धर्मपत्नि
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बाबू लाल शर्मा
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. 🌹 *धर्मपत्नि* 🌹
( आधी हकीकत 🌹/🌹आधा फसाना )
यह हिन्दुस्तान है भैया,यहाँ रिश्ते मचलते है।
त्याग रिश्तों में होता है,रिश्ते भीे छलकते हैं।
बहुत मजबूत हैं रिश्ते,मगर मजबूर भी देखे।
कभी मिल जान देते थे, गमों से चूर भी देखे।
'करें सम्मान नारी का"करे दुनिया ये अय्यारी।
ठगी जाती हमेशा से, यूँ ही संसार भर नारी।
धर्मपत्नि,गृहिणी और भी,अर्धांगिनी कह कर
ठगी नारी से करते है,बराबर हक की कहकर
मगर जब तलाक होते है,
या विवाह-विच्छेद करते है।
नहीं फिर वही हक,नारी का,
जिस हक की बात करते हैं।
हक की बात तो छोड़ो,
नित अपमान सहती है।
धर्मपत्नि जिसे कहते,
फिर फाके ही करती है।
नारी की ठगाई को,मधुर तम नाम यह पाला
जुबां मीठी से पत्नि को,धर्मपत्नि कह डाला
पड़ा नहीं धर्म से पाला, वे ही धर्मात्मा होते।
गमों के बीज की खेती,दिलों के बीच हैें बोते।
सफर में यूँ ही एक साथी ने,
मुझ से परिचय जाना था।
कहा पत्नि को धर्मपत्नि,
क्योकि सादर बताना था।
पत्नि के सामने मैने,सफर में 'कहर पाला" था
पत्नि के भाई को मैने,कहा जब धर्मशाला था
क्या क्या बीत गई,मुझ पर,ये सोच लो यारों।
उसी दिन से "अलविदा"जी,वो कह गई पारो।
तभी से डर मुझे लगता, है इस नाम से भाई।
समझ मेरे नहीं आया,ये,धर्मपत्नी, धर्मभाई।
सुने,हैं,धर्मपिता,धर्ममाता,धर्मबहिने,धर्मभाई
धर्मपत्नि की यह उपमा कहो,कहाँ से ?आई
पत्नी का धर्मपति नहीं मैं,
मगर हूँ भाग्यशाली।
न धर्मपत्नी के संकट है,
धर्मशाला न धर्मशाली।
नहीं मानता बंधु मै ये,धर्मपत्नि की उपमा को
मेरे घर की ये गृहिणी है,संभालूंगा सुषमा को
मानो तो मेरी मानो मगर, यह बात नहीं मानो
प्रिया,अर्धांगिनी,पत्नि है,धर्मपत्नि नही जानो
🌹🌹
✍✍©
बाबू लाल शर्मा"बौहरा"
सिकन्दरा,दौसा (राज.)
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