४१. उडियाना छंद
विधान--
२२मात्रिक छंद--१२,१० मात्रा पर यति,
यति से पूर्व व पश्चात त्रिकल अनिवार्य,
चरणांत में गुरु (२)
दो दो चरण समतुकांत हो।
चार चरण का एक छंद कहलाता है।
..... -----
. __खोज रहा नीर नेह__
. .....
वरुण देव कृपा करे, नीर पीर हरिये।
जल से सब जीव बने,जीव दान करिये।
दोहन मनुज ने किया, रहा जल बीत है।
बिन अंबु कैसे निभे, जीव जग रीत है।
जल ने आबाद किया,सत्य सुने कथनी।
जीवन विधाता बंधु , रीति रही अपनी।
पानी बर्बाद किये, भावि नहीं बचता।
पीढ़ी अफसोस रही, कौन कहाँ रमता।
खोज रहा नीर नेह , मान सम्मान को।
खो रहा है जो आज,नीर वरदान को।
सूख रहे झील ताल ,नदी कूप अपने।
युद्ध से न सके हार, नीर हार सपने।
सूख गया नैन नीर, पीर देख डरते।
सत्य बात मान मीत, रीत प्रीत करते।
सिंधु नीर बढ़ रहा, स्वाद जो खार का।
मनुज देख मनुज संग,नेह जल हार का।
कूप सूख गए नीर, कृषक हताश रहे।
नीर देते घट आज, प्यास खुद ही सहे।
नलकूप खोदे नित्य, रक्त खींच धरती।
मनुज नीर दोउ मीत,नित्य साख गिरती।
नदियों में डाल गंद ,नीर करें गँदला।
हे मनुज माने मातु ,नदी नेह बदला।
बजरी निकाली रेत, खेत रहेे खलते।
फूल पौधे खा गये, बाग लगे जलते।
छेद डाले भू खेत, खोद कूप धरती।
पेड़ नित्य काट रहे, भूमि बने परती।
रेगिस्तान बढ़ रहा, बीत रहा जल है।
कौन फिर तेरी सुने, बोल एक पल है।
रक्षा कर मीत नीर, जीव जंतु तरसे।
सारे जल स्रोत रक्ष, देख मेघ बरसे।
जल बिना जीवन नहीं,सोच बने अपनी।
जीवन बचालो बंधु , बात यही जपनी।
. •••••••
©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
४२. पीयूष वर्ष छंद
विधान--
10,9 पर यति प्रति 2 चरण समतुकांत
3, 10, 17 वीं मात्रा लघु अनिवार्य
2 मात्रा भार को 11 लिखने की छूट नहीं
मापनी
2122 2122 212
आज माता भूमि, चाहे वीरता।
शक्ति चाहे भक्ति, चाहे धीरता।
देखलो काश्मीर, घाटी देश की।
मानते है शान, माँ के वेष की।
एकता में शक्ति, भारी जानते।
भारती की आन, को भी मानते।
पाक है नापाक , पापी पातकी।
कर्म से बर्बाद, होता घातकी।
भारती आजाद , ये आबाद हो।
देश के जाँबाज , ये नाबाद हो।
*लाल* ये आजाद, पंछी गान हो।
देश का सम्मान, ऊँची शान हो।
. ---+---
©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
४३ एकावली छंद
विधान--- (१०मात्रिक छंद)
५,५ मात्रा पर यति
४ चरण का छंद
२,२ चरण समतुकान्त
. __मुरलिया गीत__
. ........
कृष्ण ले, मुरलिया।
कंध पर,कमलिया।
गुरु कुटी, पढ़ रहे।
स्वप्न नव, गढ़ गृहे।
गुरु सदन, के लिए।
ले चने ,चल दिए।
काटने , लकड़ियाँ।
कृष्ण ले ,मुरलिया।
सुदामा, ले मीत।
बाँसुरी , लय गीत।
वन माँहि , जा रहे।
खग गान, गा रहे।
चमकती,बिजलियाँ।
कृष्ण ले मुरलिया।
श्याम घन ,बरषते।
घन श्याम ,हरषते।
ठंड द्वय ,कँप रहे।
दाँत तक बज रहे।
नेह छल,बदलिया।
कृष्ण ले,मुरलिया।
चने जब, खा रहा।
शीत अति,कह रहा।
दाँत बज रहे सुन।
कृष्ण सिर, रहे धुन।
रीत यह, कन्हैया।
कृष्ण ले , मुरलिया।
छल किया ,छली से।
सखा कह, बली से।
दर्द वह, बन नया।
सालता , बढ़ गया।
मीत वह, भरमिया।
कृष्ण ले मुरलिया।
. ........
©~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
४४. राधेश्यामी छंद (मत्त सवैया)
विधान --
. ३२ मात्राएँ, प्रति चरण
१६,१६ पर यति,चरणांत गुरु ,
दो - दो चरण समतुकांत ।
. __सपने__
. ★★★
हे परमेश्वर हे, मात पिता,
हे मात भारती, दया करो।
घर द्वारे अरु मन मस्तक के,
सब रिक्त कोष अविलम्ब भरो।
हे ईश्वर तुमसे विनती है,
यह जीवन पार लगा देना।
बस शरण आपकी आया हूँ,
इस का अंदाज़ लगा लेना।
इस भारत भू पर जन्म लिया,
बलिदान इसी पर हो जाऊँ।
मानव का जब जन्म दिया तो,
मानवता का धर्म निभाऊँ।
मैं लिखूँ देश की यश गाथा।
इतिहास भले ही हो जाऊँ।
वीर शहीदों के हित प्रभुवर,
मैं वंदन गान सदा गाऊँ।
धरती अम्बर चाँद सितारे,
सागर सरिता बादल अपने।
वन पर्वत अरु वन्य जीव की,
खुशहाली के देखूँ सपने।
. ★★★★
©~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
४५ गगनांगना छंद
विधान---
मापनी मुक्त सम मात्रिक छंद है यह।
१६,९ मात्रा पर यति अनिवार्य चरणांत २१२
दो चरण सम तुकांत,चार चरण का छंद
{सुविधा हेतु चौपाई+नौ मात्रा(तुकांत२१२)}
. __शरद पूनम__
.
सागर मंथन अमरित पाकर,विषघट त्यागते।
अमर हुये सब देव दिवाकर, शिव घट धारते।
सूरज देता दिवस उजाला, ऊर्जा जानिये।
चंद्र चंद्रिका अमरित प्याला, बरसे मानिये।
.
शरद काल की है सूचकता, पूनम आज की।
भोज खीर तन रहे दमकता,सजते साज की।
पथ्य अपथ्य परखना खाना,अमरित खीर है।
मेवा मिश्री चाँवल पय में, सब का सीर है।
.
करता ही रहता हूँ अपने, मन से मंत्रणा।
क्यों देता कब कौन किसी को, ताने यंत्रणा।
बिकते सारे खुले गरल प्रभु, द्वय हर हाट में।
सूर्य शक्ति चंदा अमरित दे, जब दिन रात में।
.
दाता के दर भज गुरु सादर, हरि मनमीत है।
भज हरि भावन गीत मनोहर, शुभ संगीत है।
खीर बनाकर रखो चाँदनी, अमरित योग है।
अर्द्ध रात को, भोग लगाओ, मिटते रोग है।
.
पुण्य शरद की पूनम आई, कर ले आरती।
ऋतुसम पवन भाव सुखदाई, धरती भारती।
खावें खीर, बना साथी फिर, कर आराधना।
चंद्र चंद्रिका अमरित बरसे,कर शशि साधना।
.
माँ कमला भंडार भरेंगी, पूनम को सखे।
श्री विष्णो के संगत आएँ, पय उनको रखें।
रखो क्षीर अमरित बरसेगा, आधी रात को।
सबसे ही साझी कर लेना, साथी बात को।
.
श्वाँस दमा के रोगी भोगी, खायें खीर जो।
भारत भूमि रही अभिमानी,पायें वीर जो।
चंद्र किरण देती संदेशे, धारो धीरता।
मात भारती हित बलिदानी, मानो वीरता।
.
खीर प्रथम पकवान हमारे, वैदिक काल से।
सभी खिलायें आज सजाएँ, चंदा थाल से।
भारत की यह रीत पुरानी, सब पहचानिये।
चंद्र,धरा का नेह मनुज का, मातुल मानिये।
. -----+----
©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
४६. मनोरम छंद
विधान--
. मापनी - २१२२ २१२२
चार चरण का छंद है
दो दो चरण सम तुकांत हो
चरणांत में ,२२,या २११ हो
चरणारंभ गुरु से अनिवार्य है
३,१०वीं मात्रा लघु अनिवार्य
मापनी - २१२२, २१२२
. *कल*
. °°°°°°
मानवी मन भाव लाओ।
प्रीत के सब गीत गाओ।
आज भारत के निवासी।
बात करते क्यों सियासी।
काल से संग्राम ठानो!
साहसी की जीत मानो!
आज आओ मीत सारे!
काल-कल बातें विचारे!
सोच ऊँची बात मानव!
भाव होवें मान आनव!
आज है तो कल रहेगा!
सोच कैसे जल बचेगा!
पुस्तकों से नेह जोड़ो!
वेद ग्रंथो को न छोड़ो!
भारती की आरती कर!
मानवी मन भाव ले भर!
कंठ मीठे गीत गाना!
आज को करलें सुहाना!
आज है तो मानले कल!
वायु नभ ये अग्नि भू जल!
चेतना मानव पड़ेगा!
आज से ही कल जुड़ेगा!
दूर दृष्टा सृष्टि पालक!
काल-कल के चक्र चालक!
आलसी क्यों हो पड़े जन!
आज ही कल खो रहे मन!
रुष्ट जन मन को मनाओ!
आज ही कल को जगाओ!
धर्म पंथी बात छोड़ें।
मोह बंधन रीति तोड़ें।
देश हित जीना सिखाएँ।
गीत यश साथी लिखाएँ।
. °°°°°°°°°
( आनव~मानवोचित)
©~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
४७. शृंगार छंद
विधान-- १६ मात्रिक छंद
आदि में ३,२ त्रिकल द्विकल
अंत में २,३ द्विकल त्रिकल
दो दो चरण सम तुकांत
चार चरण का एक छंद
. __श्रेष्ठ हो मेरा हिन्दुस्तान__
. ~~~~~
शान भारत की रखना पूत।
शांति के बने सदा ही दूत।
आपदा पर ही कर दो वार।
शंख से फिर फूँको हूँ कार ।
आरती चाह रही है मात।
भारती अंक मोद विज्ञात।
सैनिको करो प्रतिज्ञा आज।
शस्त्र लो संग युद्ध के साज।
विश्व मानवता हित में कर्म।
सत्य है यही हमारा धर्म।
आज आतंक मिटाना मीत।
विश्व की सबसे भारी जीत।
पाक को पाठ पढाओ वीर।
धारणा में बस रखना धीर।
भावना देश हितैषी पाल।
कूदना बन दुश्मन का काल।
वंदना मातृ भूमि की बोल।
शंख या बजा युद्ध के ढोल।
गंग सौगंध निभे मन प्रीत।
मात का दूध त्याग की रीत।
सूर्य में तम को ढूँढे पाक।
सिंह पूतो पर थोथी धाक।
प्रश्न है संग हुए आजाद।
पाक पापी न हुआ आबाद।
रोक क्या सके विकासी गान।
शत्रु को सिखलादो ये ज्ञान।
एकता की दे कर आवाज।
तोड़ दो आतंकों का राज।
जोड़ दो मन से मन की तान।
भारती की रखनी है शान।
उच्च हो ध्वजा तिरंगा मान।
श्रेष्ठ हो मेरा हिन्दुस्तान।
विघ्न की नष्ट करो प्राचीर।
स्वच्छ हो नदी तलाई नीर।
प्रेम के छंद सनेही गीत।
काव्य भी ऐसा रचना मीत।
. ~~~~
©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
. ४८. हंसगति छंद
विधान---
११,९, कुल २० मात्रिक छंद है
यति से पूर्व गुरु लघु(२ १)
यति के पश्चात लघु गुरु (१ २)
एक चरण में एक ही त्रिकल हो
तो गेयता उत्तम रहे
दो दो पंक्तियाँ सम तुकांत हो
. °°°°°°°°°
. __जन चरित्र की शक्ति__
. ------------+
भू पर विपदा आज, ठनी है भारी।
संकट में है विश्व, प्रजा अब सारी।
चिंतित हैं हर देश, विदेशी जन से।
चाहे सब एकांत, बचें तन तन से।
घातक है यह रोग, डरे नर नारी।
भू पर विपदा आज, ठनी है भारी।
तोड़ो इसका चक्र, सभी यों कहते।
घर के अंदर बन्द, तभी सब रहते।
पालन करना मीत,नियम सरकारी।
भू पर विपदा आज, ठनी है भारी।
शासन को सहयोग, करें भारत जन।
तभी मिटेगा रोग, सुखी हों सब तन।
दिन बीते इक्कीस, मिटे बीमारी।
भू पर विपदा आज, ठनी है भारी।
भारत माँ की शान, बचानी होगी।
जन चरित्र की शक्ति, भले संयोगी।
भारत का हो मान, जगत आभारी।
भू पर विपदा आज, ठनी है भारी।
प्यारा हमको देश, वतन के वासी।
पूरे कर कर्तव्य, जगत विश्वासी।
है पावन संकल्प, मनुज हितकारी।
भू पर विपदा आज, ठनी है भारी।
. ----+-----
©~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
:४९. भुजंगप्रयात छंद
विधान:--
१२२ × ४ ( यगण यगण यगण यगण)
चार चरण , दो दो चरण सम तुकांत हो
. ____प्रतीक्षा____
हमारा भरोसा तुम्हारे सहारे।
प्रभो बाग मेरे तुम्ही हो बहारे।
लगी नाव मेरी नदी के किनारे।
प्रभो बोझ भारी इसे पार तारे।
बनाऊँ सुनाऊँ लिखूँ छंद तेरे।
दया हो प्रभो जी हरो कष्ट मेरे।
कहानी लिखूँगा तुम्हारी गुमानी।
रचूँ काव्य दोहा सवैया विहानी।
हमेशा अनेको कथाएँ सुनी है।
इसी हेतु मैने चटाई बुनी है।
पधारो यहाँ बैठ बातें करेंगे।
पुराने सभी घाव दोनो भरेंगे।
धरा भारती मानवी आज चाहे।
मिटाओ सभी कष्ट नासूर आहे।
हरो द्वेष सारे दुखो की कहानी।
बनादो सुहानी नही तो रुहानी।
युगों से यही पीर देखी सुनाई।
लिखे लेखनी गीत नेकी बनाई।
कभी तो सुनोगे दुखों के बहाने।
खड़ी है यहाँ नाव देखो मुहाने।
विवादी हुआ जीव नेकी गँवाता।
बिना बात भारी हताशा कमाता।
भलाई बुराई सभी रोग भारे ।
सुरक्षा प्रतीक्षा करे लोग हारे।
. _______
©~~~~~`` बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
५० __अहीर छंद__
विधान:-- मात्रिक छंद मापनी रहित
११ मात्रिक छंद है, ८ वीं मात्रा लघु
होना अनिवार्य है।
चरणांत में जगण (१२१) अनिवार्य है।
दो दो चरण समतुकांत हो,
चार चरण का एक छंद होता है।
__देह मेह जल प्रीत__
प्रभु ने सब हित काज।
प्राकृत मय शुभ साज।
भू पर अनुपम रीति।
देह मेह जल प्रीत।
पावस ऋतु वरदान।
मेघ धरा अरमान।
भू पर मेघ मल्हार।
भू पर खुशी अपार।
घन जल अमृत समान।
मनुज मूल्य पहचान।
करें कद्र पय नीर।
बचे मनुज जल धीर।
मेह नेह धन मान।
बचे भावि नर जान।
जीव प्रकृति तरु हेतु।
जल ही जीवन सेतु।
. ________
© ~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
५१. आँसू छंद
विधान:--
२८ मात्रा का एक चरण(१४+१४)
दो दो चरण समतुकांत
चार चरण का एक छंद
मात्रा बंटन :- २-८-२-२ के क्रम में
. __भू जल रक्षण__
धरती पर जीवन अमरित, है दिया ईश ने पानी।
सब जीव इसी से जन्मे, वन तरु नीर कहानी।
जल रखें सहेजे भू हित, तो बचा रहे भवजीवन।
अति दोहन हो जल का, विपदा का न्यौते नर्तन।
भू जल रक्षण संरक्षण ही, ये उपाय है बचने का।
दोहन कर बरबादी जल,की हर जीवन मरने का।
बरसाती जल को रोको, अब खेत खेत में टाँका।
घर घर भरो नीर भू तल, में नहीं कहीं हो नाका।
छत का जल नीचे लाएँ, भू गत टैंक बनालें हम।
जल की बूँद बूँद संग्रह, कर के नीर बचाओ तुम।
पानी से ही कल होगा, तरु वन जैव जंतु जीवन।
मानस बदलें हे मानव, जल सच्चा नैनों का धन।
. _________
~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा बौहरा, विज्ञ
५२. उल्लाला छंद
विधान:--
सम मात्रिक छंद है,
२६ मात्रिक ( १३ + १३)
दोहा की तरह कल संयोजन
११ वीं मात्रा लघु रहे।
दो दो चरण समतुल्य हो।
. __सृष्टि सार संयोग__
जल ही जीवन है मनुज, करना सद उपभोग है।
जीव जगत वन वन्य हित, सृष्टि सार संयोग है।
सागर से वाष्पित करे, पवन सूर्य संयोग से।
नभ में जा घन श्याम हो, बने मेह शुभ योग से।
धरती पर बरसे जलद, चूनर धानी मात की।
खेत फसल वन बाग में, खुशहाली बरसात की।
वर्षा नीर सहेजिए, खेत मेड़ मजबूत जब।
घर में भी टाँका बना, पानी मिले अकूत तब।
बचे नीर भू सोखले, मिले कूप में नीर हो।
व्यर्थ बहे बहता चले, खारे सागर सीर हो।
नीर बचे प्राकृत बचे, जैव जगत वन वन्य भी।
नयन नीर मर्याद भव, नहीं कल्पना अन्य भी।
. _________
~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मास बौहरा, विज्ञ
.५३ छप्पय छंद
विधान :--
अर्द्ध सम मात्रिक छंद है। जो दो छंदो
के संयोग से बनता है।
प्रथम चार चरण रोला छंद के, और अंतिम दो चरण उल्लाला छंद के मिलकर ६ चरण का एक छप्पय छंद बनता है।
रोला-- ११,१३ (चरणांत गुरु गुरु)
उल्लाला--१३,१३(११वीं मात्रा लघु)
. __विरहा__
१
सावन बरसे मेह, नयन विरहा के बरसे।
सरसे फसलें खेत, ताप तन विरहा तरसे।
बोले पपिहा मोर, श्वाँस विरहा की फूले।
लख रमणी शृंगार, बाग में डलते झूले।
नभ में गरजे दामिनी, रिमझिम मेघ फुहार है।
विरहा तन सुलगे निशा, कंठ हार मन हार है।
२
कंत गए परदेश, चाह कंचन की भारी।
रमणी कंचन देह, भुला कर याद हमारी।
थकित ताकते नैन, जोहते बाट तुम्हारी।
मन विरहा बिन चैन, जागती रातें सारी।
लोभ करो मत हे पिया,आओ तो निजदेश में।
कंचन माटी भारती, निज परिजन परिवेश में।
. ______
~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
५४ कामरूप /वैताल छंद
विधान:--
२६ मात्रिक छंद (सम मात्रिक)
९,१६,२६ मात्रा पर यति
प्रारंभ गुरु गुरु २२ से हो।
९ मात्रा पर यति पश्चात प्रारंभ २१ से हो।
१६ मात्रा, यति पश्चात प्रारंभ २१ या १२ से।
२६ मात्रा, चरणांत २१(गाल) से हो।
चार चरण का एक छंद,
दो चरण समतुकांत हो।
. __शहीदी बात__
१
हे सैनिक वीर, हे रण धीर, रख तिरंगा शान।
भारत भू मात,शहीदी बात, रख सखे ईमान।
आजाद सुदेश, है परिवेश, बस रहे सब हेतु।
सीमा सुरक्षा, यह परीक्षा, तुम बने भव सेतु।
२
हे सुत हमारे, नयन तारे, कर स्वदेश विकास।
जननी बखाने,तनय माने, मीत ये शुभ आस।
गंगा नर्मदा, जल सर्वदा, हिमालय वरदान।
यमुन सरस्वती, माँ भगवती, देश के अरमान।
. ________
~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
५५. गीतिका छंद
विधान:--
सम मात्रिक छंद
कुल २६ मात्रा(१४,१२ या १२,१४)
चार पद (दो चरण समतुकांत)
वर्ण विन्यास--
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
३,१०,१७,२४वीं मात्रा लघु अनिवार्य है
. __नेह प्यासे__
१.
घाट तीरथ सभ्यताएँ, स्वाति सम तरसे यहाँ।
चंद्र रवि नभ मेघ नीरस, ताकते नभ से यहाँ।
खींच तन से रक्त भू का, क्यूँ उलीचा तोय है।
खेत प्यासे पेड़ प्राणी, आज पंछी मौन है।
२.
शर्म आँखो की गई वह, भूमि-जल संगत सभी।
घाट-गागर में ठनी है, आज क्यूँ तन नेह भी।
हे छलावे दानवी मन, सत्य का पथ छोड़ने।
नेह हारा नीर हारा , प्रीत की बाजी ठने।
३.
कूप नदियाँ ताल बापी, घाट वे जल नेह घट।
स्रोत रीते हो गये सब, नेह प्यासे देह घट।
आपदा को दे निमंत्रण, देख नर सपने विकट।
बोतलों में बन्द पनघट, याद भूले कृष्ण नट।
४.
वारि बिन वन पेड़ पौधे, जीव जंगम खेत सब।
रेत पत्थर ईंट गारे, नीड़ सड़के नित्य अब।
आज वसुधा रो रही माँ, देख सुत करतूत जब।
जल प्रदूषण भूलता नर, चल दिया आकाश तब।
५.
नीर नयनों से निकलता, सागरों में बाढ़ जल।
सूखते वे ताल नदियाँ, बाढ़ विप्लव गान फल।
मानवी हर भूल माँगे, त्रासदी बन मूल्य सम।
नीर दोहन देख भू की, धड़कती है आज दम।
६.
आज मानव विश्व भर का, काल से बे हाल है।
रोग के आगोश में जो, भीरु नर निज प्राण है।
है विकल प्राकृत धरा नभ, चंद्र तारक सूर्य भी।
होड़ के तम पंथ नाशक, बीज मानव आप भी।
. *****
©~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा बौहरा 'विज्ञ'
५६. चंचरीक (हरिप्रिया) छंद
विधान:--्
चार चरण का सममात्रिक छंद है।
प्रति चरण ४६(१२+१२+१२+१०) मात्रा
दो दो या चारो चरण सम तुकांत हो।
प्रति चरण ७ षटकल चरणांत २२
प्रति चरण आंतरिक समांत हो।
. __जागे भयहारी__
गए श्याम मेले जब, काम धाम छोडे सब,
ग्वाल बाल ढूँढे तब, आए गिरधारी।
दिए दाम मुरली के, नारि एक इकली के,
खींच गाल नथली के, धाए बनवारी।
शिकायती तिय आई, मात यशोमति धाई,
कान ऐंठ कर लाई, रोये गिरिधारी।
गेह गई तिय अपने,हरे कृष्ण मन जपने।
देख रात नव सपने, जागे भयहारी।
. _______
©~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ
५७. चौपइया छंद
विधान:--
सम मात्रिक छंद प्रति चरण ३० मात्रा
१०,१८,३०वीं मात्रा पर यति
चरणांत गुरु या गुरु गुरु
चरण में प्रथम द्वितीय यति पर समांत।
(२-६-२, ६-२, ६-२-२+२)=३०
. __वर्षा जल__
१
जन मन अति प्यासा,बढ़ी
निराशा,
अब तो मेघा गाओ।
जब वर्षा बरसे, धरती हरषे,
दादुर गान सुनाओ।
हल बैल चलेंगें, खेत हँसेंगे,
बीज खाद ले आओ।
सब जागृत रहना, नीर न बहना,
घर घर टैंक बनाओ।
२
है जल ही जीवन, धरा सजीवन,
रखना नीर सँभाले।
जल सद उपयोगी, नर उपभोगी,
नीर न व्यर्थ बहाले।
कर जल की रक्षा, जैव सुरक्षा,
मत रह बैठे ठाले।
भू सृष्टि बचेगी, प्रकृति हँसेगी,
तब मन गीता गाले।
. ________
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
५८. . जनक छंद
विधान : --
१३ मात्रा(दोहे के विषम चरण की तरह)
वाले तीन चरणों से बनता है जो व्यंग और
कटाक्ष के लिए लिखा जाता है।
ये पाँच प्रकार के होते है------
. __नेता__
१.पूर्व जनक छंद-प्रथम दो चरण समतुकांत हो
राजनीति चलती सखे।
नित्य नियम रिश्वत रखे।
मरे भले जनता सहज।
२.उत्तर जनक छंद-अंतिम दो चरण समतुकांत
है चुनाव खादी पहन।
नेता लड़े चुनाव जब।
करते धर्म बनाव सब।
३. शुद्ध जनक छंद--प्रथम व तृतीय चरण
समतुकांत हो---
मंच चुनावी जब चढ़े।
खोले बोरा झूठ का।
वोट नोट ही जब बढ़े।
४. सरल जनक छंद-- तीनो चरण अतुकान्त हो-
सपने में नेता बने।
खादी की पतलून में।
हुई छेद बीड़ी जले।
५. घन जनक छंद--तीनो चरण सम तुकांत हो--
वादा करे विकास का।
खेले खेल विनाश का।
नेता फूल पलाश का।
©~~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
५९. तोमर छंद
विधान--
१२ मात्रिक छंद (२-३-२-२-३ )
चरणांत में २१ (गाल) अनिवार्य
चार चरण - दो दो सम तुकांत
__मन के भूप__
पढ़ लोग होते ढोर।
सोये रहें हो भोर।
उठ रहे निकले धूप।
ये फिरे मन के भूप।
मन मौज करते गान।
धन नाश मदिरा पान।
कुछ पिये गाँजा भंग।
तन के नवाबी ढंग।
ये बजे पर से ढोल।
बोल बोले बिन मोल।
झूठ के है सिर ताज।
व्यस्त होते बे काज।
पीढ़ियाँ गफलत मंद।
गीत उनके हित छंद।
देश हित पशु वे मान।
नित्य कागा सा गान।
. ________
©~~~~~~~बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
६०. निधि छंद
विधान :--
९ मात्रिक छंद प्रति चरण
चार चरण , दो दो समतकांत
चरणांत २१ (गाल)
( ६+२१ (गाल))
__हित रक्ष__
लिख मन के छंद।
मन के हर द्वंद।
उठा कलम आज।
लिख दोहा साज।
हर भव पथ तंग।
श्वेत श्याम रंग।
जय जवान बोल।
जय किसान बोल।
स्वतंत्र निज देश।
सज्जन परिवेश।
सुबह टहल शाम।
पावन रख धाम।
जीवन हित रक्ष।
चोट सहे वक्ष।
भागे रिपु दुष्ट।
देश मान पुष्ट।
. _____
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
६१. . प्लवंगम छंद
विधान~
२१ मात्रिक छंद( ८-८-२-१-२)
चार चरण -दो दो समतुकांत हो।
१९ वीं मात्रा लघु अनिवार्य है।
. __माता भारती__
वीर शहीदों की यादें सब याद है।
आज हमारा भारत भी आजाद है।
गंगा कलकल बहती नर्मद पावनी।
मेघ मल्हारें रमती रमणी सावनी।
सागर चरण पखारे भारत मात के।
पंछी गीत सुनाते नवल प्रभात के।
घूम घूम कर करे चंद्रमा आरती।
ऋतुएँ भी आने को नित्य निहारती।
लिखते है सौभाग्य कृषक हल नोंक से।
दिनकर उर्जा देता निज आलोक से।
झिलमिल करें सितारे निशि आकाश में।
रिश्ते निभते मातृ भूमि हर श्वाँस में।
पर्वत राज हिमालय सिर पर ताज है।
सरवर सरिता बाँध नहर शुभ साज है।
वन्य वनज से रीत प्रीत व्यवहार है।
बाग बगीचे उपवन तरु गलहार है।
. ___________
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
६२. बरवै छंद
विधान:--
बरवै छंद या बरवै दोहा
अर्द्ध सम मात्रिक छंद है।
विषम चरण-१२ (८+४)मात्रा
चरणांत गुरु(२ या११)
समचरण- ७ (४+३) मात्रा
चरणांत २१(गाल)
__पानी है अनमोल__
. (बरवै छंद)
.
क्षिति जल अग्नि पवन नभ,
. मनुज सतोल।
जीवन है आधारित,
. जल अनमोल।।
.
मेघपुष्प ,जल, पानी , पाथ: तोय।
करनी *विज्ञ* वन्दना , मति दे मोय।।
.
जनहित जलहित वनहित, जागो *विज्ञ*।
जीवन की आशा जल, रक्ष प्रतिज्ञ।।
.
वारि अम्बु जल पुष्कर, अर्ण: नीर।
उदकं, घनरस शम्बर, रख मतिधीर।।
.
