संयुक्त राष्ट्रसंघ दिवस विशेषांक
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*24 अक्टू. संयुक्त राष्ट्रसंघ*
*दिवस विशेषांक*
~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
*१. विश्वशान्ति एवं*
*मानव अधिकार*,
आज जरूरत है मानव की,
विश्व शांति कायम होवे।
वतन मान की सोच रखें पर
विश्व मनुजता क्यों खोवे।
मानव तो बस मानव होता,
मानवता के गुणधारी।
देश धर्म में बाँट मनुज को,
राज करे सत्ता धारी।
कुछ देशों की तानाशाही,
कुछ को भारी पड़ती है।
सत्ता की यह खेंचातानी,
मनुज भुगतनी पड़ती है।
मानव के अधिकार सिमटते,
देशों की टकराहट में।
जाने कितनी आहें घुटती,
हथियारों की आहट में।
चाहे समय विकासी पहिया,
बदलो सोच जगत की अब।
विश्व शांति के पथ पर बढ़कर,
मानवता की सोचें सब।
मनुजाधिकार दमित न होवे,
सत्ताई संघर्षों में।
करें विकास मानवी मानव
आने वाले वर्षों में।
. 👀🤱👀
*२. रंग-भेद के खिलाफ,*
बहका क्यों है रे मानव मन,
तन की रंग गुमानी में।
चमड़ी के रंग से मानव में
भेद करे नादानी में।
देख हमारे श्याम कन्हैया,
हम तो अब तक पूज रहे।
त्रेता युग के राम देखलो,
राम राज्य की सूझ रहे।
तन के वर्ण ऊतको से ही,
रंग त्वचा का बनता है।
जलवायु के कारण भी तन
गोरा काला लगता है।
रंग भेद का बापू ने भी
समझो खूब विरोध किया।
रक्त सभी का लाल मानवी,
कितना चाहे शोध किया।
तन के रंग भेद को भूलो,
गुण बल बुद्धि सभी जानो।
मानव होकर भी मानव को,
रंगो से मत अपमानो।
गोरा काला उभय रंग है,
दोनो का ही मान रहे।
रंग भेद के कारण सोचो,
मानवता अपमान सहे।
. 👀🤱👀
*३. विश्व में महामारियों*
*की रोकथाम,*
आज विश्व परिवार बना लो,
सबके सुख दुख साझी हों।
सक्षम वतन बढ़ें आगे ज्यों,
मँझधारों के माँझी हों।
जैसे चेचक सी बीमारी
सबने मिलकर खोई है।
और पोलियो की तकलीफें
इस धरती से धोई है।
शेष अभी तो है बीमारी,
टी बी, कैंसर,अनजानी।
मिलकर सकल विश्व के देशो,
बीमारी जड़ मूल मिटानी।
टीके खोजो,और दवाई,
आपस में साझा करलो।
सभी निरोगी हों वसुधा पर,
मानव पीड़ा को हरलो।
. 👀🤱👀
*४.विश्व पर्यावरण संरक्षण*
. 🌳🌳
शस्य श्यामला इस धरती को,
आओ मिलकर नमन करें।
पेड़ लगाकर उनको सींचे,
वसुधा आँगन चमन करें।
स्वच्छ जलाशय रहे हमारे,
अति दोहन से बचना है।
पर्यावरणन शुद्ध रखें हम,
मुक्त प्रदूषण रखना है।
. 🌳🌳
ओजोन परत में छिद्र बढ़ा,
उसका भी उपचार करें।
कार्बन गैस की बढ़ी मात्रा,
ईंधन कम संचार करे।
प्राणवायु भरपूर मिले यदि,
कदम कदम पर पौधे हो।
पर्यावरण प्रदूषण रोकें,
वे वैज्ञानिक खोजें हो।
. 🌳🌳
तरुवर पालें पूत सरीखा,
सिर के बदले पेड़ बचे।
पेड़ हमे जीवन देते है,
मानव-प्राकृत नेह बचे।
गउ बचे संग पशुधन सारा,
. चिड़िया,मोर पपीहे भी।
