विशिष्ट - कुण्डलिया छंद

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~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा
  .       *विशिष्ट- कुण्डलिया छंद*
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.                  १. *वेणी*

मिलती  संगम में  सरित, कहें  त्रिवेणी धाम!
तीन  भाग  कर  गूँथ लें, कुंतल  वेणी  बाम!
कुंतल   वेणी   बाम, सजाए   नारि  सयानी!
नागिन  सी  लहराय, देख  मन चले जवानी!
कहे लाल  कविराय, नारि  इठलाती  चलती!
कटि पर वेणी साज, धरा पर सरिता मिलती!
.                     🤷🏻‍♀🤷🏻‍♀
.               २.  *कुमकुम*

माता   पूजित  भारती , अपना  हिन्दुस्तान!
समर क्षेत्र पूजित सभी, उनको तीरथ मान!
उनको तीरथ  मान, देश हित शीश चढ़ाया!
धरा रंग  कर लाल, मात  का  मान बढ़ाया!
शर्मा  बाबू लाल , भाल पर तिलक लगाता!
रजकण कुमकुम मान, पूजता भारत माता!
.                  👀👀👀
.                 ३ *पायल*

बजती पायल  स्वप्न में, प्रेमी  होय विभोर।
कायर  समझे  भूतनी, डर  से  काँपे  चोर।
डर से  काँपे  चोर, पिया  भी करवट  लेते।
जगे  वियोगी सोच , मनो  मन  गाली  देते।
शर्मा बाबू लाल, यशोदा  हरि हरि भजती।
हँसे  नन्द  गोपाल, ठुमकते पायल बजती। 
.                 🤷🏻‍♀🦚🤷🏻‍♀
.               ४- *कंगन*

पहने   चूड़ी   पाटले , कंगन   मुँदरी  हार।
हिना  हथेली  में  रचा, तके  पंथ   भरतार।
तके  पंथ भरतार, मिलन के स्वप्न  सँजोये।
बीत रहे दिन माह, याद कर जो पल खोये।
शर्मा  बाबू  लाल , न  चाहत  मँहगे   गहने।
याद पिया की साथ, हाथ बस कंगन पहने।    
.                   👀👀👀         
.                ५-  *काजल*

भाता  भारत  मात को , रक्षा  हित  बलिदान।
बिँदिया काजल त्रिया को,सदा सुहाग निशान।
सदा  सुहाग   निशान, रहे  होठों  पर   लाली।
कुमकुम  से  भर  माँग, सजे  नारी  मतवाली।
शर्मा   बाबू   लाल , मान   हर   नारी   माता।
भारत माता  सहित, मात का यश गुण भाता।
.                     👀🦚👀
.                   ६- *गजरा*

धरती दुल्हन सी सजी, हरित पीत परिधान।
शबनम चमके  भोर में, भारत  भूमि महान।
भारत भूमि महान, ताज हिम का जो पहने।
पर्वत खनिज पठार,सरित वन सरवर गहने। 
कहे लाल  कविराय, नारि  गजरे से सजती। 
हिम से  निकले धार, नीर से सजती  धरती।
,                  👀🦚👀
.                 ७- *बिन्दी*

नारी भारत की भली, जब हो बिन्दी भाल।
विविध रंग की  ये बने, सुंदर सजती लाल।
सुन्दर सजती लाल, शान सम्मान सिखाए।
शान  भारती मात, शहादत   पंथ  दिखाए।
शर्मा  बाबू लाल, अंक  की  छवि विस्तारी।
बढ़ता   मान  अकूत, लगाए  बिन्दी  नारी।
,                   👀👀👀
.                 ८. *डोली*

डोली  तेरे  भाग्य से, चिढ़े  साज शृंगार।
दुल्हन  ही बैठे सदा, उत्तम  रखे विचार।
उत्तम  रखे  विचार, संत  जैसे बड़भागी।
डोली दुल्हन संग, रहो तुम सदा सुहागी।
शर्मा बाबू लाल , सुता  की भरना झोली।
उत्तम वर के साथ, विदा  बेटी की डोली।
,                    👀👀.
.                   ९ *चूड़ी*

नारी  पर  हँसते  कहे, चूड़ी   वाले   हाथ।
जाने क्यों जन भूलते,विपदा में तिय साथ।
विपदा में तिय साथ, लड़ी थी वह मर्दानी।
लक्ष्मी  पद्मा   मान,  गुमानी   हाड़ी  रानी।
शर्मा  बाबू   लाल,  नारियाँ   बने   दुधारी।
कर्तव्यों   के   बंध, पहनती   चूड़ी   नारी।
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.                १० *झुमका*

झुमका लटके कान में, बौर आम ज्यों डाल।
गहनों  के  परिवेश  में, झुमके  रहे  कमाल।
झुमके रहे कमाल,गीत कवि जिन पर गाता।
कभी बीच बाजार, कहीं झुमका गिर जाता।
कहे लाल  कविराय, नृत्य  में  जैसे  ठुमका।
नारी  के  शृंगार, अजब  है  गहना  झुमका!
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.                  ११ *आँचल*

