जर्जर नौका गहन समंदर

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~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा *विज्ञ*
. 🦚 *गीत/नवगीत*  🦚
*जर्जर नौका गहन समंदर*
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मँझधारों में माँझी अटका,
क्या तुम पार लगाओगी।
जर्जर नौका गहन समंदर,
सच बोलो कब आओगी।

भावि समय संजोता माँझी
वर्तमान की तज छाँया
अपनों की उन्नति हित भूला
जो अपनी जर्जर काया
क्या खोया, क्या पाया उसने
तुम ही तो बतलाओगी।
जर्जर ................... ।।

भूल धरातल भौतिक सुविधा
भूख प्यास निद्रा भूला
रही होड़ बस पार उतरना
कल्पित फिर सुख का झूला
आशा रही पिपासित तट सी
आ कर तुम बहलाओगी। 
जर्जर......................।।

पीता रहा स्वेद आँसू ही
रहा बाँटता मीठा जल
पतवारें दोनों हाथों से 
खेते खोए सपन विकल
सोच रहा था अगले तट पर
तुम ही हाथ बढ़ाओगी।
जर्जर..................।।

झंझावातों से टकरा कर
घाव सहे नासूरी तन
चक्रवात अरु भँवर जाल से
हिय में छाले थकता तन
तय है जब मरहम माँगूगा
तुम हँस कर बहकाओगी।
जर्जर......................।।

लगे सफर अब पूरा होना
श्वाँसों की तनती डोरी
सज़धज के दुल्हन सी आना
उड़न खटोला ले गोरी
शाश्वत प्रीत मौत केवट को
तय है तुम तड़पाओगी।
जर्जर....................।।
.           🦢💧🦢
✍©
बाबू लाल शर्मा बौहरा 'विज्ञ"
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼

Comments

  1. सुंदर 👌🏻👌🏻👌🏻

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  2. बहुत सुंदर सृजन हृदय स्पर्शी।
    आध्यात्मिक सा ।

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