जुस्तजूःअभिलाषा

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""""""""""""""""""""बाबूलालशर्मा
*जुस्तजू :अभिलाषा*
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माँ मुझको दे विदा तिलक,
अब,सीमाओं पर जाना है।
आतंकी और शत्रु वतन के,
फिर गद्दारी वंश मिटाना है।

जन्म जुस्तजू तेरे आँचल मे,
जगती अभिलाषा सीमा पर।
जब  तक श्वाँस चलेगी ,मेरी,
मै,डटा रहूं निज सीमा  पर।

वैज्ञानिक बनकर न जाऊं,
चन्द्र ,ग्रहों की  खोजों पर।
नहीं विमान  उड़ाना  चाहूं,
सागर पर,नभ  मौजों पर।

सौंप-समर्पण दे माँ मुझको,
भारत   माँ   के चरणों  में।
इच्छा है रजकण बनजाऊं,
सेना  के    उपकरणों    में।

नहीं जुस्तजू वीर चक्र या,
परम वीर   सम्मान  मिले ।
चाह नहीं है यह भी मुझको
कुछ  ऊँचे  अरमान मिले ।

नहीं चाहता पद् वृद्धि हो,
ऊँचा अफसर बन जाना।
सिंहासन,सत्ताधीशों  या,
राज की नजरें चढ़ जाना।

ऊँचे ऊँचे पदक जीतकर,
सत्ता  में  पद  हथियाना।
आरामी के,साज,सजाना
और प्रमादी  हो   जाना।

चाह नहीं है स्वर्ण सींचकर
मै   धनपति माना जाऊं।
या फिर मै धरती को  घेरूं,
और महिपति  कहलाऊं।

अभिलाषा है नहीं मेरी ये,
संतानो की  बगिया झूमूं।
समृद्धि  गुण गौरव  गाते
देश, विदेशों , तीरथ घूमूं।

मेरी तो  बस  चाह एक,यह
*वरण देश के हित मे हो।*
मै तो माँ  सैनिक हूँ ,  मेरा,
*मरण देश के हित में हो।*

दुश्मन  को  मैं  मार  भगाऊँ,
देश  का  गौरव  गान  करूँ।
*माँ* बलिवेदी  साज सजाऊँ,
निज मातृभूमि सम्मान करूँ।

देश  वाशिन्दे चैन  से  सोएँ,
जन गण मन  के  गान  करें।
खूब विकास करे भारत का,
सब मिल जन कल्याण करें।

मेरे वतन का अमन चुरा ले,
दुश्मन की यह बिसात नहीं।
माँ की चूनर को हाथ लगादे,
दुश्मन में  यह औकात नहीं।

जिन्दा रहूँ माँ तेरे खातिर,
मरूँ सु-राष्ट्र की आशा में।
अमर तिरंगा चमन रहे माँ,
जन्म,मरण अभिलाषा में।

लिपट तिरंगे मे घर आऊं,
यह भी  मेरी  चाह   नहीं।
बोटी,कतरा-कतरा बिखरे,
इसकी भी  परवाह  नहीं।

इच्छा है रजकण बनजाऊं,
सेना के    उपकरणों    में।
मैं तो सैनिक हूँ मिट,जाऊं
*भारत माँ  के चरणों में।*

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सादर,🙏
बाबू लाल शर्मा,'बौहरा" सिकन्दरा,
सिकंदरा,दौसा,राज.
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