नव अन्वेषित छंद

[11/27, 12:24 PM] Babulal Bohara Sharma: .                एका छंद 

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित नवीन छंद
एक (१) मात्रा का छंद--
विधान - १ मात्रा, १ वर्ण हो, लघु हो, चार चरण, दो- दो चरण समतुकांत हो।

आम तौर पर यह प्रचलित और उपयोगी नहीं है। एक लघु वर्ण से कविता संभव नहीं है। किंतु छंद विधान समझने के लिए आवश्यक है इसे भी समझ लें।

स......स.....स.....स।
ह......ह......ह.......ह।

स......र.....ग........म।
प......र......च.......म।
.......................आदि

उक्त प्रकार की ध्वनि में यह एका छंद बन जाता है।
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/27, 12:24 PM] Babulal Bohara Sharma: .                    दुआ छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित नवीन छंद -
विधान - २ मात्रा , १ वर्ण हो, गुरु हो, चार चरण, दो- दो चरण समतुकांत हो। जैसे -

श्री, ....
जी, ....
थी, ....
ही, .....
.                   _या_

.           २ मात्रा , दो (२) वर्ण के छंद-- 

विधान:- २ मात्रा, २ वर्ण, लघु लघु, चार चरण, दो- दो समतुकांत हो। जैसे -

भज, तज, रज, सज .....
जय, पय, अब, तब....
जय, जय, जय, जय...
तज, भज, छल, कल, ...
............................. आदि।
.              ©~ बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ
[11/27, 12:24 PM] Babulal Bohara Sharma: .                चंगा छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ, द्वारा निर्मित नवीन छंद -
 विधान:- ४ मात्रा , २ वर्ण हो,
 चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
रामा, श्यामा, वामा, कामा, ..
 .         __४ मात्रा, तीन (३) वर्ण के छंद__
 विधान :-   ४ मात्रा, ३ वर्ण 
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
अपना, सपना...।
मिलना, चलना...।
 धरती, जगती....।
 तन से, मन से....।
सदेह, विदेह.......।
नीरज, धीरज......।
.                   _४ मात्रा, ४ वर्ण_
अजगर, अकसर।
अदरक, कमरक।
कसरत, कर मत।
अवसर, चल कर।
.              ©~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/27, 12:24 PM] Babulal Bohara Sharma: .                  दिया छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित नवीन छंद -
.           ३ मात्रा, दो (२) वर्ण के छंद--
विधान:- ३ मात्रा, २ वर्ण- 
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
भजो, तजो, रजो, सजो .....
यथा, तथा, गया, नया.....
राम, धाम, काम, वाम,...
रोग, भोग,  रेत, खेत....
ओम, सोम, रोम, भोम...

.                ३ मात्रा,३ वर्ण के छंद

जलज
वनज
अजब
गजब
...….... आदि
©~ ~~~~~~~  बाबू लाल शर्मा,बौहरा, विज्ञ
[11/27, 12:24 PM] Babulal Bohara Sharma: .                    पंचमी छंद
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित नवीन छंद -
१. विधान -- ५ मात्रा , ४ वर्ण, प्रति चरण
२११  १
देशहित।
जनहित।
भूल तज।
चूम  रज।
२. विधान -- ५ मात्रा, ४ वर्ण, प्रति चरण
१२१  १
भगा खल।
धरा  जल।
निभे  प्रण।
रखे   त्रण।
३.विधान --  ५ मात्रा, ४ वर्ण, प्रति चरण 
११२ १
सुत मीत।
नव  गीत।
भव  कष्ट।
अब  नष्ट।
४. विधान -- ५ मात्रा, ४ वर्ण प्रति चरण 
१११ २
वह नया.....अब गया।
अधमरा..... घट भरा।
©~~~~~~~~बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 7:49 AM] Babulal Bohara Sharma: .             राखी छंद
अर्चना पाठक निरंतर द्वारा निर्मित -
मापनी-  ६ वर्ण, प्रति चरण 
२१२ २२२  वाचिक
चार चरण, समचरण समतुकांत

.           _याद रह जाएगी_
आस तुम पर बचती, साँस तुम से चलती।
जब चले तन राही, तुम रहो सच खिलती।१
छंद तुम पर लिख दूँ, मेघ बन के सावन।
गीत  नित्य  रचेंगे, पीर   बन  के  पावन।२
गीत तुम संग सजे, छंद सतरंग लिखे।
मौन मन चंग धरे, गीत  जब  ढंग रखे।३
नींद  तय  आएगी, मौत  को  लाएगी।
छंद   शेष   रहेंगे, याद   रह   जाएगी।४
अश्रु रोक कर रखें, धैर्य धार तुम रहो।
छंद गीत बन रहूँ, रीति प्रीति मय बहो।५
जन्म और बन सुता, मात रंग फिर जमें।
याद  तुम  आओगी, बात  याद कर हमें।६
.©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 7:51 AM] Babulal Bohara Sharma: .             कुमकुम छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित नवीन छंद--
विधान -- ६ वर्ण, प्रति चरण 
२२१ २२२ प्रतिचरण (वाचिक)
चार चरण, समचरण समतुकांत

.      _छल छंद मत रचिए_
हे  राधिका आना, तुम गीत वह गाना।
पर साथ में  अपने, वह बाँसुरी  लाना।
तुमने चुराई थी, कल  साँझ ढलते ही।
हम रात भर रोए, मन भाव  पलते ही।

तुम प्रीत जीवन की, संगीत मत मानो।
कोरा  हृदय घर है, तुम मीत हो जानो।
राधा  कन्हैया की, यह कृष्ण राधा का।
मिल सामना करना, हर कष्ट बाधा का।२
अपने कन्हाई को, सपने  दिखाती हो।
तुम रूठ भी जाती, तुम ही मनाती हो।
हे  राधिका गोरी, छल छंद मत रचिए।
यह प्रीत पावन है, शुभभावना पचिए।३
जीना कठिन मानें, भवपंथ कठिनाई।
बस प्रीत साधन है, मनभाव प्रभुताई।
हर पीर आपस की, मनमीत  हर लेंगे।
दृग अश्रु  जो आए, मिल मीत पोंछेंगे।४
©~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 7:59 AM] Babulal Bohara Sharma: .               शांता छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित नवीन छंद--
विधान -- ८ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, सम चरण समतुकांत 
मापनी- १२२ १२२ २२ वाचिक

