नुकता पच्चीसी
🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚दोहा~छंद~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
. *नुकता पच्चीसी*
. (मृत्युभोज)
1....
जीते जी माँ बाप री, करे न सेवा यत्न।
मरने पर बहु भोज हो,यहाँ कैसा प्रयत्न।।
2.....
मात पिता री साध शिशु,पाले विविध प्रकार।
खून पसीनों श्रम सभी ,संतति ऊपरि वार।।
3......
नींद चैन आराम भी, शौक मौज दे त्याग।
अपने सुत नै चाहतो, मनुज सवायो भाग।।
4.....
पढ़ा लिखा तैयार करि,ब्याह बरात सजाय।
अपणै चैन आराम की, पाबंदी ले आय।।
5.....
संतति. के .धंधे बढ़ै , देवै रकम लगाय।
तनमनधन सब क्षीण हो,ठनठनपाल कहाय।
6......
वै ही पूत कपूत हो, करै न सेवा धर्म।
मात पिता बिलखै फिरै,जान सकै नहि मर्म।।
7......
कई तो वृद्धाश्रम को, जाय देख करतूत।
उभय वार्ता करत रहै, जायो पूत कपूत।।
8......
जीवन भर पग पीटताँ,मात पिता रह जाय।
बहू बेटा मजा करै , मात पिता तड़पाय।।
9......
मरती बर वै साधता, बड़ भागी जु कहाय।
अचल सम्पदा बाप की, खुद रै नाय कराय।।
10.....
घणा घणा मरती बगत,नहीं पहुंचे शमशान।
लावारिस कूँ दाग दे, सतकारी अनजान।।
11.....
फेरूँ सभी कपूत भी ,नौ नौ आँसू रोय।
भारी नुकतो वै करै, कमी न काड़ै कोय।।
12.....
नुकता मृत्यू भोज मैं, करै सात पकवान।
कितो हेत माँ बाप सूँ, बणै बड़ाई मान।।
13....
जीमण हाला जीमताँ,करै भौत विधि मान।
पाग बंधावै पूत कै, होय सपूत सुजान।।
14....
पूँजीपति नुकता करै, सम्पति चाहत काज।
निर्धन लीक फकीर व्है, लुटै आप ही आज।।
15.....
मध्यम वर्गी पिस रहै, जीम जिमावण रीत।
दोनी ओराँ जीमता, जिमा निभावै प्रीत।।
16.....
भूख काटताँ मर गया,मात पिता सुत हेतु।
भूखाँ श्रम पालै जिनै,जरा पणै सुख सेतु।।
17....
दो दो कमरा बण सकै,मात पिता की याद।
स्कूलाँ अस्पताल करै, थानै तो फरियाद।।
18.....
बाल़क पढ़, रोगाँ हरै, नाम होय माँ बाप।
जीमण अदल बदल करै,बेमतलब रा पाप।।
19....
पेट भरै ,मर जीवताँ ,जीमण भोग लगाय।
साँप जीव ज्यूँ आत्मा, लीख पीटतो जाय।।
20...
जीवत ही माँ बाप की , कर सेवा प्रसन्न।
मरै लैर क्यूं, ढोलताँ, दूध दही अरु अन्न।।
21....
बुरी रीत मानै सभी, मरण भोज नै आज।
पण कोई नाटै नहीं, अपणै अपणै काज।।
22....
सरकारी बंदिश लगै, सामाजिक प्रतिबंध।
नुकता मृत्यू भोज रा , बंद करै अनुबंध।।
23...
मृत्युभोज अभिशाप है,सुनो साथियों बात।
शरमा बाबू लाल कहि,जागो नवल प्रभात।।
24...
मृत शरीर नै दान दै, सुधरै अंग जु भंग।
आया जैड़ा जावणा, सबल़ा नंग धडंग।।
25....
करो सुकर्म सुभाँति रा,सोच समझ हर बार।
जीवन जीवण रै लियाँ , परलोकाँन सुधार।।
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✍🙏©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
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