भोर महारानी जगो

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~~~~~~~~~~~~~~~_बाबूलालशर्मा,विज्ञ_
.            🌼 *दोहा छंद शतक* 🌼
.           🌹भोर महारानी जगो 🌹
.              👀🌹१००🌹👀
प्राकृत छटा निहारिए, सुन चिड़ियों का शोर।
भोर  महारानी  जगो,  मौसम  है  चित चोर।।
जागे खग मृग और जन, भक्त सहित भगवान।
भोर  महारानी  जगो,  हुआ  नवल   दिवमान।।
कुसुम खिले गुलदान सी, लगी कामिनी देह।
भोर  महारानी  जगो,  बरसे  सरस   सनेह।।
नेह  मेह  से  देह  में,  उठती  रही  हिलोर।
भोर महारानी जगो, सुनकर कलरव शोर।।
देह थके मन शांत है, झूम रहे मन भाव।
भोर महारानी जगो, डग मग होती नाव।।
घन गरजे नभ दामिनी, पुरवाई का शोर।
भोर  महारानी  जगो, तकते मोर चकोर।।
मौसम हुआ सुहावना, पुरवा चली बयार।
भोर महारानी जगो, प्राकृत  रही  दुलार।।
सावन की सरगम बजी, नभ छाए घन श्याम।
भोर  महारानी  जगो,  तज कर  अब आराम।।
रवि रथ पूरब में  सजे, बढने  को  तैयार।
भोर महारानी जगो, विहग चहकते द्वार।।
१०
तारे  लौटे  गेह निज, विहग त्यागते गेह।
भोर महारानी  जगो, पूरब  छलके  नेह।।
११
स्वप्न सुफल मेरा हुआ, सजनी संगत नींद।
भोर महारानी जगो, मन में खिल अरविन्द।।
१२
पूरब प्राची लाल लख, पंछी  करते गान।
भोर महारानी जगो, सुन्दर  सजे विहान।।
१३
भृंग कमल  में  बंद  हो, मस्त रहा भर रात।
भोर  महारानी  जगो,  खिले  पंखुड़ी  प्रात।।
१४
आजादी का पर्व यह, मना रहा मम देश।
भोर महारानी जगो, शुभ  सुंदर परिवेश।।
१५
उदय भोर तारा हुआ, स्वागत को तैयार।
भोर महारानी जगो, तम पर करो प्रहार।।
१६
मन क्यों अवसादी हुआ, नींद उनींदे नैन।
भोर  महारानी  जगो, बीत  गई  अब रैन।।
१७
क्षितिज मिलन को यादकर, लगे सूर्य को पंख।
भोर   महारानी   जगो,  घर  घर  बजते  शंख।।
१८
गई सुगंधी  यामिनी, आलस भीगे देह।
भोर  महारानी  जगो, ले  अंगड़ाई नेह।।
१९
नशा चाँदनी का चढ़ा, ताके अभी चकोर।
भोर महारानी जगो, करते खगकुल शोर।।
२०
सावन  मास  सुहावना, त्योहारी रमझोल।
भोर महारानी जगो, सुनिए  सुन्दर  बोल।।
२१
रीति प्रीति व्यवहार के, बदल रहे प्रतिमान।
भोर महारानी जगो, सुन खग कलरव गान।।
२२
निशा गई सुख नींद में, नवल शक्ति भर देह।
भोर  महारानी  जगो, मन  में  भर  नव नेह।।
२३
शीतल है वातावरण, लगे  मेह  की आस।
भोर महारानी जगो, भरिए  मन उल्लास।।
२४
थकित हुए लौटे विहग, अर्द्ध रात्रि निज गेह।
भोर  महारानी  जगो, भर  तन मन  में  नेह।।
२५
बीती मौन विभावरी, आए नवल विभात।
भोर महारानी जगो, भूल  स्वप्न की बात।।
२६
सुखद रही  मधु यामिनी, उमड़ा नेह अपार।
भोर महारानी जगो, तज मन का अँधियार।।
२७
रवि रथ  आए  पूर्व  मेंं, ले अँगड़ाई  रात।
भोर महारानी जगो, स्वागत करे विभात।।
२८
भादव रजनी अष्टमी, लाई  शुभ सन्देश।
भोर महारानी जगो, कान्हा मय परिवेश।।
२९
थके थके  तारे लगे, लौट रहे  निज गेह।
भोर महारानी जगो, बाँटो  सहज सनेह।।
३०
थकी उदासी यामिनी, बीत गई चुपचाप।
भोर महारानी जगो, भूलो  स्वप्न प्रलाप।।
३१
घन असमंजस के हटे, सोच बदलते मीत।
भोर  महारानी जगो, मन में भर नव गीत।।
३२
द्वंद शांत मन का हुआ, बरसा नभ से मेह।
भोर  महा रानी  जगो,  धरा   सहेजे   नेह।।
३३
युग युग से करती धरा, रवि शशि पर विश्वास।
भोर  महारानी  जगो,  होगा   विमल  उजास।।