धानी  चूनर  भारती, आँचल  भरा ममत्व।
परिपाटी बलिदान की,विविध वर्ग भ्रातृत्व।
विविध वर्ग  भ्रातत्व, एकता अपनी  थाती।
आँचल भरे  दुलार, हवा  जब लोरी  गाती।
शर्मा  बाबू  लाल, करें  हम  क्यों  नादानी।
माँ का  आँचल स्वच्छ ,रहे यह चूनर धानी।
,                  👀👀👀.  
.                १२ *कजरा*

कजरा से  सजते नयन, रहे  सुरक्षित दृष्टि।
बुरी नजर को टालता,अनुपम कजरा सृष्टि।
अनुपम  कजरा सृष्टि, साँवरे  में गुण भारी।
चढ़े  न दूजा  रंग, कृष्ण  आँखे   कजरारी।
शर्मा  बाबू  लाल, बँधे   जूड़े   पर  गजरा।
सुंदर  सब  शृंगार, लगे  नयनों  में  कजरा।
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.                    १३ *जीवन*

मानव  दुर्लभ देह है, वृथा  न  जीवन जान।
लख चौरासी योनियाँ, जीवन मनुज समान।
जीवन  मनुज समान, देव  स्वर्गों  के  तरसे।
रमी  अप्सरा  भूमि, कई  थी   लम्बे  अरसे।
शर्मा  बाबू  लाल, धर्म  जीवन  का  आनव।
कर उपकारी कर्म, मनुज बन जाओ मानव।

आनव~मानवोचित
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-                     १४. *उपवन*

सीता जग माता बनी, जन्मी  हल की  नोक।
घर से वन उपवन गई, विपदा  संग  अशोक।
विपदा संग अशोक, वाटिका  सिया वियोगी।
भटके वन वन राम, किया छल रावण जोगी।
शर्मा   बाबू  लाल, बया  बिन  उपवन  रीता।
वन  उपवन  मय राम, पंचवट  रमती  सीता।
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.                  १५. *कविता*

कविता  काव्य  कवित्त  के, करते   कर्म  कठोर।
कविजन केका कोकिला,कलित कलम की कोर।
कलित कलम की कोर, करे  कंटकपथ  कोमल।
कर्म  करे   कल्याण,  कंठिनी   काली   कोयल।
कहता कवि  करजोड़, करूँ  कविताई  कमिता।
काँपे   काल   कराल, कहो  कम  कैसे  कविता।

  कमिता ~कामना

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.                  १६. *ममता*

ममता   मूरत   मानिये, मन्नत  मन  मनुहार।
महिमा मय  मनभावना, मात     मंगलाचार।
मात     मंगलाचार,  मायका    मामा  मामी।
प्यार  प्रेम  प्रतिरूप , पंथ  पीहर  प्रतिगामी।
कहता कवि करबद्ध, सिद्ध संतो सी समता।
जंगम  जगती  जान, महत्ता  माँ की ममता।
.                   🦚🦚
.                 १७. *बाबुल*

बेटी  घर  में  जन्म ले, मान  भाग्य वरदान।
माँ को गर्व गुमान हो, बाबुल के कुल शान।
बाबुल के  कुल  शान, बनेगी बेटी पढ़ कर।
उभय वंश  अरमान, पालती  बेटी बढ़ कर।
कहे  लाल  कविराय, मरे   खेटी   आखेटी।
बाबुल   कुल  समृद्ध, चाह रखती हर  बेटी।

खेटी ~ चरित्रहीन

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.                    १८  *भैया*

भैया  बलदाऊ  बड़े, छोटे  कृष्ण कुमार।
हँसते  खेले  चौक  में, करते  नंद दुलार।
करते  नंद दुलार, अंक  में  वे  भर  लेते।
ले  कंधे  बैठाय, कभी   वे   ताली   देते।
शर्मा  बाबू   लाल, मंद   मुस्काए     मैया।
हो  सबके सौभाग्य, रहें मिल  ऐसे भैया।
.                      🦚🤷🏻‍♀🦚
.                    १९. *बहना*

बंधन  रिश्तों  के निभे, रीत  प्रीत  अरमान।
प्यारी  बहना  चंद्र की, भारत  भूमि महान।
भारत भूमि महान, गंग  नद यमुना  बहना।
बहना गंध समीर, भाव बहना  कवि गहना।
कहे लाल कविराय,न बहना काजल चंदन।
पावन  प्रीत  प्रतीक, रक्ष बहना शुभ बंधन।
.                  🦚🤷🏻‍♀🦚
.                 २०. *सखियाँ*

सखियाँ दुखिया हो रही, सहती कृष्ण वियोग।
उद्धव  भँवरा  बन रहा,  ज्ञान   बाँटता   योग।
ज्ञान  बाँटता  योग, पन्थ   निर्गुण    समझाए।
सुनकर  गोपी  ज्ञान, भ्रमर  का हृदय  लुभाए।
शर्मा  बाबू  लाल, देख अलि  झरती अँखियाँ।
हारा  उद्धव  ज्ञान, प्रेम  पथ  जीती   सखियाँ!                
.                    🦚🦚
.                २१. *कुुनबा*

