अश्क

👀💧👀💧👀💧👀💧👀💧
~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
.              २८ मात्रिक मुक्तक

.          👀💧 *अश्क* 💧👀
.                    👀💧👀
गिरे जब अश्क हैं  मेरे, उदासे चंद्र रवि तारे।
शहीदी  मान में  गिरते, समंदर  सात ये हारे।
सवा अरबों की माता हूँ, सुतों में नेह संचारी।
बहेंगे अश्क मेरे तो, उठें मय जोश सुत सारे।
.                    👀💧👀
सुतों के खून से नाले,बहे इतिहास पढ़ना तो।
धरा मे लालिमा ऐसी,रहा है शौक लड़ना तो।
मुझे माँ भारती कहते,शहीदी मातु कहलाती।
गिरे क्यों अश्क मोती से,तिरंगेमान मरना तो।
.                    👀💧👀
हमारा देश दुश्मन से, हजारों साल से लड़ता।
सहे आघात भारी है,सखे साहस नहीं डिगता
गिरे रिपु अश्क कितने ही,इरादे ठोस रखते हैं
विकासे भारती माते,नहीं समझे कभी जड़ता
.                    👀💧👀
गुमानी  शान  में जीते, शहीदी  शान से मरते।
जवानी देश  को देते, तिरंगा प्राण सम रखते।
हमारी मातु  भारत है, नहीं ये अश्क लाचारी।
इसी से 'लाल' जन्मे है,इसी हितकर्म हैं करते।
.                    👀💧👀
✍©
बाबू लाल शर्मा,"बौहरा"
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
💧💧💧💧💧💧💧💧💧💧

Comments

Popular posts from this blog

सुख,सुखी सवैया

गगनांगना छंद विधान