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Showing posts from November, 2021

प्रेम विरह के दोहरे

👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀 ~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा,विज्ञ ❤️🌹 *प्रेम - विरह के दोहरे......*🌹❤️ १ जैसे भी तुम हो जहाँ, खुश रहना मन मीत। दोष  हमें  देना  नही, मिले  तुम्हे  हर जीत।। २ सुप्त करो मन को नहीं, खिलते बनो गुलाब। प्रीति रीति यों पालिए, कलकल बहे चिनाब।। ३ बाट देख  कर सो  गया, खिले न  तारे रात। नेह ढूँढ़  कर खो  गई, यादों  की   बरसात।। ४ तकता रहूँ चकोर बन, शशिसम तुम को मीत। मेघ  बीच  में  आ  रहे, निभे  न  दर्शन  प्रीत।। ५ प्रेम सभी  चाहे  मनुज, हर पल मन सम्मान। देना  वह  चाहे  नही, प्रेमिल  मन  प्रतिदान।। ६ प्रेम  प्रेम  सब जन कहें, करे  असंख्यों  लोग। मनुज निभाते भी बहुत, कुछ समझे यह रोग।। ७ रूठ रूठ कर प्रेम का, बुनते निश दिन जाल। मीत स्वयं ही फँस रहे, सहज काल की चाल।। ८ पड़े  गँठीली  गाँठ बहु, उलझे  मन की डोर। सुलझाए  सुलझे  नहीं, पचे  रात  हो  भोर।। ९ प्रीति पुष्प कुम्हले मनुज, खिले न फ...

भोर महारानी जगो

👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀 ~~~~~~~~~~~~~~~_बाबूलालशर्मा,विज्ञ_ .            🌼 *दोहा छंद शतक* 🌼 .           🌹भोर महारानी जगो 🌹 .              👀🌹१००🌹👀 १ प्राकृत छटा निहारिए, सुन चिड़ियों का शोर। भोर  महारानी  जगो,  मौसम  है  चित चोर।। २ जागे खग मृग और जन, भक्त सहित भगवान। भोर  महारानी  जगो,  हुआ  नवल   दिवमान।। ३ कुसुम खिले गुलदान सी, लगी कामिनी देह। भोर  महारानी  जगो,  बरसे  सरस   सनेह।। ४ नेह  मेह  से  देह  में,  उठती  रही  हिलोर। भोर महारानी जगो, सुनकर कलरव शोर।। ५ देह थके मन शांत है, झूम रहे मन भाव। भोर महारानी जगो, डग मग होती नाव।। ६ घन गरजे नभ दामिनी, पुरवाई का शोर। भोर  महारानी  जगो, तकते मोर चकोर।। ७ मौसम हुआ सुहावना, पुरवा चली बयार। भोर महारानी जगो, प्राकृत  रही  दुलार।। ८ सावन की सरगम बजी, नभ छाए घन श्याम। भोर  महारानी  जगो,  तज ...