उल्लाला छंद (१३,१३) शतक
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~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा,विज्ञ
*उल्लाला छंद (१३,१३) विधान*
जगण रहित
विषम चरण - १३ मात्रा
सम चरण. - १३ मात्रा
चार चरण का छंद,
दोहे की तरह समांत
चरणांत में २१२अनिवार्य,
समकल से चरणारंभ हो
. *उल्लाला छंद शतक*
. १०० छंद
*. १. श्री गणेशाय: नम: ~*
गौरी सुत हे शिव तनय,
जय गणेश भगवान तुम।
कविता लेखन कल्पना,
चाहें प्रभु वरदान हम।।
*. २. माँ शारदे वंदन ~*
हे माँ शारद आइए,
उत्तम करिए कर्म सब।
दो छंदो का ज्ञान तुम,
निभना है कवि धर्म अब।।
*. ३. कलम की सुगंध ~*
शाला महकेगी सदा,
कविता कलमी गंध भर।
सीखें कविजन छंद यों,
निज श्रम से अनुबंध कर।।
*. ४. गुरु वंदन ~*
माता शारद की कृपा,
सम्मानित विख्यात कवि।
सादर वंदन आपको,
संजय जी विज्ञात रवि।।
*. ५. निज मन मंथन ~*
कविता मेरा कर्म यह,
मानें असि की धार मन।
शर्मा बाबू लाल नित,
सीखे नव सुविचार धन।।
*. ६. मानव~*
मानव तन वरदान है,
दुर्लभ प्राकृत साधना।
देवों के मन चाह यह,
नर तन मानस कामना।।
*. ७. बंधन~*
बंधन शुभ संस्कार का,
मन बंधित कब मानवी।
जन जीएँ उन्मुक्त जो,
पशु खग है या दानवी।
*. ८. होली~*
होली होनी सो हुई,
उतरे सारे रंग जब।
पत्ते उतने ढाक के,
मानस नर बदरंग अब।
*. ९. निर्मल ~*
नद नर्मद निर्मल बहे,
सरिता पावन जाह्नवी।
सरि झरने तालाब को,
कर मत दूषित मानवी।।
*. १०. करुणा ~*
करुणा मन में धार कर,
रघुपति गिरधर जानिए।
त्रिशला नंदन, बुद्ध को,
अवतारी नर मानिए।।
*. ११. अनुपम~*
प्रभु छवि अनुपम जानिए,
संगत हो जब जानकी।
लक्ष्मण पहरे पर रहें,
सेवा हो हनुमान की।।
*. १२. बाबुल~*
बाबुल मिथिलापति जनक,
पति रघुवर प्रतिपाल थे।
देवर लक्ष्मण शेष अहि,
वन में खेले लाल थे।।
*. १३. बाती~*
बहता नर में नेह नद,
तिय मन मिल मृगलोचनी।
दीपक बाती तेल से,
तम हर करते रोशनी।।
*. १४. कलकल~*
कवि की कमिता कल्पना,
कहती कविता कोकिला।
बहती कलकल नाद नद,
मन प्रिय सागर से मिला।।
*. १५. उड़ना~*
राणा साँगा वीर जो,
मेवाड़ी सरदार था।
निज भाई पृथ्वी बड़ा,
उड़ना राजकुमार था।।
. *अथवा*
सीखा उड़ना बाज ने,
अपनी प्यारी मात से।
पंछी चिड़ियाँ मारता,
बचता निज आघात से।।
*. १६. भारत~*
भारत मेरा देश वर,
वीरों का शुभ मान है।
नद पर्वत मैदान मय,
सागर भी वरदान है।।
*. १७. राहें ~*
कंटक मय पथ भी भले,
यदि होता हित देश का।
सीमा निज रक्षित रखें,
वंदन सैनिक वेश का।।