.     _विजन वात वह वातायन_
कठिन पथ सुयश का साथी
सरल है क्षणिक सुख मिलना।
अगम दल कमल खुशियों के
सुगम नित सुमन का खिलना।१
वहम वर सुखद जीवन का
व्यथित वह रहा कर मन को
मरण तय नियम प्राकृत का
दुखित नित रहा कर तन को।२
व्यजन व्यंजना वर विमला
विजन वात वह वातायन।
चकित चक्षु चंचल चर चितवन
कलम कामिनी कविता मन।३
परम पूज्य पावन पाहन
पलक पुण्य पारावर पल।
जलज जाल जंगल जीवन
जलद जीव जंगम जन जल।४
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ
[11/29, 7:59 AM] Babulal Bohara Sharma: .        १.   _शिवा छंद_
अर्चना पाठक निरंतर ( छ.ग ) द्वारा निर्मित -
विधान - ८ वर्ण प्रति चरण 
१२२ २२२ १२ वाचिक
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
.             _सुत_
मिला शुभ  दीपक वंश का।
शिवम सुत पाठक अंश का।
सरल मन है निज तात सम।
सुजन सब हों विख्यात हम।

.            २.   महेश्वर/ नंदन छंद
विधान - १४ वर्ण, प्रति चरण 
मापनी-
१२२ २२२ १२, २१२ २२२ वाचिक
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
८, ६ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
.              _सजन_
सजन जी मेरे कृष्ण से, राधिका मैं उन की।
वही मन पावन धर्म हैं, धर्मिणी  मैं तन की।
करे प्रभु को वंदन नमन, प्रीति निभ जाएगी।
सृजित नित पद प्रीतम सुने, अर्चना  गाएगी।
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 7:59 AM] Babulal Bohara Sharma: .           माधव छंद

संतोष कुमार 'माधव' निर्मित -
विधान -- ८ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
रगण जगण गुरु गुरु 
२१२ १२१    २  २

.  _वक्ष फाड़ डाल_

देश के सुधीर आओ।
भारतीय गीत गाओ।
वीर  देह  दान  देना।
धर्म युद्ध  मान लेना।

राष्ट्र  हेतु  प्राण  धारे।
वक्ष फाड़ डाल प्यारे।
शत्रु  हार  मान  लेगा।
देश  सत्य मान  देगा।

देख शक्ति शत्रु भागे।
दुष्ट को  खदेड़ आगे।
शस्त्र शास्त्र धारते हैं।
दुष्ट   दैत्य  हारते  हैं।

'विज्ञ' देश हेतु जीना।
देश  हेतु  कष्ट पीना।
कर्म पन्थ धर्म जानो।
जैव मर्त्य सत्य मानो।
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 8:01 AM] Babulal Bohara Sharma: .                  विज्ञात छंद
श्री संजय कौशिक 'विज्ञात' द्वारा निर्मित -

 विधान : - ८ वर्ण, १३ मात्राएँ
चार चरण, दो- दो चरण समतुकांत
भगण रगण गुरु गुरु  २११ २१२ २२

.  _कामना_
.          
सागर पार  से आया।
रोग वही यहाँ  लाया।
विश्व विनाश ये जाने।
मानवता  नहीं  माने।

नाशक  भावना भारी।
युद्ध   विषाणु  तैयारी।
सत्य  सुनीति को भूले।
स्वार्थ अनीति के झूले।

फैल  रही  महामारी।
भारत  है  सदाचारी।
जीत  सदा  रहे तेरी।
आनव  कामना मेरी।

मानस  भाव विज्ञातं।
आज हुलास संज्ञातं।
भारत  भारती  हिंदी।
विज्ञ लगे भली बिंदी।
.  ©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, 'विज्ञ'
[11/29, 8:44 AM] Babulal Bohara Sharma: .                      विज्ञ छंद

विधान:-  १४ वर्ण, प्रति चरण 
२२१  २२२, १२२   १२२ २    २
तगण मगण, यगण यगण गुरु गुरु
६, ८  वर्ण पर यति रहे, ५, १२, व १७ वीं मात्रा लघु अनिवार्य है। चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
बाबू लाल शर्मा, बौहरा,विज्ञ द्वारा  निर्मित इस छंद में मापनी का वाचिक रूप भी मान्य है।
.              _हनुमान बजरंगी_
हनुमान   बालाजी, दुलारे  लखन  राघव  के।
प्रभु आप की महिमा, सुनाएँ परम-लाघव के।।
सुग्रीव  सम  संगी, बनाए  भलुक कपि सारे।
अंगद  रखे  तारा, व  बाली  सहज प्रभु मारे।।

ढूँढी  सिया  माता, गये तुम जलधि तर खारे।
धीरज  बँधाया  था, सिया ने तनय कह तारे।।
रावण  महा पापी, धरा सुर जलधि भय शंका।
अभिमान कुचला था, जलाए नगर गढ़ लंका।।

लक्ष्मण हुए मूर्छित, पवन सुत मरुतगति धाए।
हनुमान  बजरंगी, सजीवन गिरि सहित  लाए।।
राक्षस  सभी  मारे, विभीषण प्रजा प्रतिपाली।
लौटे  अयोध्या  तब, मनी  घर  नगर दीवाली।।
©~~~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 8:44 AM] Babulal Bohara Sharma: .                एकता छंद 

विधान:- १४ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, यति पर सोरठे की तरह सम तुकांत हो ।
यगण यगण गुरु गुरु, तगण मगण
१२२  १२२  २    २,  २२१   २२२
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित इस छंद का वाचिक रूप भी मान्य होगा।

.      _मन मौज चलता चल_
चलेंगे सरित सम पथ पर, साजन मिलें सागर।
रुकावट मिले मरु भूधर, सब टालते चल चल।
मिलेंगे सुजन अपने भी, चल साथ  में  ले कर।
फलित हों जतन सपने भी, मनगीत गाते चल।

कहीं  बाँध  नहरों वाली, बाधा  मिले पग  पग।
हरें भव विपद वनमाली, तट तोड़ कर भी चल। 
डराए तपन  हिम रातें, भयभीत मन  मत कर।
करो तुम स्वयं  से बातें, मन मौज चलता चल।

मिलेंगे वनज वन तरुवर, सब मीत वे  पथ के।
बघेरे हरिण खग तट पर, सब संग हँसता चल।
सुफल हो सरित अभिलाषा, सागर  दुलारे  से।
पिया से मिलन की आशा, हो पूर्ण मानस चल। 
©~~~~~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 8:44 AM] Babulal Bohara Sharma: .                 पूजा छंद

विधान: - १४ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
यगण यगण गुरु गुरु, तगण मगण
१२२  १२२  २    २, २२१ २२२
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ निर्मित इस छंद का वाचिक रूप भी मान्य होगा।

.       _कन्हैया तुम्ही लीलाधर_
बजाते  मुरलिया कान्हा, राधा  बुलाने  को।
चली राधिका गोरी भी, हरि को रिँझाने को।
परस्पर मनो भावों  से, मन प्रीति पलती है।
युगों से यही मानस में, शुभ रीति चलती है।

रचा कर महाभारत  रण, हरि  सारथी  बनते।
सुना कर गहन गीता तब, भ्रम पार्थ का हरते।
पितामह सहित सब योद्धा, रण बीच मरवाए।
सखी द्रोपदी पांडव सुत, तब राज्य दिलवाए।

