ऋतु बासंती प्रीत

🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞
~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
.          🏉 *कुण्डलिया छंद* 🏉
.        🌹 *ऋतु बासंती प्रीत* 🌹
.                   🌼🌹🌼
आता है ऋतुराज जब,चले प्रीत की रीत।
तरुवर पत्ते दान से, निभे  धरा-तरु  प्रीत।
निभे धरा-तरु प्रीत,विहग चहके मनहरषे।
रीत  प्रीत  मनुहार, घटा बन उमड़े  बरसे।
शर्मा  बाबू लाल, सभी को  मदन सुहाता।
जीव जगत मदमस्त,बसंती मौसम आता।
.                 🌼🌹🌼
भँवरा तो  पागल  हुआ, देख  गुलाबी फूल।
कोयल तितली बावरी, चाह प्रीत, सब भूल।
चाह प्रीत,सब भूल,नारि-नर सब मन महके।
चाहे पुष्प पराग, काम हित खग मृग बहके।
शर्मा  बाबू  लाल, मदन हित हर मन  सँवरा।
विरह-मिलन के गीत, सुने सब गाता भँवरा।
.                 🌼🌹🌼
चाहे भँवरा पुष्परस, मधुमक्खी  मकरंद।
सबकी अपनी चाह है, हे बादल मतिमंद।
हे बादल मतिमंद, बरस मत खारे सागर।
रीत प्रीत की ढूँढ, धरा मरु खाली गागर।
बासंती मन *लाल*,भरो मत विरहा  आहें।
कर मधुकर सी प्रीत, चकोरी  चंदा  चाहे।
.                  🌼🌹🌼
✍✍©
बाबू लाल शर्मा, "बौहरा"
सिकंदरा, दौसा,राजस्थान
🌳🌻🌹🌳🌻🌹🌳🌻🌹🌳

Comments

Popular posts from this blog

सुख,सुखी सवैया

गगनांगना छंद विधान