*. १८. कंटक~*
कंटक रक्षक फूल के,
अनुशासन के रूप में।
सँभले राही बढ़ गए,
कुछ गिरते भव कूप में।।
*. १९. चलना~*
चलना देखो चंद्र का,
नियमित संयम जानिए।
धारा नदियाँ बह चले,
प्रिय प्रेमिल चित मानिए।।
*. २०. बोली ~*
भाषा बोली मानवी,
जो अनुपम सौगात है।
बदले हर परिवेश में,
कोयल कागा बात है।।
*. २१. अभिलाषा~*
मन अभिलाषा कीजिए,
करता हूँ नित कामना।
चाहूँ मरना देश हित,
सच मेरी मन भावना।।
*. २२. पूजन~*
साथी चलना सब अभी,
पूजन सीमा भारती।
रक्तिम होली खेलकर,
गाएँ भारत आरती।।
*. २३. बीमारी~*
बीमारी यह पाक की,
मिटती भारत क्रोध से।
आतंकी को मारना,
नव शस्त्रों नव शोध से।।
*. २४. मिलकर~*
मिलकर रहते धर्म मय,
भारत के भगवान अब।
हर विपदा का सामना,
करते मिल बलवान सब।।
*. २५. सपने~*
देखे सपने देश के,
मानव का कल्याण हो।
मेरा भारत विश्व गुरु,
जन के बसते प्राण हो।।
*. २६.शीतल~*
तन मन शीतल रख सखे,
मृदु रखलें व्यवहार हम।
जीवन पथ मय रोशनी,
छँट जाए भव घोर तम।।
*. २७. आपस~*
आपस में रह प्रेम से,
त्यागो ईर्ष्या द्वेष जन।
भारत माँ के पूत हम,
शुभ रखना परिवेश मन।।
*. २८. तुलसी~*
पंडित आत्मा राम के,
घर में शुभ आभास था।
हुलसी हुलसी जन्म दें,
शिशु वह तुलसी दास था।
*. २९. परिभाषा~*
भाषा परिभाषा रहे,
वैज्ञानिक सिद्धांत हैं।
लेखक ढूँढे कवि बहुत,
फिर भी मानव क्लांत है।।
*. ३०. धरती~*
धरती माँ जैसे हमें,
देती सहती धारती।
निज मानव कर्तव्य है,
सेवा करलें आरती।।
*. ३१. चूड़ी~*
चमके कर में चूड़ियाँ,
कंगन पहने कामिनी।
पतिमय तिय तप तेज से,
शर्माए नभ दामिनी।।
*. ३२. पायल~*
घुँघरू पायल सज रहे,
थिरके काया नृत्य हित।
साजन सावन में सखी,
खुशियों में तिय दत्तचित।।
*. ३३. वेणी~*
कुंतल वेणी गूँथकर,
बाँधे जूड़ा पुष्प मय।
सज सोलह शृंगार वह,
संकोची प्रेमिल उभय।।
*. ३४. माला~*
माला गूँथे मालिने,
हर माला पर भिन्न है।
वर माला बनती कई,
कुछ शव पर विच्छिन्न है।।
*. ३५. काजल~*
काजल काला कोयला,
सम रूपक है कृष्ण तम।
तिय दृग चूल्हा भट्टियाँ,
कान्हा राधा तृष्ण सम।।
*. ३६. माणिक~*
माणिक मिलते शैल पर,
मोती गज के शीश में।
सागर जल में रत्न हैं,
नर मन रम जगदीश में।।
*. ३७. गढ़ना~*
गढ़ना देखो कुम्भ का,
कर उर ऊपर चोट धर।
सतगुरु चाहे शिष्य में,
गुण हों सारे खोट हर।।
*. ३८. थाती~*
थाती भारत देश की,
संस्कृति अरु संस्कार वर।
गुरुजन माँ का मान सच,
जीवन सत आचार पर।।
*. ३९. भावी~*
जाने मुनि भावी बने,
सीता पति श्री राम हैं।
