मकर से बसंत
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~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
. *मकर से ऋतुराज बसंत*
. . *दोहा छंद*
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सूरज जाए मकर में,तिल तिल बढ़ती धूप।
फसले सधवा नारि का, बढ़ता जाए रूप।।
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पशुधन कीट पतंग भी, नवजीवन सब पाय।
वन्य पशू पौधे सभी,कली कली खिल जाय।।
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तितली भँवरे मोर पिक, करते हैं मनुहार।
ऋतु बसंत के आगमन,स्वागत करते द्वार।।
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मानस बदले वसन ज्यों,द्रुम दल बदले पात।
ऋतु राजा जल्दी करो, जिससे सुधरे बात।।
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शीत उतर राहत मिले,होवें शुभ सब काज।
उम्मीदें ऋतुराज से, करते हैं सब आज।।
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ऋतु राजा भी आ रहे,अब तो आओ कंत।
विरहा के मनराज हो ,मेरे मनज बसंत।।
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रथी उत्तरायण चला, अब तो प्रिय रविराज।
प्रिय मिलन को बावरी,पाती लिखती आज।।
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प्रियतम आओ तो प्रिये,ऋतु बसंत के साथ।
सत फेरों की याद कर, वैसे पकड़ें हाथ।।
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कंचन निपजे देश में,स्वर्ण चिड़ी कहलाय।
चाँदी सी धरती तजी, परदेशी कहलाय।।
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आजा प्रियतम देश में,खूब मने सकरात।
माटी अपने देश की, याद करे दिन रात।।
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प्रीतम तिल तिल जोड़ गिन,लड्डू रही बनाय
बाँट निहारूँ साँवरे, कौन पंथ आ जाय।।
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✍✍🙏©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकंदरा,दौसा,राजस्थान
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