कन्हैया तुम्ही  लीलाधर, जग  को नचाते हो।
कहीं नाश कर देते हो, फिर आस जगाते हो।
बची हैं सुखद  आशाएँ, विश्वास प्रभु तुम से।
सुदर्शन लिए आजाओ,जग को बचा तम से।
©~~~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 8:44 AM] Babulal Bohara Sharma: .                महेश छंद

विधान:- १४ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, यति पर (सोरठा की तरह) सम तुकांत हो।
तगण मगण, यगण यगण गुरु गुरु 
२२१  २२२,  १२२  १२२  २   २
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ निर्मित इस छंद का वाचिक रूप भी मान्य होगा।

.       _भलाई जगत की चाहे_
चलती हवा कहती, सनेही सतत चलना है।
गाए नदी बहती, चुनें पथ पथिक साहस से।
तन मन रखें उजले, सताएँ  नही जीवों को।
प्राकृत  धरा सज ले, बचाओ  हरे पौधे वन।

जब सूर्य  उगता है, सवेरा नया  नित लाता।
तन नव्य  लगता है, विधाता यही सविता है।
शशि चंद्रिका तम को, हराने करे जग रोशन।
आकाश से हम को, सितारे  चमक बिखराते।

जल मेघ  बरसाता, सहेजें  फसल खेतों पर।
घन नीर  भर लाता, समंदर  सरित सरवर से।
कवि छंद लिखते नव, भलाई जगत की चाहे।
लिख विज्ञ रखते भव, नई पीढ़ियों के हित में।
©~~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 8:49 AM] Babulal Bohara Sharma: अर्चना पाठक निरंतर ( छ.ग ) द्वारा निर्मित -

.            .   महेश्वर / नंदन छंद

विधान - १४ वर्ण, प्रति चरण 
मापनी-
१२२ २२२ १२, २१२ २२२ वाचिक रूप मान्य होगा 
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
८, ६ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।

.              _सजन_

सजन जी मेरे कृष्ण से, 
राधिका मैं उन की।
वही मन पावन धर्म हैं, 
धर्मिणी  मैं तन की।
करे प्रभु को वंदन नमन, 
प्रीति निभ जाएगी।
सृजित नित पद प्रीतम सुने,
 अर्चना  गाएगी।
.         ----+---
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 8:50 AM] Babulal Bohara Sharma: .          निरंतर छंद
अर्चना पाठक निरंतर द्वारा निर्मित -
  विधान :- १४ वर्ण, प्रति चरण 
चार चरण, ६, ८ वें वर्ण पर यति हो।
 सम चरण सम तुकांत हो
२१२ २२२, १२२ २२२ १२

.           _हमारी आशा_
आज आओ प्यारे, मुझे भी ले जाओ सखे।
प्राण प्यारे हो जो, लगा के सीने से रखे।१
प्राण पे भारी हो, तभी तो लाचारी कहें।
नैन गीले हैं  ये, किनारे  जोरों  से  बहे।२
साथ ले जाओगे, कहा था तोड़ा है जिया।
मेघ हो आवारा, यहाँ की रानी है सिया।३
भोर के चंदा हो, मिलाया तारों ने यहाँ। 
पूछते हैं  नैना, बताओ  ढूँढूँ  मैं  कहाँ।४
साँस में आ जाओ, सजाऊँ श्वाँसों को पिया।
रूठ जो मैं जाऊँ, मना लो सच्ची हूँ सिया।५
जिंदगी जीने की, हमारी आशा ही कहूँ। 
 बंध जन्मों का ये, हमेशा  बाँधे  ही रहूँ।६
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 8:53 AM] Babulal Bohara Sharma: .                राधेगोपाल छंद
राधा तिवारी 'राधेगोपाल' निर्मित -

विधान -- १४ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
मगण रगण, मगण रगण लघु गुरु 
२२२  २१२,  २२२  २१२  १    २ 
 वाचिक रूप भी मान्य होगा।

..      _मन गिरवी तन रहन रखा_
मिलना तो  स्वप्न  है, जाने हम तुम पथिक कहाँ।
मर कर फिर जन्म लें, मिल जाना तब प्रिये वहाँ।
जब तक यह  तन रहे, साँसे तुम बिन चले नहीं।
यह तन मन  डोर  भी, मेरी  बंधित नियति रही।
हम करते प्यार सच, तुम करते औपचारिकता।
दिल को हम दे चुके, छल कर मत दर्द सालता।
हे छलिया सारथी, कब तक यूँ छल सहन करें।
क्या यह अपराध था, दिल से मत खेल यूँ अरे।
छलती तुम  कृष्ण को, या प्रभु छलते तुम्हे रहे।
भ्रम मन में व्यापता, किसके कितने नयन बहे।
छलबलिये साथिया, मन गिरवी तन रहन रखा।
कब क्या हम ने लिया, बस मन ने प्रणय चखा।
©~~~~~~~~~   बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 8:54 AM] Babulal Bohara Sharma: .                आख्या छंद
अनिता सुधीर 'आख्या' द्वारा निर्मित -

विधान :--  १४ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
वाचिक रूप मान्य है।
रगण मगण,  रगण मगण गुरु लघु
२१२ २२२,  २१२  २२२  २    १

.          _ छंद अपने मन के भाव_

वीर वर की जय जय, आरती का लेकर थाल।
भारती  के  हित  जो, वीर  बनता बीता काल।
देश  अपना पहले, लोक मत को गुरुतम  जान।
बोल जय जय भारत, विज्ञ करता कविता गान।

छंद लिख नित न्यारे, गा रही है अनिता धीर।
साथ सब कविजन रह, छंद से जो हरते पीर।
विज्ञ शर्मा लिख ले, छंद अपने मन के भाव।
आप लिख लेना जो, आपके हो मन में चाव।
©~~~~~~~~~   बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 8:57 AM] Babulal Bohara Sharma: .          सुवासिता छंद
चमेली कुर्रे नेताम 'सुवासिता द्वारा निर्मित -

विधान -  १४ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
वाचिक रूप मान्य है।
यगण मगण, मगण यगण लघु गुरु 
१२२  २२२, २२२  १२२  १    २

. _ भाव भर भर लिखे_

सुवासित हो कविता, 
कवि यदि भाव भर भर लिखे।
प्रमाणित सूरज सम, 
करना छंद लिख कर सखे।

चमेली सम भगिनी, 
ईश्वर का सृजन है सुजन।
सदा जो कवि जन में, 
करती छंद हित के जतन।।
©~~~~~~~~     बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 9:26 PM] Babulal Bohara Sharma: .             स्वाति छंद

राधा तिवारी, राधेगोपाल निर्मित -
विधान--  १४ वर्ण का छंद (८+६)
सोरठा की तरह विषम चरण समतुकांत हो।
विषम चरण - ८ वर्ण, सम चरण ६ वर्ण।
२२२  २१२  १   २,  २२२   २१२ वाचिक
मगण रगण लघु गुरु, मगण रगण