नद तटिनी तरंगिणी, सरि सारंग।
नद सरि सरित आपगा, पय जलसंग।।
.
लहरी नदी निम्नगा, नद जलधार।
नदियाँ सदा सनेही, *विज्ञ* विचार।।
.
स्वच्छ रखो जल हे नर, गंद न घोल।
नयन नीर का नर रख, जल अनमोल।।
. . ----+-----
©~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा बौहरा" *विज्ञ*"
६३. मरहठा छंद
विधान :--
२९ मात्रिक छंद,
१०(२+८),१८ (८),२९ (८+३ गाल)
वीं मात्रा पर यति।
चार चरण का छंद।
दो दो चरण समतुकांत।
चरण में अन्त्यानुप्रास हो तो श्रेष्ठ रहे।
. __पृथा पिपासा__
चातक मन प्यासा, मनो
हताशा, जीवन चाहे नीर।
तन पृथा पिपासा, कृषक
निराशा, छूट रहा मन धीर।
तरुवर मुरझाए,दूब नसाए,
तलपट मरु सम खेत।
पपिहा भी गाए, गौ रम्भाए
बया खेलती रेत।
मजदूर पुकारे, वणिक
विचारे, ढोर हुए कमजोर।
घर बाहर गर्मी, तपते
कर्मी, शाम दुपहरी भोर।
आजा अब वर्षा, जन मन
हरषा, मोर कलापे साँझ।
मन राहत पाएँ, पेड़ लगाएँ,
खेत पड़े ज्यों बाँझ।
. _________
©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
६४. मुक्तामणि छंद
विधान:-- चार चरण का अर्द्ध सममात्रिक छंद
विषम चरण- १३ मात्रा ( दोहे के विषम चरण जैसा )
सम चरण- १२ मात्रा ( ८+२+२)
दोहे की तरह सम चरण समतुकांत हो
. __आपदा__
. १
भोर कुहासा शीत ऋतु, तैर रहे नम बादल।
बगिया समझे आपदा, वन तरु समझे आँचल।।
. २
तृषित पपीहा जेठ में, विहग मेह हित बोले।
पावस समझे आपदा, कोयल कामी भोले।।
. ३
करे फूल से नेह वह, मन भँवरे नर नारी।
पंथ निहारे मीत का, याद करे हिय भारी।।
. ४
ऋतु बासंती आपदा, सावन सिमटे पावन।
विरहा तन मन कोकिला, खोये मानस भावन।।
. ५
दुख में सुख को ढूँढता, मन को करे विदेही।
करे परीक्षण आपदा, दुर्लभ मानुष नेही।।
. -------+-----
©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
.
६५. राधिका छंद
विधान:--
कुल २२ मात्रिक छंद है। १३ +९=२३
यति के पूर्व व पश्च त्रिकल अनिवार्य,
चरणांत गुरु गुरु
दो दो पद समतुकांत,
चार चरण का एक छंद।
.
. __नवरात्रि__
.
है आदि भवानी मात, वही नव रूपा।
जो भजते है मन भाव, भिखारी भूपा।
नौ दिन के माँ नौ रूप, धरे जग माता।
है महा पर्व नवरात्रि, दशहरा लाता।
.
यह श्राद्धपक्ष के बाद, दिवस है आता।
सब के मन में सद्भाव, मात को भाता।
बेटी सब बहिनें मात, पराई अपनी।
यह श्रेष्ठ एक संदेश, मात हे जननी।
.
कन्या का पूजन पर्व, अंत में रखते।
घर लाते घर से ढूँढ, दक्षिणा धरते।
हर बिटिया का सम्मान, सदा हो भैया।
नारी ही दुर्गा रूप, बहिन सब मैया।
. ✨✨✨✨
©~~~~~~~`बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
६६. सुजान छंद
विधान :-- २३ मात्रिक छंद है।
दो दो चरण समतुकांत हो।
२३ = १४ + ९ चरणांत २१ (गाल)
. __दिवस मातृ पितृ पूजन__
.
दिवस मातृ पितु पूजन प्रिय, करिये संकल्प।
ईश मान पितु माता को, तज सभी विकल्प।।
घर में ही भगवान रहे, जीवन दातार।
मात पिता का मान करे, कर उनसे प्यार।।
जन्म दिया मित्र आपको, रख वर्षो आस।
पाला बस अरमान बचे, माँ पितु विश्वास।।
पाल पोष पहचान दिये, वे परिजन शान।
खोया निज को आप रहे, रख सखे गुमान।।
जीवन संतति हेतु जिए, निज तज अरमान।
अब उनका विश्वास बनो, माँ पितु भगवान।।
शर्मा बाबू लाल कहे, पद लिख के षष्ट।
विनय आपसे, रहे नही, माँ पितु को कष्ट।।
. °°°°°°°°°
© ~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा बौहरा, विज्ञ
६७. हाकलि छंद
विधान:--
प्रति चरण १४ मात्रा का छंद है
प्रति चरण तीन चौकल बने
चरणांत सगण ११२ अनिवार्य है।
चार चरण, दो दो समतकांत हो
. __चार दीप__
.
एक दीप उनका रखना।
जब लक्ष्मी पूजन करना।
जिनके प्राण थमे तब थे।
सीमा पर चौकस जब थे।
एक दीप की आशा रखते।
जय किसान ताका करते।
शासन पहले ही चुप था।
प्रभु वश जीवन यापन था।
धर्म न होता निर्धन का।
जाति बंधुआ जीवन का।
एक दीप रखना उनका।
गलती कर भूले जन का।
दीप एक गुरु का सपना।
शिक्षक कवि साथी अपना।
जगमग होंगे जग जगती।
चार दीप यदि तुम धरती।
_________
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ
६८. "रूपमाला छंद
विधान":--
२४ मात्रिक अर्द्धसममात्रिक छंद
२४ = १४(३२२ ३२२) + १०(३२२२१)
तीन सतकल चरणांत गाल
चार चरणीय छंद
दो दो पद समतुकांत हो।
. __नीर आँखो में रहा तो__
नीर सृष्टा की धरोहर, मनुज नीर सहेज।
पीर प्राणी की मिटाने, खर्च में परहेज।
नीर आँखों में रहा तो, देख ले हर पीर।
नीर महिमा ही बड़ी है, समझ लो सुधीर।
सरित सागर सर नदी भी, सत्य रखते नीर।
सभ्य मानव बस्तियाँ भी, पुरा इन के तीर।
वायु से ही जल बने यह,वायु जल से नेक।
प्राण वायू दो गुनी है, हाइ ड्रोजन एक।
बचा पानी को हमेशा, भूमि जन हित वीर।
जैव जंगल तरु पखेरू, प्राण चाहत नीर।
कुण्ड बनवा गेह बाबू, लाल शर्मा विज्ञ।
नीर है तो कल रहेगा, बनो दृढ़ी प्रतिज्ञ।
. _______
©~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
६९. " किशोर छंद "
विधान :-- २२ मात्रा प्रति चरण
१६, २२वीं मात्रा पर यति
चार चरण (द्वय यति) समतुकांत,
चरणांत २२२ गुरु गुरु गुरु
. *बालाजी*
संकट में बस एक सहारा, बालाजी।
प्रभुवर दीनानाथ तुम्हारा, बालाजी।
रघुनंदन का काज सँवारा, बालाजी।
जन्म देह नर भाग्य हमारा, बालाजी।
रचूँ छंद दोहा चौपाई, बालाजी।
आप कृपा से मन सौदाई, बालाजी।
रघुनंदन की तुम्हे दुहाई, बालाजी।
सदा करो तुम भक्त सहाई, बालाजी।
देश हितैषी चले कलम यह, बालाजी।
धरा धर्म निर्वाह करे वह, बालाजी।
कलुष द्वेष मनमानी के दह, बालाजी।
कर्म धर्म विधना संगत सह, बालाजी।
. +++🙏+++
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
[
७०. विज्ञ छंद
विधान:-- २९ मात्रा प्रतिचरण
१६,२९ वीं मात्रा पर यति
चरणांत २१२
चार चरण, दो-दो समतुकांत
. __मेरे गांव में....__
रम्बू बकरी भेड़ चराता,
घटते लुटते खेत में,
मल्ला काका दांव लगाता
कुश्ती दंगल रेत में।
भोले भाले खेती करते
रात ठिठुरे पाणत रात में।
मजदूरों के टोल़े मे भी
बात चले हर बात में।
नेताओं के बँगले कोठे
अब तो मेरे गाँव में,
रामसुखा की वही झोंपड़ी
कुछ शीशम की छाँव में।
अमरी दादी मंदिर जाती,
नित तारो की छाँव में,
भोपा बाबा झाड़ा देता ,
हर बीमारी भाव मे।
फटे चीथड़े गुदड़ी ओढ़े,
अब भी नौरँग लाल है,
स्वाँस दमा से पीड़ित वे तो,
असली धरती पाल है।
धनिया अब भी गोबर पाथे,
झुनिया रहती छान मे,
होरी अब भी अगन मांगता,
दें कैसे ...गोदान में।
------------
©~~~~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा बौहरा *विज्ञ*
७१. आख्यानिकी छंद
विधान~ प्रथम चरण १८
~ द्वितीय चरण १७ मात्रा
चरणांत में गुरु गुरु
चार चरण, दो-दो समतुकांत
. __राणा मतवाला__
हल्दी घाटी समरांगण भारी।
करे युद्ध की सैनिक तैयारी।
मुगलों का लश्कर भी वे हाथी।
इत राणा,रजपूत भील साथी।
आसफ खाँन बदाँयूनी संगी।
लड़ते समर तलवारें नंगी।
शक्ति सिंह बागी होकर आया।
थाम चुका था मुगल सरमाया।
राणा अपनी आन बान वाले।
रखते ऊँची शान वे झाले।
रण में मुगलों की सेना काटी,
लड़े युद्ध में निभा परिपाटी।
आन बान को बलवान निभाया,
चेतक स्वामी भक्त तज काया।
वन वन भटका राणा,मत वाला।
मेवाड़ी असि हाथ वह भाला।
. ------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७२. चंचल छंद
विधान:-
चार चरण क्रमश:१६,१५,१५,१४
मात्रा के हों
दो-दो चरण समतुकांत हो।
चरण के आदि अंत में त्रिकल हो
तृतीय के अलावा तीनो चरणों में
चरणांत त्रिकल (वाचिक भार १२)
की पुनरावृत्ति हो।
. __भज वरुण वरुण__
नीर बिना तरसे नगर नगर,
प्यास भर ताके नजर नजर।
भूमि रज तपती कठिन मगर,
कुंड वारि भर डगर.....डगर।
खेत रहे जल से मचल मचल,
मदन मद दादुर उछल उछल।
सावन सरोवर खिले कमल,
स्वेद मेघ जल पिघल..पिघल।
नीर बिना है नर मरण मरण,
मीत मानव भज वरुण वरुण।
कुंड जल भरिए विमल धरण,
'विज्ञ' मेघ घट शरण...शरण।
. --------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७३. सुगीतिका छंद
विधान~ २५ मात्रिक
१५,२५ वीं मात्रा पर यति
आदि लघु, चरणांत गुरु लघु
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
. __पावन पुण्य पुनीत पल__
प्रियतम मम प्राण अधार है, सुर सरगमी साज।
करूँ जन्मदिन आए तभी,स्वरुचि का शुभकाज।
पल पावन पुन्य पुनीत पर, प्रण प्रीत प्रतिपाल।
शुभ जन्मदिवस हो आपका, रहो प्रिय खुशहाल।
.
प्रिय पत्नी प्रण को पालती, प्राण प्रिय पति संग।
यह जन्मदिवस युग युग जपूँ, सँग सुहाग अभंग।
प्रियतम प्रण पाती प्रेमरस, प्रति पठाई पंथ।
जब जागूँ जोहू जन्मदिन, जग जनाऊँ कंत।
.
जनमे जग में जो जानिए, जन्मदिन जगभूप।
प्रिय परिजन प्रिय परिवार पर,प्रेमपति प्रतिरूप।
शुभ जन्म दिवस शुभकामना, कहूँ कंत विशेष।
प्रियतम मैं तुझमें ही रहूँ, मान मनज महेश।
.
सत फेरे के सातों वचन , सात छंद बनाय।
तन सात बार न्यौछार दूँ, सात युग पिवपाय।
लिखता है शर्मा छंद यह, 'विज्ञ' भाव विशेष।
सब की पूरित हो कामना, वंदन तव गणेश।
. -------+-------
©~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७४. विषम छंद
विधान:-- १९ मात्रिक
प्रथम व तृतीय चरण में- १२ मात्रा
द्वितीय व चतुर्थ चरण में- ७ मात्रा
सम चरणांत में जगण या तगण
से छंद छटा बढ़ जाती है।
. __गोबरधन__
गिरि गोवर्धन नख धरि, वृष्टि सुरक्ष।
दिए चुनौती सुरेश , गो जन पक्ष।
महिमा उस पहाड़ की, पूजन योग।
मानस गंगा पावन, गिरिधर भोग।
द्वापर युग योग्य वर, दिया भवान।
गो, गोधन खेती हित, कृत सम्मान।
भारत कृषि प्रधान है, गोबर प्रमान।
कृष्ण रूप हैं सैनिक, भगवन ज्ञान।
गिरि वन वन्य बचायें, नद तालाब।
भूमि संरक्षण करें, धृति नायाब।
पर्व महा गोबरधन, गोधन पूज।
गोवर्धन बाद मना, भैया दूज।
. ------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७५. लावनी छंद
विधान:-- २२ मात्रा प्रति चरण
चरणांत में गुरु गुरु
( लावणी छंद और
लावनी छंद भिन्न भिन्न हैं )
चार चरण दो-दो समतुकांत हो।
. __नीड़ों को क्यूँ भूले__
.
हर मोती की कीमत जग सच्चाई है।
मिल जाते माला में, यह अच्छाई है।
बनिए अच्छा साथी, माला का मोती।
मन की पीर लिखूँ जो, माता को होती।
.
नव उम्मीदें, नभ में, नव रीति रचेंगे।
काव्य कलम भाषायी,साहित्य सजेंगे।
कवि से नव उम्मीदें, रचनाकारों से।
सब मिल के भर देंगे, युग आकारों से।
.
चाहे बाधा आए, धर्म निभाना है।
नई सोच से आशा, पंथ दिखाना है।
मुक्त परिंदे बन के, आसमान नापें।
नव उम्मीदे मिल के,भय से क्या काँपें।
.
नीड़ों को क्यूँ भूलें,निज संस्कृतियों को।
पश्चिम आँधी रोकें, पर विकृतियों को।
हिन्दी हित उम्मीदें, कवि मानवता की।
नया आसमाँ गाने, कविता सविता की।
. -------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७६. महाशृंगार छंद
विधान:-- १६ मात्रा प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
चरणांत गुरु लघु २१ से हो
प्रथम व तृतीय चरण समतुकांत हो
द्वितीय व चतुर्थ चरण समतुकांत हो।
आदि में त्रिकल द्विकल और
अंत में द्विकल त्रिकल हो।
. __करवा चौथ व्रत__
शम्भु की प्रिया हे उमा मात।
छटा तुम्हारी शिव का भाव।
चौथ मात का व्रत विज्ञात।
करें नारी गौरी हित चाव।
चंद्र दर्श करना पिया संग।
मनो कामना भरना मात।
रहे अंग सुहागन का रंग।
मिले नित्य आशीष संज्ञात।
पिया हेतु जीवन दिया मान।
चाह प्रीत नित का रहे स्वप्न।
पिया दीर्घ जीवे निभे आन।
करूँ माँ, प्रभु की सेवा रत्न।
शिंभु नारि गौरी जगत मात।
आज तुम्हारे द्वार मैं दीन।
रहूँ मैं सुहागिन युगों सात।
खुशी से पति सेवा आधीन।
चंद्र चौथ के दे रहे साख।
पिया प्राण प्यारे रहे साथ।
दर्श -धर्म फिर नीर व्रत राख।
प्रीत- रीत पावन बढ़ा हाथ।
. -------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७७. कर्ण छंद
विधान:-- ३० मात्रा प्रति चरण
१३,३० वीं मात्रा पर यति
चरणांत में गुरु गुरु २२
__अमर __
आजादी के हित लड़े,
. उनको शीश सदा झुकाते हैं।
भगत सिंह सुखदेव राज,
. गुरू अमर शहीद कहातें हैं।
*भगतसिंह* तो बीज सम,
. जीवित है मंत्र अरमानों में।
भारत और भगतसिंह
. गिनते है सत्य सम्मानों में।
*राजगुरु* आदर्श बने,
. नवयुवा पीढ़ी की थाती है।
इंकलाब की ज्योति थी,
. दीपक वाली रीत बाती है।
*सुख देव* हर बच्चे में,
. मात शान भारती चाहत है।
जब तलक नाम रहेगा,
. मान अमर तिरंगा भारत है।
जिनकी गूँज क्षत देती,
. आज, अंग्रेज़ों की छाती में।
वे हूंकार हम भेजें,
. धीर वीर शहीदी पाती में।
इन्द्रधनुष के रंग वे,
. आजादी के विहग परवाने।
उन बेटों की याद हम,
. वीर शहादत लें सनमाने।
,. --------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विक्ष*
७८. नित छंद
विधान:-- १२ मात्रा प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
. __ममता__
ममता से मात बनी।
पाल पोषित जीवनी।
ममता मोह दुलारी।
गुण उर माता धारी।
.
ममता मान मायका।
माँ सनेही जायका।
ममता से हर जीवन।
संतति नेह प्रसारन।
माया सभी ईश की।
सतसार आशीष की।
ममता तज दे माता।
कौन धरा पर दाता।
देश धरा मर्यादा।
पन्ना - चंदन ज्यादा।
ममता में महतारी।
उम्र गंँवा दे सारी।
. °°°°°°°°°°
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७९. दीप छंद
विधान:-- १० मात्रा प्रति चरण
अंतिम पाँच मात्रा ११२१ हो
चार चरण दो-दो समतुकांत
__पीहर व ससुराल__
माने मन विचार।
है मात मनुहार।
भेट मय भरमार।
बहिन भावन भार।
वृक्ष दौर दुलार।
प्रेम प्रिय परिवार।
प्रीत रीत सु गीत।
खेल खेल सुमीत।
सीख विषम प्रहार।
याद कर हर बार।
बालपन बकवास।
बड़भाग बहु सास।
ननद देवर जेठ।
गँवार अकल पैठ।
भावे सुघड़ नार।
इसी बात पर रार।
. ----+---
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८०. शोकहर/सुभंगी छंद
विधान:-- ३० मात्रा प्रति चरण
८,१६,२४,३० वीं मात्रा पर यति
चार चरण, चारों समतुकांत
. माँ
माँ की ममता, त्याग अनोखे, धारण धरती, सी क्षमता।
रीत प्रीत मय, प्रेम असीमित, अनुपम उत्तम, है समता।
प्राणी जगती, सर्वस देखो, माँ के जैसा, प्रेम नहीं।
संतति के हित, मरें मार दें, मिलता कब ये, क्षेम कहीं।
समझे खतरे, प्रसव उठाती, माता संतति, चाहत को।
कष्ट बहुत ही, भोगे तन मन, शिशु अपने की, राहत को।
कब सोती कब, जगती है वो, क्या कब खाती, वह पीती।
सदा हारती, संतानो से, तो भी लगती, माँ जीती।
लगता आँचल, स्वर्ग सरीखा, चरणों में है, जन्नत सुख।
सप्तधाम सम, माँ का तन मन, ईश्वर दर्शन, माँ का मुख।
माँ का होना, खुशी मंत्र है, माँ के जाए, सब खाली।
लगे बाद में, सभी पराये, माँ तक ही तो, कर ताली।
. --------+--------
©~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८१. मुनिशेखर छंद
विधान:-- २८ मात्रा प्रति चरण
(वार्णिक छंद)
चार चरण,चारों समतुकांत हो।
मापनी- ११२१२ ×४
. __मन कामना__
करिए कृपा प्रभु आप ही अब
आपका बस साथ है।
हर लीजिए हर कष्ट को हरि
प्रेम से रख हाथ है।
विनती सुनो प्रभु दीन हूँ बस
ईश ही मम नाथ है।
वरदान भी यह दीजिए कह
. मान 'विज्ञ' सनाथ है।
लिख छंद में मन भावना कवि
आप से भव सामना।
रचना रची सब आपकी सुन
जागती मन भावना।
हरि पूर्ण हो सब आस भी पर
दूर हो मन वासना।
लिख विज्ञ ने यह छंद में निज
चाह ली मन कामना।
. -------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८२. आनंदवर्धक छंद
विधान:--१९ मात्रा प्रति चरण
चरणांत गुरु या लघु लघु
चार चरण दो-दो समतुकांत
. __हाला पी लीजिए__
गीत गाएँ मीत भारत देश हित।
रीति भाए शान सुंदर वेष हित।
सभ्यता प्राचीन अपनी भारती।
विज्ञ रच लें गीत गाएँ आरती।
वीर मेरे देश के बलवान वर।
संयोगी सद्भावी धनवान दर।
नित्य विकासी नारे दे दीजिए।
देश प्रेम की हाला पी लीजिए।
मानव होकर मानवता हेतु जन।
सामाजिक सद्भावो हित सेतु बन।
देश धर्म की रक्षाहित बलिदान दे।
विज्ञ' छंद पढ़ पावन शुभमान दे।
. -------+-------
©~~~~~~~~बाबलालशर्मा *विज्ञ*
८३. सनाई/समान छंद
विधान-- ३२ मात्रा प्रति चरण
१६,३२ वीं मात्रा पर यति
चरणांत- गुरु गुरु या लघु लघु गुरु
. __जीत हुई पर रामानुज की__
काल चाल कितनी भी खेले,आखिर होगी जीत मनुज की।
इतिहास लिखित पन्ने पलटो, हार हुई है सदा दनुज की।
विश्व पटल पर काल चक्र ने, वक्र तेग जब भी दिखलाया।
प्रति उत्तर में तब तब मानव, और निखर नव उर्जा पाया।
त्रेता में तम बहुत बढा जब, राक्षस माया बहु विस्तारी।
मानव राम चले बन प्रहरी, राक्षस हीन किये भू सारी।
मेघनाथ ने खूब छकाया, जीत हुई पर रामानुज की।
काल चाल कितनी भी खेले,आखिर होगी जीत मनुज की।
द्वापर कंश बना अन्यायी,अंत हुआ आखिर तो उसका।
कौरव वंश महा बलशाली, परचम लहराता था जिसका।
यदु कुल की भव सिंह दहाड़े, जीत हुई पर शेषानुज की।
काल चाल कितनी भी खेले,आखिर होगी जीत मनुज की।
महा सिकंदर यवन लुटेरे, अफगानी गजनी अरबी तम।
मद मंगोल मुगल खिलजी के, अंग्रेजों का जगती परचम।
खूब सहा इस पावन रज ने, जीत हुई पर भारतभुज की।
काल चाल कितनी भी खेले आखिर होगी जीत मनुज की।
. _______
©~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा, बौहरा *विज्ञ*
८४. गंग छंद
विधान:-- ९ मात्रा प्रति चरण
चरणांत गुरु गुरु २२
चार चरण, दो-दो समतुकांत
__जल बचाएँ__
जीव हित पानी।
जन मन कहानी।
हम जल बचाएँ।
प्रकृति मन भाएँ।
जल अमृत मानो।
बचत सब ठानो।
व्यर्थ न बहाओ।
पाठ यह पढ़ाओ।
हम तरु लगाएँ।
बिरखा बुलाएँ।
घन जल बचाएँ।
सब हित बताएँ।
. ----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८५. मधुभार छंद
विधान:- ८ मात्रा प्रति चरण
३, ८ वीं मात्रा पर यति
चरणांत जगण १२१
चार चरण, दो-दो समतुकांत
__मधुकर__
तरु फूल फाग।
कुसुमित पराग।
पुहुप रस धार।
सह मधुप भार।
देते मधु भार।
अमृत उपहार।
कह शहद मान।
मक्षि लय तान।
मधुर रस भोग।
मधुकर सुयोग।
मनुज अरमान।
प्रकृति वरदान।
. ----+---
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८६. तांडव रौद्र छंद
विधान:- १२ मात्रा प्रति चरण
चार चरण,दो-दो समतुकांत हो
चरण के आदि अंत में लघु अनिवार्य
_करें शत्रु का विनाश_
बढ़े चलो अब प्रवीर।
उठा शस्त्र ले सुधीर।
करें शत्रु का विनाश।
भरो देश में प्रकाश।
मिटा शत्रु का निशान।
बढ़ा स्वदेश का मान।
करो सीमा सुरक्षित।
हमारे देश का हित।
जनतंत्र मीत विकास।
चलें नाप ले अकाश।
समुद्र सेतु बाँध कर।
रिपु दलों के नाश कर।
. -----+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८७. लीला छंद
विधान:-- १२ मात्रा प्रति चरण
चरणांत में जगण हो
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
. __सावन__
सावन आया सुजान।
बरसे वर्षा समान।
भीगे धरती विशाल।
भरे पोखर सर ताल।
खेती फसलें किसान।
पौधे पशुधन विहान।
झूले मचते धमाल।
उड़ते चुनरी रुमाल।
सजती रमणी शृंगार।
वन में मंगल विहार।
शासन सावन सुरेंद्र।
ढूँढे मिलते न चंद्र।
. -----+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८८. सखी छंद
विधान:-- १४ मात्रा प्रति चरण
करुण रस प्रधान छंद
चार चरण दो-दो समतुकांत हो
. __जाने अनजाने__
पत्तियों में सरसराहट।
पंछियों की चहचहाहट।
समझो इन संकेतों को।
माँ समझाए बेटों को।
गाड़ियों की घरघराहट।
झाड़ियों में खड़खड़ाहट।
वन्य जीव चेतन होते।
नीड़ माँद सपने बोते।
रोशनी की जगमगाहट।
श्वान अहि की लपलपाहट।
मिटते जन बहु परवाने।
कुछ जाने कुछ अनजाने।
. ------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८९. रजनी छंद
विधान:-- २३ मात्रा प्रति चरण
सप्तक की तीन आवृत्ति + गुरु
३,१०,१७,वीं मात्रा लघु अनिवार्य
मापनी- २१२२ २१२२ २१२२ २
. __अनमोल है पानी__
मीत पानी को बचाना भूमि जीवों को।
मेघ वर्षा नीर पाएँ हित सजीवों को।
आसमानी आस देखें वे किसानों की।
प्यास खेतों की मिटाएँ बेजुबानों की।
बंधु पौधों को लगाना मेड़ खेतों पर।
पंथ छाँया के लिए भी, पेड़ गेंतो पर।
मेघ हरियाली लुभाने, भूमि सरसा दे।
जीव नर पौधे हितों में, मेघ बरसा दे।
कुंड खेतों में बनाएँ, जल सहेजेंगे।
पंथ टाँके में भरें जल, कल बचा लेंगे।
विज्ञ छंदों को पढ़ें अन मोल है पानी।
संग आओ गीत गाएँ, भूल नादानी।
. ---------+++-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९० . मंगल वत्थु छंद
विधान :-- २२ मात्रा प्रति चरण
११,वीं मात्रा पर यति के दोनो
ओर त्रिकल अनिवार्य
चरणांत में गुरु हो।
. __धरा सुरक्षा नीर सुरक्षा__
मीत हवा ये नीर, शुद्ध हो विमल सभी।
पेड़ लगायें मेघ, बुलाएँ सँभल अभी।
धरा सुरक्षा नीर, सुरक्षा मदद करो।
पर्यावरणन सखे, सुरक्षण, सनद करो।
.
ओजोन परत धूम्र, विनाशे कवच बड़ा।
उत्तर प्रहरी महा,हिमालय अटल खड़ा।
गंगा यमुना मात, सरीखी सरित बहे।
हो संरक्षण छंद, गीत ये विनय कहे।
.
अपनी धरती सिंधु, गुमानी तरु नदियाँ।
अपनी खेती हरी, भरी हो शत सदियाँ।
सब का तन मन रहे, सजीवन रोग हरें।
धरा वायु जल नहीं, प्रदूषण लोग करें।
. --------+---------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९१ . तमाल छंद
विधान:-- १९ मात्रा प्रति चरण
चौपाई + गुरु लघु
. __शीत काल__
भोर काल में बजते दंता शीत।
चालीसा भावे बजरंगी गीत।
मन से ही उपजे चौपाई छंद।
धीमे स्वर में कंपित गाते द्वंद।
अवसर मिले रजाई ओढ़े शाल।
बंद किंवाड़ी करते कान्हा ग्वाल।
दूर नींद से नयन हमारे आज।
गीत भजन से बैन उचारे साज।
गजक रेवड़ी लागे खिचड़ी भोग।
वृद्ध जनों की सेहत बिगड़े रोग।
लिखें काव्य कैसे चौपाई गीत।
कँपे हाथ अँगुली थर्राई मीत।
गर्म वसन बाँटो सुखदाई रीति।
अन्न दान कर लो जगताई प्रीति।
पीर नीर की सभी समझते धीर।
जल की बचत काँपते करते वीर।
. -------+++-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९२. अरिल्ल छंद
विधान-- १६ मात्रा प्रति चरण
चरणांत में भगण २११ या यगण ११२
. __हिन्दी भाषा__
बिन्दी भारत मात भाल पर।
हिन्दी भाषा भूषण है वर।
हिन्दुस्तानी यश रामायण।
चाहत बोले हिन्द मीत गण।
जन्म देव वाणी से इसका।
हुआ हस्तिनापुर मेंं जिसका।
सुगम पंथ प्रसरी जन जन में।
हिंदी जन जन के तन मन में।
देवनागरी लिखित सुहावन।
लिखते छंद गीत मनभावन।
सुन्दर वर्णी व्यंजन पालक।
याद हमारे कर लें बालक।
. --------++-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९३. अड़िल्ल छंद
विधान:-- १६ मात्रा प्रति चरण
चार चरण दो-दो समतुकांत
चरणांत में दो लघु या दो गुरु
. __पिता__
. °°°°°
पिता ईश सम हैं दातारी।
कहते कभी नहीं लाचारी।
देना ही बस धर्म पिता का।
आसन ईश्वर सम व्यवहारी।
तरु बरगद सम छाँया देता।
शीत घाम सब ही हर लेता!
