मनेगी होलिका फिर से
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~~~~~~~बाबूलालशर्मा
. *विजात छंद*
१२२२ १२२२ (१४ मात्रिक)
*मनेंगी होलिका फिर से*
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गुलाबी रंग फूलों में।
सजा है संग शूलो में।
सजे ये ओस के मोती।
धरा अहसास के बोती।
कहें ऋतु फाग होली की।
हवाएँ गीत बोली की।
दहकना है पलाशों का।
गया मौसम हताशों का।
प्रकृति सौगात देती हैं।
धरा उपहार लेती है।
तभी तो रीति होली हो।
सही मन प्रीत भोली हो।
मिलेंगे कृषक खेतों में।
खिलें फसलें चहेतों में।
परीक्षा छात्र अब देते।
मिले जो कर्म फल लेते।
सुहानी याद रह जाती।
बसंती याद बस आती।
पड़ेगा ताप जब आगे।
सभी रौनक लगे भागे।
रहेगी छाँव की चाहत।
मिलेगी नीर से राहत।
करें बस याद यादों की।
सुहाने प्रीत वादों की।
रहेंगे याद हम जोली।
बने जो मीत इस होली।
तिरंगा मान के खातिर।
मिलेंगे मीत हम हाजिर।
पुरानी बीत जाएगी।
नई ऋतु साल लाएगी।
घटाएँ लौट आएँगी।
बहारें फाग गाएगी।
मनेंगी होलिका फिर से।
चलेंगी टोलियाँ घर से।
निराशा क्यों रहे मन में।
भरें आशा सभी जन में।
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✍©
बाबू लाल शर्मा,"बौहरा"
सिकंदरा,303326
दौसा,राजस्थान,9782924479
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