धूप
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~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
. *ढूँढाड़ी-राजस्थानी भाषा*
. *कुण्डलिया छंद*
. *धूप*
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गरमी तपतो तावड़ो,सूरज जग को भूप।
ढूँढाड़ी धरती चहै ,अब सरदी री धूप।
अब सरदी री धूप ,लगै सब जीवाँ प्यारी।
कदै धूप कद छाँव, कुदरती लीला न्यारी।
कहै लाल कविराय,राखणी मन मैं नरमी।
सरदी आछी धूप, छाँव मै बीतै गरमी।
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मरुधर गरमी में तपै ,शी मै मीठी धूप।
सावण ,भादौ मेह नी ,तौ भी लगै सरूप।
तौ भी लगै सरूप, खेजड़ी पेड़ रुपाल़ो।
बाजरिया रा रोट, राबड़ी बाँध धमालो।
कहे लाल कविराय,रोहिड़ा फूलाँ मधुकर।
धीर वीर निपजाय, प्रतापी धरती मरुधर।
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✍✍©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकंदरा, दौसा,राजस्थान
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