लेकर अपने साथ में,
पहुँचे मिथिला धाम हैं।।
*. ४०. पारस~*
मानव पारस खोज मत,
बन पारस आदित्य तन।
संगति सुधि सर्वस मिले,
लिख उत्तम साहित्य मन।।
*. ४१. गुरुकुल~*
वैदिक युग में वेद रच,
दी अनुपम सौगात नर।
वंदन ऋषिवर का करे,
जन ज्ञानी आभार कर।।
*. ४२. गुरुकुल~*
गुरुकुल में पढ़ वेद जो,
कर लेते कंठस्थ सब।
वे ऋषि मुनि जन धन्य थे,
वच विद्या मध्यस्थ तब।।
*. ४३. रिमझिम~*
रिमझिम बरसे मेह जब,
सावन साजन नेह द्वय।
सुन्दर वह घर स्वर्ग से,
नर नारी द्विज देह मय।।
*. ४४. पाठक~*
पाठक कविता छंद के,
आलोचक विद्वान सब।
कवि लेखक साहित्य के,
रविसम दिनकर मान अब।।
*. ४५. चिट्ठी~*
चिट्ठी आती मात की,
जब सैनिक के पास में।
बोले जय जय हिन्द वह,
पढ़ता मंगल आस में।।
*. ४६. विपदा~*
विपदा में परखें सखे,
धीरज मित तिय धर्म को।
मानव जीवनपथ कठिन,
कर निर्धारित कर्म को।।
*. ४७. लीला~*
वह लीला यदुनाथ प्रभु,
राधा रुक्मिनि वाम की।
मीरा सी सत साधिका,
ढूँढे रज ब्रज धाम की।।
*. ४८. गोदी~*
जिस गोदी खेले सुता,
बड़ भागी पितु मात है।
ईश्वर का वरदान यह,
प्राकृत की सौगात है।।
*. ४९. तुलना~*
तुलना जन धन की करें,
गुण दौलत व्यापार से।
शिक्षा धन विज्ञान बल,
जीवन धन व्यवहार से।।
*. ५०. कीचड़~*
कीचड़ में खिलता कमल,
कहते पंकज लोग सब।
सदगुण निज विकसित करे,
गंधित सुंदर योग अब।।
*. ५१.चाकर~*
चाकर करता चाकरी,
सेवा करता दास चर।
साधक करते साधना,
कान्हा करते रास नर।।
*. ५२.भरती~*
कविता भरती तेज मन,
पनिहारी घट नीर नित।
भर जड़ चेतन भू उदर,
मानस माता धीर हित।।
*. ५३.जगती~*
धारित जग जगती वही,
धरती माता धैर्य धन।
नभ पावक जल वायु मय,
प्राकृत सविता स्थैर्य जन।।
( स्थैर्य ~ दृढ़ता, स्थिरता )
*. ५४. बचपन~*
बचपन चाहें हों युवा,
पाएँ दौलत शक्ति तन।
पचपन में नर चाहते,
बचपन कोई भक्ति मन।।
*. ५५. झरना~*
सब गिरते को देखते,
नर झरना या मेह को।
मानव उठकर थाम ले,
गिरती दुर्बल देह को।।
*. ५६.वाणी~*
वाणी मृदु सच बोलिए,
मिथ्या भाषण भूल कर।
सच्चाई छिपती नहीं,
बन जाते मिथ शूल नर।।
*. ५७.पानी~*
पानी भू अनमोल है,
जड़ चेतन जग जीव हित।
बहती सरिता का रहे,
कलकल का संगीत नित।।
*. ५८.माया~*
माया जन जगदीश की,
जग जंगम में व्याप्त है।
कुछ नर दाता है सदा,
जन वंचित कुछ प्राप्त है।।
*. ५९.ज्वाला~*
जग जगती ज्वाला जलन,
दीपक दाहक क्रांतियाँ।
पावक रोशन ज्योतिका,
जनजीवन जग भ्रांतियाँ।।
*. ६०. पनपे~*
पनपे पागल पातकी ,
खल आतंकी चोर जन।
सीमा पर ही मारिए,