संतति हित में जन्म गँवाता।
भले जमाने से लड़ जाता।
बन्धु सखा गुरुवर का नाता।
मीत भला सब पिता निभाता!
धर्म निभाना है कठिनाई।
पिता धर्म जैसे प्रभुताई।
जगते देख भोर का तारा।
पूर्व देख लो पिता हमारा।
पिता धर्म निभना अति भारी।
पाएँ दुख संतति हित गारी।
•. °°°°°
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९४. पद्धरि छंद
विधान :-- १६ मात्रा प्रति चरण
चार चरण दो-दो समतुकांत
यति, १०,१६ या ८,१६ पर
चरणांत जगण हो।
. __तिरंगा__
देश आजादी दिवस महान।
फहरे तिरंगा ध्वजा निशान।
संगत रक्षा बंधन तिवार।
भ्राता बहिन हर्षित हर बार।
राखी बाँधो भारत हितैष।
संविधानी संसद सम पोष।
रक्षण राखी बाँधो तिरंग।
राष्ट्र भावना बजाकर चंग।
जन जन का तिरंगा अरमान।
बहिन भ्रात अरु चंगा विहान।
रक्षा सूत्र तिरंगा लपेट।
दुर्गुण सारे रखलो समेट।
. ------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
.
९५. सिंह विलोकित छंद
विधान:-- १६ मात्रा प्रति चरण
चार चरण दो-दो समतुकांत
चरणांत लघु गुरु १२ हो
. __प्रात: काल__
जगते नमन करो तुम धरनी।
दूजा नमन पिता अरु जननी।
शौच क्रिया कर मंजन करना।
तन में आलस कभी न भरना।
कसरत योगा भ्रमण दौड़ना।
तन मज्जन में मसल योजना।
कुछ पल ईष्ट देव को जपना।
ध्यान चित्त वश में कर अपना।
आसन बैठ कलेवा करना।
दैनिक जीवन हेतु सँवरना।
सत्य अहिंसा रखना मन में।
अवगुण दूर रखो जीवन में।
. ------++-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९६. माहिया छंद
विधान -- ३ चरण
१२ मात्रा प्रथम व तृतीय चरण में
१० मात्रा द्वितीय चरण में।
चरणारंभ और चरणांत गुरु से हो।
२११ व ११२ का प्रयोग सफल है
जबकि
२१२ व १२१ स्वीकार्य नहीं हैं।
यह लोक छंद माना जाता है।
__संग चलें हम__
१
सावन मन को भाए।
मोर नचे वन में
साजन जब घर आए।
२
श्याम घटाएँ छाई।
विद्युत ज्यों नभ में।
मीत मिलन हित आई।
३
झूले पर झूल रही।
चूनर दूर उड़ी।
प्रीतम मन भूल सही।
४
भृंग कुसुम हित आए।
फूल पराग उड़े।
संग चले हम गाएँ।
. ---+---
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९७ . कलहंस छंद
विधान:- २० मात्रा प्रति चरण
११, वीं मात्रा पर यति पूर्व २१ हो
चार चरण दो-दो समतुकांत
. __दीपक__
डरे न तम से मीत, दीप मय बाती।
साथी रहो अभीत, गीत ऋतु गाती।
तारक गगन अनंत,दीप जल भू पर।
तेल बाति पर्यन्त, बैठ मत थक कर।
जलना पर उपकार, दीप से जानें।
दीपक प्रिय करतार, देव भी मानें।
खुशियों का त्यौहार, मने दीवाली।
दीपक विविध प्रकार,जला मतवाली।
पर हित की पहचान, तम दीपक तले।
दुख दुनिया के देख,भूलने निज भले।
रोशन करे जहान, धन्य दीपक तन।
सूरज चंद्र महान, पवन पावक मन।
करें देह का दान, दीप सिखलाता।
मीत सीख विज्ञान, ज्ञान दिखलाता।
जीवन पर हित मान, गेह उजियारे।
मानव सीख सुमित्र, सुजन मत हारे।
. ---------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९८. नरहरि छंद
विधान-- १९ मात्रा प्रति चरण
चरणांत १११२ अनिवार्य
चार चरण, दो-दो समतुकांत
: __स्वर्ण की सीढ़ी चढी है__
चाँदनी उतरी सुनहली, गगन से।
देख वसुधा जगमगाई, मन हँसे।
ताकते सपने सितारे, जग रहे।
अप्सरा मन में लजाई, जब कहे।
शंख फूँका यौवनों में, मन छला।
मीत ढूँढे कोकिलाएँ, तन जला।
सागरों में डूबने हित, सरित भी।
मग्न बहती गीत गाएँ, धुन सभी।
पोखरों में ज्वार आया, सहज ही।
झील बापी कसमसाई, यह मही।
हार कवि ने मान ली है,थकित है।
लेखनी भी दूर छिटकी, चकित है।
घन घटाएँ ओढ़नी नव, विमल है।
तारिकाओं से जड़े से, कमल है।
हिम पहाड़ी वैभवी में तरलता।
स्वर्ण की सीढी चढी है, सरलता।
. --------+--------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९९. संपदा छंद
विधान:-- २३ मात्रा प्रति चरण
११,२३ वीं मात्रा पर यति
चरणांत मे लघु गुरु लघु १२१ हो
चार चरण, दो-दो समतुकांत
. __माँ दुर्गे....___
माँ तुम दातार हो, देय सबको वरदान।
मातृशक्ति मान दो, बेटियों को अरमान।
हर माँ दुर्गा बने, तो बने पूत सपूत।
रात दिवस कामना, माता दीजे अकूत।
माँ दुर्गे सीख दे, सबके हितों मे आज।
सुता सुरक्षित रहे, ये संकल्पित समाज।
माँ दुर्गा दे रही, सब ही रंग शुभ हेत।
तिय के सम्मान हित,रहना सदैव सचेत।
बेटी से देव है, दैवी और भगवान।
करें मान सुता का, मात दुर्गे वरदान।
शर्मा बाबू लाल, करे मत पूजा यज्ञ।
माँ दुर्गे मन नमन, मनुज सेवा से अज्ञ।
. -------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१००. कज्जल छंद
विधान:-- १४ मात्रा प्रति चरण
चरणांत गुरु लघु अनिवार्य
चार चरण, दो-दो समतुकांत
. __पंछी मौन सारे__
. °°°°°°°
रो रहे जंगल मे कौन।
आज पंछी सारे मौन।
देखें नद में थमा शोर।
कूद नहाते थे किशोर।
विश्व क्या अब है बीमार।
मौत के तांडव सी धार।
जीतना नित नित है युद्ध।
व्याधियों से हो कर शुद्ध।
सिंधु की लहरों में विमान।
गर्जना खो रहे जवान।
गिरिशिखर से बहती पीर।
दुबक रहा गंगा का धीर।
रखें रोजड़े दिव्य नेत्र।
फसल निहारे खड़े क्षेत्र।
प्रीति की सब भूले रीत।
धरते शर करारे मीत।
. ------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१०१. हेमंत छंद
विधान:--२० मात्रा प्रति चरण
चरणांत में गुरु लघु गुरु २१२ अनिवार्य
चार चरण, दो-दो समतुकांत
यति बंधन रहित
. __रखना विज्ञ विचार__
आशा तृष्णा द्वेष मानव त्यागिए।
बिना पंख उड़ते जनो से भागिए।
दुर्लभ मानव देह है जन भा रहे।
मानवता के 'छंद' साथी गा रहे।
धरा जीव मय मात्र ग्रह ये जानते।
सीख विज्ञ' विज्ञान में अब मानते।
मानव में क्षमता बहुत, है मानवी।
व्यर्थ विज्ञ' खोएँ नहीं मद दानवी।
.
मस्तक 'विज्ञ' विचित्र है नर मानिए।
खोल अनोखे ज्ञानपट फिर जानिए।
'विज्ञ' सत्य मृदुतम वाणी बोलिए।
जन हितकारी सोच मानस घोलिए।
.
रखना विज्ञ' विचार यूँ,मत डोलना।
शोध सत्य निष्कर्ष लेकर तोलना।
विज्ञ' होड़ मन भाव से, रण साजते।
समरस हो उपकार कर, नर जागते।
. ------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
© सर्वाधिकार सुरक्षित
बाबू लाल शर्मा, बौहरा,विज्ञ
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
pin. ३०३३२६
mob.no. ९७८२९२४४७९
*************वार्णिक*************************
विज्ञ रचित *प्रमुख १३८+२२+११=१७१ वार्णिक छंद*
१. राधा रमण छंद
विधान:-
नगण नगण मगण मैं
१११ १११ २२२ ११२
१२ वर्ण ४ चरण
दो दो चरण समतुकांत
. राधे- साँवरिया
. -----
जब तक तन में श्वाँसे चलती।
विरह विपद में कान्हा भजती।
हम वृष तनुजा हे साँवरिया।
पर सचमुच कान्हा तू छलिया।
. -------
दिन भर मन में आहें भरती।
हम सब सखियाँ कान्हा तकती।
अब कुछ हँसले प्यारे सजना।
फिर नटवर तू राधे भजना।
. ---+--
गिरधर सब की बाते सुनते।
पर निज मनमानी ही करते।
तट तरु वन में ढूँढा करते।
पर तुम मन राधा के बसते।
. -------
©~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ
२. पंचचामर छंद
विधान:--
१२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ (आठ बार)
१२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ १२ (आठ बार)
दो दो चरण सम तुकांत हो,
चार चरण का छंद होता है।
. ......
. बसंत
. ..........
बसंत दूत कोकिला विनीत मिष्ठ बोलती।
बखान रीत गीत से बसंत गात डोलती।
बसंत की बहार में उमा महेश साथ में।
बजाय कृष्ण बाँसुरी विशेष चाल हाथ में।
. .......
दिनेश छाँव ढूँढते सुरेश स्वर्ग पालते।
सुरंग पेड़ धारते प्रसून काम सालते।
कली खिले बने प्रसून भृंग संग सोम से।
खिले विशेष चंद्रिका मही अनंत व्योम से।
. .......
पपीह मोर चातकी चकोर शोर काम के।
बसंत बाग फाग में बहार बौर आम के।
बटेर तीतरी कपोत कीर काग बावरे।
लता लपेट खाय पेड़ मौन कामना भरे।
. .......
निपात होय पेड़ जोह बाट फूल पात की।
विदेश पीव है बसंत याद कंत बात की।
स्वरूप ये मही सजे समुद्र छाल मारते।
पलंग शेष क्षीर सिंधु विष्णु श्री विराजते।
. .......
मचे बवाल कामना पिया पिया पुकारते।
बढ़े, सनेह भावना बसंत काम भावते।
निराश हो न छात्र भी नवीन पाठ सीखते।
बसंत के प्रभाव गीत चंग संग दीखते।
. .......
मने बसंत पंचमी मनाय मात शारदा।
मिटे समस्त कामना पले न घोर आपदा।
विवेक शील ज्ञान संग आन मान शान दे।
अँधेर नाश मानवी प्रकाश स्वाभिमान दे।
. .......
बसंत की उमंग संग पूजनीय शारदे।
किसान भाग्य खेल मात कर्ज भार तारदे।
फले चने कनेर आम कैर बौर खेजड़ी।
प्रसून खूब है खिले शतावरी खिले जड़ी।
. .....
पके अनाज खेत में कपोत कीर तारते।
नसीब हाय होलिके हँसी खुशी पजारते।
विवाह साज साजते विधान ईश मानते।
समाज के विकास को सुरीत प्रीत पालते।
. .....
विशेष शीत मुक्ति से सिया समेत राम से।
घरों समेत खेत के सुकाम मे सभी लसे।
विशाल भाल भारती नमामि मात आरती।
हिमालयी प्रपात नीर मात गंग धारती।
. .......
अखंड देश संविधान वीर रक्ष सर्वदा।
प्रणाम है शहीद को नमामि नीर नर्मदा।
बसंत की उमंग फाग संग छंद भावना।
सुरंग भंग चंग मंद मोर बुद्धि मानना।
. .........
.©~~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा °बौहरा" विज्ञ
३. वर्ष छंद
विधान - मगण तगण जगण
२२२ २२१ १२१
९ वर्ण ४ चरण
दो-दो समतुकान्त
. __अरमान__
आतंकी को दें अब दंड।
होते जाते भीरु उदंड।
आओ वीरों दें बलिदान।
नापाकी का मेट निसान।
कान्हा राधे को अब भूल।
दुष्टों को संहार समूल।
हे कैलासी तांडव धार।
आर्यावर्ती संकट टार।
शिक्षा ऐसी दो भगवान।
माता का साधे अरमान।
वीरों को देवें सब मान।
दें, वीणा धारी वह ज्ञान।
आओ सारे भारत वीर।
माताओं को दे मिल धीर।
वीरों की पत्नी मय बाल।
सम्भाले पूँछें अब हाल।
. .......
©~~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ
४. चंडरसा छंद
विधान:--
१११ १२२
नगण, यगण
६ वर्ण, ४ चरण,
दो दो सम तुकांत
__शहीदों__
नमन शहीदों।
वतन मुरीदों।
मर मिट जाते।
अमर कहाते।
वतन सँभाला।
बन रखवाला।
अमिट निशानी।
यह बलिदानी।
बन उपकारी।
वजह हमारी।
तन मन वारे।
अमन सँवारे।
कसरत कारी।
हम बलिहारी।
नमन सु वीरों।
सुत रण धीरों।
पवन पुकारे।
चमन निहारे।
अमित जुबानी।
अमर कहानी।
सुजन निराले।
सरहद वाले।
हक मत देना।
जय जय सेना।
जयतु गुमानी।
जय बलिदानी।
सुरग परिंदों।
नमन शहीदों।
. ------
©~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ
५. तिलका छंद
. विधान:- ११२ ११२
. सगण सगण (६ वर्ण)
चार चरण, दो चरण समतुकांत
ध्वज में लिपटे
. ------
मन के जप से।
तन के तप से।
मनुवा सज के।
बल सूरज के।
करना सबका।
अपना उनका।
उपकार सदा।
तब क्या विपदा।
अपने पन का।
निजका पर का।
घर है वसुधा।
मन क्या दुविधा।
भगवान भजे।
अभिमान तजे।
अरमान फले।
भय रीत टले।
इस देश रहें।
परिवेश कहे।
हर भाँति सुखी।
सम सूर्य मुखी।
भज मात पिता।
निज देश जिता।
परिवार रखे।
करतार सखे।
मन शान बना।
सज के सजना।
ध्वज में लिपटे।
अरि से न हटे।
सजनी लिपटी।
तनुजा चिपटी।
सुत मात लुटे।
पितु आस मिटे।
जय हिन्द कहा।
रिपु सैन्य जहाँ।
बलवान गया।
असमान नया।
निभ रीत तभी।
बलिदान सभी।
शुभ नाम रहे।
मन छंद कहे।
बस रीत बची।
मन प्रीत बची।
परिवार रहा।
पर चैन कहाँ।
. ------
©~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ
६. जलधरमाला-छंद
विधान:---
विधान-२२२ २११ ११२ २२२
चार चरण, दो दो समतुकांत
१२ वर्ण, ४ वर्ण पर यति
गीता गाएँ.....
... कविजन कान्हा वाली
. -----+-----
सेना सारी, सरहद चौकी आती।
आतंकी की, धड़कन है थर्राती।
हे माताओं, ललन तुम्हारे प्यारे।
माँ की आशा, वतन सुरक्षा धारे।
आजादी की, सरगम खोते पापी।
आतंको से, यह धरती माँ काँपी।
गीता गाएँ,कविजन कान्हा वाली।
हो तैयारी, रण अब बाजे ताली।
शेरों की माँ, निडर सदा ही होती।
है कुर्बानी, कब समझाती रोती।
है फौलादी, बहन पिता भी प्यारे।
चाहें मेरे, सुत रिपु को संहारे।
हिन्दुस्तानी,दम खम देखो बाकी।
गाली देना, हरकत भी नापाकी।
शेरों से तू, मत कर बेईमानी।
बातें सारी,सुन खल पाकिस्तानी।
. -------------
©~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ
७. इन्द्रवज्रा छन्द
विधान:---
विधान-प्रति चरण ११ वर्ण
२तगण(२२१)+१जगण(१२१)+२गुरु
दो-दो चरण समतुकान्त
. ------- ------
कैसे लुटा दें कशमीर क्यारी
. ------- ------
आओ सभी भारत के निवासी।
चालें चली है अब जो सियासी।
पाकी पड़ोसी करता जिहादी।
आतंक भारी ज्वर है मियादी।
. सीमा सुरक्षा अपनी करेंगे।
. आतंक कारी हमसे डरेंगे।
. माँ भारती है हमसे सुभागी।
. होने न देंगे उसको अभागी।
सींची लहू से धरती हमारी।
कैसे लुटा दें कशमीर क्यारी।
देंगे शहीदी हम तो जवानी।
सीमा निहारे करलें रवानी।
. जीते जियेंगे वरना मरेंगे।
. आवाम मेरे हित ही करेंगे।
. माँ भारती का सपना सजा दें।
. आतंक सारा जड़ से मिटा दें।
राधे मुरारी धरती तुम्हारी।
देखो कराहे दुखिया बिचारी।
पाकी पिशाची करते जिहादी।
सोचे न पापी मनुता गँवादी।
. माने मनादे समझे बतादे।
. गीता हमे तू फिर से सुना दे।
. हे सारथी आज पुरा कहानी।
. माँ भारती के हित दोहरानी।
सेना हमारी तव अारती के।
हो सारथी तू अब भारती के।
आओ कन्हैया रथ में हमारे।
साथी भरोसे हम है तिहारे।
. मेटे धरा से फिर पाप सारे।
. किस्से बनेंगे अपने तुम्हारे।
. पापी मरेंगे सत ही बचेगा।
. ईमान धर्मी रखना पड़ेगा।
. -------- -------
©~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ
८. भुजंगी छंद
विधान:----
यगण १२२×३+ लघु गुरु
१२२ १२२ १२२ १२
. कामना
. ----------
सुनो वीर फौजी तुम्हारे लिए।
जला दीप घी के सभी ने दिए।
तुम्ही से रहेगी सुरक्षा सखे।
सदाचार सारे हमारे रखें।
बढ़े देश की शान वीरों चढ़ो।
रखो मान ईमान पंथी बढ़ो।
नही भूलना गान पंछी कहे।
वही पातकी पाक पीछे रहे।
सखे भारती आरती धारती।
भला चाहती भावना पालती।
करे काम ऐसे सधे कामना।
सधे साधना मात की भावना।
करामात ऐसीेे हताशा मिटे।
पराधीनता की निराशा कटे।
जहाँ वीरता ही सदा धारती।
अहो भारती माँ सुने आरती।
जपे शारदे माँ कथा पावनी।
कहे भक्त भावे मनो भावनी।
रखो देश मेरा भला ही सदा।
टले घोर ऐसी, बला सर्वदा।
करे देश सेवा बचा बेटियाँ।
पढ़े बेटियाँ तो सरे नेकियाँ।
हमारी सभी से यही बंदगी।
बचाएँ सदा ही धरा जिंदगी।
सुनाएँ कहानी शहीदी यही।
बताएँ जवानी रवानी मही।
करें वंदना ईश आओ अभी।
बढ़े देश आगे सँभालो सभी।
. ----+---
© ~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
९. कलाधर छंद
विधान:--
२१×१५+दीर्घ=३१वर्ण, प्रति चरण
चार चरण समतुकांत होते है
. शिव महिमा
. ---+-----
शैल पे विराजते हिमाचली शिला प्रभो,
महेश संग पार्वती गणेश विघ्न टाल के।
भूतिया भभूत अंग वस्त्र बाघ चाम हैे,
रहे त्रिशूल हाथ शंख कंठ हार ब्याल के।
काल रात्रि मान पूजते सभी समादरे,
सुरेश संग में दिनेश देव भू पताल के।
विल्व पत्र भोग दूध नीर घी दही चढ़ा,
भजे सभी सुकाल चाह मेट काल जाल के।
. ----------
गंग की तरंग शीश चंद्र की छटा बने,
जटा विशाल नाग संग नंग भूत के रमें।
सिंह पे सवार साथ नादिया गणेश भी,
महेश संग शैल ही विराजि मात हे रमें।
रोग नाश योग देय, भोग शोक नाशनी,
निवार पाप शाप को,अजान हूँ करें क्षमें।
ज्ञान दे सुकाल के विकासमान काम दे,
सँवार भाग्य योग क्षेम,शील भाव दें हमें।
. -----------©~~~~`~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
१०. अपराजिता छंद
विधान-
नगण नगण रगण सगण लघु गुरु
१११ १११ २१२ ११२ १२
१४वर्ण ४ चरण
दो दो चरण समतुकांत।
. तांडवी
. -----
डम डम डमरू बजे शिवरात में।
बम बम सबही कहे अब साथ में।
जय शिव जय पार्वती कह आरती।
जन गण मन शिंभु शंकर भारती।
सर हद पर वीर धीर सँभालते।
हर हर बम भारतीय उचारते।
सजग सकल देश शिंभु कृपा रखे।
मनुज मन रहे सनेह दया सखे।
नियति नियम मान ईश्वर भावना।
अजर अमर मातृ भूमि सुकामना।
मनुज दनुजता करे मनु घातकी।
अवसर अब पाप मोचन पातकी।
अब शिव कर तांडवी नृत आज से।
दनुज दल हटे भगे हिमताज से।
. --------+-----
"© ~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
११. मत्तमयूर छंद
विधान:--- १३ वर्णीय
मगण,तगण,यगण,सगण, गुरु
विधान-२२२ २२१ १२२ ११२ २
. ----
. नारी कल्याणी
. ------
माया है संसार यहाँ है सत नारी।
जन्माती है, पूत निभाती वय सारी।
बेटी माता पत्नि बनी वे बहिना भी।
रिश्ते प्यारे खूब निभे ये कहना भी।
होती है श्रृद्धा मन से ही जन मानो।
नारी सृष्टी सार रही है पहचानो।
नारी का सम्मान करे जो मन मेरे।
हो जाए कल्याण हमेशा तन तेरे।
नारी है दातार सदा ही बस देती।
नारी माँ के रूप विचारें जब लेती।
नारी पृथ्वी रूप सदा ही सहती है।
गंगा जैसी धार हमेशा बहती है।
माताओ ने पूत दिए हैं जय होते।
सीमा की रक्षाहित वे जो सिर खोते।
पन्ना धायी त्याग करे जो जननी है।
होगा कैसा धीर करे जो छलनी है।
होती हैं वे वीर हमारी बहिने तो।
भाई को भेजे अपना देश बचे तो।
बेटी का तो रूप सदा ही मन जाने।
होती है ईश्वर यही भारत माने।
पन्नाधायी रीत निभाती तब माता।
बेटा प्यारा ओढ़ तिरंगा घर आता।
पत्नी वीरानी मन सिंदूर लुटाती।
पद्मा जैसे जौहर की याद दिलाती।
राखी खो जाती बहिनें ये बिलखाती।
नारी का ही रूप तभी तो सह जाती।
दादी नानी की कहनी है मनबातें।
वीरो की कुर्बान कथाएँ सब राते।
नारी कल्याणी धरती के सम होती।
संस्कारों के बीज सदा ही तन बोती।
माता मेरा शीश नवाऊँ पद तेरे।
बेटी का सम्मान करें ओ मन मेरे।
नारी कल्याणी जननी है अभिलाषी।
बेटी का सम्मान करो भारत वासी।
कैसे भूलोगे जननी को यह बोलो।
नारी भारी त्याग सभी मानस तोलो।
आजादी का बीज उगाया वह रानी।
लक्ष्मी बाई खूब लड़ी थी मरदानी।
अंग्रेजों को खूब छकाया उसने था।
नारी का सम्मान बढ़ाया जिसने था।
सीता राधा की हम क्या बात बताएँ।
लक्ष्मी दुर्गा की सब को याद कथाएँ।
गौरा गंगा भारत की शान दुलारी।
नारी कल्याणी सब की है हितकारी।
. --------
.©~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ
१२. चंद्रिका छंद
विधान:--- १३ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
नगण,नगण,तगण,तगण गुरु
. १११ १११ २२१ २२१ २
. भारती
. ------------
मन फितरत आशीष ईमान की।
यह हसरत है आज इंसान की।
कर कुदरत को मुक्त हैवान से।
हजरत सब है रिक्त दीवान से।
अरि दल मन से है बईमान येे।
सच सच कहता गीत ले मान ये।
सरहद पर सेना खड़ी भारती।
हर मजहब की आज ये आरती।
यह विनय सभी भारती कीजिए।
वतन हित यही गीत गा लीजिए।
अब जब यह सीमा सजे शान से।
जन गण मन माँ भारती मान से।
जब सिर उठता शान आवाम में।
तन मन धन को वार दो नाम में।
अब रिपुदल की हार संहार हो।
सरहद पर ही शीश शृंगार हो।
अब अमन तिरंगा रहे शान से।
यह चमन सजे भारती मान से।
बुलबुल कहती गीत जो तान से।
हलधर भरता पेट जो धान से।
जनहित हम भी काम को मान दे।
नव कलरव संगीत सम्मान दें।
परहित अपने काज आगाज हों।
जन मन सब संगी न नाशाज हो।
. -------
©~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
१३. प्रमिताक्षरा छंद
विधान:--
. 12 वर्ण प्रति चरण
सगण जगण सगण सगण
११२ १२१ ११२ ११२
. जीत जीत अपनी तय हो
. ...........
प्रभु का जिसे भजन है करना।
मन को सदा सरल ही रखना।
हर भारतीय जन है अपने।
अब सिद्ध होय सब के सपने।
जननी धरा वतन नाज करें।
हम मानवीय परिताप हरे।
अरमान वीर बलिदान करे।
भगवान धीर मम मान धरे।
रथवान कृष्ण जब गीत कहे।
मन मान पार्थ तब युद्ध सहे।
नदियाँ तरे सतत वैतरनी।
हमको उन्हे सजल है रखनी।
परिणाम मान परखे रहना।
अनजान राह तकते सहना।
हरकाज सिद्ध हित मानवता।
कर युद्ध वीर हत दानवता।
अपना महान यह भारत हो।
हर दुष्ट नीच पर लानत हो।
हम कर्म वीर कहलाय सखे।
अब रीत प्रीत हर मान रखें।
लिख गीत छंद हित मानव के।
शुभ सूत्र धार बन आनव के।
डर देख हीन मत तू बनना।
मन मीत देख जगते सपना।
जग जीत वीर बनना तुमको।
फिर धीर वीर बढ़ना हमको।
जय बोल बोल अपनी जय हो।
जग जीत जीत अपनी तय हो।
. -----+-----
©~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
१४. तामरस छंद
विधान:---
. १२ वर्ण,१६ मात्रिक
नगण, जगण,जगण, यगण
१११, १२१, १२१ , १२२
. दो दो पद सम तुकांत
. धरती
. .....
