कुण्डलिया छंद विधान
. 🌼 *कुण्डलिया छंद विधान* 🌼
. ( प्राथमिक जानकारी)
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सुन्दर दोहा लीजिए, सुन्दर भाव बनाय।
तेरह ग्यारह मातरा, यथा योग्य लगाय।
यथायोग्य लगाय,चरण अंतिम दोहे का।
रोला छन्द बनाय,चरण पहला रोले का।
पहला दोहा शब्द, अंत रोले के सुन्दर।
भरें भाव भरपूर,बने कुण्डलिया सुन्दर।
. .....बाबू लाल शर्मा
*प्रथम दो पंक्ति दोहा* (13,11 )
दोहे के प्रथम व तीसरे चरण में 13,13 मात्राएँ अंत में २१२ या१११या ११२
दोहे के दूसरे व चौथे चरण में 11,11मात्राएं व अन्त में तुकान्त में एक गुरु एक लघु।
चार चरण रोला के
24 मात्रा प्रत्येक में
11,13
यति 11 पर
दोहे का अंतिम चरण रोला प्रथम बनाय।
शब्द दोहे का ले प्रथम, रोला अंत बनाय।।
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अर्थात....
पहला दोहा,
फिर पहले दोहे के अंतिम चरण को लेते हुए रोला(अंत में गुरू गुरू)
फिर रोला।।
प्रथम व अंतिम शब्द समान हो।
अर्थात जहाँ से शुरू वहीं से समापन।
*रोला*:-11,13 मात्रा से लिखा गया छंद:-
11 मात्रिक प्रथम व तृतीय चरण (विषम चरण) का अंत दीर्घ, लघु (२ १) से हो
13 मात्रिक द्वितीय व चतुर्थ चरण (सम चरण) का अंत २ २ या १ १ २ या २ १ १ से हो।
.............................बाबूलालशर्मा
*उदाहरण*- - -
. *करवा चौथ*
. कुण्डलिया छंद
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चौथ व्रती बन पूजती, चंदा चौथ चकोर।
आज सुहागिन सब करें,यह उपवास कठोर।
यह उपवास कठोर , पूजती चंदा प्यारा।
पिया जिए सौ साल, अमर संयोग हमारा।
कहे लाल कविराय, वारती जती सती बन।
अमर रहे तू चाँद, पूजती चौथ व्रती बन।
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नारि सुहागिन कर रही,पूजा जप तप ध्यान।
पति की लम्बी आयु हो, खूब बढ़े जग मान।
खूब बढ़े जग मान, करे उपवास तुम्हारा।
मात चौथ सुन अर्ज , रहे संजोग हमारा।
कर सोलह सिंगार, निभाये प्रीत यहाँ दिन।
पति हित सारे काज, करे ये नारि सुहागिन।
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🙏✍©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकंदरा,दौसा,राजस्थान
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बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
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