बिन सींगों के ढोर तन।।
*. ६१.संकट~*
संकट में संसार जन,
फैला कैसा रोग यह।
कोविड़ का भारी कहर,
तन विपदा संयोग यह।।
*. ६२.औषधि~*
औषधि लेना पथ्य खा,
रहना हर परहेज से।
नादानी करना नहीं,
जल्दी उठना सेज से।।
*. ६३.कड़वी~*
कड़वी भाषा सीख मत,
कागा जैसे बोलकर।
कोयल मैना कीर सम,
वाणी में रस घोल नर।।
*. ६४.कलयुग~*
कलयुग है अभियांत्रिकी,
कलियुग द्वापर बाद में।
कल युग बदले सोच लें,
रख कलि सम्वत याद में।।
*. ६५.खिचड़ी~*
कुंतल खिचड़ी हो रहे,
झुर्री वाले गाल द्वय।
वृद्धावस्था है निकट,
बढ़ते सिलवट भाल वय।।
*. ६६. मारुति~*
मारुति नंदन नाम से,
काँपे हर बेताल खल।
भूतों प्रेतों के सहित,
मिटते मारक चाल बल।।
*. ६७.काँसा~*
ताँबा पीतल योग कर,
बनता काँसा योग जब।
थाली बर्तन भोज हित,
मिटते कायिक रोग तब।।
*. ६८.पनघट ~*
प्रिय पनघट प्यासे हुए,
जल पहुँचा पाताल अब।
गागर मटकी घट घटे,
लख पनिहारी चाल कब।।
*. ६९.आँचल~*
आँचल माँ का थामकर,
शिशु बढ़ चलते पंथ पर।
गुरु बन जननी पालती,
पढ़ता बढ़ शिशु ग्रंथ हर।।
*. ७०.मधुबन ~*
मधुवन में स्मृतियाँ बसी,
राधा मय यदुनाथ की।
गो गिरि गोपी श्याम छवि,
लकुटी मय प्रभु हाथ की।।
*. ७१. शुभदा~*
माता शुभदा शारदे,
दे मति लिख दूँ छंद पद।
सामाजिक सद्भाव हो,
हर जन मन के द्वंद मद।।
*. ७२. गहरी~*
प्रभु आस्था घर नींव मित,
गहरी रखिए सीख मन।
शिक्षा पोषण स्वच्छता,
उत्तम जीवन लीख जन।।
*. ७३.भाषा~*
हिन्दी भाषा सीखिये,
भारत का अभिमान हो।
मानव मानस एकता,
ऐसा जन अभियान हो।।
*. ७४. मंगल~*
मंगल ग्रह पर खोजते,
जन जीवन की आस हो।
जीवन में मंगल रहे,
जल धरती शशि भास हो।।
*. ७५.साबुन~*
तन वस्त्रों की गन्दगी,
जल साबुन से दूर कर।
मन मानस निर्मल रहे,
सत्संगति भरपूर कर।।
*. ७६. यमुना~*
यमुना गिरि वन जन सखे,
बड़भागी तरु धेनु सब।
कान्हा राधा गोपियाँ,
मधुवन कण कण रेनु अब।।
*. ७७. रोचक ~*
रोचक लीला कृष्ण की,
मधुरिम मुरली तान पर।
ता ता थैय्या नृत्य वह,
राधा जी की शान वर।।
*. ७८. अंबर~*
अंबर पनघट लिख दिया,
गागर तारक मानिए।
जय शंकर रचते उषा,
पनिहारी पहचानिए।।
*. ७९. रेखा~*
रेखा कर की क्या करे,
जीवन की पहचान नर।
संकट श्रम कर के मिटे,
कर्मो से मिथ मान हर।।
*. ८०. तीरथ~*
तीरथ मंदिर घाट नद,
पूजित जन विख्यात सब।
वेदों में विज्ञान यह,
सब जग को विज्ञात अब।।
*. ८१. मुखिया~*
सूरज सम मुखिया सदा,
दल हो या सरकार घर।
जन मत को अवसर भले,
पोषण हित आधार पर।।
*. ८२. गुड़िया ~*
गुड़िया खेले जब सुता,