हम जननी कहते धरती को।
यह धरती बसने रहने को।
जगत सँवार सनेह दुलारे।
हलधर के हित नेह सँवारे।
हर पल भू फिरती चलती है।
दिन महिने ऋतुएँ बनती है।
जग जननी कहते हम भाई।
यह धरती सन प्रीत मिताई।
सृजन सनेह धरा सन माने।
खनिज अनेक धरा तन जाने।
सत उपकार करे जग माता।
नमन करे कर जोरि विधाता।
फसल किसान अनाज उगाता।
हमसब का बन जीवन दाता।
तरुवर भूधर शोभित नीके।
शशि सम दीपक है रजनी के।
सहज प्रदूषण रोक धरा के।
अवनति रोक अनीति जहां के।
सरल स्वभाव सुधीर सुमाता।
जनम मनुष्य सुकर्मन पाता।
हम धरती ऋण सोच उतारें।
वन तरु सागर नीर विचारें।
सजल रहे नदियाँ, सर सारे।
सरस बहे कविता पद न्यारे।
खग पशु जीव बसे जन प्यारे।
नभ तल भारत देश हमारे।
सुजन स्वदेश प्रदेश विदेशी।
रख निज मात उदार विशेषी।
जग जननी धरणी महतारी।
अविरल भक्ति करे हम जारी।
हसरत एक रहे मन मोरे।
अविचल मात रहे तन तोरे।
नभ सविता शशि मंडल तारा।
सर सरिता नद कूल किनारा।
जनम मिले मनवा तन धारूँ।
नित नित मात सुगीत उचारूँ।
लिख शरमा पद लालन बाबू।
मन अपने रख भावन काबू।
सरस सनेह लिखूँ पद गाऊँ।
सजल सुरीत सुमात सुनाऊँ।
. -------
© ~~~~~~~~~~`~बाबूलालशर्मा
१५. चंपकमाला छंद
विधान:---
10 वर्ण , १६ मात्रिक
भगण मगण सगण गुरु
२११ २२२ ११२ २
दो दो पद समतुकांत हो।
. -----------
. होली मरदानी
. --------
रंग सजे सीमा पर सारे।
शंख बजाए कष्ट निवारे।
संकट आतंकी बन बैठे।
कान उन्हीं के वीर उमेंठे।
राष्ट्र सनेही भंग चढ़ालो।
शत्रु समूहों को मथ डालो।
ओढ़ तिरंगा ले बन शोला।
केशरिया होली तन चोला।
याद करे संसार रुहानी।
खेल सखे होली मरदानी।
चेत सके आतंक न प्यादे।
चंग सखे ऐसी बजवादे।
फाग रमे खेले हम होली।
झेल सकें सीमा पर गोली।
लाल गुलाबी रंगत होनी।
भूमि हमारी रक्तिम धोनी।
शीश उतारे शीश कटा दें।
भारत माँ की शान बढ़ा दें।
चंग बजा लें शंख बजा दें।
रंग लगा दें रक्त बहा दें।
गीत सुना हूँकार सुनाएँ।
शेर दहाड़े गीदड़ जाए।
देश हमारे फागुन होली।
सैनिक सीमा रक्त रँगोली।
घात लगाते कायर घाती।
वीर लड़े ये छप्पन छाती।
खूब जलाते हैं हम होली।
युद्ध करें ये सैनिक टोली।
रंग लगाएँ प्रेम करेंगे।
सीम सुरक्षा काज लड़ेंगे।
मान तिरंगे का रखना है।
गान शहीदी का रटना है।
झेल सको बंदूक सुवीरों।
खेल सको होली रणधीरों।
देश हमारा शान हमारी।
पर्व बहाना बात सँवारी।
भारत माँ की सूरत भोली।
चाहत सीमा खून व गोली।
ताकत वीरों खूब सतोली।
मर्द बनो खेलो अब होली।
. ----
©~~~~~~``~~बाबूलालशर्मा विज्ञ
१६. वेगवती छंद
विधान:--
चार चरण, २,२ चरण
समतुकांत
. सगण सगण सगण गुरु,
. (१०वर्ण)
. ११२ ११२ ११२ २
. ........
. चाहत
. .......
धरती अपनी जन माते।
शशि से उजली नव राते।
सविता तम को हर लेता।
रचना सब की कर देता।
रखती सबसे अपनापा।
सहती जग के भव तापा।
अपनी जननी जग माता।
मन से निभता यह नाता।
मनभावन रंग शहीदी।
लगता हर मान मुरीदी।
अपनी मजबूत सु बाहें।
बस मान शहादत चाहें।
मन मे अरमान तिरंगा।
यह देश रहे बस चंगा।
बस भारत हो यह ऊँचा।
तकता रह विश्व समूचा।
करता पद वंदन माता।
रचना लिख मैं गुण गाता।
तुमको सब अर्पण मेरा।
तन ये मन जीवन तेरा।
. ---------
©. ~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
१७. दोधक छन्द
विधान:--
. भगण भगण भगण गुरु गुरु
२११,२११,२११,२२
यति - (६,५ वर्ण पर)
कुल १६ मात्रा,११ वर्ण प्रति चरण।
...............
. छंद भला कब कर्ज चुकाते
. ...............
छंद रचें कवि, मुक्तक कैसे।
पत्नि कहे नित, लावन पैसे।
पेट भरे कब, छंद तुम्हारे।
नित्य कहे हम, तो अब हारे।।
पुत्र कहे सुन, तात हमारे।
शुल्क भरो अब,सोच सकारे।
रोज सुने मन, मार तकाजे।
वक्त बुरा मम, द्वार विराजे।।
वस्त्र सुता हित,माथ खपाती।
भात चहे नित, दाल चपाती।
गीत रचे मन , प्रीत जगाते।
पेट भरे कब, रीत बताते।।
भोजन औषध, नूतन खर्चे।
बर्तन भूषण, कर्ज सु चर्चे।
भाव भरे कब, गीत बिताते।
छंद भला कब, कर्ज चुकाते।।
आस जगी जब,लेख छपेंगे।
भाग्य बने कुछ, दाम मिलेंगे।
छाप रहे धन ,लेकर देखा।
लेखक लेखन के भव लेखा।।
अर्थ बिना घर, बाल दुखारे।
किस्मत ने हम, खूब बिसारे।
कौन सके अब, देय मँजूरी।
शासन की जब,हो न हजूरी।।
. ............
©. ~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
१८. शुभमाल छंद
विधान:---
. जगण , जगण
. १२१ , १२१
. ६ वर्ण, ८ मात्रा
दो दो चरण सम तुकांत
चार चरण का एक छंद
. स्वदेश महान
. °°°°°°°°°°
करें जय गान!
शहादत शान!
सुवीर जवान!
स्वदेश महान!
करें गुण गान!
सुधीर किसान!
पढ़े इतिहास!
बचे निज त्रास!
धरा निज मात!
प्रणाम प्रभात!
पिता भगवान!
सदा सत मान!
रहे यश गान!
स्वदेश महान!
प्रवीर जवान!
सुधीर किसान!
. *****
©. ~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
१९. पदममाला छंद
विधान:--
रगण रगण गुरु गुरु
२१२ २१२ २ २
८ वर्ण, १४ मात्रा
दो दो चरण समतुकांत
चार चरण का एक छंद
. बेटियों
. ------
शारदे आप ही आओ।
कंठ मेरे तुम्ही गाओ।
शान बेटी सयानी के।
बात किस्से गुमानी के।
धाय पन्ना बनी माता।
मान मेवाड है पाता।
पद्मिनी की कहानी है।
साहसी जो रुहानी है।
बात झाँसी महारानी।
शीश हाड़ी दिए मानी।
वीर ले जा निशानी है।
बात सारी सिखानी है।
बेटियों को बचानी है।
शान शिक्षा दिलानी है।
कर्म कर्त्तव्य भी जानें।
वक्त की माँग को मानें।
शान मानें तिरंगा की।
बेटियाँ, आन गंगा की।
गीत गाओ सुनाओ तो।
चंग साथी बजाओ तो।
देश के गीत गाने हैं।
भारती के तराने हैं।
भाव सद्भाव वे सच्चे।
पालने प्रेम से बच्चे।
सैनिकों के हितैषी हों।
बेटियाँ मान पोषी हो।
नागरी मान हिंदी का।
भारती भाल बिंदी का।
हिंद के गीत गाऐं जो।
शत्रु के शीश लाऐं जो।
वीर जन्में शिवा जैसे।
पूत पालें सुता ऐसे।
छंद गाएँ जवानों के।
अन्नदाता किसानों के।
बेटियों वीरता गाओ।
राष्ट्र में धीरता लाओ।
देश की शान बेटी हो।
राष्ट्र का मान बेटी हो।
सृष्टि का सार बेटी हो।
ईश आभार बेटी हो।
. -------------
© ~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
२०. विमला छंद
विधान
सगण मगण नगण लघु गुरु
११२ २२२ १११ १ २
११ वर्ण, १६ मात्रा
चार चरण, का छंद
दो दो चरण समतुकांत
. घुटती श्वाँसे
. ---------
बिटिया कैसे दुर्दिन सहती।
किस से बातें मानस कहती।
परखी जाती मात उदर में।
घुटती श्वाँसे घात अधर में।
करते सारे लोग बतकही।
बिटिया जाने रीति अन कही।
मरवा देंगें पूर्व प्रसव के ।
कटवा डालें निर्दय मन के।
बिटिया हत्या में जन मन है।
बचते क्या ऐसे बचपन है।
चल पाए संसार सरलता।
रखना सीखो भाव तरलता।
करते हो क्यों नाशक करनी।
तुमको ही है आखिर भरनी।
तनया से ही सृष्टि निखरती।
समझें भू की शान बिखरती।
अपमानोगें जो यदि बिटिया।
तय मानो डूबे जग लुटिया।
कथनी जैसा मानस कर ले।
बिटिया संरक्षा चित धर ले।
. --------
©~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
२१. गाथ छंद
विधान:--
८ वर्ण, १३ मात्रा
रगण सगण गुरु गुरु
२१२ ११२ २ २
. __जय__
भारती कहती आओ।
गीत भारत के गाओ।
छंद या कविता दोहे।
मानवी मन को मोहे।
आज मानव को भारी।
देह नाशक तैयारी।
एकता अब तो धारो।
शत्रु का दल संहारो।
पातकी जन को जानो।
ईश को अब तो मानो।
स्वच्छ हो तन तो तेरा।
देश भी जय हो मेरा।
. -------
©~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा, बौहरा ( विज्ञ )
२२. विज्ञात छंद
विधान:--
८ वर्ण , १३ मात्राएँ होती हैं।
प्रति दो चरण समतुकांत
गण : भगण रगण गुरु गुरु
२११ २१२ २२
. कामना
. ----
सागर पार से आया।
रोग वही यहाँ लाया।
विश्व विनाश ये जाने।
मानवता नहीं माने।
नाशक भावना भारी।
युद्ध विषाणु तैयारी।
सत्य सुनीति को भूले।
स्वार्थ अनीति के झूले।
फैल रही महामारी।
भारत है सदाचारी।
जीत सदा रहे तेरी।
आनव कामना मेरी।
मानस भाव विज्ञातं।
आज हुलास संज्ञातं।
भारत भारती हिंदी।
विज्ञ लगे भली बिंदी।
. ~~
© ~~~~~~~बाबू लाल शर्मा ' विज्ञ'
.२३. भुजंगप्रयात छंद
विधान:--
१२२ × ४ ( यगण यगण यगण यगण)
चार चरण , दो दो चरण सम तुकांत हो
. ____प्रतीक्षा____
हमारा भरोसा तुम्हारे सहारे।
प्रभो बाग मेरे तुम्ही हो बहारे।
लगी नाव मेरी नदी के किनारे।
प्रभो बोझ भारी इसे पार तारे।
बनाऊँ सुनाऊँ लिखूँ छंद तेरे।
दया हो प्रभो जी हरो कष्ट मेरे।
कहानी लिखूँगा तुम्हारी गुमानी।
रचूँ काव्य दोहा सवैया विहानी।
हमेशा अनेको कथाएँ सुनी है।
इसी हेतु मैने चटाई बुनी है।
पधारो यहाँ बैठ बातें करेंगे।
पुराने सभी घाव दोनो भरेंगे।
धरा भारती मानवी आज चाहे।
मिटाओ सभी कष्ट नासूर आहे।
हरो द्वेष सारे दुखो की कहानी।
बनादो सुहानी नही तो रुहानी।
युगों से यही पीर देखी सुनाई।
लिखे लेखनी गीत नेकी बनाई।
कभी तो सुनोगे दुखों के बहाने।
खड़ी है यहाँ नाव देखो मुहाने।
विवादी हुआ जीव नेकी गँवाता।
बिना बात भारी हताशा कमाता।
भलाई बुराई सभी रोग भारे ।
सुरक्षा प्रतीक्षा करे लोग हारे।
. _______
© बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
२४ . अनुष्टुप छंद
विधान:--
८ वर्ण का अर्द्ध समवृत छंद
चारो चरणों में
पहले ४ वर्ण स्वतंत्र, रहते हैं।
चारो चरणों की संरचना--
****१२२२, ****१२१२
****१२२२, ****१२१२
सम चरण सम तुकांत रहें।
. __जल सहेज ले__
जल की महिमा भारी,
मर्त्य जन्म जीव ले।
मनुज नीर आभारी,
याद कर अतीव ले।
नर सहेज पानी को,
भावि संतति भी रहे।
वन तरु रहे पंछी,
व्यर्थ जल नही बहे।
घर घर बना टाँके,
मेह जल सहेज ले।
जल नही वृथा जाए,
तू रख परहेज ले।
जमीन खेत मेड़ो से,
मेह में बिरवा लगा।
हरीतिमा वर्षा लाए,
अकाल को परे भगा।
. __________
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
२५. असबंधा छंद
विधान:--
. ---- १४वर्ण ----
मगण तगण नगण सगण गुरु गुरु
२२२ २२१ १११ ११२ २ २
दो दो पद समतुकांत हो
. __गरल शिव पी जाते__
आजादी की कीमत जनमत ने जानी।
आबादी की पीर सहज हम ने मानी।
गैरों का फौलाद बदन हम से हारा।
जीता था संसार चकित हम से सारा।
माता के वे पूत सदन कब के छोड़े।
आतंकी के दाँत कठिन पथ थे तोड़े़।
कुर्बानी सौगात वतन हित है मानी।
देते थे वे वीर सहज कहते ज्ञानी।
काया का दे दान अमर ऋषि हो जाते।
पीना था जो क्लिष्ट गरल शिव पी जाते।
त्रेता में श्री राम असुर कुल संहारे।
आतंकी जो वंश सहज हरि ने मारे।
. . ______
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
२६. इंदिरा छंद
विधान:--
चार चरणीय छंद, १६ वर्ण
दो दो चरण समतुकांत हो
नगण रगण रगण लघु गुरु
१११ २१२ २१२ १ २
__प्रणय अग्नि में मर्त्य दाहता__
हृदय हार तू प्रीति रीति में।
कठिन छंद भी गीत नीति में।
जगत सत्य को मान कल्पना।
मनुज धारता व्यर्थ जल्पना।
समय सत्यता स्वार्थ सिद्धि का।
सफल गीत गाएँ प्रसिद्धि का।
हृदय मानवी प्रेम चाहता।
प्रणय अग्नि में मर्त्य दाहता।
कठिन पंथ है प्रीति बावरी।
उदित सूर्य लागे विभावरी।
तमस राह में अंध भावना।
मनुज देह की नित्य कामना।
सहज त्याग ही प्रेम साधना।
विमल प्रीति में मीत बाँधना।
जटिल प्रेम का पंथ मानवी।
सरल राह है प्रीति दानवी।
. --------------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ
२७. उपवेन्द्रवज्रा छंद
विधान:--
.------११ वर्ण------
चार चरण का छंद
दो दो चरण समतुकांत
जगण तगण जगण गुरु गुर
१२१ २२१ १२१ २ २
. __नीर निबंध नाली__
जलं डुबो डूब रही तलाई।
झरे नित्य बही ललाई।
नदी कुएँ पोखर बंध खाली।
सखे बहे नीर निबंध नाली।
सखे वारि बहाव रोको।
अनीति के कर्म कृपालु टोको।
प्रकाश का सागर मूर्ख जाने।
सुकाल में गागर 'विज्ञ' माने।
रुके बहे नीर सुजान सारे।
कहो यही आपद आज टारे।
जलं बिना धीर किसान खोए।
फँसे बिना नीर अनाज बोए।
कुएँ बनालो जल रोकना है।
सखे सभी को यह टोकना है।
रहे बचे जीवन भावि मानो।
सखे सभी कीमत नीर जानो।
. ______
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
२८. कण्ठी छंद
विधान:-----
५ वर्ण , चार चरण
दो दो चरण समतुकांत
जगण गुरु गुरु
१२१ २ २
_सदा जगाते_
स्वदेश मानो।
प्रदेश जानो।
विदेश त्यागो।
भवान जागो।
सुविज्ञ संगी।
सखी पतंगी।
मयूर नाचे।
पपीह वाचे।
किसान जागे।
मिठास लागे।
बसंत आए।
पिकी फुलाए।
विभात रोना।
विधान धोना।
अतीव चोखा।
अमित्र धोखा।
विचित्र बातें।
विनीत घातें।
पुनीत रातें।
सदा जगाते।
. ____
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
२९. कुसुम सुमुदिता छंद
विधान :---
कुल १० वर्ण प्रतिचरण
चार चरण का छंद
दो दो चरण समतुकांत हो
भगण नगण नगण गुरु
२११ १११ १११ २
. पिता
. °°°°°
है पितु प्रभु सम भरता।
कर्म सुवन हित करता।
आसन हरि सम रखना।
छाँवन वरद परखना।
शीत तपन घन हरता।
श्वेद सहित तन करता।
जन्म मरण हित सरते।
संतति हित पितु मरते।
अम्बर सम सत रहता।
भीषण तम सब सहता।
बन्धु सुजन गुरु बनता।
शत्रु दलन पितु तनता।
तारक नभ ध्रुव स्थिरता।
नीड़ हित पितु विचरता।
यौवन तज सब सुखदा।
तात समझ सुत विपदा।
•. °°°°°°°°
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
३०. --: कनक मंजरी छंद :--
विधान :---
४ लघु(१) +६ भगण (२११)+ गुरु
११११+२११+२११+२११
२११ + २११ + २११ + २
चार चरण, दो-दो समतुकांत
. __लक्ष्मण शक्ति__
रघुवर सोच करे मन में जब
लक्ष्मण के तन घाव लगा।
वन वन में भटके प्रिय लक्ष्मण
कष्ट सहे तन भाव जगा।
अब रण मे तुम मूर्छित हो तब
कौन रहा मम साथ सगा।
हनुमत बोल पड़े तब लो प्रभु
लाउँ सजीवन जाउँ भगा।
जब कुछ शोक मिटा प्रभु का तब
धीर कहे हनुमान सखा।
गिरि पर जाकर औषध लाकर
लक्ष्मण के भव प्राण रखा।
हनुमत जा पहुँचे गिरि औषध
ला प्रभु के पद पास रखे।
अनुज उठे प्रभु को कर जोड़त
धन्य प्रभो हनुमान सखे।
. _________
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
३१. गजपति छंद
विधान:--
८ वर्ण प्रति चरण का छंद
चार चरण,
दो दो चरण समतुकांत
नगण भगण लघु गुरु
१११ २११ १ २
__बचा जल सखे__
जल सदा परखना।
बचत नीर करना।
जल सजीवन करे।
वन हरे तन भरे।
जन सुनो जल बचे।
जन तभी भव नचे।
रख बचा जल सखे।
जग बचा जन रखें।
मनुज नीर न बहे।
वनज पीर न सहे।
तरु रहे द्रुम रहे।
जल बचे सब कहें।
कम विदोहन करें।
फिर धरा तल भरें।
पय बराबर सखे।
जल सजीवन रखे।
. ____
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
'३२. गिरिधारी छंद
विधान:--
१२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
सगण नगण यगण सगण
११२ १११ १२२ ११२
. __तृष्णा मचली__
छलिया सजन दिखाते सपने।
सजनी विरह बखाने अपने।
तकती दिवस निशा मैं उनको।
तितली बन मन चूमें जिनको।
पपिहा शुक पिक बोले तरु से।
जलते हृदय अँगारे स्वर से।
नयना पल पल ताके सजना।
जगते सपन हिँडोले छलना।
सखियों रिमझिम वर्षा बरसे।
गरजे घन मन मेरा तरसे।
अब तो तन मन चाहे मिलना।
चढ़ते पग पग झूलें खिलना।
पिव क्यों पिक तुम बोली पगली।
चुप हो तन मन तृष्णा मचली।
चढ़ क्यों तरु पर पींगे भरती।
हम तो पिव बिन झूले डरती।
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
३३. घनश्याम छंद
विधान:--
प्रति चरण १६ वर्ण
६, १६ वें वर्ण पर यति
चार चरण, दो-दो समतुकांत
जगण जगण भगण भगण भगण गुरु
१२१ १२१ २११ २११ २११ २
. __किया जब नेह नीर__
कृपा कर नीर,देव धरा जल पीर हरो।
वृथा जल नष्ट,कार उन्हे अब दंड धरो।
विदोहन दुष्ट, जो कर नीर बिगाड़ वृथा।
उन्हे अब दण्ड, दे जल देव सुधार व्यथा।
रहा जल बीत, है बिन अंबु निभाव कहाँ।
निभे जग जीव, रीत धरापन भाव यहाँ।
किया जब नेह, नीर तभी जन जन्म हुआ।
रही कब कौन, रीति कहाँ जल को न छुआ।
सुनें सच बात, जीव यहाँ बच नीर रहे।
कहे कवि छंद, गीत दुखी मन नीर बहे।
किए जल नष्ट, भावि मरे जन नीर बिना।
बचे फिर कौन, 'विज्ञ' सहे सब पीर गिना।
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
३४. " चंचला छंद "
विधान:--
१६ वर्ण प्रति चरण का छंद
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
रगण जगण रगण जगण रगण लघु
२१२ १२१ २१२ १२१ २१२ १
गुरु लघु (२१) × ८ = १६ वर्ण
. __देव तुल्य धीर पेड़__
कैरियाँ अनार आम, कैंत बैंत बाँस ढाक।
अन्य वन्य जीव सर्व , मानवी हिताय आँक।
आक पुष्प बिल्वपात, दैवयोग पिण्ड साथ।
वेद भक्त साधु संत , भाव से चढाय नाथ।
दूब से गणेश पूज, भाव संग सौंप नित्य।
सिद्ध काज होय भक्त,विघ्न को हटाय सत्य।
काट काट पेड़ नित्य, पाप भार धार माथ।
देव तुल्य धीर पेड़ , आदमी सताय साथ।
.
पीपली बबूल नीम ,आम जम्बु सागवान।
कैर बेर खेजड़ी व , धौंक जाल पाल नेक।
पेड़ आदमी समान , पेड़ मान मानवीय।
ये सजीव जाति प्राण, वायु कोष मान एक।
देय और देय पेड़, लेय नाहिं दाम धीर।
मानवी हितैष पेड़ , सर्व दात्र ज्ञान पीर।
हो धरा हरी भरी, सु वृक्ष रोपि पेड़ वीर।
वाटिका व बाग गेह , नेह से सँभाल नीर।
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
३५. " चामर छंद "
विधान :-- प्रति चरण १५ वर्ण
चार चरणीय छंद, दो-दो समतुकांत
गुरु लघु ७ बार + गुरु
२१ २१ २१ २१ २१ २१ २१ + २
. __भाग्य हाय होलिके__
हो बवाल कामना पिया पिया पुकारते।
ले सनेह भावना बसंत काम भावते।
आसवान छात्र भी नवीन पाठ सीखते।
प्रीत के प्रभाव गीत चंग संग दीखते।
.
ले बसंत पंचमी मनाय मात शारदा।
हो समस्त कामना पले न घोर आपदा।
नेक शील ज्ञान संग आन मान शान दे।
पाप नाश मानवी प्रकाश स्वाभिमान दे।
.
रंग की उमंग संग पूजनीय शारदे।
खेत भाग्य खेल मात कर्ज भार तार दे।
ये चने कनेर आम कैर बौर खेजड़ी।
पुष्प खूब है खिले शतावरी खिले जड़ी।
.
