मृत्युभोज
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बाबूलालशर्मा"""""""'""""""""""""""""""""""""
. 🌹 *मृत्युभोज*🌹
जीवन भर जो अपनो के हित में,
अपनों के अपनेपन हित चित मे।
कष्ट सहे,दुख भोगे,पीड़ा झेले,
हानि लाभ,ईमान,कपट के योग करे,
जरा,जरापन सार नहीं,पीछे मृत्युभोज करे।💫
बालपने में मात पिता बहुत दुलारे लगते हैं,
उनपर ही निर्भर है वे,खुदा से प्यारे लगते है।
युवा अवस्था आए तब,स्वच्छंदता के पैमाने,
मन की मर्जीराग करेे,मनइच्छा उपयोग करें
जरा,जरापन सार नहीं,पीछे मृत्युभोज करे।💫
सत्य सनातन रीत यही चलि आई है,
स्वारथ की ही प्रीत की रीत निभाई है।
अन उपजाऊ अन उत्पादी मान,बुजुर्गों को,
कौन सँभाले,ये तो बैठे ठाले बूढ़े मौज करे,
जरा,जरापन सार नहीं,पीछे मृत्यू भोज करे।💫
यही कुरीति दीर्घकाल से चलती है,
कल,जो युवा पीढ़ी थी,वो अब मरती है।
वृद्धाश्रम की शरण चले वे नर नाहर,
जिनके बल,वैभव के पहले थे उद्घोष करे,
जरा,जरापन सार नहीं,पीछे मृत्युभोज करे।💫
कुल गौरव की रीत निभानी है,
सिर पर ताज पाग बंधवानी है।
मान बड़प्पन,हक,हकूक उन पुरखों का,
जो शायद अध-भूखे-प्यासे बे-मौत मरे,
जरा,जरापन सार नहीं,पीछे मृत्युभोज करे।💫
एक और रिवाज पहले से चलता आता है,
बड़भागी तो जीवित मृत्युभोज जिमाता है।
वर्तमान में रूप स्वरूप निखारा हमने ही,
सेवा से निवृत्ति होते ही वह ( .....)भोज करे,
जरा,जरापन सार नहीं,पीछे मृत्यु भोज करे।💫
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✍✍""©
बाबू लाल शर्मा, बौहरा
सिकंदरा,दौसा,राज.
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