प्रेम विरह के दोहरे
👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀👀 ~~~~~~~~~~~~~~बाबूलालशर्मा,विज्ञ ❤️🌹 *प्रेम - विरह के दोहरे......*🌹❤️ १ जैसे भी तुम हो जहाँ, खुश रहना मन मीत। दोष हमें देना नही, मिले तुम्हे हर जीत।। २ सुप्त करो मन को नहीं, खिलते बनो गुलाब। प्रीति रीति यों पालिए, कलकल बहे चिनाब।। ३ बाट देख कर सो गया, खिले न तारे रात। नेह ढूँढ़ कर खो गई, यादों की बरसात।। ४ तकता रहूँ चकोर बन, शशिसम तुम को मीत। मेघ बीच में आ रहे, निभे न दर्शन प्रीत।। ५ प्रेम सभी चाहे मनुज, हर पल मन सम्मान। देना वह चाहे नही, प्रेमिल मन प्रतिदान।। ६ प्रेम प्रेम सब जन कहें, करे असंख्यों लोग। मनुज निभाते भी बहुत, कुछ समझे यह रोग।। ७ रूठ रूठ कर प्रेम का, बुनते निश दिन जाल। मीत स्वयं ही फँस रहे, सहज काल की चाल।। ८ पड़े गँठीली गाँठ बहु, उलझे मन की डोर। सुलझाए सुलझे नहीं, पचे रात हो भोर।। ९ प्रीति पुष्प कुम्हले मनुज, खिले न फ...