.           _घर यह तुमसे सजे_

मन में श्रम साधना पले, रखिए  संस्कार है।
दुर्गुण मन के सभी जले, प्रभु का आभार है। 

गाते हो गीत में वही, हम को लय धुन बता।
धोखा जग से मिले नही, तुम से विनती यही।।

आ कर के मीत  तुम कहो, मन मे रहते सदा।
आओ मिल के यहाँ रहो, घर यह तुमसे सजे।। 
.               -------+------
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 9:26 PM] Babulal Bohara Sharma: .                  गुंजन छंद

विधान- १४ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
७ वर्ण पर यति अनिवार्य है।
मगण रगण गुरु, मगण रगण गुरु 
२२२  २१२  २,  २२२  २१२   २   वाचिक
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित नवीन छंद--

.                 _छंदों से प्रीति जोड़ी_

प्रभु जी हो आप मेरे, 'शर्मा' की बात मानो।
आया हूँ मै शरण में, सेवक को आप जानो।

कहते कवि 'विज्ञ' हूँ मैं, छंदों का ज्ञान देता।
अज्ञानी दास हरि का, तुम से आशीष लेता।

छंदों से प्रीति जोड़ी, लिखता हूँ  रीति तेरी।
गीतों में भाव भरता, ऐसी  बस भक्ति मेरी।
.                -------+------
©~~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 9:26 PM] Babulal Bohara Sharma: .            गौरव छंद
 राधा तिवारी 'राधेगोपाल' निर्मित--
 विधान-- १४ वर्ण (६+८)
सोरठा की तरह विषम चरण समतुकांत हो।
विषम चरण ६ वर्ण, सम चरण ८ वर्ण 
मगण रगण, मगण रगण लघु गुरु 
२२२  २१२, २२२  २१२    १   २
वाचिक मापनी मान्य है।

.            _लय धुन बता_

रखिए  संस्कार है, मन से  श्रम साधना करें।
प्रभु का आभार है, दुर्गुण मन के सभी जले।।

हम को लय धुन सिखा, गाते हो गीत में सदा।
हरि से विनती सखा, धोखा तुमको मिले नही।।

मन से दुखड़े तजें, आ कर के मीत तुम कहो।
घर यह तुमसे सजे, आओ मिल के यहाँ रहो।। 
.               -------+------
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 9:31 PM] Babulal Bohara Sharma: .               गोपाल छंद

राधा तिवारी 'राधेगोपाल' निर्मित--
विधान-- १६ वर्ण (८+८)
दोहे की तरह सम चरण समतुकांत हो।
२२२   २१२ १   २,  
२२२  २१२ १    २   वाचिक
मगण रगण लघु गुरु, 
मगण रगण लघु गुरु

.           _कृष्ण सार्थ से_

कान्हा की बाँसुरी बजे, नाचे वह राधिका तभी।
झूमेंगे संग ग्वाल भी, गोपी गण ग्वालिनें सभी।।

मीरा के छन्द गीत नव, गीता के श्लोक पार्थ से।
भाले हर ओर हैं तने, आओ तो कृष्ण सार्थ से।।

पुरवाई जो हवा चले, वर्षा रुकती कभी कहांँ।
गाते है  'विज्ञ' छन्द जब, आती है शारदे वहाँ।।
     .                  -----+----
©~~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 9:33 PM] Babulal Bohara Sharma: .                   तेजल छंद

विधान -- १६ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
तगण मगण, यगण यगण तगण गुरु 
२२१  २२२, १२२  १२२  २२१  २  
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित
 इस छंद का वाचिक रूप भी मान्य होगा।

..         _कब प्रणय मानस चखे_
चातक प्रणी मै तो, पिए स्वाति में वर्षा जल प्रिये।
है आपसे मिलना, कभी तो मरें या प्रियतम जियें।  
प्रियवर नयन  मेरे, रहे अब जलधि  खारे से बहे।
प्रतिदिन  सजे सपने, नदी के किनारे मिलते रहे।

तुम कृष्ण को छलती, तुम्हे या कन्हैया छलते रहे।
भ्रम व्यापता मन में, रहे वे नयन कितने कब बहे।
हे प्राण छल बलिये, रहन मन रहे तन गिरवी रखे।
अभिसार क्या हमने, कहें कब प्रणय मानस चखे।
©~~~~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 9:44 PM] Babulal Bohara Sharma: .            रक्षा छंद
अर्चना पाठक निरंतर द्वारा निर्मित -
विधान- १८ वर्ण, प्रति पंक्ति 
प्रति पंक्ति-प्रथम द्वितीय चरण में आंतरिक समतुकांतता हो। ६ चरण, दो पंक्तियाँ
२१२ २२२, २१२ २२२, २१२ २२२
 ६,६, वर्ण पर यति, वाचिक स्वरूप 
३,१४,२५ वीं मात्रा लघु अनिवार्य 

.        _बन सजग चलना है_
हो सुता मेरी तुम, 
मित्र बन रहलें  हम, छंद बन कविता में।
सत्य मेरी आशा,
 मात की तुम भाषा, माँग ली कमिता में।१
नेह की हो मूरत, 
अप्सरा सी सूरत, कामना  'अर्चन'  की।
प्रीत का झरना बन, 
गेह का गहना मन, शुभ्रता तन मन की।२
मान हो तुम कुल का, 
भावि जीवन कल का, भव सुहाना तेरा।
पथ कठिन छलना है, 
बस सजग चलना है, मान तुम  ही मेरा।३
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 10:12 PM] Babulal Bohara Sharma: .           कानू छंद

विधान:- २३ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित नवीन छंद में -
सात सगण + लघु गुरु
२३ वर्ण,  १२,११ पर यति हो
मापनी-
११२ ११२ ११२ ११२,
११२ ११२ ११२ १२

.       _शुभ रीति चले_
जब देश रहे तब धर्म रहे,
यह बात विशेष विचार हो।
यह भूमि रहे गिरि सिंधु रहे,
नद नीर बहे न विकार हो।
तरु छाँव बचे फल फूल रहे,
वन जीव अनेक प्रकार से।
जल वायु प्रदूषण मुक्त रहे,
मन में शुभ भाव प्रसार से।

शुभ रीति चले मन प्रीति पले,
जन मानस में सुचिता बने।
मन द्वेष मिटे तन शुद्ध रहें,
मन मानव में शुभता ठने।
करना उपकार सदा उन का,
मन निर्मल हो निजता कहे।
श्रमशील रहे सब को सुख दें,
दुख ईश कृपा प्रभुता सहे।
©~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 10:20 PM] Babulal Bohara Sharma: .        छुटकी छंद

