नीर नेह हारा
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~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
. *कुण्डल छंद विधान*
२२मात्रिक छंद--१२,१० मात्रा पर यति,
यति से पूर्व व पश्चात त्रिकल अनिवार्य,
चरणांत में गुरु गुरु (२२)
दो दो चरण समतुकांत हो।
चार चरण का एक छंद कहलाता है।
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. *नीर नेह हारा*
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जल ने आबाद किया,सुने है कहानी।
जीवन विधाता बंधु , रीत रहा पानी।
पानी बर्बाद किया, भावि नहीं देखे।
पीढ़ी आज कह रही, कौन देय लेखे।
खोज रहा नीर धीर, मान मानवो में।
खो गया है जो आज,राम दानवों में।
सूख रहे झील ताल ,नदी बाव सारे।
युद्ध से न मान हार, नीर बिन हारे।
सूख गया नैन नीर, पीर देख भारी।
सत्य बात मान मीत,रीत गई सारी।
सिंधु नीर बढ़ रहा, स्वाद याद खारा।
मनुज देख मनुज संग,नीर नेह हारा।
कूप सूख गए नीर, कृषक हताशे है।
नीर देते घट आज, स्वयं पियासे हैं।
नलकूप खोदे नित्य, धरा रक्त खींचे।
मनुज नीर दोउ मीत,नित्य चले नीचे।
सरिताएँ डाल गंद , नीर करें गंदा।
हे मनुज माने मातु , नदी बुद्धिमंदा।
बजरी निकाली रेत,खेत किये खाली।
फूल पौधे खा गये, बाग वान माली।
छेद डाले भू खेत, खोद कूप डाले।
पेड़ नित्य काट रहे, और नहीं पाले।
रेगिस्तान बढ़ रहा, बीत रहा पानी।
कौन फिर तेरी सुने, बोल ये कहानी।
रक्षा कर मीत नीर, जीव जंतु प्यासे।
सारे जल स्रोत रक्ष, देख अब उदासे।
जल बिना जीवन नहीं,सोच बना भाई।
जीवन बचालो बंधु , बात यह भलाई।
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✍©
बाबू लाल शर्मा,"बौहरा"
सिकंदरा,दौसा,राजस्थान
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कुण्डल छंद
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