वन्य वनज,जलज जीव सब,
सर्प सरीसृप गोहें भी।
. 🌳🌳
धरा संतुलन बना रहे ये,
कंकरीट वन कम कर दो।
धरती का शृंगार करो सब,
तरु वन वनज अभय वर दो।
पर्यावरण सुरक्षा से हम,
नव जीवन पा सकते हैं।
जीव जगत सबका हित साधें,
नेह गीत गा सकते हैं।
. 🌳🌳
*5.हथियारों की अंधदौड़*
*अब कम करना है।*
बम परमाणू बना विनाशी,
कई देश इतराते है।
करें कल्पना महाप्रलय की,
मानव मन घबराते है।
बारूदों के सिंहासन पर,
बैठे हातिमताई हैं।
आज जरूरत बस मानव की,
करना मीत मिताई है।
देख लिया नागासाकी में,
और कल्पना करनी,करलो।
तामस तजो,मनुजता पालो,
देख समय धीरज धरलो।
समय विकासी,देश मनुज का,
हथियारों की होड़ छोड़ दो।
कर साकारी विश्वराज्य अब,
सीमाएँ, दीवार तोड़ दो।
. 👀🤱👀
*6. देशों के मतभेद मिटाएँ*
बर्तन भी टकरा जाते है,
नाद अवश ही हो जाता।
मानव मन भी टकराते जब,
नेह प्रेम ही खो जाता।
जाति धर्म की टकराहट तो,
हमको भारी पड़ती है।
देशों के मतभेद लड़ाई,
नींद सभी की उड़ती है।
शिक्षित सभ्य बना अब मानव,
देश धर्म सत्ता धारी,
मतभेदों को सुलझाने की
आई है अब तो बारी।
*संयुक्त राष्ट्र संघ* हितैषी,
देश मनुज अधिकारों को।
मिलो बैठकर सुलझालो सब,
देश पड़ौस विकारों को।
. 👀🤱👀
*7.ग्लोबल वार्मिंग*
. 🌍
ताप धरा का बढ़ता जाता,
गैस कार्बन बढ़ती हैं।
घटते मिटते भूजल जंगल,
विपदाएँ सिर चढ़ती हैं।
छोड़ लड़ाई अहम देशीय,
धरा संतुलन रखलो अब।
गलोबल वार्मिंग बड़ी चुनौती,
आज ध्यान यह धरलो सब।
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प्यारी पृथ्वी जीवन दात्री,
सब पिण्डों में, अनुपम है।
जल,वायु का मिलन यहाँ पर,
अनुकूलन भी उत्तम है।
सब जीवो को जन्माती है,
माँ के जैसे पालन भी।
मौसम ऋतुएँ वर्षा,जल,का
करती यह संचालन भी।
🌕
सागर हित भी जगह बनाती,
द्वीपों में यह बँटती है।
पर्वत नदियाँ ताल तलैया,
सब के संगत लगती है।
मानव ने निज स्वार्थ सँजोये,
देश प्रदेशों बाँट दिया।
पटरी सड़के पुल बाँधो से,
माँ का दामन पाट दिया।
🌕
इससे आगे सुख सुविधा मे,
भवन, इमारत पथ भारी।
कचरा गन्द प्रदूषण बाधा,
घिरती यह पृथ्वी प्यारी।
पेड़ वनस्पति जंगल जंगल,
जीव जन्तु जड़ दोहन कर।
प्राकृत की सब छटा बिगाड़े,
मानव ने अन्धे हो कर।
🌕
विपुल भार,सहती माँ धरती,
निजतन धारण करती है।
अन,धन,जल,थल,जड़चेतन का,
सब का पालन करती है।
प्यारी पृथ्वी का संरक्षण,
अपनी जिम्मेदारी हो।
विश्व सुमाता पृथ्वी रक्षण,
महती सोच हमारी हो।
🌕
माँ वसुधा सी अपनी माता,
यह शृंगार नहीं जाए।
आज नये संकल्प करें मनु,
माँ की क्षमता बढ़ जाए।
नाजायज पृथ्वी उत्पीड़न,
विपदा को आमंत्रण है।
धरती माँ की इज्जत करना,
वरना प्रलय निमंत्रण है।
🌕
पृथ्वी संग संतुलन छेड़ो,