 विधान:-- २३  वर्ण, प्रति चरण 
१२,११ वर्ण पर यति अनिवार्य है
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
सगण × ७ + गुरु + गुरु
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित
 इस नवीन छंद की मापनी-
११२  ११२  ११२  ११२,
११२   ११२  ११२   २  २ 

.             _विरहा_
पिक बोल सुने विरहा मन ने,
मन मोर शरीर सखी हारी।
रस रंग बसंत चढे तन में,
तब सोच रही मन से नारी।
वन मोर नचे तितली सब ही,
भँवरे मिलते लिपटे जैसे।
पिय सावन आकर लौट गए,
तबसे न मिली उनसे ऐसे।
.              •••••••
भँवरे रस चाह रखे तितली, 
मँडरा कर वे रस को पीने।
पिक कूजत पीव मिले वन में, 
वन मोर धरा रस को छीने।
यह रंग बसंत यही अब है, 
खग लौट रहे घर को जाते।
मम कंत विदेश बसे सजनी,
प्रिय पीव मिले मन को भाते।
©~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 10:34 PM] Babulal Bohara Sharma: .           सपूत छंद

विधान:-- २४ वर्ण, प्रति चरण चार चरण, दो- दो समतुकांत 
२२ + ( ७ × सगण ) + २
२४ वर्ण, १३,११ वें वर्ण पर यति हो।
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 निर्मित इस छंद की मापनी:--
२२ ११२ ११२ ११२ ११,
२ ११२ ११२ ११२ २

.             _मीरा_
मीरा प्रभु के शुभवंदन के हित,
आज  चली  पथ  में पथ हारी।
चित्तौड़ तजे  परिवार तजे सब,
कृष्ण छटा हरि  की हिय धारी।
वृन्दावन  मानस में चलती पथ,
सौम्य  पदाति  सुहागिन  ऐसे।
चाहे  हरि  दर्शन  छंद रचे शुभ,
'विज्ञ'  विवेक  करे  हित जैसे।
.             _राधा_
राधा हँसती  रहती इठला कर,
कृष्ण  नचे  नट  से बल खाते।
गोपी  विहँसे  चुपके चुपके पर,
ताड़   गए   झट  से  रुक जाते।
राधे  मुरली  कर  ले अधरों पर,
राग   भरे   वृष  भानु   दुलारी।
बंशी  बजती पर  तान नहीं वह,
'विज्ञ'  सुने  थक  के  वह हारी।
©~~~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 10:44 PM] Babulal Bohara Sharma: .            तेजी छंद

विधान:- २४ वर्ण, प्रति चरण 
चरण, दो- दो समतुकांत हो 
११ + ( ७ सगण) + २
२४ वर्ण, १२,१२ पर यति अनिवार्य
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित
इस नवीन छंद की मापनी:-
११ ११२ ११२ ११२ १,
१२ ११२ ११२ ११२ २

'समेकित भील लड़े भट झाला'
.                
विगत  कहे  वह  काल विशेष,
कुलीन रहे कुल भी  रिपुनाशी।
सुजन  कहें  वह  बात  विचार, 
अनंत रहे  कुल वो  अविनाशी।
रिपु  मुगलों  हित मान जलाल,
सुधीर  प्रताप  निरोधक ताला।
समर  किये  रिपु  से  प्रण धार,
समेकित भील लड़े भट झाला।१
( झाला - बीदा, झाला मान )
.               
सुभट प्रताप  धरा हित मान,
रहे तब भारत के अधिशाषी।
मुगल  डरे  जब  वीर  प्रताप,
उमंग भरे रण का अभिलाषी।
मुगल जलाल  डरे  रिपु सैन्य,
प्रवीर प्रताप लड़े  अरि घाती।
सजग  धरा  हित  धर्म  सुरक्ष,
स्वदेश स्वतंत्र अड़ा कर छाती।२
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 10:53 PM] Babulal Bohara Sharma: .              _नेह छंद_

विधान- २५ वर्ण, प्रति चरण 
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
गुरु+लघु+( ७× सगण )+ लघु +गुरु
२५ वर्ण, १२,१३,  वें वर्ण पर यति
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित
इस नवीन छंद की मापनी:-
२१ ११२ ११२ ११२ १,
१२ ११२ ११२ ११२ १२
.   _खेत खिले खलिहान_
.               
देश यह भारत भूमि महान,
हुए भगवान  यहाँ  नर  देह  में।
स्वर्ग सम दैविक सत्य विचार,
रखे शुभ मानस भरे हर गेह में।
रीति मन प्रीति रखे सद भाव,
निभा मनमीत रहे वश प्रेम हो।
मेघ बन अंबर में चढ़ नीर,
सुधा बरसे  धरती  पर  हेम हो।१
.               
पर्वत नदी वन पेड़ सजीव,
सभी हम मानव  हैं भगवान के।
सागर विशाल भरे तन नीर,
धरातल खेत खिले खलिहान के।
वीर हम भारत के हर पूत,
डरे कब  पातक  शत्रु कमान  से।
प्रीति मय शांति सनेह विवेक,
रखे जग  हेतु  रहे जन  मान से।२
©~~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, 'विज्ञ'
[11/29, 11:03 PM] Babulal Bohara Sharma: .             शान्त छंद 

विधान:-- २५ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
२२ + ( ७× सगण ) + २२
२५ वर्ण, १३,१२ वें वर्ण पर यति हो
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित
 इस नवीन छंद की मापनी :--
२२ ११२ ११२ ११२ ११,
२ ११२ ११२ ११२ २२
.   _वीर प्रताप एवं मानसिंह_
.                
राणा वह वीर प्रताप धरा सुत,
था मुगलों पर घात रखे ताला।
मेवाड़ धरा हित पाल रहा प्रण,
लेकर वे  तलवार  लिए भाला।
चित्तौड़ तके प्रणवीर जिसे वह,
श्रंग अड़ावल सी सहती छाती।
वे चेतक अश्व लिए निज रक्षक,
पाथळ राष्ट्र सुरक्षण की थाती।१
.                
आमेर रहे मुगलो हित अर्पित,
मान बना सिर मौर लिए सेना।
सेनापति मान  सवार हुए गज,
चाहत  बैर  पुरातन  जो लेना।
सत्ता मुगलों हित मान करे रण,
और पराजय को छल दे धोखे।
बाँटे रजपूत  उसी  नृप ने सब,
दूध फटे सम  जो बनते  चोखे।२
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, 'विज्ञ
[11/29, 11:09 PM] Babulal Bohara Sharma: .          वधु सवैया

