बेटियाँ
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~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
*मनहरण घनाक्षरी ८८८७, १६,१५ यति*
. 🌞 *....बेटियाँ* 🌞
बेटियां चकोर जैसी,चाँदनी को ताकने सी।
चाहती है आगे बढ़े, इन्हे तो बढाइये।
विद्यालय मे भेजना, समय हो तो खेलना।
घर को सम्भाले सुता, खूब ही पढ़ाइये।
रीत प्रीत व्यवहार, सीख सब संस्कार।
भारती की आन को, बेटियों निभाइये।
बेटियाँ ही होगी मात,लक्ष्मी दुरगा साक्षात।
आज बात मेरी मान ,सब को सिखाइए।
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बेटियाँ दुलारी माँ की,लाड़ली परिवार की।
मात यह संसार की, ज्ञान जान लीजिए।
छाँया बने माता की, संरचना विधाता की।
सृष्टि चक्र धारती है, जान मान कीजिए।
जन्म इन्हे लेने देवें, खेल कूद पढ़ लेवें।
मुक्त परवाज सुता, शान मान दीजिए।
झूठी मर्यादा छोड़, बेअर्थी रिवाजें तोड़।
बेटियों को बढ़ने दो, आन बान पीजिए।
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सादर✍©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकंदरा, दौसा,राजस्थान
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