राधे साँवरिया

👀👀👀👀बाबूलालशर्मा
.        *राधा रमण छंद*
विधान:-
नगण नगण  मगण  सगण
१११  १११  २२२  ११२
१२ वर्ण  ४ चरण
दो दो चरण समतुकांत
.       *राधे- साँवरिया*
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जब तक तन में श्वाँसे चलती।
विरह विपद में कान्हा भजती।
हम वृष तनुजा हे साँवरिया।
पर सचमुच कान्हा तू छलिया।
.          👀👀
दिन भर मन में आहें भरती।
हम सब सखियाँ कान्हा तकती। 
अब कुछ हँसले प्यारे सजना।
फिर नटवर  तू  राधे भजना।

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गिरधर सब की बाते सुनते।
पर निज मनमानी ही करते।
तट  तरु वन में ढूँढा  करते।
पर तुम मन राधा के बसते।
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✍©
बाबू लाल शर्मा, बौहरा
सिकंदरा, 303326
दौसा,राजस्थान,9782924479
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