विधान:- २५ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
तगण +( ७ सगण)+ २
२५ वर्ण, १२,१३ वें वर्णो पर यति हो।
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित इस नवीन छंद की मापनी-
२२१ ११२ ११२ ११२,
११२ ११२ ११२ ११२ २
.             _मीरा_
मेवाड ससुराल बसी तन से,
रहती  पर  कृष्ण  रहे  मनमेली।
रानी  बन  रहे  मन में पति के,
यह भोज विचारित  स्वप्न सहेली।
चित्तौड़ नगरी ‌यह मान सभी,
डसता अहि कृष्ण नही शुभ देही।
मीरा विष पिए सम सोम सुधा,
रमती  भजती  वह  कृष्ण सनेही।१
.                
रैदास  वह भक्त रहा  प्रभु का,
करते  सतसंग  मिली जब मीरा।
था संगम  सुदर्शन  भक्ति बहे,
दृग गंग  बहे  यमुना  सरि  नीरा।
संवाद  प्रभु दास किए  तुलसी,
मनपीर  कही वह  कृष्ण उपासी।
वृंदावन  चली वह  तृष्ण बनी,
रचती  हरि छंद  बनी हरि दासी।
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, 'विज्ञ'
[11/29, 11:13 PM] Babulal Bohara Sharma: .                विज्ञ- पूजा छंद

छंद विधान:-  २८ वर्ण, प्रति पंक्ति 
विज्ञ छंद ११,१४ मात्रा के चार चरण के बाद पूजा छंद के १४,११ मात्रा भार के ८ चरण,  ६ पंक्ति १२ चरण 
 प्रत्येक चरण का अंत चौकल ११२, २११, २२, ११११ अर्थात दो गुरु अनिवार्य हैं और चतुर्थ चरण का दोहराव पंचम चरण में भी प्रयोग करना अनिवार्य है ध्यान रहे कि चतुर्थ चरण पूरा उठा कर यहाँ लिखना है कुण्डलियाँ की तरह ।  प्रथम चरण का प्रथम शब्द चौकल १२ वें चरण का अंतिम शब्द होगा जैसे कुण्डलियाँ में प्रयोग करते हैं। लघु जहाँ पर है वहाँ स्पष्ट आना चाहिए।
 बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित इस नवीन छंद की मापनी का वाचिक रूप मान्य होगा।
मापनी--
२२१ २२२, १२२ १२२ २२
२२१ २२२, १२२ १२२ २२
१२२ १२२ २२, २२१ २२२
१२२ १२२ २२, २२१ २२२
१२२ १२२ २२, २२१ २२२
१२२ १२२ २२, २२१ २२२
.        १. सुखिया बने राधा
राधा  वही  मीरा, वही  हर सुता की चाहत।
सच्चा सनेही हो, करो मत प्रभो मन आहत।
करो मत प्रभो मन आहत, नारी चकोरी का।
इन्हे  भी  कन्हैया दे दो, बस  मान गोरी का।
कहे विज्ञ यह कान्हा से, हर  प्रेम की बाधा।
प्रभो  प्रार्थना  मीरा की, सुखिया  बने राधा।
©~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 11:13 PM] Babulal Bohara Sharma: .                  विज्ञ नेह छंद

विधान -- २८ वर्ण, प्रति चरण/पंक्ति 
विषम चरण-  २२१ २२२, १२२ १२२ २२ (विज्ञ)
सम  चरण -  १२२ १२२ २२, २२१ २२२ (पूजा)
चार पंक्तियों में चार चरण, चारों चरण समतुकांत।
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित इस नवीन छंद की मापनी का वाचिक रूप भी मान्य है।

.                _मित्र सुदामा_
आए  सुदामा  है, थके तन बहुत द्विज हारे।
कहे वह तुम्हारे काना, मन मीत  प्रभु प्यारे।
कान्हा  सहज  दौड़े, सुदामा   लिवाने  द्वारे।
मिले मीत  रोए कान्हा, भर  अश्रु दृग  भारे।१
लाए सुदामा को, बिछाया सुआसन काना।
कहो मीत  कैसे बीती, सब बात समझाना।
इतने दिनों में  अब, हुआ  मीत कैसे आना।
रहो  साथ  मेरे  द्वारे, अब लौट  मत जाना।२
पद धो रहे  कान्हा, बहा कर नयन से पानी।
पगों से चुने वे कंटक, तज भाव अभिमानी।
फिर छीन चावल पट, चबाए प्रभो वरदानी।
करे प्रभु बहुत द्विजसेवा, मनकामना जानी।३
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 11:13 PM] Babulal Bohara Sharma: .             पूजा- विज्ञ छंद

 विधान-  २८ वर्ण, 
प्रथम पंक्ति (२ चरण) :-- १२२ १२२ २२, २२१ २२२ - पूजा छंद
द्वितीय पंक्ति (२ चरण) :-- २२१ २२२, १२२ १२२ २२ - विज्ञ छंद
दो पंक्तियों में चार चरण का छंद, सम चरण सम तुकांत हों।
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित इस छंद का वाचिक रूप भी मान्य है।

.             _चंदन बनी माटी_
राणा प्रतापी वह, तुरग  मित्र  सम चेतक था।
धराहित उठा कर भाला, प्रण वीर चातक था।१
अकबर डरे जिससे, महा वीर वह अभिमानी।
रखे आन वह मेवाड़ी, शिव भक्त  सिर  दानी।२
डरता नहीं रिपु से, उदय सिंह के वह सुत थे।
सदय  मात  जैवन्ता थी, सब भील संगत थे।३
हत मान मुगलों का, लड़े  हित धरा आजादी।
रहे  घास  की  रोटी खा, दुख सहन  बरबादी।४
झुकना नहीं भय से, सिखाया यही था हमको।
मुगलिया जतन सब हारे, रहते तके  तम  को।५
वह  याद  है  अब  भी, समर मान हल्दीघाटी।
बनी  तीर्थ  सम  वह  धरती, चंदन बनी माटी।६
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[11/29, 11:15 PM] Babulal Bohara Sharma: .               बौहरा छंद
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित 
विधान -- ३० वर्ण, प्रतिचरण
चारों चरण समतुकांत हो। १५ वर्ण पर यति अनिवार्य 
रगण जगण रगण जगण रगण, जगण रगण जगण रगण रगण
२१२  १२१  २१२  १२१  २१२, १२१  २१२  १२१  २१२  २१२
                  _काल चक्र_
काम धर्म अर्थ मोक्ष चार मान कामना,
समूल पाप का विनाश हो यही भावना।
साधु संत पीर मान धर्म रीत प्रीत की,
प्रतीत पाल शूर वीर धैर्य की पालना।
काल चक्र मीत वक्र सत्य बात मान तू,
सरोज के समान कीच बीच हो साधना।
हानि लाभ मृत्यु जन्म ईश हाथ मान ले,
स्वभाव स्वार्थ त्याग मीत सत्य को मानना।१
गंग की तरंग शीश चंद्र की छटा बने,
जटा विशाल नाग अंग व्याघ्र छाला जमें।
सिंह पे सवार साथ नादिया गणेश भी,
महेश  संग  शैल  पे  सदा भवानी रमें।
रोग नाश योग देय,भोग शोक नाशनी,
निवार पाप शाप को,अजान हूँ दे क्षमें।
ज्ञान दे सुकाल के विकासमान काम दे,
सँवार भाग्य योग क्षेम,शील भी दें हमें।२
© ~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:06 PM] Babulal Bohara Sharma: .        विज्ञात अचला सवैया 

