आखा तीज ः बाल विवाह
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~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
बाल विवाह
*शादी*
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ढूंढाड़ी क्षेत्रीय परम्परा
व भाषा मे बाल विवाह
न करने की प्रेरणा देने
वाली रचना
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आइ रे आइ रे आखा तीज,
लाडू पुड़ी मिठाई..... चीज।
टाबर ब्याह का बुवगा बीज,
आइ रे आइ रे.आखा तीज।
बापू ल्यायो नई कमीज,
चढ़ बा बरबादी दहलीज।
कैवे बाप आपणै टाबर नै,
बेटा चाल ढोक बा मंदर मै।
जीमण टैन्ट व्यवस्था भारी,
बेटा फेरा खाबा की छै बारी,
आई रे आई रे आखा तीज,
लाडू पुड़ी मिठाई.....चीज।
टाबर उठ कर मुँह खोल्यो,
अपणै बापू सू यूँ बोल्यो।
बापू भूख नहीं अब मोकूँ,
थोड़ो पानी पिलवा द् यो।
अर फेरा थे .. ही खाल्यो,
मोकू..... सो.. ले बा द् यो।
मोकू..... आवै गहरी नींद,
कोनी बणूँ मै ..।अब बींद।
टाबर .जाण्यो आखातीज,
बापू .।ल्यायो खाबा चीज,
वो उठ कर मूंडा नै.. धोयो,
पूरो पतो पड्यो तो बोल्यो।
बापू म्हानै पढबा लिखबा दै,
चोखो ...मिनख ..बण बा दै।
थारा किंया हिया की फूटी,
बचपन क्यूँ बांधै बापू खूंटी।
मोकूँ आई नहीं हाल तमीज,
आई रे आई रे आखा तीज।
देख ऊ कान्या.... मान्या नै,
देख मगन्या अर छगन्या नै।
वै आप रै करमा नै रोवै,
जमारो बिरथा जनम खोवै।
मोपै थोड़ो बापू सो पसीज,
आई रे आई रे आखा तीज।
टाबर पणै ब्याह की रीत,
बापू मत पाल़ै ऐड़ी प्रीत।
करदै पढबा की तजबीज,
आइ रे आइ रे आखातीज।
फेरूँ आवैगी आखा तीज,
खावाँ लाडू बरफी ..चीज।
✍✍✍
©
सादर,🙏🏻
बाबू लाल शर्मा,"बौहरा"
सिकन्दरा,303326
दौसा,राजस्थान,9782924479
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