मन...

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"""""""""""""बाबू लाल शर्मा
🌹🌹 *मन* 🌹🌹

मानव तन में मन होता है,
        जागृत मन चेतन होता है,
अर्द्धचेतना मन सपनों मे,
         शेष बचे अवचेतन जाने,
मन की गति मन ही पहचाने...💧

मन के भिन्न भिन्न भागों में,
         इड़,इगो और सुपर इगो में।
मस्तिष्क का प्रकार्य मन है,
         मन ही भटके मन की माने,
मन की गति मन ही पहचाने...💧

मन करता मन की ही बातें,
        जागत सोवत सपने व रातें।
मनचाहे दुतकार किसी का,
          मन,ही रीत प्रीत सनमाने,
मन की गति मन ही पहचाने...💧

मन चाहे मेले जन मन को,
           मेले में एकाकी पन को।
कभी चाहता सभी कामना,
            पाना चाहे खोना जाने,
मन की गति मन ही पहचाने...💧

मन चाहे मैं गगन उड़ूंगा,
        सब तारो संग बात करूंगा।
स्वर्ग नर्क सब देखभाल कर,
            नये नये इतिहास रचाने,
मन की गति मन ही पहचाने...💧

सागर में मछली बन तरना,
         मुक्त गगन पंछी सा उड़ना।
पर्वत पर्वत चढ़ता जाऊं,
          जीना मरना मन अनुमाने,
मन की गति मन ही पहचाने...💧

मन ही सोचे जाति पंथ से,
           देश धरा व धर्म ग्रंथ से,
बैर बांधकर लड़ना मरना,
         कभी एकता के अफसाने,
मन की गति मन ही पहचाने...💧

मन की संगति मन ही जानें,
        मन की माने,कुछ नहीं मानेंं।
सच्चे मन से जगत कल्पना,
          अपराधी मन क्योंकर माने,
मन की गति मन ही पहचाने...💧

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✍©
बाबू लाल शर्मा"बौहरा"
सिकंदरा,दौसा,(राज.)
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