हत भागी

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~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
.         *कुण्डलिया-छंद*
.               *हत भागी*
.                 🌼 *1* 🌼
वरषा ने  है रोक दी, सबकी  ही  रफ्तार।
काले  हो  गये बाजरे, कड़ब हुई  बेकार।
कड़ब हुई  बेकार, फसल है  पानी पानी।
कैसी होती पीर, सुनो यह जुबाँ किसानी।
कहे लाल कविराय,पीर में भी मन हरषा।
भली  करेंगे  राम, बरसले तू अब  वरषा।
.                    🌼 *2* 🌼
बे  मौसम  का  बरसना, या  सूखे  की  मार।
तेरे   आगे   रामजी,  हुये   कृषक    लाचार।
हुये  कृषक  लाचार, डूब आशा  दर  आशा।
खेती  उजड़े  साख, छाय  है   घोर  निराशा।
कहे लाल कविराय,विनय करजोरि करें हम।
वर्षा  हो  या  ताप, शीत मत  हो  बे  मौसम।
.                      🌼 *3* 🌼
होता  है हर साल ही ,कुदरत  का यह  वार।
राम   रखें  तो  राज  का, सहना  अत्याचार।
सहना   अत्याचार,  नाम  अन्न  दाता  धारी।
धरती पुत्र  किसान, सदा ही  किस्मत हारी।
कहे लाल कविराय,फसल भी सस्ती खोता।
जय  किसान  बेहाल, सदा हत भागी होता।
.                 🌼 *4* 🌼
कर्जे   साहूकार   के , बैंको  के  भी  ब्याज।
भरे  फीस  फिर पुत्र की, और  घरेलू काज।
और   घरेलू   काज , बेटियाँ    शादी  वाली।
मात  पिता  की  दवा , करायें  जेबें   खाली।
कहे  लाल  कविराय , राज  के   भरने  हर्जे।
जय किसान बस घोष,भूख अरु बढ़ते कर्जे।
.                 🌼 *5* 🌼
खर्चे खाद व बीज के, और  मशीनें  जोत।
फसल साख में सदा ही, लागत खर्चे होत।
लागत खर्चे होत,फसल अरु पशुधन हारे।
काटे  भूख  किसान, रहे गुरबत  के  मारे।
कहे लाल कविराय, शेष  बिजली के पर्चे।
कैसे  भरे  किसान, रात  दिन  होते  खर्चे।
.                   🌼🌴🌼
✍सादर©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकंदरा, दौसा,(राज.)
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