है अनाज खेत में कपोत कीर तारते।
भाग्य हाय होलिके हँसी खुशी पजारते।
ब्याह साज साजते विधान ईश मानते।
मानवी विकास को सुरीत प्रीत पालते।
. ________
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
३६.. " तोटक छंद "
विधान:-- प्रति चरण १२ मात्रा
चार चरण, दो-दो समतुकांत
सगण सगण सगण सगण
११२ ११२ ११२ ११२
__बिरखा जल क्यों बहना__
जल की महिमा सब ही कहते।
जन जीवन ही जल से मिलते।
गगरी जल की मन से रखना।
उस को ढँग से भरना ढँकना।
बरसे बिरखा जल क्यो बहना।
जल कुण्ड बना कर के भरना।
बगिया महके कपड़े धुलते।
बिरखा जल से सर भी भरते।
सबसे कहना सबकी सहना।
बिरखा जल व्यर्थ नही बहना।
रखना इसको हिय से मिलता।
सबके हित को जल ही सिलता।
. ________
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
३८ . " द्रुतविलम्बित छंद "
विधान :-- प्रति चरण १२ वर्ण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
नगण भगण भगण रगण
१११ २११ २११ २१२
. __किसान__
तप किसान अनाज उगा रहा।
सब जियें धरती पर गा रहा।
प्रभु यही वसुधा पर मानना।
सतत चेतन में रह जागना।
रवि तपे तपना इस को भला।
हिम गिरे गलना इसको गला।
सहज मेह रहे तन भीगता।
ठिठुर शीत सहे तन धूजता।
सरल देव बना यह भूत सा।
कठिन राह किसान सपूत सा।
जटिल काट कृपाण कटार से।
मधुप मानस श्वेद बहार से।
. ______
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
३८. " धार छंद "
विधान :-- प्रति चरण ४ वर्ण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
मगण + लघु
२२२ + १
_सच्चाई_
पानी रक्ष।
रोपें वृक्ष।
ज्ञानी संत।
सच्चा पंत।
ऊँची सोच।
कौआ चोंच।
अत्याचार।
भ्रष्टाचार।
मीठा बोल।
पूरा तोल।
अच्छी रीति।
सच्ची प्रीति।
. ____
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
३९ . " धुनी छंद "
विधान:--प्रति चरण ७ वर्ण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
भगण + जगण + गुरु
२११ + १२१ + २
_प्रेम सपना कहा_
फाग रमना सखे।
रंग भरना रखे।
थाप धर चंग की।
घोलकर भंग की।
फागुन चला चले।
मौसम सहो भले।
गाय अपनी थकी।
धान फसलें पकी।
मेघ ढलने लगा।
मेह टलने लगा।
ताप बढ़ता हुआ।
शीत घटता हुआ।
मद्य मँहगा रहा।
रक्त सँहगा बहा।
प्रेम सपना कहा।
देह अपनी दहा।
. ---------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
४०. " नील छंद "
विधान :-- प्रति चरण १६ वर्ण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
भगण भगण भगण भगण भगण+गुरु
२११ २११ २११ २११ २११ + २
. __प्रेम अधीर__
सावन का मन भावन मौसम है सजना।
आ करलें मन की मन से मन बात बना।
प्रीत सुरीति पले मन पावन साजन की।
कोयल मोर बटेर कबूतर के मन की।
झूल रही बगिया सब साथिन नाच रही।
हास ठिठोल बनाव सखी सब खाँस रही।
डाल मरोड़ हवा हिलती तन ऐंठ रहा।
खेत मकान उठे नजरें दिल बैठ रहा।
आ सपने करते तुम प्रेम भरी बतियाँ।
प्रेम अधीर नहीं दृग सोवत हैं रतियाँ।
हेर लिखे मन भाव पढ़ें हिय से पतिया।
प्रीत सुरीति पले सजना धड़के छतिया।
. -------------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
४१. . " पंक्तिका छंद "
विधान:-- प्रति चरण १० वर्ण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
रगण यगण जगण गुरु
२१२ १२२ १२१ २
. __पानी बचाइये__
मीत आप पानी बचाइए।
मेघ पुष्प दानी कहाइए।
भावि हेतु आओ सहेजलें।
मेह नीर साथी समेटलें।
पीढियाँ सरूरी बनाइए।
नीर तो जरूरी बचाइए।
साथियों हमें नीर चाहिए।
आपदा नही खार खाइए।
कुंडियाँ नई खोद लें सखे।
मेह नीर पौधे बचा रखे।
मातृ भू कहे नीर चाहिए।
नीर "विज्ञ" बाबू बचाइये।
. _________
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
४२. " पावन छंद "
विधान:-- प्रति चरण १५ वर्ण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
८,१५ वें वर्ण पर यति
भगण नगण जग,ण जगण सगण
२११ १११ १२,१ १२१ ११२
. __सत सेज सजना__
सावन सरस झरे, गरजे बरसते।
कोयल विरह सुने, दृग से सरसते।
साजन शहर गये, सपना बिखरता।
नैनन सपन झरे, हिय भी सिहरता।
भृंग मधुप तितली, बदरे भटकते।
प्रीत मिलन विरहा, सपने दरकते।
मेघ सरिस छलना, बरसे सरकना।
दर्द सहज सहना, चपला चमकना।
आस प्रियतम बची, मन मीत भँवरे।
स्वप्न निश दिन सजे, तन प्रीत सँवरे।
आप अवसर चुनें, सत सेज सजना।
'विज्ञ' मन जब सहे, कर छंद रचना।
. ---------------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
४३. " पुट छंद "
विधान :-- प्रति चरण १२ वर्ण
८, १२ वें वर्ण पर यति हो।
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
नगण नगण मग,ण यगण
१११ १११ २२,२ १२२
. __मिलन बिछुड़ना है__
अहम खटकता है, भाव आए।
वहम भटकता है, प्यार पाए।
मिलन बिछुड़ना है, रात काली।
हृदय धड़क जाते, ओष्ठ लाली।
पथ गुम सकता है, रीति त्यागे।
भय हट सकता है, प्रीति जागे।
फल कल तजना है,लक्ष्य भारी।
तव हित सजना है, प्राण प्यारी।
जब मन मिल जाता, स्वप्न आते।
कवि मन जगता हो, छन्द भाते।
प्रियतम सजना जी, हार लाओ।
"विज्ञ" मिलन चाहे, आप आओ।
. ----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
४४. " पुटभेद छंद "
विधान :-- १७ वर्ण प्रतिचरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
रगण सगण सगण सगण सगण लघु गुरु
२१२ ११२ ११२ ११२ ११२ १ २
. __शत्रु के हम काल__
साथियों अपना यह भारत पावन आइए।
भारती जयकार शहादत सैनिक चाहिए।
मैं लिखूँ यह छंद नया बस सस्वर गान हो।
आरती जयकार महा व्रत माँ सम मान हो।
मानवी मन भाव भरे शुभ सावन शान से।
साथ सिंधु तरंग उठा मन मानस भान से।
जंग में मिल संग चलाचल साहस चाहिए।
भारती शुभ जीत धनुर्धर अर्जुन आइए।
शत्रु के हम काल महाबल भारत भान हो।
शांति दूत सुकाल महातप कानन ज्ञान हो।
कृष्ण से ललकार उठो फिर सारथ चाहिए।
धर्म क्षेत्र समान वही फिर गायक चाहिए।
. _________
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
४५. " पवन छंद "
विधान :--१२ वर्ण प्रति चरण
५,१२ वें वर्ण पर यति
चार चरण दो-दो समतुकांत
भगण तगण नगण सगण
२११ २२१ १११ ११२
. __बरस सरकना__
सावन प्यारा, गरजत बरसे।
कोयल काली, विरहन तरसे।
साजन आओ,चमन बिखरता।
नैनन जागे, सपन सिहरता।
झूलन झूले, भ्रमर भटकते।
कोयल गाए , सपन दरकते।
मानस धोखा, बरस सरकना।
जागत सोना, चपल चमकना।
साहिब मेरे, प्रियतम भँवरे।
प्रीत अनोखी, निश दिन सँवरे।
आस घनेरी, अवसर सजना।
'विज्ञ' लिखे ये,भव मन रचना।
. ---------------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
४६ . " पुण्डरीक छंद "
विधान :-- १२ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
मगण भगण रगण यगण
२२२ २११ २१२ १२२
. __घर नीर जान्हवी हो__
वर्षा आए हर काज मानवी हो।
कुण्डे खोदें, घर नीर जान्हवी हो।
पानी वाली,भव शान भारती की।
गंगा काशी, हर शाम आरती की।
आशा बोएँ, जल संग्रही बनें तो।
नैना रोये जल त्रासदी बने तो।
खेतों मेड़ों पर पेड़ भी लगालें।
मेघो से बारिश नीर को बुलाले।
डूबेंगे नाविक रेत नीर खोए।
बाँचेंगे भावि विनाश, प्राण रोए।
पानी से जीवन प्राण धीर ठानो।
छंदों की शान सहेज मीत मानो।
• ------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ
४७ . " प्रहरण कलिका छंद "
विधान :-- १४ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
नगण नगण भगण नगण लघु गुरु
१११ १११ २११ १११ १ २
. __तिय कुंडन जल भरती__
घर घर मन मानस मचल रहा।
दृग घट शुभ सावन सरस यहाँ।
विकल विरहिनी पनघट तरसे।
रिमझिम झर बादल जल बरसे।
गरज गरजती विकल बदलिया।
चपल चमकती गगन बिजलिया।
सरवर सरिता सरित विहँसती।
घर घर तिय कुण्डन जल भरती।
मनुज सुजन कुण्ड भरण करते।
घन सजल सहेज भवन भरते।
सरस कलम छंदस कवि रचता।
शुभम कथन सर्वस हित कहता।
. -------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
४८. " बिंदु छंद "
विधान :-- १० वर्ण प्रति चरण
६,१० वें वर्ण पर यति
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
भगण भगण , मगण गुरु
२११ २११ , २२२ २
__याद रहे रण हल्दीघाटी__
भारत भू यह , वीरों की है।
जूझ मरे रण, धीरों की है।
बाबर से लड़, साँगा राणा।
घाव घने तन, जूझा जाना।
बाबर के सुत, के बेटे से।
खूब लड़े तब, थे हेठे से।
काँप उठी लख,शाही सत्ता।
वीर लड़े जब, कल्ला फत्ता।
वीर वही वर, राणा कीका।
आन रखी रिपु, माने नीका।
चेतक कौशल, वाला घोड़ा।
साथ नही वह, श्वाँसे छोड़ा।
याद रहे रण, हल्दी घाटी।
चंदन चेतक , सोना माटी।
जौहर केशर, साका ज्वाला।
भू प्रण रक्षक, खांडा भाला।
भारत गौरव, भू मेवाड़ी।
वीर महा बल, चूँडा - हाड़ी।
चंदन की बलि, पन्ना माता।
'विज्ञ'' कहे सुन, ज्ञानी गाथा।
. ------------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
.४९. " बुदबुद छंद "
विधान :-- ९ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
नगण जगण रगण
१११ १२१ २१२
__जल उपहार नेह का__
घन जल संग्रही बनो।
तरु वन जीव की सुनो।
जल पहुँचा पताल में।
कसर रही अकाल में।
घन जल शीश धारलो।
जलज विनाश वारलो।
जल बचना उजास है।
जन वन वन्य श्वाँस है।
घर घर कुण्ड लो बना।
घन जल हेतु योजना।
जल बहना विनाश है।
रख गहना विकास है।
जल हित 'विज्ञ' बौहरा।
जल उपदेश दोहरा।
जन रखवार मेह का।
जल उपहार नेह का।
. -------------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
५०. " भक्ति छंद "
विधान :-- ७ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
तगण यगण गुरु
२२१ १२२ २
. __चक्र उठा लूँ तो__
हे नंद लला आओ।
आ दर्श दिखा जाओ।
राधा बन जाऊँगी।
मीरा बन गाऊँगी।
हे कान्ह चले आओ।
ये कष्ट मिटा जाओ।
रुक्मा सम चाहूँ मैं।
सत्या सम ध्याऊँ मैं।
हूँ भारत की नारी।
जो साहस में भारी।
लक्ष्मी बन जाऊँगी।
दुर्गा बन जाऊँगी।
साड़ी खिंचने दूँ क्यों।
कृष्णा बन रोऊँ क्यों।
जो चक्र उठा लूँ तो।
बंशी बजवा लूँ तो।
. ---------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
५१. " भूमि सुता छंद "
विधान : -- १२ वर्ण प्रति चरण
( ८,१२वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत
मगण मगण मगण सगण
२२२ २२२ २२२ ११२
__यादें वे बातें__
मेवाड़ी राणा की गाथा, जो कहते।
आँखों से आँसू के धारे, तो बहते।
बप्पा की यादें वे बातें , जो सुनते।
कुम्भा के युद्धों निर्माणों, से गुनते।
सांगा के हस्सी घावों के, भाव सुने।
पट्टी बाँधे घावों धावों से, याद बुने।
पन्ना जैसी माताओं के, तेवर की।
संगी साके पद्मा कर्मा, जौहर की।
चित्तौड़ी योद्धाओं की जो,खेत रहे।
संतानों को सौंपें थे जो, रीत बहे।
थाती हल्दी घाटी माटी, लाल बनी।
राणा कीका की सेनाए, काल बनी।
यादें खाँडा भाला चोगा, रीत रखे।
भामा शाही रीतें सारी, बात सखे।
मेवाड़ी भू बेटो की वे, वीर कथा।
राणा रक्षे वो घोड़ा जो, चेतक था।
. ---------+--------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
५२. " भृंग छंद "
विधान:-- २० वर्ण प्रति चरण
( १२,२० वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत
नगण नगण नगण नगण, नगण नगण गुरु लघु
१११ १११ १११ १११,१११ १११ २ १
. ___गिरत फुहार___
घर घर मन भर मचल मचल गिरत फुहार।
दृग घट सम समय समझ पनघट पनिहार।
विकल विरहिनी विकट विपद मय तरस तीर।
रिमझिम झर झरत जलद भल बरसत नीर।
गरजत गरज गरज उमड़ घुमड़ बरसात।
चपल चमकती चटक चहकत गिर जात।
सरवर सरिता सरि सरित सरिस सहज झुंड।
घर घर हर तिय जल भरत घट घटित कुंड।
मनुज सुजन भरण करत भव हित जल बंध।
घन सजल सहज भवन भरत बरषत अंध।
सरस कलम कवि जन कवि मन रचियत छंद।
शुभम कथन सब सहित हित कहि मिटहि फंद।
. -------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
५३. " मंजुभाषिणी छंद "
विधान:--- १३ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
सगण जगण सगण जगण + गुरु
११२ १२१ ११२ १२१ +२
. __मातृभूमि__
जय मातृभूमि तव शान ही बढ़े।
मम शीश देह तन रक्त भी चढ़े।
बलिदान वीर सुत नित्य हो रहे।
तन प्राण देश हित वीर खो रहे।
अरमान देश हित कामना करूँ।
लिख छंद लोकहित भावना भरूँ।
मनभाव वीर हित गीत बना कहें।
तुलसी कबीर सम छन्द सदा बहे।
मम देश भारत जयी रहे सदा।
सुत वीर सैनिक सपूत सर्वदा।
जय भारतीय जय भारती रहे।
हर श्वाँस देह यह आरती बहे।
. ---------------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
५४ . " मंदाक्रांता छंद "
विधान:--- १७ वर्ण प्रति चरण
( ४,१०,१७ वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत
मगण,भगण,नगण,तगण,तगण,गुरु,गुरु
२२२,२११,१११,२२१,२२१,२ २
. __आजादी__
आजादी के, पथिक पिछले,
गीत गाएँ सुनाएँ।
वीरों आओ, सजग सपने,
आज लाएँ सजाएँ।
अंग्रेजों के, कदम उखड़े,
पूत जागे हमारे।
गूँजे नारे, सजग जनता,
भारती मात तारे।
भू माता की, विजय हित में,
दे रहे प्राण बेटे।
काँपे गोरे, पतित डरके,
ले कलेवा समेटे।
गाँधी जी को, नमन करते,
वीर गाते तराने।
भागो गोरों, कुशल बच के,
सत्य होंगे डराने।
. ------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
५५. " मनविश्राम छंद "
विधान:--- २१ वर्ण प्रति चरण
( १०,२१,वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत
भगण,भगण,भगण,भगण,भगण,नगण,यगण
२११ २११ २११ २११ २११ १११ १२२
. __झूल रही मन मार__
आवन सावन मास कही,
पर साजन विरत न आए
कोयल बैरिन कूक रही,
हिय दाहक अगन लगाए।
मेह धरा मन नेह पिया,
कब आकर नयन निहारे।
मीत बना मन भूल गये,
अलि शायद हृदय सहारे।
झूल रही मन मार सखी,
बस भूलन सजन पियारे।
याद रहे तन भार रहे,
मन सावन शरण सहारे।
प्रीत भले कर रीत पले,
यह चाहत बदन हमारे।
चैन गया मन रैन खटे,
पिय आवत सहज सँभारे।
. -------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
५६. " मनोज्ञा छंद "
विधान :--- ७ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
नगण रगण गुरु
१११ २१२ २
__शुक कहे कहे रे__
जल बहे बहे रे।
शुक कहे कहे रे।
नर जगो उठो भी।
कुछ नये करो भी।
मनुज नीर आहें।
हृदय भाव चाहे।
सरल बोल वानी।
सजग रोक पानी।
जल करो सुरक्षी।
जल भरो सुकक्षी।
तृषित जीव सारे।
विवश वृक्ष हारे।
नर उपाय लाओ।
जल कक्ष बनाओ।
सब नीर बचाओ।
मत व्यर्थ बहाओ।
. --------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
५७. " मलयज छंद "
विधान :-- ८ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
नगण नगण लघु लघु
१११ १११ १ १
__जल हितकर__
सरस विमल जल।
बरषत पल पल।
नर जग कुछ कर।
रख अमरित भर।
गगन कुसुम वर।
रख जल हितकर।
खग तरु पशु जन।
सब हित जन मन।
शुक पिक मछ बक।
जल पर रख हक।
सरि घट सरवर।
जल रख भर कर।
नर जल हितकर।
घर पथ जलघर।
सब हित रह यह।
गुरु कविजन कह।
. --+--
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ
५८. " मालिनी छंद "
विधान :--- १५ वर्ण प्रति चरण
( ८, १५ वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत.
नगण नगण मगण यगण यगण
१११ १११ २२२ १२२ १२२
. __तड़पत क्षत पंखी__
प्रभु रघुवर प्यारे, छंद सीखूँ तुम्हारे।
लिख लिखकर हारा, बंध देखो हमारे।
पितु कर वचनों को, आप पाले सँवारे।
वन वन भटके थे, राह पंथी निहारे।
निसचर दल मारे, शांति का सेतु साया।
तन मन सच साधे, संत आशीष पाया।
भजन भवन काया, आपके दास मानी।
विमल मनुज वे ही, भक्ति धारे सुहानी।
सिय हरण हुआ तो,वो जटायू भिड़े था।
तड़पत क्षत पंखी, लक्ष्य हारे पड़ा था।
वन तप शबरी ने, बेर मीठे खिलाए।
फिर कपि हनुमंता, ला सुकंठा मिलाए।
मम कविमन चाहे, दर्श पाना तुम्हारा।
सच मिथ लिखता हूँ, राम पाने सहारा।
मम मन तरनी को, ईश तारो किनारे।
लिख यह पद बाबू, लाल शर्मा उचारे।
. --------------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
५९ . " मोटनक छंद "
विधान :-- ११ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
तगण जगण जगण लघु गुरु
२२१ १२१ १२१ १ २
__साजन प्रीत वही__
हे मेघ धरा जल चाह रही।
मेघा मन सावन प्रीत बही।
झूले तरु में कवि गीत रचे।
पंछी पिक मोर कपोत नचे।
संगी अब सावन आ रहना।
मेरे मन का तन का कहना।
पानी सिर ऊपर आज चले।
जागे सपने अब प्रीत पले।
पेड़ों पर बेल लपेट लगे।
फूलों हित भृंग तुरंत भगे।
मेरे हिय मीत बने तुम ही।
शर्मा मन छंद रचे हम ही।
सारी रतिया लग नैन नहीं।
नैना भगते मन चैन कहीं।
यादें बस साजन प्रीत बही।
छंदों सँग 'विज्ञ' प्रतीक वही।
. ------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ
६०. " मौक्तिम दाम छंद "
विधान :-- १२ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
जगण जगण जगण जगण
१२१ १२१ १२१ १२१
. __भूमि बचे जब नीर__
सखे यह भूमि बचे जब नीर।
बचा जल मीत धरा जन पीर।
चढ़े नभ मेघ घने घन श्याम।
सचेतन मीत बना जल धाम।
भरो बिरखा जल भूतल मीत।
करो नर नीर पुरातन प्रीत।
तभी भव जीवन जंतु सजीव।
नहीं सब होय धरा निर जीव।
बहे जल मानव हार प्रमाण।
रहे तब जंगल जीवन त्राण।
उठो अब नीर सँभाल सुजान।
मही पर जीवन जोखिम मान।
समाज विकास कमान सँभाल।
दिखा कुछ नूतन मीत कमाल।
बना घर कुण्ड व खेत तलाव।
रहे जल भू तल मीत भराव।
. -----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
६१. " यशोदा छंद "
विधान:--- ५ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
जगण गुरु गुरु
१२१ २ २
. __ माता__
विकास कारी।
विनीत भारी।
अहो सुमाता।
नही विमाता।
दया तुम्हारे।
सभी सँवारे।
किसान दाता।
पुनीत माता।
तुम्ही सपूती।
नहीं कपूती।
शहीद दाता।
सुधीर माता।
कवित्त गाऊँ।
तुम्हे सुनाऊँ।
सु'विज्ञ' ध्याता।
सँभाल माता।
. -----+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
६२. " रक्ता छंद "
विधान:---- ७ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
रगण जगण गुरु
२१२ १२१ २
. __मात शारदे__
ज्ञान का विचार दो।
बुद्धि का प्रसार दो।
कामना निरापदा।
आस मात शारदा।
छंद ज्ञान हीन हूँ।
मोह के अधीन हूँ।
अंधता विनाश दे।
शारदे प्रकाश दे।
भाव रक्ष गीत को।
संत दक्ष मीत को।
कष्ट आपदा हरो।
ज्ञान शारदा भरो।
देश का विकस हो।
मानवी सुवास हो।
भारती सुखी सदा।
'विज्ञ' मात शारदा।
. ----+---
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
६३. " रति छंद "
विधान:-- १३ वर्ण प्रति चरण
( ४, १३ वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
सगण भ,गण नगण सगण गुरु
११२ २,११ १११ ११२ २
. __गिरिधारी__
गिरधारी, तुम नटवर कन्हैया।
कित भागे, सरपट विकल गैया।
दधि खाते, झट झपट घटवारी।
भग जाते, मन खिजत महतारी।
लगता है, पटक घट पनिहारी।
तुम दौड़े, पथिक भगदड़ भारी।
जब राधा, डगर पर दिखजाती।
भग दौड़ी,तनिक रुक बढ़जाती।
तुम कान्हा,यसुमति व बलदाऊ।
बस थोड़ा, हित वचन समझाऊँ।
वन ग्वालों, सहित वन बनवारी।
प्रभु भक्तों, हित रखत गिरिधारी।
. ________
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
६४. "रत्नकरा छंद "
विधान:---- ९ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
मगण सगण सगण
२२२ ११२ ११२
. __वर्षा का जल संग्रह__
काहे नीर बहावत है।
पानी व्यर्थ लुटावत है।
प्यासी भूमि कहे नर से।
पौधे जंतु सभी तरसे।
वर्षा का जल संग्रह हो।
मेघों का नहि विग्रह हो।
कुंडों को जल से भरलो।
कूएँ खोद नये कर लो।
बापी स्वच्छ करें चल तो्।
पानी आज मिले कल तो।
आकाशी जल को रख लो।
भू के जीवन को रख लो।
प्राणों को जल ही रखता।
आओ नीर रखें ढँकता।
पानी जीवन का रचिता।
आओ छंद रचे कविता।
. -----+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
६५. " रथ पद छंद "
विधान:--- ११ वर्ण प्रति चरण
चार चरण दो-दो समतुकांत हो
नगण नगण सगण गुरु गुरु
१११ १११ ११२ २ २
__जल भर लें कुण्डे__
रिमझिम बरषत है पानी।
महक चुनर तर है धानी।
रिझत फिरत मन गोरी है।
चमकत नयन कटोरी है।
तरुवर पशुधन की मौजे।
कृषिहर श्रमकर ही खोजे।
पनघट पथ अब सूना क्यों।
हरषत मन फिर दूना क्यों।
लजित नयन मन भावों में।
बिछुरत कछुक अभावों में।
चपल चमक दमकी जो है।
कड़क गरज बिजुरी वो है।
नर जन सब अब आओ तो।
कुछ तरुवर लगवाओ तो।
भर भर जल भर लें कुण्डे।
तपन सहन कर भी ठण्डे।
. ------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
६६. " रथोद्धता छंद "
विधान:---- ११ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
रगण नगण रगण लघु गुरु
२१२ १११ २१२ १ २
_ले कुदाल चल आज खेत में_
वीर पीर हर भूमि नीर की।
पेड़ जंतु खग ताल तीर की।
मेघ आज नभ चाल काल है।
देख अंत फिर मंद हाल है।
चेत धीर जन भाव भावना।
ले सहेज जल भूमि कामना।
मीत मान यह बात आज ले।
तो सुधार हर भाँति काज ले।
कूप कुण्ड भर ले विचार के।
खेत मेड़ कर ले सुधार के।
ले कुदाल चल आज खेत में।
हो सँभाल जल पंथ रेत में।
भावि पीढ़ि तब याद जानती।
नीर कुंड जल भोग मानती।
व्यर्थ नीर यदि आप ठेलते।
भावि भूत सब शाप झेलते।
. --------+--------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
६७. " रमणीयक छंद "
विधान: --- १५ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
रगण नगण भगण भगण रगण
२१२ १११ २११ २११ २१२
__नैन चाह बस श्यामल सूरत__
रीत प्रीत अब सावन भादव हो गई।
प्रेम के विरह ग्वालिन मानस खो गई।
भूल प्रीत तुम मोहन आज कहाँ रहे।
गोपिका मर रही विरहा अँखिया बहे।
बंध तोड़ कर नीर बहे दृग रोक लो।
छंद छूट कर गीत चले प्रभु टोक लो।
चाह मौत बस आवत पावत नाथ हो।
अंत काल प्रभु नैनन भावन साथ हो।
ज्ञान गीत यह उद्धव माधव गा रहा।
दर्श पर्श यह झूँठ बताय ठगा रहा।
फूल फूल मकरंद ठगे भँवरा यहाँ।
द्वंद धुंध भर निर्गुण गायन गा रहा।
कौन मान कर बात अशोभन जी सके।
नैन चाह बस श्यामल सूरत पा सके।
नाथ आस तन अंत मिटे यह मान लो।
'विज्ञ' छंद यह नित्य पढ़े प्रभु जान लो।
. --------+--------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
६८. " रमेश छंद "
विधान :-- १२ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
नगण यगण नगण जगण
१११ १२२ १११ १२१
. __प्रेमांकुर__
कुसुम सहेजे जब मनमीत।
सरल कहानी मन मय प्रीत।
गजल रुबाई प्रियवर चाह।
विकल निँगाहे भटकन राह।
अजब कहानी गजब गढंत।
गहन विचारे कबहुँ न अंत।
विवश खिलौने मन मनुहार।
विजय मिले या नयनन हार।
समर लगे जीवन तब जान।
अवसर प्रेमांकुर पहचान।
नयन तके प्रीतम पथ चाप।
सह न सुहावें गुरुजन बाप।
पल पल आँखे सिकुड़ समेट।
पनघट झाँके कफन लपेट।
लिखन लगे गायन मय गीत।
समझ सखे मानस पथ प्रीत।
. -----+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
६९.. " रसना छंद "
विधान :--- १७ वर्ण प्रति चरण
( ७,१७ वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
नगण यगण सगण नगण नगण लघु गुरु
१११ १२२ ११२ १११ १११ १ २
. __नमन तुम्हे__
नमन तुम्हे देव,
मुझे मनुज जनम दिया।
नमन तुम्हे देश,
हमे सहज शरण लिया।
पथिक पिता मात,
हमें सतह गगन दिया।
विमल सदाचार,
दिया चमन भवन दिया।
विहग करे गान,
प्रभो फुदक फुदक कहे।
वनज पले प्रीत,
हरे विरल सघन कहे।
अमन रहे देश,
इसे अमल चमन मिले।
सहज लिखे छंद,
गीत सरस सुगम चले।
. -------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७०. " रसाल छंद "
विधान :-- १९ वर्ण प्रति चरण
( ९,१९ वें वर्ण पर यति)
चार चरण, दो-दो समतुकांत
भगण नगण जगण भगण जगण जगण लघु
२११ १११ १२१ २११ १२१ १२१ १
. __सैनिक सजग सुजान__
सैनिक सजग सुजान, सत्य रहते है चौकस।
शीत तपन बरसात, वीर सहते सब सर्वस।
सोवत सहज सु देश, जाग रखवार करे तब।
प्रीत विमल मन रीत,गीत बलिदान रचे जब।
देश मनुज हर मान, शान रखते तज जीवन।
सैनिक पथिक शहीद, धीर बनते जिनके मन।