कीमत चुकनी है भारी।
इतिहासो के पन्ने पढ़लो,
आपद ने संस्कृति मारी।
प्यारी पृथ्वी प्यारी ही हो,
ऐसी सोच हमारी हो।
सब जीवों से सम्मत रहना,
वसुधा माँ सम प्यारी हो।
🌕
माँ काया से,स्वस्थ रहे तो,
मनु में क्या बीमारी हो।
मन से सोच बनाले मानव,
कैसी, क्यों लाचारी हो।
माँ पृथ्वी प्राणों की दाता,
प्राणो से भी प्यारी है।
पृथ्वी प्यारी माँ भी प्यारी,
माँ से पृथ्वी प्यारी है।
🌎
मानव तुमको आजीवन ही,
धरती ने माँ सम पाला।
बन,दानव तुमने वसुधा में,
क्यूँ,तीव्र हलाहल डाला।
मानव ने खो दी मानवता,
छुद्र स्वार्थ के फेरों में।
माँ का अस्तित्व बना रहता,
आशंका के घेरों में।
🌎
वसुधा का श्रृंगार छिना अब
पेड़ खतम वन कर डाले।
जल, खनिजों का दोहन कर के,
माँ के तन मन कर छाले।
मातु मुकुट से मोती छीने,
पर्वत नंगे जीर्ण किए।
माँ को घायल करता पागल,
उन घावों को कौन सिंए।
🌎
मातु नसों में अमरित बहता,
सरिता दूषित क्यूँ कर दी।
मलयागिरि सी हवा धरा पर,
उसे प्रदूषित क्यूँ कर दी ।
मातृशक्ति गौरव अपमाने,
मानव भोले अपराधी।
जिस शक्ति को आर्यावर्त में,
देव शक्ति ने आराधी।
🌎
मिला मनुज तन दैव दुर्लभम्,
"वन्य भेड़िये" क्यूँ बनते।
अपनी माँ अरु बहिन बेटियाँ,
उनको भी तुम क्यों छलते।
माँ की सुषमा नष्ट करे नित,
कंकरीट तो मत सींचे।
मातृ शक्ति की पैदाइश तुम,
शुभ्र केश तो मत खींचे।
🌎
ताल तलैया सागर,नाड़ी,
नदियों को मत अपमानो।
क्षितिजल,पावकगगन,समीरा,
इनसे मिल जीवन मानो।
चेत अभी तो समय बचा है,
करूँ जगत का आवाहन।
बचा सके तो बचा मानवी,
कर पृथ्वी का आराधन।
🌎
शस्य श्यामला इस धरती को,
आओ मिलकर नमन करें।
पेड़ लगाकर उनको सींचे,
वसुधा आँगन चमन करें।
स्वच्छ जलाशय रहे हमारे,
अति दोहन से बचना है।
पर्यावरणन शुद्ध रखें हम,
मुक्त प्रदूषण रखना है।
🌎
ओजोन परत में छिद्र बढ़ा,
उसका भी उपचार करें।
कार्बन गैस की बढ़ी मात्रा,
ईंधन कम संचार करे।
प्राणवायु भरपूर मिले यदि,
कदम कदम पर पौधे हो।
पर्यावरण प्रदूषण रोकें,
वे वैज्ञानिक खोजें हो।
🌎
तरुवर पालें पूत सरीखा,
सिर के बदले पेड़ बचे।
पेड़ हमे जीवन देते है,
मानव-प्राकृत नेह बचे।
गउ बचे संग पशुधन सारा,
चिड़िया,मोर पपीहे भी।
वन्य वनज,ये जलज जीव ये,
सर्प सरीसृप गोहें भी।
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धरा संतुलन बना रहे ये,
कंकरीट वन कम कर दो।
धरती का शृंगार करो सब,
तरु वन वनज अभय वर दो।
पर्यावरण सुरक्षा से हम,
नव जीवन पा सकते हैं।
जीव जगत सबका हित साधें,
नेह गीत गा सकते हैं।
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✍©
बाबू लाल शर्मा "बौहरा"
सिकंदरा,303326
दौसा,राजस्थान,9782924479
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