पुष्प
🌻🌼🌻🌼🌻🌼🌻🌼🌻🌼🌻
~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
. 🌼 *कुण्डलिया छंद* 🌼
. 🌹 *पुष्प* 🌹
. 🌹🌹
इतराता है,पुष्प क्यों, चार पहर की वास।
खुशबू सम्पद बीतते, कोई न डाले घास।
कोई न डाले घास,रखें सब मतलब यारी।
बिना स्वार्थ के पुष्प,लगे रिश्ते सब भारी।
कहे लाल कविराय,सभी में यौवन आता।
यौवन ,संपद ,रूप, मीत नाहक इतराता।
. 🌹🌹🌹🌹🌹🌹
होवे फुल्ल प्रसून भी, कहें सुमन अरु फूल।
पुष्प कुसुम है मंजरी, पुहुप नाम मति भूल।
पुहुप नाम मति भूल,सहोदर शूल सुमन का।
एक मीत सा लगे, दूसरा अरि तन मन का।
मधुकर हिम्मत मीत,फूल कंटक मिल सोवे।
दोनो का उपयोग , भिन्न दुनिया में होवे।
. 🌹🌹
✍✍🙏©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकंदरा,दौसा,राजस्थान
🌻🌸🌻🌸🌻🌸🌻🌸🌻🌸
Comments
Post a Comment