ईश वंदना
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"""""""""""""""""""बाबूलालशर्मा
. ~ *हरिगीतिका-छंद* ~
11212,11212,11212,11212
. ~ *ईश वंदन* ~
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हर श्वाँस में मन आस की,
निभती रही जग में प्रभो।
मन में प्रभा बन आप की,
विसवास से मन में विभो।
तन आपके चरणों पड़ा,
नित चाहता पद वंदना।
मन की कथा कुछ भिन्न है,
मम कामना तव दर्शना।
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हर मौज में व बहार में,
प्रभु, बाग में रखवार है।
हम से न सेवन बंदगी,
हरि, नाम खेवनहार है।
हमको करो मत दूर हे,
हरि ,आप तारनहार हैं।
दुख शोक रोग वियोग को,
हर,आप पालनहार है।
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हम दीन हीन अनाथ हैं,
तुम पार तो हमको करो।
नव आस त्राण विधान दें,
वह मान तो सबको सरो।
जन दास *लाल* तिहार है,
अवमानना हरि क्यो़ं करो।
तन तार दे , मन मार दे,
सबके गुमान प्रभो हरो।
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इस लोक में तम नाश हो,
हरि रोशनी जग दीजिए।
तव लोक में मम वास हो,
मम आस पूरण कीजिए।
भव तार दे मन आस हो
हरि काज ये मन लीजिए।
हरि "लाल" ये तन त्रास मम,
दुख पीर पय सम पीजिए।
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✍🙏©
RJ-1100/2018
बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकन्दरा, 303326
दौसा,राजस्थान 9782924479
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हरिगीतिका 11212
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