सरस्वती माँ वंदन गीत

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~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
.          *लोकगीत - माँ सरस्वती*
ढूँढाड़ी-राजस्थानी आँचलिक भाषा
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म्हे तो आज मनावाँ मनड़ै ,
सागी सुरसति माई नै।

सुरसति मैया सुर दै मीठो,
कोयलड़ी सी बोली।
अरज गरज म्हे कराँ आपरी,
प्रीत राग रस घोली।
खोल ज्ञान रो द्वारो मायड़,
म्हें तो आयाँ शरणाँ।
जल़ै दीवलो विद्या बाती,
बैठ्या थाँकै चरणाँ।

देश धरा रो नाँव उजाल़ा,
मिनख बणाँ जगताई नै।
म्हें तो आज मनावाँ मनड़ै,
सागी सुरसति माई नै।

मात शारदा विद्या देवी,
बात ज्ञान री कहवै।
वीणा ,पोथी सागै राखै,
बैठ हंस पै रहवै।
देवाँ, मिनखाँ सबनै विद्या,
ज्ञान मान दातारी।
सभ्य बणावै, दे संस्काराँ,
सुर संगीताँ धारी।

दोहा छंद गीत वै गज़लाँ,
चौपाई कविताई नै।
म्हे तो आज मनावाँ,मनड़ै,
सागी सुरसति माई नै।

पढ़ै लिखै जद जीवन सुधरै,
अनपढ़ मिनखाँ रुल़ता।
काज चाकरी हित वै अपणै,
डोलै रोता फिरता।
माँ बापाँ नै दौरा लागै,
पाँचा मैं शरमावै।
पीसा धेला मोंठ मँजूरी,
अनपढ़ गाँठ कटावै।

आपाँ विद्या पढ़ल्याँ लैर,
भायाँ सत सुखदाई नै।
म्हे तो आज मनावाँ मनड़ै,
सागी सुरसति माई नै।

मात सुरसती विद्या देवै,
मन रो ज्ञान बढ़ावै।
मिनख बणावै मिनखाचारो,
सब रो मान बढ़ावै।
सुरसति दे वै ज्ञान अनोखो,
मान तिरंगै सारू।
जनमभोम रो हित चित देखण,
सामाजिक व्यवहारू।

पढ़ लिख सबसूँ नेह निभावण,
उजल़ी प्रीत मिताई नै।
म्हे तो आज मनावाँ मनड़ै,
सागी सुरसति माई नै।
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✍©
बाबू लाल शर्मा, बौहरा
सिकंदरा,303326
दौसा,राजस्थान,9782924479
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