३४
नेह जलद जल दे गए, धरती को सौगात।
भोर महारानी जगो, झूमी  फिर बरसात।।
३५
करना निज कर्तव्य है, वृथा बात सब भूल।
भोर महारानी जगो, श्रम के  खिलते फूल।।
३६
करे  प्रतीक्षा  रात भर, चीखे  मोर  विहंग।
भोर महारानी जगो, घन गरजे  जल संग।।
३७
घन उमड़े बरसे गगन, चपला चमकी रात।
भोर महारानी  जगो, लेकर  नव  सौगात।।
३८
बादल में तारक छिपे, रवि रथ पथ तैयार।
भोर महारानी  जगो, लेकर नव सुविचार।।
३९
ओस कणों से  हो रहा, धरती का  शृंगार।
भोर महारानी जगो, त्यागो  स्वप्न विकार।।
४०
धरा सहेजे नेह जल, अम्बर का अभिसार।
भोर महारानी जगो, जगे  विहग श्रमकार।।
४१
उड़ती नींद किसान की, तारें सब मदहोंश।
भोर महारानी जगो, त्याग सुखद आगोश।।
४२
दिवस ताप आसोज में, शीतल रात विहान।
भोर  महारानी  जगो, बचें  व्याधि पहचान।।
४३
मेघ  गगन  में  छा रहे, पुरवाई  का जोर।
भोर महारानी जगो, थकता  तके चकोर।।
४४
ऋतु में कुछ बदलाव से, बढ़े मौसमी  रोग।
भोर महारानी जगो, करें मनुज  जप योग।।
४५.
श्राद्ध पक्ष में मेह का, वसुधा पर है राज।
भोर  महारानी  जगो, सोम वार है आज।।
४६.
काटे फसल किसान कुछ, करे खेत तैयार।
भोर  महारानी  जगो, शुभ  हो  मंगलवार।।
४७.
घने मेघ छाए निशा, पछुआ चली बयार।
भोर  महारानी  जगो, बुद्धवार शुभ वार।।
४८.
नील गगन की चंद्रिका, धरती का शृंगार।
भोर महारानी जगो, श्रेष्ठ दिवस गुरुवार।।
४९.
कहीं मेघ का नेह है, बहती कहीं बयार।
भोर महारानी जगो, शुक्रवार शुभ वार।।
५०.
कटती फसल खरीफ की, रबी हेतु तैयार।
भोर महारानी जगो, कर्म दिवस शनिवार।।
५१.
सहती विरह विभावरी, चली समंदर पार।
भोर  महारानी  जगो, रवि लाए  रविवार।।
५२.
टिम टिम करते थक गये, तारे लौटे गेह।
भोर महारानी जगो, श्रम से कर लें नेह।।
५३.
गो, गोरैया गाय भी, कब से रही निहार।
भोर महारानी जगो, फैल रहा उजियार।।
(गो~ पृथ्वी)      
५४.
नहीं चन्द्र की चंद्रिका, बस तारों का जोर।
भोर महारानी जगो, सुनिए खगकुल शोर।।
५५.
प्रथं दिवस नवरात्रि के, घट स्थापन शुभकाज।
भोर  महारानी  जगो, सजें  भक्ति  मय  साज।।
५६.
ताप सहे दिन में धरा, शीतल होती रात।
भोर महारानी जगो, स्वप्न बनी बरसात।।
५७.
नेह मेह की आस में, गिरि तरु रहे निहार।
भोर महारानी जगो, हित  वंदन  करतार।।
५८.
दिवस तपे आसोज के, ताप घटाती रात।
भोर महारानी जगो, बाँटो  सुख सौगात।।
५९.
संधिकाल नवरात्र है, बदल रहा ऋतु चक्र।
भोर महारानी जगो, समय  देह हित वक्र।।
६०.
दिन छोटे रातें बड़ी, समय बड़ा अनमोल।
भोर महारानी जगो, नयनों के पट खोल।।
६१.
उदित भोर तारा हुआ, अरुण शिखा दे बाँग।
भोर महारानी जगो, साहस  समय  छलाँग।।
६२.
शुष्क हृदय बादल हुए, पछुआ मंद समीर।
भोर महारानी जगो, तकते  कृषक अधीर।।
६३.
बीज चने सरसों लिए, है तैयार किसान।
भोर महारानी जगो, सुनो  प्रभाती गान।।
६४.
पर्व दशहरा पर मिले, शीत काल संकेत।
भोर महारानी जगो, सँवरे विहग निकेत।।
६५.
जुते हुए हर खेत को, बीज खाद की आस।
भोर महारानी  जगो, कृषक तके आकाश।।
६६.
धरती खेत किसान को, आश्विन की सौगात।
भोर  महारानी  जगो, सरस  सुधा  बरसात।।
६७.
अलसाए आकाश से, झरती ओस प्रमाण।
भोर  महारानी  जगो, पुरवा  लगे  कृपाण।।
६८.
चंद्र शरद पूनम चले, रविरथ दक्षिण पंथ।
भोर  महारानी  जगो, बढ़े  शीत  उन्मन्थ।।
६९.
