धरती

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~~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
.                  🌍  *धरती*  🌍
.                      ( दोहा छंद)
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धारण करती है सदा, जल थल का संसार।
जननी  जैसे  पालती, *धरती* जीवन  धार।।

*भूमि* उर्वरा  देश  की, उपजे वीर  सपूत।
भारत माँ सम्मान हित,हो कुर्बान अकूत।।

*पृथ्वी,* पर्यावरण की , रक्षा  कर  इन्सान।
बिगड़ेगा यदि संतुलन,जीवन खतरे जान।।

*धरा*  हमारी मातु सम, हम है  इसके लाल।
रीत निभे बलिदान की,चली पुरातन काल।।

*भू* पर भारत देश का, गौरव गुरू समान।
स्वर्ण पखेरू शान है,आन बान अरमान।।

*रसा* रसातल से उठा,भू का कर उपकार।
धारे  रूप  वराह  का, ईश्वर  ले  अवतार।।

चूनर हरित *वसुंधरा,* फसल खेत खलिहान।
मेड़ मेड़ जब पेड़ हो, हँसता मिले  किसान।।

*वसुधा* के शृंगार वन, जीवन प्राकृत वन्य।
पर्यावरण विकास से, मानव जीवन धन्य।।

*अचला* चलती है सदा, घुर्णन सें दिन रात।
रवि की  करे परिक्रमा, लगे साल  संज्ञात।।

*क्षिति* जल पावक अरु गगन,
.                      संगत मिले समीर।
जीव जीव में पाँच गुण,
   .                   धारण, तजे शरीर।।

वारि *इला* पर साथ ही, प्राण वायु भरपूर।
इसीलिए  जीवन यहाँ, सुन्दर  प्राकृत नूर।।
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✍©
बाबू लाल शर्मा, बौहरा
सिकंदरा, दौसा,राजस्थान
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