बातें  बीती  वक्त  भी, प्रेम  प्रीत  प्राचीन।
था कुनबा सब साथ थे, एकल अर्वाचीन।
एकल   अर्वाचीन,  हुए   परिवारी   सारे।
कुनबे अब इतिहास , पराये  पितर हमारे।
शर्मा  बाबू लाल , घात  प्रतिधात  चलाते।
रोते  बूढ़े  आज, सोच   कुनबे  की  बाते।
.                    🦚🦚
.                २२. *पीहर*

पालन प्रीति  परम्परा, पीहर  प्रिय परिवार।
प्रेम पत्रिका  पा पगे, प्रियतम  पथ पतवार।
प्रियतम  पथ पतवार, प्राण  प्यारे  परदेशी।
परिपालन  परिवार, प्रथा   पालूँ   परिवेशी।
प्रकटे  परिजन प्यार, पालते  प्रण पंचानन।
परमेश्वर  प्रतिपाल, पृथा पीहर पथ पालन।
.                     🦚🤷🏻‍♀🦚
.                    २३. *पनघट*

झीलें बापी  कूप  सर, सरिताओं  के  घाट!
आतुर  नयन  निहारते, पनिहारी  की  बाट!
पनिहारी  की बाट, मिलें  कुछ  बातें  करते!
रीत प्रीत  मनुहार, शिकायत  मन की धरते!
कहे लाल कविराय, स्रोत जल बचे न गीले!
कचरा  पटके  लोग, भरे  पनघट सब झीलें!
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.                २४.   *सैनिक*

सैनिक  रक्षक  देश  के,  हैं  जैसे   भगवान!
रखें  तिरंगा  मान  को,  मरे  शहादत   शान!
मरे शहादत शान, चाह  बस  कफन  तिरंगा!
भारत रहे  अखण्ड, बहे  जल  यमुना  गंगा!
कहे लाल कविराय, प्राण दे जनहित दैनिक!
मात  भारती  पूत, नमन  है  तुमको  सैनिक!
.                      🦚🤷🏻‍♀🦚          
.                    २५- *कोयल*

कोयल  काली  कंठिनी, कागा  कीर  कमान!
कुरजाँ,  केकी   कामिनी, करे  कंठ कलगान!
करे  कंठ  कलगान, किसान  कपोत   उड़ाते!
कोयल का  मधु गान, तदपि सब काग बुलाते!
कहे लाल कविराय,भली अलि लगती कोपल!
चाहे  दुख  में  काग, खुशी  मन भाए  कोयल!
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.                 २६- *अम्बर*

अवनी अम्बर कब मिले,आन अमर अहसास!
धरती अब  ये  आकुला, आषाढ़ी बस  आस!
आषाढ़ी   बस   आस, करें   खेती  तो   कैसे!
महँगाई   की   मार,  कहाँ   से    लाएंँ    पैसे!
कहे  लाल  कविराय, सूखती  भू  की धमनी!
अम्बर  करे  निहाल, हरित  तब होगी अवनी!
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.                  २७. *विनती*

विधना  विपदा वारि  वन, वायु  वंश वारीश!
वृक्ष वटी  वसुधा वचन, विनती  वर  वागीश!
विनती  वर वागीस, वरुण  वन वन्य विहारी!
वृहद विप्लवी विघ्न, विनय वंदन  व्यवहारी!
वंदउँ विमल विकास, वाद  विज्ञानी विजना!
वरदायी  विश्वास, वरण  वर विनती विधना!
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.                २८.  *भावुक*

भावे  भजनी  भावना, भोर भास  भगवान!
भले भलाई भाग्य भल,भावुक भाव भवान!
भावुक  भाव  भवान, भजूँ  भोले भण्डारी!
भरे  भाव  भिनसार, भाष  भाषा  भ्रमहारी!
भय भागे भयभीत, भ्रमित भँवरा  भरमावे!
भगवन्ती   भरतार, भगवती   भोला   भावे!
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.                २९. *अविरल*

अविरल  गंगा धार है, अविचल हिमगिरि शान!
अविकल बहती नर्मदा, कल कल नद पहचान!
कल कल नद पहचान, बहे अविरल  सरिताएँ!
चली  पिया  के  पंथ,  बनी  नदियाँ   बनिताएँ!
शर्मा  बाबू  लाल, देख  सागर   जल  हलचल!
जल पथ यातायात, सिंधु सरि चलते अविरल!
.                    👀👀👀
.                   ३०. *सागर*

जलनिधि तू वारिधि जलधि, जलागार वारीश!
सिंधु  अब्धि अंबुधि  उदधि, पारावार   नदीश!
पारावार    नदीश ,  समन्दर    तुम    रत्नाकर!
नीरागार      समुद्र  , पंकनिधि  अर्णव   सागर!
नीरधि   रत्नागार, नीरनिधि  कंपति  बननिधि!
मत्स्यागार पयोधि, नमन तोयधि  हे जलनिधि!
👆 *सागर के 26 पर्यायवाची*
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रचनाकार:- ✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
(वरिष्ठ अध्यापक)
नि.सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
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