मेरे उड़ते बाज़ों को
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~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
🦅 *मेरे उड़ते....*
*.......🦅 बाजों का*🦅
चिड़ीमार मत काँव काँव कर,
काले काग रिवाजों के।
वरना हत्थे चढ़ जाएगा,
मेरे उड़ते बाज़ों के।
बुज़दिल दहशतगर्दो सुनलो,
देख थपेड़ा ऐसा भी।
और धमाके क्या झेलोगे,
मेरे यान मिराजों के।
तू जलता पागल उन्मादी,
देख भारती साजों से।
देख हमारे बढ़े कदम को,
उन्नत सारे काजो से।
समझ सके तो रोक बावरे,
डीठ पिशाची वृत्ति को।
बचा सके तो बचा कागले,
मेरे उड़ते बाज़ों से।
काग पिशाची संग बुला ले,
चीनी मय सब साजों के।
नए हौंसले देख हमारे,
शासन के सरताजों के।
करें हिसाब पुराने सारे,
अब आओ तो सीमा पर।
पंजों में फँस कर तड़पोगे,
मेरे उड़ते बाजो के।
हमने भेजे खूब कबूतर,
. पंचशील आगाजों का।
कहते रहे रखो धैर्य,
... तू खून पिये परवाजों का।
नहीं मानें यह थप्पड़ ले,
. अक्ल यदि आ जाए तो।
यह तो बस है एक झपट्टा,
. मेरे उड़ते बाजों का।
हमला झेल सके तो कहना,
. रण बंके जाँबाजों का।
सिंहनाद क्या सुन पाएगा,
. रण के बजते बाजों का।
पहले मरहम पट्टी करले,
. तब जवाब भिजवा देना।
फिर से भेजें ? श्वेत कबूतर,
. देखें हाल जनाजों का?
. 👀👀
✍©
बाबू लाल शर्मा, बौहरा
सिकंदरा, दौसा,राजस्थान
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मुक्तक
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