कलम नहीं रुकने वाली

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~~~~~~बाबूलालशर्मा
✍ *कलम नहीं*
.               *रुकने वाली*✍
.              ✍✍
हाथ भले ही टूटे मेरा,
     कलम नहीं टूटने दूँगा।
श्वाँस भले ही टूटे मेरा,
     मनुता नहीं छूटने दूँगा।
जब तक न जागे धरती पर,
     यह जनता भोली भाली।
हाथ भले दबाले जालिम,
     कलम नहीं रुकने वाली।
✍✍✍
तू क्या रोके अत्याचारी,
  असि से तेज कलम है काली।
गोली या तलवार न रोके,
     यह तो है जूता ही खाली।
कलम की शक्ति तू क्या जाने।
     यह कितनी है दमवाली।
हाथ भले दबाले जालिम,
     कलम नहीं रुकने वाली।
✍✍✍
विश्व विजेता महा सिकंदर,
     जब इस भू पर आया था।
तब भी मेरी प्रिय कलम ने,
     पोरस का गुण गाया था।
चन्द्रगुप्त,चाणक्य के जिम्मे,
     कलम ने दी थी रखवाली,
हाथ भले दबाले जालिम,
     कलम नहीं रुकने वाली।
✍✍✍
सच को सच लिखे लेखनी,
     देश प्रेम संग प्रीत लिखें है।
अमन के दुश्मन,गद्दारों को,
     कब इसने मन मीत लिखे हैं।
कनिष्क,अशोक,हर्ष,गुप्तों की,
     स्वर्णिम गाथा लिखने वाली,
हाथ भले दबाले जालिम,
      कलम नहीं रुकने वाली।
✍✍✍
बुद्ध और महावीर बने थे,
     इसी कलम से बलशाली।
जिनके चरणों मे होती थी,
     सम्राटों की थैली खाली।
गजनी और गौरी की इसने,
     लिखदी है करतूतें काली।
हाथ भले दबाले जालिम,
     कलम नहीं रुकने वाली।
✍✍✍
खिलजी और मुगलों का भी,
     सब काला इतिहास लिखा।
मीरा,सूर,तुलसी,कबीर ने,
      साहित्यिक प्रभास लिखा।
तलवारों के आतंको मे भी,
     मेवाड़ी गाथा लिख डाली।
हाथ भले दबाले जालिम,
     कलम नहीं रुकने वाली।
✍✍✍
डूबे न सूर्य जिनके शासन,
     उन्हे लुटेरे हमने लिखा।
झाँसी रानी,ताँत्या टोपे,
     मंगलपांडे सेनाने लिखा।
कलम व बलबूते हिम्मत के,
     धरा आजादी लिख डाली।
हाथ भले दबाले जालिम,
     कलम नहीं रुकने वाली।
✍✍✍
बोष सुभाष,चन्द्रशेखर व,
     भगत सिंह इकबाल लिखे।
देश प्रेम के महानायक जो,
     लाल बाल और पाल लिखे।
खतम फिरंगी शासन करने,
    आजादी अलख जगा डाली।
हाथ भले दबाले जालिम,
     कलम नहीं रुकने वाली।
✍✍✍
इतिहास जगत का पढ़ लेना,
     पढ़कर खूब समझ लेना।
इतिहास लिखे है यही कलम,
  तू कलम की शक्ति पढ़ लेना।
यही कलम है मानवमन में,
     क्रांति बीज को बोने वाली।
हाथ भले दबाले जालिम,
      कलम नहीं रुकने वाली।
✍✍✍
एक हाथ ही टूटेगा यह,
      कितने हाथ और टूटेंगें।
सहस्रबाहु बनकर सेनानी,
  घर घर कलमकार निपजेंगें।
एक हाथ मे असि उठाकर
     दूजे लड़ेे कलम मतवाली।
हाथ भले दबाले जालिम,
      कलम नहीं रुकने वाली।
✍✍✍
इसी कलम की ताकत से,
      कितने ही राज बदल डाले।
इक जूते तेरी क्या है हस्ती
     हम तख्तोताज बदल डालें।
तू रखे हाथ पर पग जूता,
     ये सूरते विश्व बदल डाली।
हाथ भले दबाले जालिम,
     कलम नहीं रुकने वाली।
✍✍✍
तू आज पैर हाथ पे रख दे,
      कुछ पल ही मौन बसेरा है।
है अंत शीघ्र अन्यायी का
     हर युग मे कलम सवेरा है।
जल्दी ही कलम लिखेगी ,
     तेरी अन्यायी सूरत काली।
हाथ भले दबाले जालिम,
     कलम नहीं रुकने वाली।
✍✍✍
यह सत्ता और लेखनी का,
     टकराव सदा चलता आया।
हम मानवता की बात करें,
     तुमको सत्ता का मद भाया।
सत्ता की शक्ति के आगे ये,
   कविकलम नहीं झुकने वाली।
हाथ भले दबाले जालिम,
      कलम नहीं रुकने वाली।
✍✍✍
मेरी सदा लिखे लेखनी,
      देशप्रेम के ज्वाला जौहर।
तू तो सत्ता पा जनता से,
      बन बैठे सत्ता का शौहर।
इसीलिए लेखनी मेरी ने,
     देख बगावत आदत डाली।
हाथ भले दबाले जालिम,
      कलम नहीं रुकने वाली।
✍✍✍
अमन लिखूँगा,वतन लिखूँगा,
     मनुजाती हर कर्म लिखूँगा।
मानव मन की पीर उजागर,
     प्रीत प्रेम और धर्म लिखूँगा।
मन की सारी बात लिखे बिन,
     कवि श्वाँस नहीं थमने वाली।
हाथ भले दबाले जालिम,
      कलम नहीं रुकने वाली।
.............✍✍✍
सादर,©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकंदरा 303326
दौसा,राजस्थान 9782924479
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