मानस वतन सलाम, मीत करते शुभ भारत।
मौत वतन जन हेतु, भीरु डरते भय आरत।
देख बहुत यह गर्व, देश अपना यह भारत।
देशन वरद महान, जाग रखता यह धारत।
सैनिक सत अरमान, सोच रखवार शहादत।
युद्ध सजग मय शान, देश करतार हिफाजत।
देकर निज बलिदान, देश हित सावन लावन।
सैनिक सच सत मान,शान रखते सिखलावन।
भारत वतन सुगीत, मीत बनता यह पावन।
देकर तन मन जान, धीर रहते मन भावन।
. ---------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७१. " रुचि छंद "
विधान :-- १३ वर्ण प्रति चरण
( ४ व १३ वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो दो समतुकांत
तगण भगण सगण जगण गुरु
२२१ २,११ ११२ १२१ २
. __गिरधर खेलने चले__
आओ सुनो, गिरधर खेलने चले।
राधा कहे, तरु पर झूलने डले।
मैया नही, घर बलदाउ तो लड़े।
आए अभी, तन पर बैंत तो पड़े।
आराधना, प्रभु करता रहा सदा।
तारो प्रभो, तुम करतार सर्वदा।
है आपदा, पथ पर रोकना सभी।
आकाश से,डगर विलोकना तभी।
भू भारती, रज पथ खेलते रहे।
देखे रहे, जन जन नैन भी बहे।
राधे सुने, नटवर कृष्ण को जपा।
ये छंद हैं, कवि पर शारदे कपा।
. -----+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७२ . " रोचक छंद "
विधान :-- ११ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
भगण भगण रगण गुरु गुरु
२११ २११ २१२ २ २
. __मेघ चढ़े घने वर्षा के__
सावन मेघ चढे घने वर्षा के।
बादल नीर भरे चले हर्षा के।
मोहन के मन भावना सच्ची।
लोगन की वह कामना अच्छी।
इंद्र कहे अब तो नही माने।
खेत किसान करील भी हाने।
लोग सभी मिल मोहना लाए।
मोहन से गिरि धारना आए।
इंद्र झुका तब कृष्ण भी हासे।
द्वेष मिटा कर रोष भी नासे।
काल कराल कठोर हो जाता।
देव सदैव निभाय वो नाता।
. ------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७३. " वरूथिनी छंद "
विधान :--- १९ वर्ण प्रति चरण
( ५,१०,१५,१९वें वर्ण पर यति)
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
जगण नगण भगण सगण नगण जगण गुरु
१२१ ११,१ २११ १,१२ १११,१२१ २
. __अमन स्व देश का__
जवान जय, किसान जय,
विकास कर महान हो।
फले वचन, सजे चमन,
महान वतन शान हो।
उठा कदम, बढ़ा कदम,
विनाश कर कलेश का।
करो फतह, रहो सतह,
बढ़ा अमन स्व देश का।
निराश तज, सुभाष भज,
सुकर्म कर प्रशांत हो।
कमान रख,विमान लख,
विरोध वचन क्लांत हो।
महेश बन, सुरेश बन,
सुदेव बन सुकाज हो।
विचार कर, पछाड़ कर,
विरोध पर अकाज हो।
. ----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७४. " वंशस्थ छंद "
विधान :-- १२ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
जगण तगण जगण रगण
१२१ २२१ १२१ २१२
. __शी त__
अलाव में ताप किसान बैठता।
कभी विधाता भर शीत ऐंठता।
बढे निराशा मन गीत बोलता।
कभी खड़े होकर नीर खोलता।
किसान ही शीत सहे रहे ठगा।
अलाव को मीत बनाय आपगा।
विकास के नाम किसान हारता।
किसान ही धैर्य सदैव धारता।
बना यही पूत सपूत धारती।
बने रहें भूमि किसान भारती।
बनी रही मीत सदैव आपदा।
लिखूँ सही पावन छंद संपदा।
. ------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७५. " बसन्त तिलका छंद "
विधान:-- १४ वर्ण प्रति चरण
( ८,१४ वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत
तगण भगण जगण जगण गुरु गुरु
२२१ २११ १२१ १२१ २ २
. __माता__
वो बर्फ सी पिघलती,
बन गंग धारा।
जो शीत सी सिहरती,
तज रंग सारा।
आशीष दे विहँसले,
जब पूत आता।
वे चाँद सी चमकती।
भव दात्र माता।
माता सदा शुभ रहे,
शुभ भारती हो।
चाहे तुम्हे चमन ये,
मन आरती हो।
संसार यावत रहे,
कवि छंद गाता।
हे गंग पावन बहो,
यश भाव माता।
हे मात भारत धरा,
वरदान देना।
चाहूँ सदा बिखरना,
तुम अंक लेना।
आतंक दाहक बने,
वह छंद गाता।
हे भूमि धारक रहो,
मन पूज्य माता।
. ------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७६. " विमल जला छंद "
विधान :--- ८ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
सगण नगण लघु गुरु
११२ १११ १ २
_उठ अंबुज भरले_
जब नीरज खिलते।
खग गीत किलकते।
जब सूरज उगता।
अँधियार बिसरता।
नभ मेघ घुमड़ते।
घन घोर बरसते।
पय पावन बहता।
नर कायर सहता।
उठ अंबुज भरले।
शुभ काम सँवरले।
जल कूप पथ बहे।
घर कुंड जल रहे।
जल व्यर्थ न बहना।
कल जीवन रहना।
यह नीति सफल हो।
कवि छंद सरल हो।
. ------------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७७. " शारदी छंद "
विधान : --- ७ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
जगण भगण लघु
१२१ २११ १
__हताश युद्ध हर__
हुए यहाँ समर।
मिटे यहाँ शहर।
पुकार वे करुण।
निहारता अरुण।
ललाई से वरुण।
विनाश के वरण।
विभीषिका शरण।
कँपी कँपी धरण।
सहेज लें मनुज।
बड़े पढ़े अनुज।
उठो विचार कर।
चलो विधान पर।
विकास बालपन।
विनाश बाँझपन।
सहेज बाग वन।
मही समीर घन।
हताश युद्ध हर।
प्रकाश विश्व नर।
विजत्व हार सम।
विकासशील हम।
. ---+---
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७८ . " शार्दूल विक्रीडित छंद "
विधान :--- १९ वर्ण प्रति चरण
( १२, १९ वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
मगण सगण जगण सगण तगण तगण गुरु
२२२ १२२ १२१ ११२, २२१ २२१ २
. __झूला झुलाते रहे__
राधा साँवरे रीति प्रीति समझे,
झूला झुलाते रहे।
भक्तों के कन्हैया कहावत चले,
ताने सुहाते रहे।
बंशी के बजैया चलें तरु चढ़े,
डाली हिला डालते।
राधा झूलती काँपती डर रही,
ग्वाले हँसे नाचते।
कैसी रीतियाँ पालते चल रहे,
साथी सयाने सगे।
भीगे राधिका झूलती थक रही।
कान्हा धकाने लगे।
वर्षा हो रही सावनी रिमझिमी,
मेघा भिगोता फिरे।
सारे ताल कुण्डे भरे जल छके,
बापी तलैया भरे।
. ------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७९ . " शालिनी छंद "
विधान :-- ११ वर्ण प्रति चरण
( ४,११ वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
मगण तगण तगण गुरु गुरु
२२२ २,२१ २२१ २ २
. __युद्ध गुमानी__
हल्दी घाटी, युद्ध था ही गुमानी।
राणा भीलों, की सनेही कहानी।
घोड़े हाथी, सैनिको की सुनी थी।
शाही सेना, काँपती को धुनी थी।
राणा की वो वीरता थी प्रतापी।
भारी सेना मान की भीरु काँपी।
दानी भामाशाह था वित्त पोषी।
योद्धा भी नामी करे नष्ट दोषी।
झाला मन्ना, वीर जैसा लड़ाका।
भाले खाँडे का लडैया तड़ाका।
भीलू पूंजा बाण छोड़े खिलाड़ी।
साथी सूरी दागता तोप भारी।
. - -+-
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८०. " शिखरिणी छंद "
विधान:--- १७ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
यगण मगण नगण सगण भगण लघु गुरु
१२२ २२२ १११ ११२ २११ १ २
. __माता भारत__
हमारी माता भारत, यह सदा पावन रहे।
विधाता गंगा धार विमल सदा पावन बहे।
हमारे खेतों की फसल रखना नीर रखना।
हमारी सीमा पे सतत रखना वीर रचना।
रहेगी भाषा भी सरस अपनी धीर रखना।
विकासी धारा हो सहज सपने पीर रखना।
पड़ौसी नापाकी हरकत करे वे सह नही।
बपौती सीमा की शरण समझे वे सह नही।
करो आतंकी नाश हरकत रोकें सनसनी।
उठो फैलाओ आस कुदरत होती अनमनी।
पहाड़ी मैदानी समरस त्रिधारा बह चले।
हमारे छंदो की सरगम सदा ही हिय पले।
. -------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज
८१. " शोभावती छंद "
विधान :--- १० वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
मगण मगण मगण गुरु
२२२ २२२ २२२ २
. __राणा की गाथा__
मेवाड़ी राणा की गाथा गाते।
आँखों से आँसू के धारे आते।
बप्पा की यादें वे बातें थाती।
कुम्भा के युद्धों निर्माणी गाती।
सांगा के हस्सी घावों के होते।
पट्टी बाँधे घावों धावों से धोते।
पन्ना जैसी माताएँ औ बाला।
संगी साके पद्मा कर्मा ज्वाला।
चित्तौड़ी योद्धाओं की वे जीतें।
संतानों को सौंपी थे जो, रीतें।
थाती हल्दी घाटी माटी लाली।
भीलू राणा की सेना की ताली।
यादें खाँडा भाला चोगा साखी।
भामा शाही रीतें सारी, राखी।
मेवाड़ी भू बेटो वाला साका।
राणा रक्षे वो घोड़ा जो बाँका।
. ---------+--------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८२. " संयुत छंद "
विधान :--- १० वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
सगण जगण जगण गुरु
११२ १२१ १२१ २
. __स्वदेश का__
ऋतुराज भृंग सहेज लो।
मधुपान प्रीत समेट लो।
तरु देश का वन देश का।
अभिनंदनीय सुवेश का।
तितली पिए रस फूल से।
मधुमक्खियाँ मधु फूल से।
फल फूल भी इस देश का।
अभिवादनीय सुरेश का।
नर नारि धीर सुधीर हो।
कवि माघ मीर कबीर हो।
रसपान पीर निवेश का।
रख मान 'विज्ञ' सुदेश का।
घन नीर को घर धार लो।
बह नीर पीर उबार लो।
जल देश का कल देश का।
रख नीर वीर स्वदेश का।
. ----+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८३. ":सिंहनाद छंद "
विधान :-- १० वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
सगण जगण सगण गुरु
११२ १२१ ११२ २
. __नारी__
अब वीर धीर बन नारी।
भव पीर चीर कर सारी।
यह देश वेश सब जागे।
भयभीत भाव भय भागे।
उठ कर्म धार कर लीला।
तज शर्म हार तन पीला।
रख देश भूमि रखवाली।
बन चंड मुंड कर काली।
कर चक्र तेग रख भाला।
चख राष्ट्र प्रेम मय हाला।
चल दीन हीन भव तारें।
दुख कष्ट नष्ट कर सारे।
तुम हो विशेष सब नारी।
नभ सृष्टि वृष्टि भुव सारी।
मन प्रीति कीर्ति वर देना।
कवि 'विज्ञ' छंद पढ़ लेना।
. +++++
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८४.. " सुमति छंद "
विधान :- १२ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
नगण रगण नगण यगण
१११ २१२ १११ १२२
__सजीव अंबुज जन नाता__
बचत नीर से मनुज बचेगा।
जलज नीर से वनज रहेगा।
सुमति छंद है सरस सुहाना।
मनुज नीर से विहग बचाना।
गगन मेघ अंबुज बरसाता।
विवश वेग से जल बहजाता।
मनुज चेतना मय यदि गाता।
सतह खेत में जल बच जाता।
जल बचे कुआ घर बनवाओ।
सरल कुंडियाँ अब चिनवाओ।
कृषक खेत में सर खुदवा ले।
विविध योजना जल भरवाले।
पथ पदाति कुंडन जल हो वे।
जलद नीर व्यर्थ न जन खोवे।
सरस छंद पावन मन गाता।
लख सजीव अंबुज जन नाता।
. --------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ
८५. " स्त्रग्धरा छंद "
विधान:--- २१ वर्ण प्रति चरण
( ७,१४,२१ वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
मगण रगण भगण नगण यगण यगण यगण
२२२ २१२ २,११ १११ १२,२ १२२ १२२
. __भू भारती__
माता भू भारती हे, जय मनुज रहे,
शान तेरी रहेगी।
गंगा मैया बहेगी, जल विमल रहे,
आन तेरी रखेगी।
भाषा हिन्दी चले तो, पद सरस कहे,
बात ऊँची चलेगी।
खेती अच्छी रहे तो, सब उदर भरे,
माँग तेरी सजेगी।
पासे सीधे पड़े, जय विजय बढ़े,
छंद ऐसे बनाने।
साथी नारी बढ़े, हर कदम बढ़े,
संग अच्छे सजाने।
सत्ता अच्छी चले, विधि सहज पले,
स्वप्न सच्चे दिखाने।
शिक्षा दीक्षा बढ़े, शिशु कलम पढ़े,
रंग पक्के जमाने।
. -------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८६. " हरिणी छंद "
विधान :-- १७ वर्ण प्रति चरण
(६,१०,१७ वें वर्ण पर यति)
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
नगण सगण मगण रगण सगण लघु गुरु
१११ ११२, २२२ २,१२ ११२ १ २
. __कामना__
नमन करता, कान्हा राधा,
मुझे भव तारना।
भजन रचता, सीता रानी,
सदा दुख टालना।
विमल रहता, भोले गौरी,
सुनो प्रण पालना।
सरल रहता, गंगे मैया,
कभी जल डालना।
जन मत बने, संगी साथी,
सभी मत से भले।
शिशु पढ़ सकें, शिक्षा शाला,
रहे सत पे चले।
जन जल बचे, पानी राखें,
सभी विपदा टले।
अरि दल मिटे, भू माता के,
निरी अरिता गले।
. -----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८७. " रतिलेखा छंद "
विधान :--- १६ वर्ण प्रति चरण
( ११, १६ वें वर्ण पर यति )
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
सगण नगण नगण नगण सगण गुरु
११२ १११ १११ ११,१ ११२ २
. __बरसे__
बरसे उमड़ घुमड़ जल,
सघन धारे।
भरते सर घट तट जल,
विहग हारे।
धरती वन वनज सजल,
हरित चारे।
बहती सरि सरित त्वरित,
क्षत किनारे।
रहते भय खग द्रुम दल,
विकल जैसे।
जल से खुश नद जलखग,
कमल वैसे।
तपते तपिश विरह जन,
सुजन ऐसे।
सरसे रिमझिम पट पट,
नटत कैसे।
. ____________
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८८. " मकरंद छंद "
विधान :--- २६ वर्ण प्रति चरण
( ६,१२,२०,२६ वें वर्ण पर यति)
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
नगण यगण, नगण यगण, नगण नगण नग,ण नगण गुरु गुरु
१११ १२२, १११ १२२, १११ १११ ११,१ १११ २ २
. __जलद सुहाए__
मनुज दुहाई, पवन सुहाई,
कमल नयन दल, अँसुवन धारे।
सजन मिताई, निबल सहाई,
सुजन चरण दल, परसत प्यारे।
जलद सुहाए, वन हरषाए,
विहग वनज तरु, सरित किनारे।
शिशु दल खेले, जल पग ठेले,
भवन सतह छत, बह परनारे।
कृषक पसीना, उमस महीना,
रज कण कण जल, पशुधन भागे।
वनज निहारे, जलज पियारे,
मृग दल भगदड़, सृप बिल त्यागे।
तपन डराए, विरह सताए,
नर तन जल सम, बतरस लागे।
वणिक चितेरे, धनिक घनेरे,
धन पद बल दम, निज हित आगे।
. +++++++
© ~~~~~~~बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
८९. प्रमाणिका छंद
. (वार्णिक छंद)
विधान:- ८ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो दो समतुकांत
जगण, रगण लघु गुरु
मापनी:- १२ १२ १२ १२
__सदा सचेत भारती__
हुआ प्रभात हे सखे।
जगा जवान को रखें।
किसान जागता कहे।
नदी हवा सदा बहे।
उठो सखे विचारकों।
जगो विचार लेखकों।
जवान धीर हारता।
किसान पीर धारता।
पड़ोस पाक पातकी।
विरोध चीन घातकी।
सदा सचेत भारती।
प्रभात 'विज्ञ' आरती।
. -----+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९०. वियोगिनी छंद
. (वार्णिक)
विधान :-- २१ वर्ण
विषम चरण में ११ वर्ण
सम चरण में १० वर्ण
विषम- सगण सगण जगण गुरु
. ११२ ११२ १२१ २
सम- सगण भगण रगण लघु गुरु
. ११२ २११ २१२ १ २
. __शुभ कर्म मानवी__
प्रभु ने हमको दिए सभी,
जग में सुंदर साज साजते।
मन में यदि बंधु भाव हो,
तुम में ईश्वर प्राण धारते।
कर लें शुभ कर्म मानवी,
जग में जीवन मर्त्य मानिए।
सपने सब मीत भावना,
अपना मानस सत्य जानिए।
मनुजात हितार्थ कामना,
जब जागे जन मीत देश में।
शुभ सूर्य प्रभात नित्य हो,
वसुधा भारत शुभ्र वेश में।
. -----+------
©~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९१. हीर छंद
विधान:- १८ वर्ण प्रति चरण
१०,१८ वें वर्ण पर यति
चार चरण , दो-दो समतुकांत
भगण सगण नगण जगण नगण रगण
२११ ११२ १११ १,२१ १११ २१२
. __आतुर अँखिया__
सावन बरसे रिमझिम, मेघ जल, बहे बहे।
साजन सपने तुम बिन, अश्रु दृग बहे सहे।
बादल बदली अवसर, पा कर बरसे पिया।
गर्जन करते जलधर, साजन धड़के हिया।
मानस मचले पल पल,मीत मिलन कामना।
चाहत मन में प्रियतम, सावन शुभ भावना।
आतुर अँखिया तरसत, प्रीत अब निभाइए।
आकर मिलके मम हिय,आस तुम बँधाइए।
मीत मछलिया जलबिन,धीरज तन खो रही।
प्रीत विरह में पल पल, नैनन जल ढो रही।
लौट सजन यौवन जल, राहत तन खोजता।
"विज्ञ" विरह मानस मन, छंद नवल सोचता।
. -------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९२. रतिलीला छंद
विधान:-- १९ वर्ण प्रति चरण
चार चरण समतुकांत
जगण सगण जगण सगण जगण सगण गुरु
१२१ ११२ १२१ ११२ १२१ ११२ २
. __रति रमें रहें__
सदा मन कहे, तुम्ही मन बसे, बनो तुम हमारे।
रहो हिय सखे, बसो मन सखे, सगे हम तुम्हारे।
बिना कुछ दिए,बिना कुछ लिए,बिके हम हवाले।
चलो अब गले, तुम्ही हम मिले, बने हम निराले।
मुझे दृग डुबो, तुम्हे दृग डूबो, विनायक बिठा लें।
कभी तुम कहो, कभी हम कहें, अदावत उठा लें।
बने मन रहे, सजे तन रहे, मिलें हम रहेंगे।
कभी दुख सहें, कभी सुख सहें, मिले फिर सहेंगे।
फले मिलन कामना, विरह अंत सावन सजेगा।
बहें फिसल प्यार में, सरस रंग फागुन फलेगा।
प्रिये सफल काम से, रति रमें रहें तन हँसेगा।
लिखें सरस छंद 'विज्ञ' तब ही हमें फल मिलेगा।
. -----+----
©~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ
९३. गिरिधारी छंद
विधान:-- १२ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
सगण नगण यगण सगण
११२ १११ १२२ ११२
. __राधा हँसती__
नटते नटवर राधा सजती।
सजते नटवर राधा नटती।
विपदा पलपल रोती हँसती।
तब ही गिरधर बंशी बजती।
जब नंदन वन गैया चरती।
तब चिंतन मन मैया करती।
कहती गिरधर भूखे रहते।
भटके वन वन कान्हा सहते।
मिलते नटखट राधा भगती।
चहके तरु खग राधा हँसती।
शरमा कविमन सोचे कविता।
वर दे गिरधर छंदी कमिता।
. ------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९४. प्रतिभा छंद
विधान:-- १४ वर्ण प्रति चरण
८, १४ वें वर्ण पर यति
चार चरण दो-दो समतुकांत
सगण भगण तगण नगण गुरु गुरु
११२ २११ २२१ १११ २ २
. __जल वरदानी__
जल है ईश्वर की देन सहज पाए।
करते दोहन नादान समझ जाएँ।
रखलो जीवन वे भावि प्रकृति सारी।
कल को काल धुनेगा मति जन मारी।
बरसे मानव वर्षा घट भर पानी।
रखले मानस रोकें जल वरदानी।
सब कुंडे भर वर्षा जल हरषाओ।
चल खेतों पर पानी नर रुकवाओ।
रहना ईश्वर दाता भगवन साथी।
रखना अंकुश साधे नर तन हाथी।
अपना जीवन चाहूँ गिरधर राधे।
वसुधा सावन पानी मलयज साधे।
. ------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९५. पंडव छंद
विधान:- १० वर्ण प्रति चरण
५, १० वें वर्ण पर यति
चार चरण, दो-दो समतुकांत
मगण नगण यगण गुरु
२२२ १११ १२२ २
. __घर घर टाँके हों__
हारा मानव कर नादानी।
वर्षा सावन भर लो पानी।
धारो मानस अब मुंडो में।
रोको जीवन जलकुंडों में।
बाँधो में सरवर में पानी।
मानें मानव जल है दानी।
खेतों में जल भर के रोको।
बापी कूप सरित को ढोको।
आकाशी पर वश खेती है।
आशा भीग धरण देती है।
चेतो तो घर घर टाँके हो।
भूलो वे पल जब ताके हों।
. ------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९६. पावन छंद
विधान:-- १५ वर्ण प्रति चरण
८, १५ वें वर्ण पर यति
चार चरण दो-दो समतुकांत
भगण नगण जगण जगण सगण
२११ १११ १२,१ १२१ ११२
. __अंबुज विमल बचे__
पावन सलिल बहे,भर कुंड घट लें।
सावन सरस रहे, जल गीत रट लें।
मानस समझ बने, भवमान भरना।
जीवन सहज चले, अरदास करना।
नीरज जलज रहे,जल स्रोत बचने।
प्राकृत वनज खगे, नर नीर रचने।
अंबुज विमल बचे, तब पीर घटनी।
सागर सरवर भी, नद कूप तटनी।
कुंड घर घर बने, जल मेह रखिए।
कूप हर पथ भरे, हर खेत भरिए।
जीवन जगत रहे, जल नेह बचते।
'विज्ञ'जन सब सुने, हम छंद रचते।
. ------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९७. बृहत्य छंद
विधान:-- ९ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो।
यगण यगण यगण
१२२ १२२ १२२
__बिना नीर कैसे बचोगे__
सभी की रही चाह पानी।
सुनोगे कभी पानी कहानी।
मिलेगा कहाँ से नीर मानी।
बहे ..नीर.....वर्षा रुहानी।
बिना नीर कैसे बचोगे।
सखा पीर पानी रचोगे।
हँसेगी मशाने तभी तो।
बहाते रहे नीर ही तो।
सखे नीर वर्षा बचाओ।
मिटा पीर लीला रचाओ।
लिखूँ छंद 'बाबू' पढ़ो तो।
बचे नीर आगे बढ़ो तो।
. ------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९८ . सुलेखक छंद
विधान:-- १५ वर्ण प्रति चरण
७, १५ वें वर्ण पर यति।
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
नगण जगण भगण जगण रगण
१११ १२१ २,११ १२१ २१२
. __मधुकर बावरे__
मधुकर बावरे, सगुण कृष्ण भक्ति हैं।
बतरस क्यों करे, विरह प्रीत शक्ति है।
रख निज ज्ञान को,समझ ईश वे सखे।
नमन करें सदा, जगत मीत ही रखें।
मधुकर भाग रे, तितलियाँ नहीं सुने।
अलि मन सोच रे,निगुणियाँ नही गुने।
यह मत भूलना, भ्रमर गोपिका कहे।
गिरधर प्रेम में, विरह आपदा सहें।
मधुकर भीरु रे,सगुण कृष्ण को भजो।
हियमन ज्ञान लो,मिथ गुमान ये तजो।
गिरधर साँवरा, सहज नेह रीति है।
नटवर 'विज्ञ' की, विमल ईश प्रीत है।
. --------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९९. रत्नकरा छंद
विधान:-- ९ वर्ण प्रति चरण
चार चरण दो दो-दो समतुकांत हो।
मगण सगण सगण
२२२ ११२ ११२
__झूलों पर रमणी चढ़ती__
आया सावन नीर बहे।
भीगे भूमि किसान रहे।
खेतों में फसलें बढ़ती।
झूलों पर रमणी चढ़ती।
पौधारोपण भी करना।
खेतों में जल भी भरना।
बैठे मीत नही अब तो।
साधें काज प्रकाशित तो।
साथी प्रीत चहे मन की।
चाहे रीत सजे तन की।
भावे गीत सखी बनिता।
शर्मा, छंद लिखे कविता।
. -----+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१०० . शील छंद
विधान:-- ११ वर्ण प्रति चरण
चार चरण समतुकांत
सगण सगण सगण गुरु गुरु
११२ ११२ ११२ २ २
__सिरताज हिमालय गरर्वीला__
करलो अपने सपने सच्चे।
तुम भारत के सब हो बच्चे।
अरमान सजाकर जो जाते।
बलिदान कमा कर वे आते।
यह भारत भूमि हमारी है।
हर वीर यहाँ बलधारी है।
सिरताज हिमालय गर्वीला।
हर एक श्रमी जन रंगीला।
रिपु जीत यहाँ कब पाया है।
छल छंद यहाँ कब भाया है।
सुत वीर यहाँ रणधीरों के।
लिख विज्ञ रहा हित वीरों के।
. -----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१०१ . रसाल छंद
विधान:-- १६ वर्ण प्रति चरण
७,१६ वें वर्ण पर यति
चारों चरण समतुकांत हो
जगण सगण तगण यगण रगण लघु
१२१ ११२ २,२१ १२२ २१२ १
. __बीज उगाएँ शक्ति यंत्र__
महान सपना हो, देश हमारा शुभ्र देश।
हिमालय शिवाला, गंग हमारी मात वेश।
सुने हम कहानी, देश हमारा स्वर्णधार।
यही जगत देता, विश्व गुरू सम्मान सार।
चले सब किसानों,बीज उगाएँ शक्तियंत्र।
उठो जय जवानों, शक्ति सँवारें युद्ध तंत्र।
जगो तनय सारे, विज्ञ सिखाते युद्ध राज।
मिले विजय ऐसी, देश सँवारे शिक्ष साज।
धरा यह हमारी, दुष्ट पड़ोसी चीन पाक।
करें हम तम्हारी, नष्ट घिनौनी झाँक ताक।
रहे हम सदा से, शांति स्वभावी मित्र मान।
कहें तुम सभी से,'विज्ञ' विभावी छंद ज्ञान।
. ------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१०२. हलमुखी छंद
विधान:-- ९ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
रगण नगण सगण
२१२ १११ ११२
__भारतीय पथ चलना__
रीति प्रीति मय रहना।
ज्ञात बात सब कहना।
देश प्रेम सच रचना।
मातृ भूमि रज सजना।
मीत ईश मन भजना।
दुष्ट संग नर तजना।
भारतीय पथ चलना।
हिंद नाद जय पलना।
गीत छंद मय कविता।
धरा धर्म लिख कमिता।
जै किसान मन कहना।
जय जवान जन रहना।
. ----+--
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१०३. धनमयूर छंद
विधान :-- १७ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
७,१३,१७वें वर्ण पर यति
नगण नगण भगण सगण रगण लघु गुरु
१११ १११ २,११ ११२ २,१२ १२
१०४. __गिरधर - राधा__
मन गिरधर को, पल पल ढूँढे, कहाँ कहाँ।
नटखट नट भी, छिपकर देखे, यहाँ वहाँ।
पनघट पर ये, नटवर आते, यदा यदा।
हर घट क्षत हो, अवसर ऐसा, यदा कदा।
सरल विमल सा, पनघट होता भरा भरा।
हृदय मनुज का, प्रतिपल चाहे, हरा हरा।
विनय तनय से, निशदिन चाहे सभी पिता।
तपन सतत ही, दिनकर देता, किता किता।
वन वन भटके, गिरधर राधा, कभी कभी।
तट पर भगते, सरवर देखा, अभी अभी।
गुन गुन करते, मधुकर जैसे, कली कली।
हर पथ रमते, हिलमिल कान्हा, गली गली।
. -------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१०५. शैलसुता छंद
विधाश:-- २३ वर्ण प्रति चरण
चार चार चरण दो-दो समतुकांत हो।
लघु लघु सगण सगण सगण सगण
सगण सगण सगण
१ १ ११२ ११२ ११२
११२ ११२ ११२ ११२
*विरहा*
जब पिक बोल सुने विरहा
मन मोर शरीर सखी हुलसे।
अब रस रंग बसंत चढे तन
आज मसोस रही मन से।
वन वन मोर नचे तितली
सब मीत बनात फिरे कब से।
अलि पिय सावन आकर लौट
गये तब से न मिली उनसे।
. ......
मन भँवरे रस पान करे,
तितली मँडराय रही रस को।
तरु पिक कूजत पीव मिले,
वन मोर चहे वसुधा रस को।
बस यह रंग बसंत यहीं,
अब खंजन लौट रहे घर को।
अलि मम कंत विदेश बसे,
मन चाहत पीव मिले मन को।
. .........
