सर्दी

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~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
.          💥 *कुण्डलिया छंद* 💥
.                  🌹 *सर्दी* 🌹
.             🏉🏉 *1* 🏉🏉
मौसम सर्दी का हुआ, ठिठुरन  लागे पैर।
बूढ़े  और  गरीब  से, रखती   सर्दी  बैर।
रखती  सर्दी  बैर, दोउ  को खूब सताती।
जो होते कमजोर,उन्हे ये आँख दिखाती।
कहे  लाल कविराय ,होय ये ऋतु  बेदर्दी।
चाहे वृद्ध गरीब, आय  क्यों मौसम सर्दी।
.             🏉🏉 *2* 🏉🏉
गजक पकौड़े रेवड़ी,मूँगफलीअरु चाय।
ऊनी कपड़े पास हो, सर्दी मन को भाय।
सर्दी मन को  भाय, रजाई कम्बल  होवे।
ऐसी  बंद  मकान, लगा  के हीटर  सोवे।
कँपे  गरीबी हाड़, लगे  यों शीत  हथौड़े।
रोटी नहीं नसीब, कहाँ है गजक पकौड़े।
.             🏉🏉 *3* 🏉🏉
ढोर  मवेशी  काँपते, कूकर बिल्ली मोर।
बेघर, बूढ़े  दीन  जन, घिरे  कोहरे  भोर।
घिरे  कोहरे  भोर, रेल बस टकरा जाती।
दिन में  रहे अँधेर, गरीबी बस  घबराती।
सभी  जीव बेहाल, निर्दयी सर्द  कलेशी।
जिनके नहीं मकान,मरे जन ढोर मवेशी।
.             🏉🏉 *4* 🏉🏉
युवा धनी की मौज है,क्या करियेगा शीत।
मेवा  लड्डू  खाय  ले, मिले  रजाई  मीत।
मिले रजाई  मीत, गर्म कपड़े  सिल जाते।
मिले रोज पकवान ,बदन को खूब पकाते।
कहे लाल कविराय,खाय गाजर के हलुवा।
शीत स्वयं कँप जाय ,मना लेते मौज युवा।
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✍🙏"©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकदरा,दौसा,राजस्थान
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