आँसू

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""""""""""""""""""बाबूलालशर्मा
.        १६,१६, मात्रिक
.        👁 *आँसू* 👁
                  💧
ये नेत्र मनुज के जन्मों से,
सुखः दुःख दरश् पिपासू है।
नयन सेज संचय से बहता,
यह सीकर झरना आँसू है।

मन के पावनतम भावो का,
रस कल्पासव ही आँसू है।
खुशियाँ,गम दोनों ले आते,
बरबस जिज्ञासू आँसू है।
💧👁👁
उभय वर्गीय जीवन  इनका,
यौवन जीवन है कुछ पल का।
किसी नैन मोती से चमके
होते झरना आतपजल का।

वीर शहादत पर आते हैं,
सात समन्दर जितने आँसू।
अकथ कहानी बने हुए जो,
सुन्दर विहग मोर के आँसू।
💧👁👁
राष्ट्र सृजन में प्राण गँवाये,
उन्हे नमन् आँसू से करते।
धरा-पूत गर्दिश मे हो तब,
मन वंदन आँसू  से करते।

मनमीत मिले खुशियां झूमें,
मिलन के आँसू राधे श्याम।
बिछुड़न तिक्तसजा है मनकी,
विरह  के आँसू  सीता राम।
💧👁👁
करें विदाई जब बेटी की,
वज्र पिता के आँसू  झरते।
बेटे घर से करे पलायन,
मातु के अश्क कभी न थमते।

मात पिता के इंतकाल में,
संतानों  के अश्क छलकते।
संतानो  के अंत दर्श फिर,
पितर अश्क कभी न थकते।
💧👁👁
वृद्धाश्रम में  जाकर देखे,
वे सब मन के अश्क पिरोते।
अनाथ घरों मे जाके देखें,
कई  समन्दर  आँसू रोते।

दीन हीन दिव्यांगजनों के,
नयन अश्क धरोहर रहते।
सत्जन धीर वीर सतसंगी,
दिव्य अश्रु  सहेजे  रखते।
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नयन अश्रु खारा जल होते,
सिन्धु बिन्दु,गंगाजल स्रोते।
दुख में अश्रु् स्वातिबिन्दु से,
सुखमय अश्रु सहज ही होते।

शिशु के अश्रु सरलतम् होते,
पाषाणों भर वत्सल  देते।
पुरुष  अश्रु पाषाणी होते,
जनमानस वीभत्सक लगते।
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नारी दृग आँसू के सागर,
पल में भरते करुणा गागर।
मिलन जुदाई दोउ भावना,
बहते रुकते करुणा पाकर।

राधा रानी गोपी सखियाँ,
कृष्ण की प्रेम दीवानी थी।
मीरा सबके अश्रु पी गई,
राधा  दरश् दीवानी थी।
💧👁👁
सिय के आँसू पावन अमरित,
धरती माँ  के गोद समाए।
प्रायश्चित श्री राम के आँसू,
मर्यादा  के नाम गमाए।

प्रेमी  जोड़े   लैला  मँजनू ,
कितने रोये,अश्क बह गये।
वै,अँसुवन के प्रबलखार से,
सातों  सागर  खार हो गये।
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✍©
बाबू लाल शर्मा"बौहरा"
सिकन्दरा,303326
दौसा,राजस्थान 9782924479
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