तब नित गुड़िया पर्व सम।
जिस घर जन्मे बालिका,
कर ले उन पर गर्व हम।।
*. ८३. रचना~*
रचना देखो देह की,
तरु जग घर ब्रह्माण्ड भू।
रग रग में विज्ञान है,
कण कण से मृद भाण्ड भू।।
*. ८४. जननी~*
जननी शिशु को जन्म दे,
पालन करती मात नित।
विधना सा होता पिता,
नर मत कर आघात चित।।
*. ८५. सविता~*
रचना कर सविता बने,
दिनकर बन दिन मान जन।
मानव मानस तेज भर,
दीपक सम दिवसान बन।।
*. ८६. शोणित ~*
रण में शोणित बह गया,
झेली मारी गोलियाँ।
भारत माँ की शान हित,
खेले सैनिक होलियाँ।।
*. ८७. साधक~*
सच्चे साधक छंद के,
रखते मात्रा ज्ञान जब।
अक्षर अक्षर जोड़ते,
लिखते देकर ध्यान तब।।
*. ८८. नीलम~*
नीलम की प्रतिमा पुरा,
बनती अनुपम दिव्यतम।
पूजित मंदिर धाम में,
अब भी लगती नव्यतम।।
*. ८९. नवधा~*
वर्णन नवधा भक्ति का,
करते प्रभु श्री राम हैं।
शबरी सुनती भाग्य वर,
होकर तब निष्काम है।।
*. ९०. काली~*
काली दुर्गा शक्तियाँ,
गौरी सीता मात हैं।
लक्ष्मी सी हैं सब सुता,
नर कर तिय बल ज्ञात हैं।।
*. ९१. भीनी~*
भीनी गंधित क्यारियाँ,
बगिया फल दल से लदी।
मुनि आश्रम पावन बने,
तट बहती गंगा नदी।।
*. ९२.मानस~*
मानस तुलसी दास का,
मर्यादा प्रभु राम की।
मानव हित भागीरथी,
महिमा रघुवर नाम की।।
*. ९३.टेसू ~*
टेसू केसू के सुमन,
किंशुक भी कहते सभी।
खिलते तरुवर ढाक में,
लगते पावक से कभी।।
*. ९४.आतप~*
आतप मौसम है सखे,
पछुआ चलती है पवन।
सूखी भू पर लू बनी,
झुलसाती है तन बदन।।
*. ९५. कारण~*
कारण खोजें रोग का,
नैदानिक उपचार कर।
औषधि निर्भर स्वस्थता,
रोगी के व्यवहार पर।।
*. ९६. अचला~*
अचला रवि परि घूमती
घूर्णन करती केन्द्र पर।
चूनर धानी हेतु भू ,
निर्भर है देवेन्द्र पर।।
*. ~ अथवा ~*
भू घूमें घूर्णन करे,
ज्यों घूमें मनसाज जब।
उल्लाला छांदश शतक,
लिख पाए कविराज तब।।
*. ९७. गुंजन~*
गुंजन करते छंद नव,
लिखते पद कविवृंद है।
महके गंधित कवि कलम,
ऐसी शाला छंद है।।
*. ९८. तारा~*
हिमकर-तारक-तारिका,
सोचें जो उपनाम है।
कौशिक-कवि-कवयित्रियाँ,
शाला में कृतकाम है।।
*. ९९. चातक~*
चातक से हैं कवि सुजन,
प्रणधारी साहित्य हित।
हिन्दी शाला छंद में,
मानित ये आदित्य सित।।
*. १००.उल्लाला~*
उल्लाला छांदश शतक,
सुन्दर रचना साज वह।
कवियों की मन कामना,
पूरी होती आज यह।।
. ••••••••••
✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ
सिकंदरा, ३०३३२६
जिला- दौसा, राजस्थान
👀👀👀👀👀👀👀👀👀
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