तुलसी
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~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
. 🌍 *तुलसी* 🌍
. (दोहा छंद)
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दिव्य छंद तुलसी रचे, भारत हुआ कृतज्ञ।
मै, उनके सम्मान में, दोहे लिखता अज्ञ।।
हुलसी तुलसी गंध सी, सेवित तुलसीदास।
भाव आतमा राम से, मानस किया उजास।।
नरहरि जी सद्गुरु मिले,पायक हनुमत वीर।
रत्नावली से राम का, मिला पंथ मति धीर।।
मानस मानस में रखे, पहचाने अरि मित्र।
तुलसी ने अनुपम रचा, रघुपति राम चरित्र।।
सन्त असन्त विवेचना, नारि धर्म, नर कर्म।
मानस में तुलसी लिखे, जीवन के सब मर्म।।
सुर नर मुनि गंधर्व के,लिखे चरित मतिमान।
दैत्यदेव वानर मनुज,संस्कृति सहित प्रमान।।
काकभुशुण्डि गिद्ध गरुड़,जामवंत बलवान।
शबरी केवट मानवी, लिखे सहित सम्मान।।
भक्त संत द्विज के लिखे, राज धर्म संदेश।
राजा मुखिया मित्रता, रीति प्रीत परिवेश।।
सेतुसिंधु सर सरित गिरि,वन्य और वनवास।
आश्रम पावन गौतमी, लिखे अत्री मुनिवास।।
हेम हरिण व मरीचिका, नारि हृदय की टेक।
रावण लंका निशचरी, भक्ति विभीषण नेक।।
विविध छंद दोहे विविध, सोरठ लिखे अनूप।
चौपाई मय विधि विधा, तुलसी मानस रूप।।
संस्कृत हिन्दी बोलियाँ,अवधी,मिश्रण मान।
मानस के अतिरिक्त भी, रचे काव्य वरदान।।
याद करें सिय राम को, संगत प्रिय हनुमान।
मानस दुर्लभ भूलना, तुलसी मान महान।।
तुलसी जन तुलसी हुए, घर घर मानस मान।
कंठ कंठ मणि शोभते, तुलसी सत्य महान।।
तुलसी नभ के चंद्रसम, देते विमल प्रभास।
बाबू लाल चकोर जस, वंदित तुलसीदास।।
तुलसी तुलसी गंध सम, रमे राम के नाम।
शर्मा बाबू लाल का, शत शत उन्हें प्रणाम।।
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✍©
बाबू लाल शर्मा, "बौहरा"
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
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