बरस जाए,खुशहाली आए

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"""""""""''''"''''''बाबूलालशर्मा
बरस जाए,
*खुशहाली आए*
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बरस बरस बरसात बरस,
यह धरा बने जिससे सरस।
दादुर,चातक,मोर,पपीहे,व,
फसल खेत हरियाली गाए,
बरस जाए,खुशहाली आए।।💧

धरती तपती नदियाँ सूखी,
सरवर,ताल पोखरी रूखी।
वन्य जीव,पंछी हैं व्याकुल,
तुम बिन कैसे थाल सजाए,
बरस जाए,खुशहाली आए।।💧

कृषक ताकता पशु धन हारे,
भूखी,भूख अब तुम्हे पुकारे,
घर भी गिरवी,कर्ज है बाकी,
अबकी खेत नहीं बिक जाए,
बरस जाए,खुशहाली आए।।💧

बिटिया की करनी है शादी,
मृत्यु भोज हित बैठी दादी।
घर के खर्च व खेत के हर्जे,
भूखा किसान,फाँसी खाए,
बरस जाए,खुशहाली आए।।💧

कुएँ बीत गये बोर रीत गये,
जेवर गए,पर्व गए,गीत गए।
बेटे के ब्याह कोई बात नहीं,
गुरबत घर लक्ष्मी नहीं आए,
बरस जाए,खुशहाली आए।।💧

राज भी रूठा,और राम भी,
जल,वर्षा बिन रुके काम भी।
गौ,किसान,दुर्दिन वश जीवन,
जल,बरसा भाग्य बदल जाए,
बरस जाए,खुशहाली आए।।💧

सागर में जल नित बढ़ता है,
भूमि नीर प्रति दिन घटता है।
समवर्षा का सूत्र बनाले वर्षा,
सब की मिट बदहाली जाए,
बरस जाए,खुशहाली आए।।💧

कहीं बाढ़ से नदी उफनती,
कहीं धरा बिन पानी तपती।
कहीं डूबते जल मे धन जन,
ये,बूंद-बूंद जग को भरमाए,
बरस जाए,खुशहाली आए।।💧

हम भी निज कर्तव्य निभाएं,
आप भी आए,हम भी आएं,
मिलजुल कर हम पेड़़ लगाएं,
बरसात संतुलन तब हो जाए,
बरस जाए,खुशहाली आए।।💧

जल का सदुपयोग करे हम,
जलस्रोतो का मान करे हम।
धरा,प्रकृति,जल,तरु रक्षण
फिर सारे साज-सँवर जाए,
बरस,जाए खुशहाली आए।।💧

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सादर,✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा,राज.
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