भ्रष्टाचार
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~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
. 🌹 *भ्रष्टाचार* 🌹
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व्याप रहा संसार में, सब जन भ्रष्टाचार।
ढूँढे से मिलता नहीं,अब जग सदआचार।।
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गली हाट बाजार में,दफ्तर अरु चपरास।
भ्रष्ट सभी जन हो रहे, रिश्वत तेरी आस।।
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अधिकारी नेता बड़े, डाक्टर साहूकार।
पटवारी राजस्व तो ,हैं सबके सरदार।।
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मंत्री अरु सांसद बने, भ्रष्टाचारी जीव।
पद से ये हट जाए तो, हो जाऐं निर्जीव।।
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रिश्वत तो सुविधा बनी, कहते यही दलाल।
लुटते दीन गरीब ही, अफसर मालामाल।।
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राम भरोसे चल रहा जिनका कारोबार।
वे ही बस धनवान है,बाकी हम बेजार।।
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ईश दूत वे बन रहे, कथा राम की बाँच।
वे सब साधु धींगरे, नेकु न आवै आँच।।
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दैव रिंझाने को चढ़े, सवामणी परसाद।
जितना ज्यादा जो चढ़े,वो पहले फरियाद।।
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रिश्वत से प्रभु नहि बचे,का बचिए इंसान।
जितनी मोटी रकम दे, वे सच्चे ईमान।।
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हम तुम कहा बलाय जो,रिश्वत देय न लेय।
इससे जो बचना चहै, गरल उसी का पेय।।
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सदाचार सब मानते ,अब तो भ्रष्टाचार।
मानो या न मानिए ,जीवन का आधार।।
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बड़े बड़े नेता हुए, घोटालों के शोेर।
छोटे कर्मी क्या करें,बेचारे चमचोर।।
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रक्षक ही भक्षक बने, भारत में सिरमौर।
वा रे भ्रष्टाचार भइ ,तेरा ओर न छोर।।
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✍🙏©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकंदरा, दौसा (राज.)
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