श्री संजय कौशिक 'विज्ञात' निर्मित--
विधान- २४ वर्ण प्रति चरण
चारों चरण समतुकांत हो, १३,११ पर यति हो।
भगण जगण जगण जगण लघु, भगण भगण भगण गुरु गुरु 
२११  १२१  १२१   १२१    १, २११  २११  २११   २    २

  _विज्ञ उड़े हरि ज्यों उरगारी_

मै नित लिखूँ नवछंद सदा हरि,
हों जग के जन के हित कारी।
शारद गणेश सुरेश महेश्वर,
राम रमापति हे गिरिधारी।
मानस चकोर समान बने पर,
'विज्ञ' उड़े हरि ज्यों उरगारी।
भारत बने अब विश्व महागुरु,
विज्ञ' सदा करना श्रम भारी।

खेत व किसान सदैव यहाँ पर,
दीन अनाथ सदा सुख पाए।
पूत व सपूत बने सब सैनिक,
देश धरा जब मीत बुलाए।
मानस सशक्त बनाकर मानव,
योग्य बने हर ज्ञान सिखाए।
संस्कृति बचे तब देश बचे यह,
विज्ञ' सदा नव रीति चलाए।
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:06 PM] Babulal Bohara Sharma: .        विज्ञात आदि योगी सवैया

श्री संजय कौशिक 'विज्ञात' जी 
द्वारा अन्वेषित एवं निर्मित नवीन छंद -
विधान- २२ वर्ण, प्रति चरण
चारों चरण, समतुकांत हो
११, ११ वर्ण पर यति हो।
भगण भगण रगण लघु लघु,
रगण तगण जगण गुरु गुरु 
२११  २११  २१२  १     १,
२१२  २२१  १२१  २     २

.          _पथ में राम_

राम सिया पथ संग लक्ष्मण,
दैत्य मायावी वन में विचारे।
संत रहें ऋषि भक्त भी जन,
राम सीता लक्ष्मण वे उचारे।
भक्त भजे सिय राम लक्ष्मण,
राम आवें संग  सिया पधारे।
यज्ञ करे  व्रत नित्य वे ऋषि,
कष्प मिटे अब पाप पातक,
भीत होते  पथ  को  निहारे।
.            -----+-----
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:10 PM] Babulal Bohara Sharma: .          विज्ञांश सवैया

कौशल शुक्ला 'विज्ञांश' द्वारा निर्मित -
विधान--  २३ वर्ण, प्रति चरण
चारों चरण समतुकांत हो 
भगण भगण तगण भगण, भगण भगण तगण लघु गुरु 
२११  २११  २२१  २११,  २११  २११  २२१   १    २
१२,११ वें वर्ण पर यति हो।

.             _आशा पलती_
कृष्ण भजे वह राधा भजे नित,
 मन्दिर मन्दिर मीरा भजती।
विज्ञ' थके कब नाचे सदा वह,
 गीत नये प्रभु मीरा रटती।
भाव भरे भजनों से थके तन,
द्वार तके हरि राधा तकती।
कष्ट सहे वह कान्हा तुम्ही हित,
नैन थके कब मीरा थकती।

नृत्य करे गिरिधारी महाप्रभु,
दर्शन ग्वालिन राधा करती।
वे मुरली धर राधा रटे बस,
भाव पुनीत सनेही भरती।
नीर नदी यमुना राधिका सब,
गाय सुने रुक जाती चरती।
धीर धरे रहता हूँ उपासक,
दर्शन की नव आशा पलती।
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:10 PM] Babulal Bohara Sharma: .            विधा सवैया 

सरोज दुबे 'विधा' द्वारा निर्मित--
विधान- २३ वर्ण, प्रति चरण
चारों चरण समतुकांत हों, ११,१२ वर्ण पर यति हो।
भगण भगण भगण गुरु गुरु, तगण जगण जगण यगण
२११ २११ २११ २२, २२१ १२१ १२१ १२२

.    _विज्ञ हैं विज्ञात से_
विज्ञ बना कर छन्द लिखाए,
मानें कवि कौशिक 'संजय' ऐसे।
ज्ञान दिया फिर धैर्य दिए वे,
जाने तब कृष्ण सखा हरि के से।
धन्य किया वरदान दिया है,
सम्मान दिया कवि को रवि जैसे।
'विज्ञ' नहीं यह बात भुलावे,
'विज्ञात' बिना कुल हो कवि कैसे।१

विज्ञ लिखे नवगीत पढ़े तो,
गाते मनमीत विशेष सनेही।
ज्ञान भरा शुभकाम भरा है,
डूबे रचते मन मौज विदेही।
सीख रहे नव छंद रचे जो,
लाते नित ध्येय रहे उन के ही।
मीत बने फिर प्रीति निभाते,
ये 'विज्ञ' सुजान बने उन से ही।२
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:10 PM] Babulal Bohara Sharma: .                   सुज्ञ सवैया

अभिलाषा चौहान 'सुज्ञ' निर्मित--
विधान-- २२ वर्ण, प्रति चरण
चारों चरण समतुकांत, १२,१० पर यति हो।
भगण मगण सगण भगण,भगण मगण सगण गुरु 
२११  २२२  ११२   २११, २११  २२२ ११२   २
.                 _दहते हैं_
जो करते भारी श्रम नेकी जन,
कष्ट वही साथी सहते हैं।
'विज्ञ' पुराने लोग बताते सब,
ज्ञान भरी बातें कहते हैं।
भावुक होते मीत वही मानुष,
गीत सुने आँसू बहते हैं।
शांत स्वभावी कष्ट भरे अंतस,
अग्नि बिना ही तो दहते हैं।१
.            _चन्द्र_
भारत के वैज्ञानिक जाने सब,
चंद्र सखा मानें धरती का।
देश विदेशी लोग यहाँ आ कर,
ज्ञान लिए सारे जगती का।
वायु नहीं है नीर नही है जन,
चंद्र बना मिट्टी परती का।
भारत भू का चंद्र सनेही तन,
'विज्ञ' लिखे आशा करती का।२
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:10 PM] Babulal Bohara Sharma: .               वीणा माहिया सवैया

पूनम दूबे 'वीणा' द्वारा निर्मित--
विधान- २२ वर्ण, प्रति चरण
चारों चरण समतुकांत, ११,११ वर्ण पर यति हो।
रगण भगण रगण गुरु गुरु, 
भगण मगण रगण लघु लघु
२१२  २११  २१२  २   २ , 
२११ २२२  २१२   १   १

