गीता गाएँ कविजन कान्हा वाली
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~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
. *जलधरमाला-छंद*
विधान-२२२ २११ ११२ २२२
चार चरण, दो दो समतुकांत
१२ वर्ण, ४ वर्ण पर यति
*गीता गाएँ,*
... *कविजन कान्हा वाली*
सेना सारी, सरहद चौकी आती।
आतंकी की, धड़कन है थर्राती।
हे माताओं, ललन तुम्हारे प्यारे।
माँ की आशा, वतन सुरक्षा धारे।
आजादी की, सरगम खोते पापी।
आतंको से, यह धरती माँ काँपी।
गीता गाएँ,कविजन कान्हा वाली।
हो तैयारी, रण अब बाजे ताली।
शेरों की माँ, निडर सदा ही होती।
है कुर्बानी, कब समझाती रोती।
है फौलादी, बहन पिता भी प्यारे।
चाहें मेरे, सुत रिपु को संहारे।
हिन्दुस्तानी,दम खम देखो बाकी।
गाली देना, हरकत भी नापाकी।
शेरों से तू, मत कर बेईमानी।
बातें सारी,सुन खल पाकिस्तानी।
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✍©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकंदरा, दौसा,( राज.)
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