नवगीत- प्रीत की रीत

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~~~~~~~~~~_बाबूलालशर्मा,विज्ञ_
*गंगोदक सवैया*  आधारित
२१२ २१२ २१२ २१२,
२१२ २१२ २१२ २१२
.        🌼  *नवगीत*  🌼
*प्रीत की रीत का गीत गाते रहे,*
*मीत वे  शीत में  पात जैसे दहे।*

*छंद के द्वंद से  फंद में जिंद से,*
*नंद  के  चंद्र  में इंद्र  जैसे  रमें।*
*दोहरे   दोहते   दोहरे   ही  हुए,*
*दो  रहे  दो  बहे  दो गए दे हमें।*
*बात वे याद हैं  रात भारी कटे,*
*ज्ञात है घात वे शांत होते सहे।*
*प्रीत...............................।।*


*संग में  अंग थे  नंग जन्मे  सखे,*
*रंग के  चंग भी  भंग  जैसे  गमे।*     
*केश भी कृष्ण वे क्लेश देते नये,*
*'विज्ञ' होते वही  श्वेत हो के जमे।*
*ढंग  से  दंग  हो  नैन हो  गंग से,*
*कंक से शंख के  पंक  धोते बहे।*
*प्रीत.................................।।*


*वेष हीने  जने  देश  में  मेष  से,*
*द्वेष आवेश में  शेष शैय्या थमे।*
*हो  विधाता हमारे प्रदाता तुम्ही,*
*रोग दे भोग दे  योग दे  दो क्षमें।*
*जन्मते शान से ज्ञान के भान में,*
*आन के ध्यान में मान सारे ढहे।*
*प्रीत.................................।।*

*साथ थे नाथ से माथ पे हाथ थे,*
*सार्थ  छोड़े हुए पार्थ के बाण हैं।*
*मेड़  के  पेड़  से  छेड़  भारी हुए,*
*नेह के  मेह को  देह  में  प्राण है।*
*गेह  की  रेत से पंथ के रंक ज्यों,*
*जंग की खंग से  खंड  रोते कहे।*
*प्रीत  की  रीत के  गीत  गाते रहे,*
*मीत वे  शीत  में पात  जैसे  दहे।।*
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*बाबू लाल शर्मा, बौहरा,'विज्ञ'*
*सिकन्दरा, दौसा,  राजस्थान*
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नवगीत को स्वर दिया है गायिका पूनम दुबे वीणा जी 
https://youtu.be/VKWYayR2Ao0

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