दर्पण
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~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
. 🌹 *दर्पण* 🌹
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दर्पण तू साँची कहइ , झूठइ जग सब लोग।
किरच किरच हो जात है,साँच यही संजोग।।
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साँच सहन नहि कर सकै,जग पाखंडी धूर्त।
दर्पण दोष करार दइ , लखइ न अपणो मूर्त।।
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दशरथ देख्यो आइनो, रामहि राज विचारि।
रामलषनसिय वन गये,वै परलोक सिधारि।।
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दर्पण थारी साँच सूँ , खिलजी बण शैतान।
चित्तौड़़ाँ बरबाद कर ,पदमनियाँ बलिदान।।
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दर्पण सत साहित्य है,सब नै साँच बताय।
भावि पीढ़ी चेतजा, सामी आँच जताय।।
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दर्पण तुलसीदास नै, मुकुरि दियो बतलाय।
रामचरित मानस कथा , सबनै दई सुनाय।।
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सत सैया के दोहरे , दरपण जइसे होय।
साँच प्रीत भगवान की,नर मत आपा खोय।।
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दर्पण दास कबीर का, हंसा नीर व क्षीर।
झीनी चादर में रखी , दरपण तेरी पीर।।
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मीरा ने संसार को , दरपण दिया दिखाय।
राज घराना त्याग के, बसि वृन्दावन जाय।।
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आज काल के आइने , झूठ दिखावें मान।
लोकतंत्र बदनाम कर, खुद चावै अरमान।।
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मुगल काल के आइने,आत्मकथा कहलाय।
रंग महल में जड़ गये, शीश महल बतलाय।।
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बचते रहिजो आइनै , साँचइ खोट कहाव।
नाही तो नर सोच लै,किरच किरच हो जाव।।
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दर्पण लख रींझो मती, रंग व रूप निहारि।
आतम दर्पण देखिए,मष्तक सोच विचारि।।
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दर्पण मती डराय तू,भोले बूढ़े लोग।
तू भी बूढ़ा होयगा,टूक टूक संजोग।।
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✍🙏©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकंदरा, दौसा,राजस्थान
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