चमके शशि निर्मेघ नभ, विदा हुई बरसात।
भोर महारानी जगो, ढलती  स्वप्निल  रात।।
७०.
सँवरे भाग्य किसान के, बरसे कार्तिक मेह।
भोर  महारानी  जगो, बोएँ  फसल  सनेह।।
७१.
नभ से फिर  मिलने लगे, वर्षा के संकेत।
भोर महारानी जगो, जगते कृषक सचेत।।
७२.
घेर पयोधर चंद्र को, रचे श्याम सम रास।
भोर  महारानी जगो, बनी मेह की आस।।
७३.
आश्विन करवा चौथ तिय, किए चंद्र मनुहार।
भोर महा रानी जगो, कर निशि का आभार।।
७४.
ओस कणों से कर रहे, घन भू का आभार।
भोर  महारानी जगो, त्याग नींद अविकार।।
७५.
खेत खेत में अंकुरण, हर अंकुर पर ओस।
भोर महारानी जगो, लख मुक्तामणि कोष।।
७६.
लेते  है संजीवनी, ओस कणों से गाभ।
भोर महारानी जगो, देखें प्राकृत लाभ।।
७७.
मोती सजते ओस के, हर कलिका की नोक।
भोर महारानी जगो, तन  का  आलस  रोक।।
७८.
सोन चिरैया जग गई, खोल सुहाने पंख।
भोर  महारानी जगो, बजे  देव दर शंख।।
७९.
सरकण्डे अरु काँस में, श्वेत खिले हैं फूल।
भोर महारानी जगो, समय  रबी अनुकूल।।
८०.
गेहूँ बोने के लिए, चले कृषक हल धार।
भोर  महारानी जगो, करें  बीज  तैयार।।
८१.
धन तेरस शुभ लाभहित, आज मने त्योहार।
भोर  महारानी  जगो, रवि रथ  पन्थ निहार।।
८२.
रूप चतुर्दश  पर्व शुभ, नेह दान शृंगार।
भोर महारानी जगो, बाँटो सहज दुलार।।
८३.
महा पर्व  दीपावली, मने आज  गुरुवार।
भोर महारानी जगो, स्वागत है हर द्वार।।
८४.
शुभ्र सनातन  रीतियाँ, भरे  भारती  गर्व।
भोर महारानी  जगो, शुभ  गोवर्धन पर्व।।
८५.
वसुधा बहिना बन्धु शशि, अमर रहे संबंध।
भोर महारानी जगो, निभे सुखद अनुबन्ध।।
८६.
मने पर्व त्योहार शुभ, ढले रात सुख धर्म।
भोर महारानी जगो, करना है श्रम- कर्म।।
८७.
झिलमिल तारे डूबते, निभा रात भर प्रीत।
भोर महारानी जगो, सुनो  कार्तिकी गीत।।
८८
उगे पौध हर खेत में, मुकुट ओस का धार।
भोर महारानी जगो, निरखो प्रकृति बहार।।
८९.
नभ के दीपक बुझ रहे, गो बछ रहे पुकार।
भोर महारानी  जगो, तजिए  नींद विकार।।
९०.
सुने प्रभाती कार्तिकी, कलरव करे विहंग।
भोर महारानी जगो, बिखरा  स्वर्णिम रंग।।
९१.
मंदिर में तिय गा रही, कार्तिक राग प्रभात।
भोर  महारानी  जगो, नव चेतन भर  गात।।
९२.
अन्नकूट-अनकुट करें, कार्तिक पावन माह।
भोर महारानी जगो, मिटे सकल हिय दाह।।
९३.
देव उठें- एकादशी, नव्य सृजन हित साज।
भोर महारानी जगो, संकल्पित शुभ काज।।
९४.
देव-मनुज मंगल करें, समय मान अनुकूल।
भोर महारानी  जगो, आलस त्याग समूल।।
९५.
शुक्र चमकता नभ चढ़ा, चंदा हुआ उदास।
भोर महारानी जगो, विजयी हुआ उजास।।
९६.
चढ़ा श्वेतरथ अग्रणी, रविरथ पन्थ प्रकाश।
भोर महारानी जगो, तय है तिमिर विनाश।।
९७.
चकवे चोर चकोर चुप, कलरव करे विहंग।
भोर महारानी  जगो, भर  कर  देह  उमंग।।
९८.
घन छाए आकाश में, चंद्र लगे घन श्याम।
भोर महारानी जगो, त्वरित  सहेजें काम।।
९९
नेह झरे जलबिंदु बन, प्राकृत का वरदान।
भोर महारानी जगो, जनहित कर्म प्रधान।।
१००.
भू पर पसरा कोहरा, पात पात पर ओस।
भोर महारानी जगो, भरो मनुज में जोश।।
१०१.
सौ दिन के सौ दोहरे, 'विज्ञ' साधना सत्य।
भोर महारानी जगो, अर्चन हित आदित्य।।
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✍©
बाबू लाल शर्मा, बौहरा,'विज्ञ'
सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान
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