सागर वंदन
👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀
~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
. दोहा छंद
. *सागरवंदन्*
. सागर के 27 नाम
. .....👀🌹👀....
. १
वरुण देव को सुमिर के,नमन करूँ कर जोरि।
सागर वंदन मैं लिखूँ, जैसी मति है मोरि।।
. २
जलबिनथल क्या कल्पना, सृष्टा *रत्नागार*।
वरुणराज तुमसे बने , वंदन *नीरागार*।।
. ३
अगनित नदियां उमड़के,आती चली *नदीश*।
सब तटिनी तट तोड़नी, रम जाती *बारीश*।।
. ४
विविधरूप जीवन सरे,प्राणप्रिय *जलागार*।
पुरा सभ्यताशेष का , जीवन *पारावार*।।
. ५
हृदय मध्य जो जतन से, *रत्नाकर* के मान।
परिघटनाओं को रखे, *उदधि* सँभाल सुजान।
. ६
रहे मान मर्याद से, *कंपति* तभी महान।
कभी न छोड़े साथ भी, रमापते भगवान।।
. ७
देवासुर मिल के किया, *सागर* मंथन साज।
जहर रखा शिव कंठ में, सृष्टि के हित काज।।
. ८
बाँट दिये थे सृष्टि हित ,चौदह रत्नाभार।
लक्ष्मी श्रीहरि की हुई, देवन अमृत धार।।
. ९
*क्षीरसिंधु* श्री हरि बसे, आश्रय लक्ष्मी शेष।
बीच *नीरनिधि* शेष की, शैय्या बनी विशेष।।
. १०
*जलधि* शांति के दूत सम,भक्तिपुंज साभार।
*वारिधि* रामसेतु जनि, राम शक्ति संसार।।
. ११
*अकूपाद* अवशेष में, खोज रहा विज्ञान।
राघव धर्मन् अस्मिता, सेतू शेष बखान।।
. १२
*पयोधि* मछुआ जीविका,सहता ताप दिनेश।
सीमा देश विदेश की, बने *समुद्र* विशेष।।
. १३
*पंकनिधी* व्यापार के, साधन बंदरगाह।
सीमाओं पर *तोयनिधि* ,करते सद आगाह।।
. १४
*अंबुधि* अन्वेषण सदा, होते हैं अविराम।
*जलनिधि* से संभावना,विविध वस्तु के धाम।
. १५
साधन युद्धक पोत भी, रहते आते जात।
युद्ध शान्ति संसार की, रहते रीत निभात।।
. १६
जगन्नाथ अरु द्वारिका, रामेश्वर *जलधाम*।
कपिल मुनि आश्रम वहाँ,शोभा है अभिराम।।
. १७
*बननिधि* मानवमनशमन,सबै मिटाते भ्रान्ति।
*महासागर* तुम ही करो,जनके मनमें शान्ति।
. १८
विवेक शिला को देखते,आती भारत क्रांति।
क्रांति के अग्रदूत हैं, हिन्द *सिन्धु* विश्रांति।।
. १९
गहन *समन्दर* धीरता, जल रहस्य भरमार।
*अर्णव* की माने सदा, खारे वीचि अपार।।
. २०
महा द्वीप सारे बसे, धरती के श्रृंगार।
खार सार है पी लिया, चन्दा के अभिसार।।
. २१
प्रभु ने भी वंदन किया, पूजा सागर तीर।
मैं भी वंदन कर रहा, जीवन पालक नीर।।
......👀🌹👀.....
उक्त 👆रचना में सागर के 27 नामोल्लेखित है।
🙏🏻रचनाकार©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकन्दरा,दौसा
राजस्थान,303326
Comments
Post a Comment