©~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१०६. अनुकूला छंद
विधान:-- ११ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
भगण तगण नगण गुरु गुरु
२११ २२१ १११ २ २
. __शरण तिहारी__
कृष्ण मुरारी प्रभु गिरिधारी।
जीवन मेरा शरण तुम्हारी।
आ कर देखो दुख मन मेरा।
मोहन चाहूँ नवल सवेरा।
सावन आए अलि सब झूले।
मोहन, मीरा सुख दुख भूले।
चाहत ले लो शरण तिहारी।
माधव आओ अब बनवारी।
माखन चोरी नटखट बाते।
मोहन चाहूँ सहज सुनाते।
हे गिरिधारी भव भय हारी।
पार लगा दे विनय हमारी।
. -------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१०७. अमृतगति छंद
विधान:-- १० वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
नगण जगण नगण गुरु
१११ १२१ १११ २
__प्रीत मचलती__
दधि घट हेतु लपकना।
वन पथ मेड़ भटकना।
हरि हर ग्वाल यमुन में।
भव भय नाग नथन में।
मनसुख संग विचरते।
पनघट पोर पहुँचते।
झट घट रंग पटकने।
हँस हँस पीर गटकने।
तनसुख मीत मिल रहे।
ब्रज वन गीत घुल रहे।
गिरिधर प्रीत मचलती।
शुभ जनमानस पलती।
. ----+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१०८. स्वागता छंद
विधान:- ११ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
रगण नगण भगण गुरु गुरु
२१२ १११ २११ २ २
. __वीर भूमि यह __
रीति प्रीत मय बंधन प्यारे।
गीत मीत हित छंद हमारे।
कर्मभूमि अरमान सुभागी।
देश प्रेम मन पावक रागी।
वीर भूमि यह भारत माता।
जन्मभूमि सुर ईश विधाता।
धीर वीर जन साहस धारी।
जन्म प्राप्त करते भय हारी।
भाव प्रीतमय स्वागत भावी।
राष्ट्र प्रेम जन मीत स्वभावी।
देश शान यह शुभ्र तिरंगा।
मात नद्य जग पावन गंगा।
. -------+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१०९. वामा छंद
विधान:-- १० वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
तगण यगण भगण गुरु
२२१ १२२ २११ २
__मानस वाले छंद__
आजाद हमारा भारत है।
आबाद तिरंगा चाहत है।
है पावन गीता वेद यहाँ।
बोलो कब देखे द्वंद कहाँ।
है मानस वाले छंद बचे।
जो पावन गंगा तीर रचे।
जो सागर बाँधे राम हुए।
माता यसुदा के श्याम हुए।
है भारत वीरों की धरती।
धीरोचित गीतो से सजती।
निर्बाध हमारी संस्कृतियाँ।
भाएँ मन में वामा कृतियाँ।
. ----+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
११०. शंखनादी छंद
विधान:-- ६ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
यगण यगण
१२२ १२२
_लिखूँ गीत सारे_
सँभालो विधाता।
तुम्ही छंद दाता।
बनो जो सहारे।
लिखूँ गीत सारे।
जगे भाव दाता।
भजूँ मैं विधाता।
सजे देश सारा।
सभी का दुलारा।
स्वदेशी सराहें।
विदेशी निँगाहे।
सुनो हे मुरारी।
प्रभो नाग धारी।
. ----+---
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१११. विद्धुल्लेखा/शेषराज छंद
विधान:-- ६ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
मगण मगण
२२२ २२२
_राणा ही तो जीते_
माटी हल्दी घाटी।
वीरों ने थी पाटी।
तोपें दागे सूरी।
घोड़ा दौड़ा नूरी।
भीलो के तीरो ने।
मेवाड़ी वीरों ने।
खाँडे ले ले भाटी।
शाही सेना काटी।
हल्दी घाटी लाली।
राणा थाती पाली।
राणा ही तो जीते।
शाही सेना रीते।
. ----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
११२. विमोहा छंद
विधान:-- ६ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
रगण रगण
२१२ २१२
_साथ साथी निभे_
प्रेम प्यारा पले।
मीत न्यारा मिले।
रीति अच्छी रहे।
प्रीत सच्ची बहे।
भाव भावे बढ़ें।
साथ झूलें चढें।
मीत मानो मुझे।
गीत भेजूँ तुझे।
साथ साथी निभे।
बात क्यों ये चुभे।
'विज्ञ' प्यारा सगा।
प्रीत आँखों लगा।
. ---+---
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
११३ . माणवक्रीड़ा छंद
विधान:-- ८ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
भगण तगण लघु लघु
२११ २२१ १ १
__हो सबल__
आज करेंगे नमन।
देश बनेगा चमन।
भारत माते विकल।
संकट काटें सकल।
मीत मिलेगी शरण।
भारत माँ के चरण।
देश हितैषी विनय।
वीर बनो हे तनय।
शत्रु सभी का दमन।
रक्ष करें माँ बदन।
भाव रखेंंगे सरल।
वीर रहो हो सबल।
. ----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
११४. मत्ता छंद
विधान:-- १० वर्ण प्रति चरण
४,१० वें वर्ण पर यति
चार चरण, दो-दो समतुकांत
मगण भगण सगण गुरु
२२२ २,११ ११२ २
_. _तुरग प्रतापी__
हल्दी घाटी, समर प्रतापी।
शाही सेना,विकल विलापी।
राणा कीका, गहन लड़ाके।
भीलू राणा, धनु धर बाँके।
साथी सूरी , अगन दगाता।
नीला घोड़ा, तुरग भगाता।
शाही सेना, मुगल निराशे।
भाले से थे, रिपुदल नाशे।
शाही सेना, थर थर काँपी।
देखा राणा , तुरग प्रतापी।
झाला मन्ना, सृजक कहानी।
भामा से थे, मित वर दानी।
. ----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
११५. पृथ्वी छंद
विधान :-- १७ वर्ण प्रति चरण
८,१७ वें वर्ण पर यति
चार चरण दो-दो समतुकांत
जगण सगण जगण सगण यगण लघु गुरु
१२१ ११२ १२,१ ११२ १२२ १ २
. __अराजक__
सदा बिखरते रहे, नयन स्वप्न खोए तभी।
रहे सिसकते सखे, विमल सोच आए कभी।
धरा तल गिरे उठे, फिर चले गिराए गए।
अदावत नहीं किए, सब सहे विदेही भए।
यहाँ हम करें नहीं, सजन प्यार की बात भी।
मिलावट मिली बिके, धवल चाँदनी रात भी।
किसान करता रहा, श्रम सदा विधाता यहाँ।
जवान मरता रहा, वतन हेतु रक्षा वहाँ।
श्रमी बिलखते रहे, चमन में बहार रहे।
महावत थके हुए, गज किए विनाश रहे।
अराजक अमानवी, घर नए ठिकाने बने।
धरा सिसकने लगी, नित नए निशाने तने।
. ---------+--------
©~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
११६. नील छंद
विधान;-- १६ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
भगण भगण भगण भगण भगण गुरु
२११ २११ २११ २११ २११ २
. __दृग नीर बहे__
प्रेम किए मन से दृग नीर बहे तब से।
नैन मिले हिय चैन गया डरते भव से।
नैन चले कुछ बैन चले फिर भाव बहे।
ताप चढे जब सैन बढ़े फिर घाव सहे।
प्रीत हुई जग रीति छली मन बात खुली।
नीति विकार मनोरथ नाशक वात घुली।
वाहक दाहक दौर चले नव शंक पले।
कोयल के स्वर पावक होकर घाव जले।
भीत हुए तन पीत हुए मन मीत छिपे।
निंदक पातक नित्य छले छुर पीठ घुपे।
मात पिता वर बंधु सखा सब शीश धुने।
'विज्ञ' ठगा हमको सबने तब छंद चुने।
. --------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
११७. मणिमाला छंद
(तीव्र, उज्जवल, चर्चरी, अश्वगति छंद)
विधान:-- १८ वर्ण प्रति चरण
११,१८वें या ८,१८ वें वर्ण पर यति
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
भगण भगण भगण भगण भगण सगण
२११ २११ २११ २१,१ २११ ११२
. __नीर बहे नयनन से__
प्रेम किए मन से बस नीर, बहे नयनन से।
नैन मिले हिय चैन लिवाँय, गये इस मन से।
नैन चले कुछ बैन चलाय, रहे सजल बहे।
ताप चढे जब सैन बढ़ाय, रहे गरल सहे।
प्रीत हुई जगरीति छलाव, गई सकल खुली।
नीति विकार मनोरथ नाश, हुई पवन घुली।
वाहक दाहक दौर चलाय, शशंक मन पले।
कोयल के सुर पावक देह, जले जतन जले।
भीत हुए तन पीत पराग, सुमीत कित छिपे।
निंदक पातक नित्य कटार, हमार उर घुपे।
मात पिता वर बंधु सखाय, विशेष सिर धुने।
'विज्ञ' ठगा हमको जगरीत, कवित्त रच सुने।
. --------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
११८. भालचंद्र छंद
विधान:-- १७ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
जगण रगण जगण रगण जगण गुरु लघु
१२१ २१२ १२, १ २१२ १२१ २ १
. __बहे बयार शांति की__
किसान हारते नहीं, सहे सदैव ताप शीत।
जवान भागते नहीं, रहे स्वतंत्र राष्ट्र मीत।
प्रभात सूर्य से सजे, जगे सजीव नित्य कर्म।
विकास गीत गा सखे, निभा सचेत देश धर्म।
प्रदेश देश वीर से, रहे सुरक्ष शान मान।
अनंत नीर मेघ में, नदी नदीश प्रीत धान।
कपोत शांति दूत हो, अहिंस कर्म पत्र थाम।
उड़ान अंतरिक्ष में, भरे सचेत मंत्र काम।
बढ़े चलो बढ़े चलो, सदा सतर्क वीर पंथ।
पढ़ो सभी पढ़ो बढ़ो, सखे सुकर्म ज्ञान ग्रंथ।
मिटा निराश पीर को, मिटा मनुष्य बैर भाव।
बहे बयार शांति की, कवित्त 'विज्ञ' छंद नाव।
. ----------+----------
©~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
११९. सीता छंद
विधान :-- १५ वर्ण २६ मात्रा प्रति चरण
चार चरण दो-दो समतुकांत हो
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
__नीर नैनों ने निकाला__
वारि हारे पेड़ पौधे, जीव सारे खेत भी।
रेत भाटे ईंट गारे, नीड़ हारे रेत भी।
आज देखो रो रही माँ, देख बेटे काश ने।
नीर मैला भूलता है, दे दिया आकाश ने।
नीर नैनों ने निकाला, सागरों में बाढ़ है।
सूखते वे ताल नाले, बाढ़ के ही कोढ़ है।
मानवी हो भूल माँगे, त्रासदी का राज है।
नीर दोहा देख भू भी, काँपती जो आज है।
आज पूरा विश्व देखें, काल से ही त्राण है।
रोग के आगोश में जो, भीरु सारे प्राण है।
है डरे आकाश भू तो, चंद्र तारे ताप भी।
होड़ के वे पंथ नाशी, बीज बोए आप भी।
. ----+-----
© ~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१२०. रामा छंद
विधान:-- ८ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
जगण यगण लघु लघु
१२१ १२२ १ १
. __बचे जल__
बहे यह वर्षा जल।
बचा जल प्राणी कल।
धरा पर हो जीवन।
सदा जल राखें वन।
कुए घट टाँके भर।
बना जल कुण्डे घर।
बहा मत वर्षा जल।
करे मत रीता कल।
कुए भर खेती कर।
रखें जल खेतों पर।
भरें जल जीवों हित।
मिले तरु पंछी नित।
लगा तरु मेड़ो पर।
मिले फल पेड़ों पर।
धरा हरियाली बन।
रखें भव पानी घन।
. ------+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१२१. पदम छंद
विधान:-- ८ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
नगण सगण लघु गुरु
१११ ११२ १ २
___चमन के लिए___
मनुज बन मानवी।
तज चलन दानवी।
जल विमल पीजिए।
यश सतत लीजिए।
पथ तरुण लो चुनो।
नित सपन भी बुनो।
नव सृजन कीजिए।
हित वतन दीजिए।
जन अमन में जिए।
वन चमन के लिए।
शुभ समय सोच हो।
मन बदन लोच हो।
. -----+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१२२ . राजहंसी छंद
विधान:-- ११ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
नगण रगण रगण लघु गुरु
१११ २१२ २१२ १ २
. __मनुज मानवी प्रीत__
जगत शांति के गीत गाइए।
मनुज मानवी प्रीत पाइए।
मन विकार को दूर कीजिए।
यश विवेक से मीत जीतिए।
सरल जीवनी मित्र चाहिए।
विनत कीजिए मेल आइए।
प्रकृति ईश के छंद वंदना।
अवनि सृष्टि के गीत सर्जना।
नमन भूमि को नित्य करेंगे।
जड़ सजीव के सत्य सजेंगे।
जगत हेतु हो शुद्ध भावना।
मनुज 'विज्ञ' ये छंद कामना।
. -------+--------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१२३ . ब्रह्मरूपक छंद
विधान:-- १६ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
रगण जगण रगण जगण रगण लघु
२१२ १२१ २१२ १२१ २१२ १
. __शिव रात्रि__
शैल पे विराजते हिमाचली बयार भंग।
शिंभु देव पार्वती गणेश विघ्न टाल संग।
भूतिया भभूत अंग वस्त्र बाघ चाम नाथ।
है त्रिशूल हाथ ब्याल कंठ हार गंग माथ।
काल रात्रि मान पूजते सभी विशेष ढंग।
देश देश में दिनेश देव भू पताल संग।
विल्व पत्र भोग दूध नीर घी दही चढ़ाय।
वे सभी सुकाल चाह मेट काल जाल हाय।
.
गंग की तरंग शीश चंद्र की छटा बनाय।
है जटा विशाल नाग संग नंग भूत राय।
सिंह पे सवार साथ नादिया गणेश पूत।
शिंभु संग शैल ही विराजि मात हेतु दूत।
रोग नाश योग देय भोग शोक नाश पंत।
मुक्त पाप शाप से अजान हूँ करें सुअंत।
ज्ञान दे सुकाल के विकासमान काम धाम।
भावि भोग योग क्षेम शील भाव ईश नाम।
. --------+--------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१२४.
दीपिकाशिखा छंद
विधान:-- २० वर्ण प्रति चरण
३,९,२० वें वर्ण पर यति
चार चरण दो-दो समतुकांत हो
भगण नगण यगण नगण नगण रगण लघु गुरु
२११, १११ १२२, १११ १११ २१२ १ २
. __माधव, चरण पखारे__
सावन, रिमझिम वर्षा, बतरस पति संग नेह से।
साजन, मधुरिम हर्षे, पल पल तिय संग मेह से।
सुन्दर, तरुवर भीगे, टप टप घन ढंग नीर है।
बोझिल,हर द्रुम झाँके, घर पथ पर मग्न धीर है।
मोहन,नटखट राधा,सखियन सब खेल खेल में।
भावुक, तन मन होते, तब गलियन गैल मेल में।
पावन, यमुन नहाते, प्रभु गिरधर कूद तैर के।
माधव, चरण पखारे, चुन चुन पद कंट कैर के।
वारिद, गरज डरावे, नटवर हँस जोर जोर से।
चंचल, तड़ित झँकावे, नभ तल जल शोर से।
सूरज, तमहर तापी, अविरल प्रभु दर्श कामना।
भावन, रच पद देखे, नर मन भव छंद साधना।
. ------+-------
©~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१२५. कुसुमविचित्रा छंद
विधान:-- १२ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
नगण यगण नगण यगण
१११ १२२ १११ १२२
_प्रणय पुराने चितवन वादे_
रिमझिम वर्षा नद तट भाए।
मन विरहा दादुर सम गाए।
सजन सनेही प्रियजन यादें।
प्रणय पुराने चितवन वादे।
जल बरसे सावन हरियाली।
दृग बरसाए तिय मतवाली।
कृषक अगेती फसल निराए।
पवन पसीना सहज सुखाए।
पशु खग भीगे वन तरु भीगे।
तिय अलि झूले झटपट पींगे।
मन भटके साजन बिन आए।
कवि लिखते छंद सरस गाए।
. -----+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१२६ . मणिमाल छंद
विधान:- १९ वर्ण प्रतिचरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
१०,१९ वें वर्ण पर यति
सगण जगण जगण भगण रगण सगण लघु
११२ १२१ १२१ २, ११ २१२ ११२ १
. __सहते सदा__
भरते नदीश उदार है, निज वक्ष भार अतीव।
सहते समुद्र समान ही, नर मानवी जन जीव।
सपने किसान सुजान के,हित भूमि जीवन हेतु।
नर जो विवेक भवान हो, भव सागरो हित सेतु।
रमणी सहे हित रीति के, तन कष्ट पालन धर्म।
सहते रहे पितु मात भी, भव हेतु कर्म अकर्म।
निज देश माँ यह भारती, सहते सदा मनुजात।
भर नीर पावन जाह्नवी, बहती सहे जन घात।
वन दे रहे सब आपको, सह ताप शीत अपार।
हिमराज भी सहता रहे, जन हेतु शीतल धार।
हम भी बनें हित मानवी,जन जैव जीवन वन्य।
रच छंद गीत कवित्त ये,कवि विज्ञ मानस धन्य।
. -------+-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१२७. कुबलयमाला छंद
विधान:-- १० वर्ण प्रति चरण
चार चरण दो-दो समतुकांत
मगण नगण यगण गुरु
२२२ १११ १२२ २
_पानी जीवन हर प्राणी का_
पाए मानव तन क्यों रोता।
वर्षा पावन जल को खोता।
पानी जीवन हर प्राणी का।
रक्षो आदर गुरु वाणी का।
कूपों में घन जल डालोगे।
चाहोगे तब फिर पा लोगे।
बापी कुंड सहजले नाड़ी।
मोड़ोगे तब मुड़नी गाड़ी।
खेतों में तल पट बाँधे तो।
कुण्डे भी भर कर राखें तो।
खेती में जल भर के देना।
अच्छी आमद तुम भी लेना।
कुण्डे खोद भवन में यारों।
वर्षा नीर सतह में धारो।
टाँके नीर पथिक को होए।
पानी बूँद मनुज क्यों खोए।
. -----+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१२८. मदकलनी छंद
विधान:-- २० वर्ण प्रति चरण
५,१०,१५,२० वें वर्ण पर यति
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
नगण जगण नगण भगण
सगण नगण लघु गुरु
१११ १२,१ १११ २,११
११२, १११ १ २
*(११११२×५)*
. __कृषक__
बदन थके, नयन तके,
नभ छलना, पवन चले।
कृषक चला, मगन मना,
श्रम करता, विपद छले।
मनन करे, खनन करे,
फसल उगे,प्रकृति हँसे।
अथक श्रमी, गुरबत में,
तन पिचके, रहन फँसे।
जल बरसे, जब हरषे,
सब सह लें, तरु सरसे।
जल घट ले, घन लटके,
बिन गरजे, बिन बरसे।
सतत सहे, कृषक दहे,
प्रभु सुनिए, कृषक मरे।
जल बरसे, तरु सरसे,
फसल बढ़े, विपद टरे।
. -----+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१२९. चित्रपदा छंद
विधान:-- ८ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो-दो समतुकांत
भगण भगण गुरु गुरु
२११ २११ २ २
_चित्र बना शुभकारी_
नीरज जो मुरझाए।
सावन नीर बहाए।
वाह कहीं सुन आहें।
चित्र बना मन चाहे।
पौध लगा कर पालें।
रीत निभे फल खालें।
प्राकृत भूमि बचाओ।
पावन चित्र बनाओ।
जोहड़ पोखर टाँका।
मूल्य पुरातन आँका।
नीर बचा भव सारी।
चित्र बना शुभकारी।
. -----+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१३०. मंगलमंगना छंद
विधान:-- १६ वर्ण प्रति चरण
४,१२,१६ वें वर्ण पर यति
चार चरण दो-दो समतुकांत
नगण भगण जगण जगण जगण गुरु
१११ २,११ १२१ १२१, १२१ २
. __श्रम करें, श्रम हरें__
नभ झरे, उठ किसान सँभाल,धरा कहे।
जल बहे,तरु लगा चल मीत, सभी सहे।
पथ रहे, जल मिले तरु संग, सुवासिता।
मन चहे,फल मिले घर नीड़, प्रभाविता।
हम सभी, उठ चलें हर रंग, प्रभात में।
श्रम करें, श्रम हरें मजदूर, विभाँति मे।
अरि मिटे, हम जुटें रणवीर, स्वदेश में।
खुश रहे, सब बढ़े मन भाव, सुवेश में।
विनय है, यह सुने निज देश, महान हो।
सरल हो,विनत वीर उछाह, सुजान हो।
सिर कटे, हम मिटे इस देश, सुरक्ष में।
मत भले, सत पले शुभ विज्ञ, सपक्ष में।
. --------++-------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१३१ . रुक्मवती छंद
विधान:-- ७ वर्ण प्रति चरण
चार चरण दो-दो समतुकांत
मगण सगण गुरु
२२२ ११२ २
__प्रीत बुलाती__
कान्हा हे गिरधारी।
काहे प्रीत विसारी।
ग्वाले भी तरसे हैं।
गायें भी तरसे हैं।
राधा के बनवारी।
मीरा भी मन हारी।
देखो मीत दुखारे।
आओ गीत पुकारे।
भेजा भी भँवरा है।
चेला निर्गुणिया है।
यादें नित्य सताती।
आजा प्रीत बुलाती।
. ----+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१३२ . लयग्राही छंद
विधान:--११ वर्ण प्रति चरण
चार चरण दो-दो समतुकांत
तगण तगण तगण गुरु गुरु
२२१ २२१ २२१ २ २
. __मीरा पुकारे__
मीरा भजे श्याम के गीत राधे।
कान्हा कहाँ मानता मीत राधे।
वे रीति है प्रीति की है निभाई।
मीरा चली आपके द्वार आई।
हे कृष्ण मीरा पुकारे सुनो तो।
जो छंद गाए सुनाए गुनो तो।
चाहा तुम्हे ही हमेशा कन्हैया।
मीरा तुम्हारी कहा मान सैंया।
छोड़ा ठिकाना सुनो हे मुरारी।
जोड़ा तुम्ही से निभाना मुरारी।
द्वारे तुम्हारे लिखूँ छंद गाऊँ।
शर्मा कहे 'विज्ञ' कान्हा सुनाऊँ।
. -----++------
©~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१३३. हाइकु छंद-
विधान:-- मूलत: जापानी विधा थी, अब यह हिंदी में जनमानस में प्रचलित है।
५+७+५=१२ वर्ण का एक छंद पूर्ण रचना है, जो दृश्य का फोटो क्लिक हो, त्वरित आह या वाह हो, दो स्वतंत्र बिम्ब हो।
१.अमृता लता~
चौके में माँ के हाथ
काढ़ा कटोरी
२.गिलोय वटी~
बेटी के भाल पर
गीला कपड़ा
३. चैत्र वासर~
रोटी पे सहजन
फूलों की भाजी
४.चैत्र प्रभात~
सर्पगंधा पुष्प पर
भ्रमर दल
५. मातृ दिवस~
चिता पे चीरा धात्री
शव का पेट
६.सुहाग सेज~
दुल्हन की गोद में
हंँसी बालिका
. ----+---
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१३४. ताँका छंद
विधान:-- हाइकु छंद से सम्बद्ध छंद ताँका में -- ५+७+५+७+७ वर्ण होते है।
हाइकु + ७+७ वर्ण हो।
सार्थक बिम्ब, आशय युक्त पूर्ण कविता रचना हो।
. विकास
शिक्षा जरूरी
बच्चे के विकास में
सहयोग दें
अच्छा व्यक्ति बनाएँ
सब को समझाएँ।
अच्छे बच्चे हों
कहलाएँ सपूत
देश बदले
समाज के हित में
परिवार उजाले।
घर समाज
विकसित होकर
राष्ट्र विकास
मानवता पोषण
संस्कार बन जाते।
सुदृढ़ राष्ट्र
कठोर संविधान
स्वस्थ आबादी
माकूल शिक्षालय
संतुलित विकास।
जन विकास
लोकतंत्र प्रणाली
प्यारा वतन
हमारा हिन्दुस्तान
सभी का कल्याण हो।
. ----+-----
©~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ
१३५. सायली छंद
मराठी कवि इंगले द्वारा विकसित इस विधा में नौ ९ शब्द में पूर्ण व आशय युक्त कविता रचना होती है। शब्द क्रमश: १,२,३,२,१,=९
. __किसान__
दाता
अन्न का
सबका पेट भरे
धरती पुत्र
किसान
कर्जा
बढ़ता जाता
कभी न चुकते
बैंक,साहूकार
धरती
फसल
अन्न उगाता
सब के लिए
पेट काटता
अपना
उत्पादन
लागत परिश्रम
दूध अनाज सब्जी
मूल्य निर्धारण
व्यापारी
देवता
भूख का
सबकी भूख मिटाता
सिवाय अपने
किसान
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१३६. सेदोका विधा
विधान-- छ चरण होते है।
५+७+७+५+७+७
= कुल ३८ वर्ण की सार्थक
व पूर्ण कविता हो।
. __सावन__
१
सावन मेघ
गरजे घनघोर
दामिनी दमकती
दुखी विरहा
धरा वन सरित
तरु वन्य बहके।
२.
दादुर ध्वनि
पावस ऋतु बाजे
विरहिनी तरुणी
मौन कोकिला
नीड़ो में चहकन
धानी धरा चूनर।
. ----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१३७. चोका विधा
विधान:- वर्ण गणना आधारित
लम्बी कविता है। जिसमें वर्णो
का क्रम क्रमश;-
५+७+५+७.......का क्रम रहता है,
समापन में ७-७ वर्णीय दो पंक्तियाँ
आवश्यक है।
भाव कथ्य व प्रवाह अच्छा हो।
__तुम भी चुप__
सावन झूले
झूमें तरु तरुणी
पिकी मौन क्यूँ
पूछत विरहिणी
कोयल बोली
सुन हे मतवाली
कद्र नही है
अब अमिया डाली
दादुर छाए
कंटक नींबू लाए
जीव अनेकों
विचरे जहरीले
बहुमत से
गुण कहें कँटीले
तुम भी चुप
बिन मीत सजीले।
जन रंग रँगीले।
....................!
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१३८. वर्ण पिरामिड़
वर्ण संख्या आधारित विधा है। जिसमे क्रमशः वर्ण रखे जाते हैं। सार्थक आशय युक्त पूर्ण कविता रचना हो। शब्द दोहरान न हो।
(अ) पिरामिड़ -
विधान:- वर्ण संख्या - १,२,३,४,५,६,७,
. __गणेश वंदन__
हे
गौरी
नंदन
गणराज
विघ्न मिटाओ
हृदय विराजो
सभी सुधारो काज
. -----++----
(ब) धनुष पिरामिड़
विधान:-- वर्ण संख्या- १,२,३,४,५,६,७,७,६,५,४,३,२,१,
. __शिक्षा__
है
शिक्षा
बच्चे का
अधिकार
पढ़़ना बच्चों
समझ विचार
जीवन सुधरता
विद्यालय चलते
सबको पढ़ाते
कमर कसो
पाठ पढ़ो
बदलो
देश
ये
---+---
©~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
© सर्वाधिकार सुरक्षित
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
सिकंदरा, दौसा,राजस्थान
pin.३०३३२६
मो.नं. ९७८२९२४४७९
*************सवैया२२***********************
. *सवैया* २२
छंदों के कई प्रकारों में सवैया भी एक प्रकार का छंद है।
सवैया चार चरणों का समपाद वर्ण छंद है। वार्णिक वृत्तों में २२ से २६ वर्ण प्रति चरण वाले, जिनमें चार चरण समतुकांत हो,और मापनी आधारित लिखें हो ऐसे जाति छंदों को सामूहिक रूप से हिन्दीशास्त्र में सवैया कहते हैं।
इस प्रकार सामान्य जातिवृत्तों से बड़े और वर्णिक दण्डकों से छोटे छंद को सवैया समझ सकते हैं।
तुलसीदास जी एवं रसखान जी जैसे कविजन दो या अधिक सवैयों के मिश्रण से भी रचना करते थे जिन्हे 'उपजाति सवैया' कहतें हैं।
हिन्दी साहित्य में प्रचलित २२ सवैये क्रमश: निम्न प्रकार मय विधान एवं रचना-उदाहरण के लिख रहा हूँ।
---- ~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ
१. मदिरा सवैया
. ( वर्णिक छंद )
विधान :--
चार चरण
२२ वर्ण प्रति चरण
१०-१२ वर्ण पर यति,
चरणान्त गुरु,
(२११×७) +२
(भगण×७) +गुरु
चारो चरण समतुकांत !
. _____
. माँ
. ______
उत्सव फाग बसंत तभी
जब मात महोत्सव संग मने।
जीवन प्राण बना अपना,
तन माँ अहसान महान बने।
दूध पिये जननी स्तन का,
तन शीश उसी मन आज तने।
धन्य कहें मनुजात सभी,
जन मातु सुधीर सुवीर जने।
. ..........
भाव सुनो यह शब्द महा,
जनमे सब ईश सुसंत जहाँ।
पेट पले सब गोद रहे,
अँचरा लगि दूध पिलाय यहाँ।
मात दुलार सनेह हमें,
वसुधा मिल मात मिसाल कहाँ।
मानस आज प्रणाम करें,
धरती बस ईश्वर मात जहाँ।
. .........
पूत सुता ममता समता,
करती सम प्रेम दुलार भले।
संतति के हित जीवटता,
क्षमता तन त्याग गुमान पले।
आँचल काजल प्यार भरा,
शिशु देय पिशाच बलाय टले।
आज करे पद वंदन माँ,
पद पंथ निशान पखार चले।
. ..........
पूत सपूत कपूत बने,
जग मात कुमात कभी न रहे।
आतप शीत अभाव घने,
तन जीवन भार अपार सहे।
संत समान रही तपसी,
निज चाह विषाद कभी न कहे।
जीवन अर्पण मात करे,
तब क्यों अरमान तमाम बहे।
............
©~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ
.२. सुखी सवैया
विधान:- आठ सगण + लघु लघु
११२×८+११(१२,१४ पर यति)
. .......
. फागुन
. . .........
जब से यह फागुन माह लगे,
तब से मन चाह बसंत समेटन।
अरदास करुँ ,भगवान भजूँ,
असमान तकूँ,अरमान सहेजन।
मन भावन सावन याद करूँ,
तब आय न साजन वे दिन सालन।
प्रभु से मन से विनती करती,
अब साजन बाँह जरूर मरोरन।
. . ..........
©~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ
३. सुख सवैया
विधान:-आठ सगण + लघु गुरु
११२×८+१२(यति १२,१४ पर)
. ------------
. फागुन
. ...........
जब से यह फागुन माह लगे,
तब से मन चाह सु रंग समेटने।
अरदास करुँ ,भगवान भजूँ,
असमान तकूँ,अरमान सहेजने।
मन भावन सावन याद करूँ,
तब आय न साजन वे दिन सालने।
प्रभु से मन से विनती करती,
अब साजन बाँह जरूर मरोरने।
. .........
©~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ
४. दुर्मिल सवैया
विधान:- आठ सगण ११२×८
१२,१२यति,४चरण समतुकांत
. ........
. विरहा
. ........
पिक बोल सुने,तड़पे विरहा,
मन मोर शरीर सखी हुलसे।
अब रंग बसंत चढा सबको,
तन आज मसोस रही मन से।
वन मोर नचे तितली भँवरे,
सब मीत बनात फिरे कब से।
पिय सावन आ कर लौट गये,
तब से न मिली तन से उनसे।
. ......
भँवरे रस पान करे फिरते,
तितली मँडराय रही रस को।
पिक कूजत पीव मिले मन के,
वन मोर चहे वसुधा रस को।
बस रंग बसंत यही समझे,
अब खंजन लौट रहे घर को।
मम कंत बने हुलियार सखी,
मन चाहत पीव मिले मन को।
. ..........
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
५. किरीट सवैया-
विधान:--
२११×८ भगण× ८
२४ वर्ण, १२,१२ पर यति
चार पद समतुकांत
. ----------
चाह शहादत मानस भारत
. --------------
भारत देश महान बने सब,
लोग निरोग रहे जन भावन।
मेल मिलाप रहे सब धर्मन,
जाति सबै मिल देश बनावन।
सीम सुरक्ष करे बल सैनिक,
शत्रु बिसात पड़े कस आवन।
*लाल* हमार स्वदेश हिते सब,
मानव मानस मान मनावन।
रीत सु प्रीत निभे अपनी बस,
चाह शहादत मानस भारत।
आन निभे अरमान निभे सब,
देश हितैष निछावर चाहत।
आज यही बस है मन मे अब,
काज करूँ मन मानुष राहत।
मानवता हित जीवन अर्पण,
दूर सभी कर भारत आरत।
शान तिरंग सँभाल सकूँ बस,
मान स्वदेश सदा अपना पन।
जन्म मिले फिर भारत मानुष,
तो बलिदान करूँ अपना तन।
जीवन ज्योति चले मन में बस,
याद शहीद यही जपना मन।
देश समाज सुकाज करूँ नित,
भाव रचूँ कविता मन भावन।
साहित साधन साज सरे सब,
शान सुराज सुरक्षण भारत।
गीत लिखूँ ममता समता जब,
मीत सुरीत समाज निभावत।
भाव स्वभाव भरे तन भीतर,
मानव मानस प्रीत कहावत।
संकट हो जब देश धरा पर,
मानस चाहत *लाल* शहादत।
पास पडौ़स छिपे कुछ दानव,
काज करे नित मान अपावन।
मानवता पर भार कलंकित,
केवल ये धन लोभ लुभावन।
दीन जिहाद विधर्म सने मन,
चाहत है बस स्वर्ण कमावन।
द्वेष भरे यह काम करे बस,
मानव मानस *लाल* सतावन।
भारत भूमि मिले हर जीवन,
दूँ अपना तन भारत अर्पण।
दुश्मन के दिल चीर करूँ पर,
देश हितैष करूँ न समर्पण।
दुष्ट जनों हित होकर दानव,
मार करूँ उनका फिर तर्पण।
छंद रचूँ मन चेतन हो जन,
देखि सके मुख आपन दर्पण।
. --------
©~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ
६. सुमुखि सवैया छंद
विधान:-- सात जगण + लघु गुरु
१२१ × ७ + १२,
११,१२ वर्ण पर यति,
दो पद सम तुकांत
. .........
. हुलियार
. ..........
बसंत चले पुरवाइ थमे ,
. तब,भोर सुहावन लागि भली।
अनाज पके,सरसों सिमटे,
. मन मोर नचे मन चाह अली।
गुलाब,कनेर गुँथे गजरे,
. रमणी मिलने मनमीत चली।
दिनेश तजी निज शीतलता,
. मन होलिन मानस प्रीत पली।
. .........
सुरंग,गुलाल अबीर लिए,
. हुलियार बने सब साथ चले।
कन्हाइ बने सिरमौर सभी,
. मन चाह सखी सब गैल मिले।
छिपाइ सखी वृष भानु सुता,
. तब पीपल पेड़ विशाल तले।
निगाह पड़ी सब की उन पे,
. फिर खूब सुरंग गुलाल मले।
. . ..........
सनेह सुधारस पान किए,
. सब गोरि कपोल अबीर सने।
सखी वृषभानु सुता मिलके,
. तब कान्ह सखा सब संग जने।
मचा हुड़दंग अबीर उड़े,
. हुलियार विचित्र चरित्र बने।
कहीं तन रंग सने मन में
. कछु लाजन लाल कपोल घने।
. ..........
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
७. मत्तगयंद सवैया
विधान:--
. भगण × ७ + २ गुरु,
. (२११×७ +२२)
. १२,११ वर्ण पर यति
( चार चरण सम तुकांत )
. ........
. शहादत
. ......
देश धरा पर संकट हो तब,
रक्षक वीर करे रखवाली।
सैनिक के बल सोय रहे सुख,
जीम रहे हम भोजन थाली।
चौकस धीरज धारक सैनिक,
शान सपूत रहे वन माली।
आन निभा कर मान रखे वह,
रीत शहीद नई रच डाली।
. .....
बारिश शीत सहे हिम आतप,
शस्त्र रखे अरि शूल मिटाए।
देश रखे निज वेष रखे वह,
मान शहीद बड़े कहलाए।
गर्व करे हम वीर सभी पर,
धीर सपूत धरा पर जाए।
और सगर्व रहे मम भारत,
रक्षक वीर शहीद कहाए।
. . .....
वीर करे बलिदान धरा हित,
मात समान मही वह माने।
जन्म मिले इस भारत भू पर,
अंतिम चाह शहादत जाने।
सीम हिमालय पर्वत तीरथ,
रेत नदी सब चाह सजाने।
शत्रु मार भगा निज ताकत,
शान शहादत रीत रचाने।
. ......
मान करे हम मीत शहादत,
रीत सु प्रीत सदा यश गाएँ।
प्राण दिए उन मात धरा हित,
आज सभी मिल मान बढ़ाएँ।
ईश समान रहे बन रक्षक,
मूरत सुंदर साज सजाएँ।
देश धरा यश मान शहादत,
वे परिवार सभी अपनाएँ।
. ...........
पाक अराजकता कर कायर,
मानव बम्म दगेे पुलवामा।
वीर बयालिस भारत भू सुत,
छोड़ गये परिवार व वामा।
देश शहीद समाज कहे पर,
वे भगवान बसे सुर धामा।
आज करे प्रण मान धरा हित,
पावन मंदिर मस्जिद जामा।
. .........
©~~~~~~~बाबू लाल शर्मा "बौहरा
८. अरसात सवैया
विधान: --
. २११×७+२१२
भगण × ७+ रगण
( भगण भगण भगण भगण
भगण भगण भगण रगण)
चार चरण सम तुकांत हो।
. ...........
. भावन भारती
. .......
भारत भाग्य विधान बना तब
लोक सभी मन भावन भारती।
वीर शहादत याद करें सब
लोग करे मन पावन आरती।
शासन भार सँभाल लिया जन
लोक भला सब साधन धारती।
पूत सपूत सभी सुत भारत
हेतु भला सरकार विचारती।
. ______'
पूत सपूत कपूत सभी हित
मात समान रहे मन पालती।
चोट खसोंट लगे तन के सुत
मात हिये तब आपद सालती।
बाग गुलाब कनेर सभी द्रुम
फूल सुशोभित मालिन मालती।
आपद कष्ट सुने जब संतति
भाँति अनेक विधा कर टालती।
. ______
© बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
९. मातंगी सवैया
विधान: --
प्रति चरण (पंक्ति,) ३६ मात्रा १८ वर्ण,
२२२ × ६
(मगण मगण, मगण मगण, मगण मगण।)
१२, २४, ३६ मात्रा या
६,१२,१८,वर्णों पर यति
चार चरण सम तुकांत हो
. _______
. आओ साथी
. .......
वर्षा भी आएगी, खेती भी झूमेंगी,
झूले डाले जाएँ।
भीगेंगे भागेंगें, खेलेंगे खाएंगे,
ठाले बैठें गाएँ।
आओ साथी सारे, पौधे पानी लाओ,
गड्ढे खोदें आएँ।
आजादी भाती है, मैना गाना गाती,
आओ खाना खाएँ।
. ________
गंगा की धारा का, पानी प्यारा मीठा,
आओ साथी पीलें।
गंगोत्री से आती, मैदानों को भाती,
माँझी काहे ढीले।
खेतो को हर्षाती, गोते मारे हाथी,
दीखे काले नीले।
सर्दी ले आती है, गर्मी में गाती है,
गंगा रेती टीले।
. ________
© ~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
१०. चकोर सवैया
विधान: --
(भगण भगण भगण भगण
भगण भगण भगण + गुरु लघु)
. (२११ × ७ + २१)
चार चरण समतुकांत हो
. __पुरन्दर__
राजत राजन में चतुरानन
मानस उच्च लगे जस बाज।
सुन्दर सोच विचार पुरन्दर
भू हित साधक सावन साज।
खेत हरे मन भाव भले तन
उत्तम सोच बनाकर आज।
भारत भूमि सदा मन भावन
आप सहेज रखो सुर राज।
. __मनमोहन__
बालक आँगन में चलता तब
आँचल छोर कसे निज मात।
दौड़ रहा जब द्वार दिशा तब
अंगुलि पोर कसे निज तात।
खेल रहे द्वय संग खड़े लड़
हाथ छुड़ा भगता निज भ्रात।
दूर खड़ी वृषभानु सुता मन
चाह रही मन मोहन बात।
. ______
© ~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
११. अरविंद सवैया
विधान:--
. ११२ × ८ + १
(सगण सगण सगण सगण सगण
सगण सगण सगण + लघु )
. चार चरण सम तुकांत हो।
. __यशगान__
कहते सब कृष्ण भजो मन में
वृषभानु सुता हँसती भगवान।
यसुदा कहती सुन कृष्ण भगे
मत आज सुधार रहूँ तव शान।
वसुधा जननी वर भाग सुनो
जिन अंक पले प्रभु जी मय मान।
लिखता पढता कविता कवि जो
शुभ भाव रखे मन मेंं यशगान।
. __सुत नंद__
वन में जन के मन में तन में
रहते बसते हँसते सुत नंद।
तपसी जन संत रहे तुम को
सब ठौर निहार थके मतिमंद।
जल में थल में घर में तरु में
हर ओर उजास करे नभ चंद।
फल में दल में अब भी कल भी
वन बाग पहाड़ मिले मूचुकंद।
. _________
© ~~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
१२. महा भुजंगप्रयात सवैया
विधान:--
१२२ × ८ ( यगण यगण यगण
यगण यगण यगण यगण यगण)
चार चरण , सम तुकांत हो
. __लिखूँ छंद तेरे__
हमारा भरोसा यही है प्रदाता।
प्रभो बाग मेरे तुम्ही हो बहारे।
चली नाव मेरी नदी घाट ढूँढे।
प्रभो बोझ भारी इसे पार तारे।
बनाऊँ सुनाऊँ लिखूँ छंद तेरे।
दया हो प्रभो कष्ट काटो हमारे।
कहानी लिखूँगा तुम्हारी गुमानी।
रचूँ काव्य दोहा सवैया तुम्हारे।
. -----------
हमेशा अनेको कथाएँ सुनाते।
इसी हेतु मैने चटाई बुनी है।
पधारो यहाँ बैठ बातें करेंगे।
दया की दवा प्रेम पाने चुनी है।
धरा भारती मानवी आज चाहे।
मिटाओ सभी कष्ट भारी ठनी है।
हरो द्वेष सारे दुखो की कहानी।
बनादो सुहानी नही जो बनी है।
. -----------
युगों से यही पीर देखी सुनाई।
लिखे लेखनी गीत मेरी कहानी।
कभी तो पढ़ोगे दुखों के दहाने।
खड़ी है यहाँ नाव देखो पुरानी।
विवादी हुआ जीव नेकी गँवाता।
बिना बात भारी हताशा बखानी।
भलाई बुराई सभी रोग भारे ।
सुरक्षा प्रतीक्षा सनेही सुजानी।
. _______
© ~~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
१३. वागीश्वरी सवैया
विधान:--
१२२ × ७ + १२ ( यगण यगण यगण
यगण यगण यगण यगण लघु गुरु)
चार चरण , सम तुकांत हो
. __नाव देखो वृथा__
हमारा भरोसा यही है प्रदाता।
प्रभो बाग मेरे तुम्ही हो सखे।
चली नाव मेरी नदी घाट ढूँढे।
प्रभो बोझ भारी इसे भी रखें।
बनाऊँ सुनाऊँ लिखूँ छंद तेरे।
दया हो प्रभो कष्ट भारी चखे।
कहानी लिखूँगा तुम्हारी गुमानी।
रचूँ काव्य दोहा सवैया लखे।
. -----------
हमेशा अनेको कथाएँ सुनाते।
इसी हेतु मैने चटाई बुनी।
पधारो यहाँ बैठ बातें करेंगे।
दया की दवा प्रेम पाने चुनी।
धरा भारती मानवी आज चाहे।
मिटाओ सभी कष्ट भारी ठनी ।
हरो द्वेष सारे दुखो की कहानी।
बनादो सुहानी नही जो बनी।
. -----------
युगों से यही पीर देखी सुनाई।
लिखे लेखनी गीत मेरी व्यथा।
कभी तो पढ़ोगे दुखों के दहाने।
खड़ी है यहाँ नाव देखो वृथा।
विवादी हुआ जीव नेकी गँवाता।
बिना बात भारी हताशा यथा।
भलाई बुराई सभी रोग भारे ।
सुरक्षा प्रतीक्षा सनेही कथा।
. _______
© ~~~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
१४. सुंदरी/माधवी सवैया
विधान:--
. ११२ × ८ + २
(सगण सगण सगण सगण सगण
सगण सगण सगण + गुरु )
. चार चरण सम तुकांत हो।
. __सुख दानी_
कहते सब कृष्ण भजो मन में
वृषभानु सुता करती मनमानी।
यसुदा कहती सुन कृष्ण भगे
मत आज सुधार रहूँ अभिमानी।
वसुधा जननी वर भाग सुनो
जिन अंक पले प्रभु जी सुख दानी।
लिखता पढता कविता कवि जो
शुभ भाव रखे मन मेंं जिद ठानी।
. ____नभ चंदा__
वन में जन के मन में तन में
रहते बसते हँसते सुत नंदा।
तपसी जन संत रहे तुम को
सब ठौर निहार थके मतिमंदा।
जल में थल में घर में तरु में
हर ओर उजास करे नभ चंदा।
फल में दल में अब भी कल भी
वन बाग पहाड़ मिले मूचुकंदा।
. ________
~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१५. वाम सवैया
विधान:- सात जगण + यगण
१२१ × ७ + १२२,
दो पद समतुकांत,चार चरण का एक छंद
. .........
. __लाजन लाल कपोल__
. ..........
बसंत चले पुरवाइ थमे ,
. तब,भोर सुहावन लागि भली है।
अनाज पके,सरसों सिमटे,
. मन मोर नचे मन चाह अली है।
गुलाब,कनेर गुँथे गजरे,
. रमणी मिलने मनमीत चली है।
दिनेश तजी निज शीतलता,
. मन होलिन मानस प्रीत पली है।
. .........
सुरंग,गुलाल अबीर लिए,
. हुलियार बने सब साथ चले वे।
कन्हाइ बने सिरमौर सभी,
. मन चाह सखी सब गैल मिले वे।
छिपाइ सखी वृष भानु सुता,
. तब पीपल पेड़ विशाल तले वे।
निगाह पड़ी सब की उन पे,
. फिर खूब सुरंग गुलाल मले वे।
. ..........
सनेह सुधारस पान किए,
. सब गोरि कपोल अबीर सने थे।
सखी वृषभानु सुता मिलके,
. तब कान्ह सखा सब संग जने थे।
मचा हुड़दंग अबीर उड़े,
. हुलियार विचित्र चरित्र बने थे।
कहीं तन रंग सने मन में
. कछु लाजन लाल कपोल घने थे।
. ..........
©~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१६. मोद सवैया
विधान :--
चार चरण, समतुकांत
चरणान्त गुरु,
(२११×५) +२२२+११२+२
(भगण×५) + मगण + सगण + गुरु
चारो चरण समतुकांत !
. ...........
. __धरती पर माँ ही ईश बताए__
. .............
शीश झुके इस भू हित में
मिट जाय धरा माँ भारत पे ही।
वीर शहीद धरा जनमें
हित युद्ध किये हैं आरत के ही।
धीर सपूत अनेक हुये
कवि काव्य रचे हैं चाहत में ही।
पीड़ित पूत धरा पर जो
मनुजात वही है आहत नेही ।
. ...........
भाव सुनो यह शब्द सखे
हम हैं सब, माता ईश्वर जाए।
पेट पले सब गोद रहे
अँचरा लगि, माता दूध पिलाए।
मात दुलार सनेह हमें,
वसुधा पर, माँ के कारण आए।
मानस आज प्रणाम करें,
धरती पर, माँ ही ईश बताए।
. .........
पूत सुता ममता समता
करती सम, भारी नेह भलाई।
संतति के हित जीवटता
क्षमता तन, त्यागे गेह कमाई।
आँचल काजल प्यार भरा
शिशु देय पिशाची हाय टलाई।
आज करे पद वंदन माँ
हित पंथ निशानी पूज्य कहाई।
. ..........
पूत सपूत कपूत बने
जग मात कुमाता हो न कभी जो।
आतप शीत अभाव घने,
सह जीवन, भारी भार सभी जो।
संत समान रही तपसी
निज चाह विरागी तान तभी जो।
जीवन अर्पण मात करे
बस पूत कपूती आस निभी जो।
..........
~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१७. मुक्ताहरा सवैया
विधान:- आठ जगण
१२१ × ८
(जगण जगण जगण जगण
जगण जगण जगण जगण)
चार चरण सम तुकांत
. .......
. मानस प्रीत विधान
. ..........
बसंत चले पुरवाइ थमे ,
. तब,भोर सुहावन लागि किसान।
अनाज पके,सरसों सिमटे,
. मन मोर नचे मन चाह वितान।
गुलाब,कनेर गुँथे गजरे,
. रमणी मिलने मनमीत मचान।
दिनेश तजी निज शीतलता,
. मन होलिन मानस प्रीत विधान।
. .........
सुरंग,गुलाल अबीर लिए,
. हुलियार बने सब साथ विभात।
कन्हाइ बने सिरमौर सभी,
. मन चाह सखी सब गैल सुहात।
छिपाइ सखी वृष भानु सुता,
. तब पीपल पेड़ चढे छिप पात।
निगाह पड़ी सब की उन पे,
. तब डाल सुरंग गुलाल हठात।
. ...........
सनेह सुधारस पान किए,
. सब गोरि कपोल अबीर सनेह।
सखी वृषभानु सुता मिलके,
. तब कान्ह सखा सब संग सदेह।
मचा हुड़दंग अबीर उड़े,
. हुलियार विचित्र चरित्र विदेह।
कहीं तन रंग सने मन में
. कछु लाजन लाल कपोलन नेह।
. ..........
©~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१८. लवंगलता सवैया
विधान:- आठ जगण + लघु
१२१ × ८ + १
(जगण जगण जगण जगण
जगण जगण जगण जगण +लघु)
चार चरण सम तुकांत
. .......
. मन चाह नटे कब
. ..........
बसंत चले पुरवाइ थमे ,
. शुभ भोर सुहावन लागि सबै जब।
अनाज पके,सरसों सिमटे,
. मन मोर नचे मन चाह नटे कब।
गुलाब,कनेर गुँथे गजरे,
. रमणी मिलने मनमीत मचे अब।
दिनेश तजी निज शीतलता,
. मन होलिन मानस प्रीत पले तब।
. .........
सुरंग,गुलाल अबीर लिए,
. हुलियार बने सब साथ गुणी जन।
कन्हाइ बने सिरमौर सभी,
. मन चाह सखी सब गैल सुहावन।
छिपाइ सखी वृष भानु सुता,
. तब पीपल पेड़ चढे छिपते तन।
निगाह पड़ी सब की उन पे,
. तब डाल सुरंग गुलाल हठी मन।
. ...........
सनेह सुधारस पान किए,
. सब गोरि कपोल अबीर सनेहन।
सखी वृषभानु सुता मिलके,
. तब कान्ह सखा सब संग सहेजन।
मचा हुड़दंग अबीर उड़े,
. हुलियार विचित्र चरित्र विदेहन।
कहीं तन रंग सने मन में
. कछु लाजन लाल कपोलन नेहन।
. ..........
©~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१९ . सर्वगामी सवैया
विधान :--
२२१ × ७ + २२
(तगण तगण तगण तगण
तगण तगण तगण + गुरु गुरु)
चार चरण समतुकांत
. --------------------
. __सौंधी रुहानी जवानी मिली__
. ---------------
होली मचे फाग गाए घुटे भंग
आओ चलें आज आजाद मेले।
पंछी पिया नाच गाए घुले रंग
साथी नये ढूँढ त्यागें झमेले।
मैं तो हुई आज बेचैन हे श्याम
झूले नये डाल दो आज खेलें।
गाओ प्रिये फाग की राग में गीत
आया गया पर्व कौड़ी न धेले।
...... _______
आसान है यों चले भी कहीं शाम
गाते रहें गीत गीता नवेली।
बागान मे भी बहे गंध की वात
जूही लता फूल गेंदा चमेली।
आवाज देती हवाएँ चले प्रात
धीमी सुहानी नदी भी अकेली
सौंधी रुहानी जवानी मिली मौज
त्योहार माने कहाँ आज ठेली।
. _________
~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
२०. आभार सवैया
विधान:--
२२१ × ८
(तगण तगण तगण तगण
तगण तगण तगण तगण)
चार चरण समतुकांत
. --------------------
. होली
. ---------------
होली मचे फाग गाए घुटे भंग
आओ चलें आज हों संग आजाद।
पंछी पिया नाच गाए घुले रंग
साथी नये ढूँढ त्यागें चले याद।
मैं तो हुई आज बेचैन हे श्याम
झूले नये डाल दो आज के बाद।
गाओ प्रिये फाग की राग में गीत
आया गया पर्व कौड़ी न आबाद।
...... _______
आसान है यों चले भी कहीं शाम
गाते रहें गीत गीता नये ढंग।
बागान मे भी बहे गंध की वात
जूही लता फूल गेंदा रमे भंग।
आवाज देती हवाएँ चले प्रात
धीमी सुहानी नदी में नये रंग।
सौंधी रुहानी जवानी मिली मौज
त्योहार माने कहाँ कौन के संग।
. ______
~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा विज्ञ
२१. गंगोदक सवैया
विधान:--
. २१२ रगण × ८
रगण रगण रगण रगण
रगण रगण रगण रगण
चार चरण समतुकांत हो
. __भारती__
.
भारती की बने शान ऐसे करो,
काम तो नित्य गावें सभी आरती।
आरती ये सखे होय आवाम मे,
वीर की माँ सुने गीत माँ टालती।
टालती पीर कैसे हमारे हैं सभी,
आज तेरे पड़ी चोट जो सालती।
सालती पाक आगे यही राग हो,
बाज़ ये पालती वीर माँ भारती।
. _________
आरती गान भी सैन्य का मान है
ये तिरंगा सदा देश की शान हो।
आइये आप भी नाद ये बोल दें
शीश दानी कही बात का मान हो।
गाइये कृष्ण गीता नये जोश से
पार्थ गाण्डीव से तेज ही बान हो।
एक हो देश ऐसी रहे भावना
भारती मात का नित्य ही ध्यान हो।
. ______
~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
२२. मंदारमाला सवैया
विधान:--
. २ + २१२( रगण ) × ७
गुरु + रगण रगण रगण
रगण रगण रगण रगण
चार चरण समतुकांत हो
. __नित्य ही ध्यान हो__
.
माँ की बने शान ऐसे करो काम
तो नित्य गावें सभी आरती।
ऐसे सखे होय आवाम मे वीर
की माँ सुने गीत जो टालती।
वे वीर कैसे हमारे हैं सभी आज
तेरे पड़ी चोट जो सालती।
हे पाक आगे यही राग हो बाज़
यों पालती वीर माँ भारती।
. _________
ये गान भी सैन्य का मान है ये
तिरंगा सदा देश की शान हो।
लो आप भी नाद ये बोल दें
शीश दानी कही बात का मान हो।
गा कृष्ण गीता नये जोश से
पार्थ गाण्डीव से तेज ही बान हो।
हो भावना देश ऐसा रहे आज
से मात का नित्य ही ध्यान हो।
. ________
✍©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा" विज्ञ
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
पिन ३०३३२६
mob. no. ९७८२९३४४७९
***👀👀👀घनाक्षरी११👀👀👀👀👀********
~~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
. *विविध - घनाक्षरी छंद विधान*
_११ प्रकार की घनाक्षरी छंद संरचना_
१. मनहरण घनाक्षरी
विधान:-- ८, ८, ८, ७ वर्ण
आठ,आठ, आठ,सात वर्ण
संयुक्त वर्ण एक ही माना जाता है।
कुल ३१वर्ण, १६, १५, पर यति हो,( , )
पदांत गुरु(२) अनिवार्य है,
चार पद सम तुकांत हो,
चार पदों का एक छंद कहलाता है।
. *होली*
रूप रंग वेष भूषा,
भिन्न राज्य और भाषा,
देश हित वीर वर,
बोल भिन्न बोलियाँ।
सीमा पर रंग सजे,
युद्ध जैसे शंख बजे,
ढूँढ ढूँढ दुष्ट मारे,
सैनिको की टोलियाँ।
भारतीय जन वीर,
धारते है खूब धीर,
मारते है शत्रुओं को ,
झेलते हैं गोलियाँ।
फाग गीत मय चंग
खेलते हैं सब रंग
देश हित खेलते हैं,
खून से भी होलियाँ।
. 👀👀
✍© बाबू लाल शर्मा °बौहरा" विज्ञ
२. जनहरण घनाक्षरी
विधान:-- ३१, वर्ण प्रति चरण
( ८८८७) १६,१५ पर यति
चार चरण समतुकांत हो।
प्रति चरण ३० वर्ण लघु और
अंतिम वर्ण गुरु हो।
. __प्रभु नटखट__
चल पथ पनघट
निरखत जल घट
गिरधर नटखट
पटकत घट है।
भय भगदड़ तब
घर पथ लगि जब
छिपत रहत अब
गिरधर नट है
वन पथ छिप कर
दधि घट क्षत कर
झट पट चट कर
भग सरपट है।
सर तट तरु चढि
लखत लपक बढ़ि
वसन रखत दृढ़
प्रभु नटखट है।
. ++++++
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
३. जलहरण घनाक्षरी
विधान :-- ३२ वर्ण प्रति चरण
( ८८८८) १६,१६ पर यति
चार चरण समतुकांत
चरणांत लघु गुरु, या लघु लघु
. __नीर बहे__
मेघ घटा जल वर्षा
खेत खेत है सरसा
बाग पेड़ सर हर्षा
रोक जन नीर बहे।
नीर भावि जन शक्ति
उठो धीर मति व्यक्ति
वारि से हो अनुरक्ति
व्यर्थ यह नीर बहे।
जल कुंड बना घर
रख मेड़ बनाकर
कूप बापी बेरे भर
चेत नर नीर बहे।
उठ सब घर वाले
लख छत परनाले
जलहित नल डालें
सोच मत नीर बहे।
. ++++++
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
४. रूप घनाक्षरी
विधान:- ३२ वर्ण (८८८८) प्रतिचरण
१६,१६ वर्ण पर यति
चार चरण समतुकांत
चरणांत गुरु लघु (गाल)
__भारती वंदन__
मात भारती वंदन
माटी तेरी है चंदन,
जन्मे जो रघुनंदन
आँचल में भगवान।
मान देश का रखते
शान तिरंगा रखते,
प्राण देह दे सकते
सपने शुभ अरमान।
लिखते छंद ज्ञान के
देश धरा ईमान के,
सत्ता देश विधान के
गाते जन गुणगान।
अरि को नष्ट करेंगें
सब आतंक मिटेंगे,
रंग सुरंग भरेंगे
बढ़े सदा तव शान।
. +++++
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
५. मदन घनाक्षरी
विधान :- ३२ वर्ण (८८८८) प्रतिचरण
१६,१६ वर्ण पर यति
चार चरण समतुकांत
चलणांत २२ गुरु गुरु
__नीर जरूर बचाएँ__
वर्षा का नीर सहेजें
संदेश सभी को भेजें,
पुनर्भरण कर लो
व्यर्थ न नीर बहाएँ।
पेड़ लगाओ सब ही
मेड़ बनाओ तब ही,
खेत खेत जल कुंडे
घर भी कुंड बनाएँ।
कूप बावड़ी पोखर
भरे नीर वर्षा पर,
हर पथ कुण्ड बना,
बूंद बूंद जल लाएँ।
बाग बगीची घर की
अपनी हो या पर की,
वर्षा जल कुण्ड बना
नीर जरूर बचाएँ।
. +++++
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
६ . डमरू घनाक्षरी
विधान :- ३२ वर्ण(८८८८) प्रतिचरण
१६,१६,वर्ण पर यति
चार चरण समतुकांत
समस्त वर्ण मात्रा विहीन हो
. __हँसत नट__
चल पथ पनघट
खटकत जल घट,
धर पद नटखट
भग पटकत घट।
भय भगदड़ तब
घर पथ लग जब,
कहत रहत अब
अभय हँसत नट।
वन पथ तक कर
छछ घट क्षत कर,
झट पट चट कर
तब भग सरपट।
सर तट तरु चढ
लखत लपक बढ़,
वसन रखत दृढ़
इत उत नटखट।
. ++++++
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
७ . कृपाण घनाक्षरी
विधान : - ३२ वर्ण(८८८८) प्रतिचरण
चार चरण समतुकांत
८,८,८,८ पर यति हो, एवं
चारो यति समतुकांत अनिवार्य
चरणांत गुरु लघु २१ (गाल)
. __वर्षा नीर__
माने जाने भू की पीर,
साथी सारे हैं जो धीर,
गायें पौधे कागा कीर,
रक्षे भैया वर्षा नीर।
ले कुदाली आओ बीर,
चेतो पानी रक्षा गीर,
वर्षा पानी औ समीर,
गो बचालें वर्षा नीर।
ध्यानी मानी हैं बे पीर,
पानी है तो है अमीर,
होली रंगोली अबीर,
रक्षें साथी वर्षा नीर।
बापी टाँके नदी तीर,
राखो तो साफ सुधीर,
दोहे गाए थे कबीर,
आओ रक्षे वर्षा नीर।
. +++++
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
८. विजया घनाक्षरी
विधान :- ३२ वर्ण (८८८८) प्रतिचरण
चार चरण समतुकांत
आंतरिक समान्तता हो
चरणांत नगण १११
__तिरंगा चाह कफन__
भारत माता वंदन
माटी सादर चंदन,
मानस अभिनंदन
चरणों में है नमन।
जन गण का गायन
हर दिन हो सावन,
कण कण है पावन
रहे आजाद वतन।
सुन्दर सुन्दर वन
पौरुष वान बदन,
ईमानी है जन जन
रहे आबाद चमन।
देश की रक्षा का मन
करें आतंक हनन,
समर्पित दैही धन
तिरंगा चाह कफन।
. -----+----
©~~~~~~~~ बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
९ . हरिहरण घनाक्षरी
विधान :-- ३२ वर्ण( ८८८८) प्रतिचरण
चार चरण समतुकांत
आंतरिक समान्तता अपेक्षित
चरणांत लघु लघु ११
. __परिवर्तन__
हे श्याम वर्ण के घन
नर्मद सा हो ये मन,
पत्थर शिव जीवन
वसुधा पर सावन।
सागर जैसा हो धन
विहगों जैसा जीवन,
यमुना सी बंशी धुन
गंगा सा जल पावन।
हे राधा तेरा नर्तन,
मेघों के जैसा गर्जन,
हो युग परिवर्तन
माधव मन भावन।
मीरा के पद गायन,
भारत माता के जन,
पायलियों का वादन,
छंद विज्ञ के गावन,
. -----+-----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
१० . देव घनाक्षरी
विधान:- ३३वर्ण (८८८९) प्रतिचरण
चार चरण समतुकांत
चरणांत नगण१११(पुनरावृत्ति)
(जैसे कदम कदम)
__कदम-कदम__
लड़ें सीमा पर हम,
पातकी जाएगा थम,
कारवाँ चले बढ़ेगा,
चलना कदम-कदम।
पाक पड़ौसी बे दम,
सुधारो उसको तुम,
करना नहीं रहम,
वह तो छदम छदम।
चीन भाई धोखे सम,
फैलता है काला तम,
भारती माता पावन,
झूठ वो सनम सनम।
शत्रु हो कोई आधम,
नष्ट होगा हर बम,
सबक देना ही होगा
तोड़ना वहम वहम।
. ----+----
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
११. सूर घनाक्षरी
विधान:-- ३० वर्ण(८८८६) प्रतिचरण
चार चरण समतुकांत
चरणांत की कोई शर्त नहीं है।
. __जल रक्षण__
मनुज भूल नादानी,
आज समय की मानी,
बचत वर्षा का पानी
सोचो कुण्ड बने।
नही बहा ये अमृत
बचा नीर से प्राकृत,
धरा हेतु है सुकृत
टांके कुण्ड बने।
ताल तलैया बापी
गहराई कब मापी,
रेत खेत तप तापी
कूएँ कुण्ड बनें।
घर हो या दफ्तर हो
ऊँचा हो कमतर हो,
जन मन सभी सुने
पक्के कुण्ड बने।
. -----+------
©~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
✍©
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
Pin ३०३३२६
Mob.no. ९७८२९२४४७९
👀👀👀👀👀👀👀👀
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