.               _लीला_
कृष्ण राधा पथ में चले दोनो,
ले कर बंशी राधा भगी झट।
कृष्ण पीछे भगते रहे संगी,
छूट गया राधा का गिरा पट।
और भी ग्वालिन गोपियाँ सारी,
दौड़ पड़ी है वे छोड़ के घट।
कृष्ण राधा इस रास लीला को,
भूल गये लीला देख आहट।
.            -----+-----
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:10 PM] Babulal Bohara Sharma: .              वीणा सवैया

पूनम दुबे 'वीणा' द्वारा निर्मित --
विधान-- २३ वर्ण, प्रति चरण
चारों चरण समतुकांत हो
१२,११ वर्ण पर यति अनिवार्य 
रगण भगण रगण भगण, 
भगण मगण भगण लघु लघु 
२१२  २११  २१२  २११,  
२११  २२२  २११   १   १

.          _काया दह कर_

छंद की रीत निभे यथा पावन,
गीत रचे पीड़ा को सहकर।
मात हो हर्षित तो मने सावन,
काव्य रचूँ मैं काया दह कर।
हो रहे मात प्रसन्न चंदा सम,
नित्य रिँझाऊँ दाता कह कर।
मात हे शारद मानिए सेवक,
'विज्ञ' लिखे यूँ आपा ढह कर।
.             -----+------
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:10 PM] Babulal Bohara Sharma: .         स्वयम सवैया


नीतू ठाकुर 'विदुषी' जी द्वारा
निर्मित नवीन छंद--
विधान- २५ वर्ण, प्रति चरण
चारों चरण समतुकांत हो।
१२, १३ वर्ण पर यति अनिवार्य है।
गुरु+ लघु + रगण × ७ + लघु + गुरु
गुरु लघु रगण रगण रगण 
र,गण रगण रगण रगण लघु गुरु 
२१ २१२ २१२ २१२ 
२,१२ २१२ २१२ २१२ १२

.          _काली कलूटी_

 ढूँढते कन्हैया कहाँ मीत राधा,
मिली ही नही वे अभी रूठती गई।
राधिका सखी सौम्य गोरी सुदेही,
मिली कृष्ण से  साँवरे रंग की हुई।
वे तने अड़े रंग काला व गोरा,
लड़ाई  इसी  बात  होती बढ़ी नई।
चीख राधिका ने लगाई दुहाई,
कि काली कलूटी कि गारी मुझे दई।
.              ------+------
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:10 PM] Babulal Bohara Sharma: .            शाश्वत सवैया 

नीतू ठाकुर 'विदुषी जी द्वारा
 निर्मित नवीन छंद--
विधान- २४ वर्ण, प्रति चरण
चारों चरण, समतुकांत हो
गुरु + रगण × ७ + लघु गुरु
११, १३ वें वर्ण पर यति हो।
गुरु रगण रगण रगण र-
गण रगण रगण रगण लघु गुरु 
२  २१२  २१२  २१२ २,
१२  २१२ २१२ २१२  १ २
वाचिक स्वरूप भी मान्य होगा।

.      _सौम्य गोरी सुदेही_

ढूँढे कन्हैया कहाँ मीत राधा,
मिली ही नही वे अभी रूठती गई।
राधा सखी सौम्य गोरी सुदेही,
मिली कृष्ण से  साँवरे रंग की हुई।
दोनो अड़े रंग काला व गोरा,
लड़ाई  इसी  बात  होती बढ़ी नई।
यूँ राधिका ने लगाई दुहाई,
कि काली कलूटी कि गारी मुझे दई।
.              ------+------
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:14 PM] Babulal Bohara Sharma: .          _सुधी सवैया_

अनुराधा चौहान 'सुधी' निर्मित -
विधान -- २३ वर्ण, प्रति चरण
१२,११ पर यति, चारों चरण समतुकांत हो।
१२१ १२१ १२१ ११२, १२१ १२१ १२२ १२

.          _संगिनी_
उठो सजनी नवभोर चहके,
सजे अरमान हमारे नए।
चलें नव पंथ प्रकाशित करें,
बुरे दिन रात बहाने गए।
भरें हम प्रीति सनेह मन में,
सुभाषित बोल सुहाने हुए।
कहें मन पीर मिलो तुम प्रिये,
परस्पर चोंच पखेरू छुए।१
 .            
सुगंधित जीवन नेह तुमसे,
हमे इस कष्ट सही देह में।
सहेज रखूँ इसको हृदय में,
धरोहर जीवन में गेह में।
हरो प्रिय मानस कष्ट तन के,
रखो दृग कोर हमें नेह में।
बनें घन श्याम रहें हम सहें,
 उड़ें नभ मेघ बने मेह में।२
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:14 PM] Babulal Bohara Sharma: .         _प्रज्ञा सवैया_

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'निर्मित -
विधान -- २३ वर्ण, प्रति चरण 
१२,११ वर्णों पर यति, चारों चरण समतुकांत हो।
२२२ २१२ २१२ २११, २१२ २१२ २११ २२

.        _राणा-चेतक_
मेवाड़ी वीर राणा चढ़े चेतक,
दौड़ते दौड़ते अश्व थकाया।
घोड़ा रोका तभी वीर छाँया तरु,
पेड़ के अश्व के बंध लगाया।
थोड़ा चारा दिया अश्व को लाकर,
और पानी पिलाने वह लाया।
लाए जो संग में भोज वे खाकर,
नीर पीने लगे पेट छकाया।
.              _संगिनी_
आओ तो संगिनी साथ मेरे तुम,
पंथ में आपके संग रहूँगा।
बातें वे याद हैं संग में थी जब,
आज सारी कथा संग कहूँगा।
मेघों से मेघ के संग संघर्षण,
नीर वर्षा बनूँ और बहूँगा।
आए आँधी भले मेह भारी हिम,
संग होगी तभी मौन सहूँगा।।
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:14 PM] Babulal Bohara Sharma: .     _विदुषी सवैया_

नीतू ठाकुर 'विदुषी' जी निर्मित -
विधान -- २२ वर्ण, प्रति चरण
१०,१२ पर यति, चारों चरण समतुकांत हो।
७ रगण + गुरु
२१२ २१२ २१२ २, १२ २१२ २१२ २१२ २

.     _चित्तौड़ का घेराव_
वीर चित्तौड़ का दुर्ग छोड़े,
चले अश्व मेवाड़ के वन्य जाते।
शाह सेना लगाती पता थी,
गए सैनिको  संग  राणा बताते।
खोजते वीर को खो रहे थे,
स्वयं सैन्य शाही मरे लौट आते।
जंगलों में छिपा दुर्ग था वो,
पता शत्रु कैसे कभी खोज पाते।१
.                
खोज हारी थकी शाह सेना,
गई लौट  के दुर्ग  चित्तौड़ आए।
शाह पूछे उन्हें घूर आँखे,
नही ढूँढ  राणा  सके हैं  बताए।
देश भू को बचाने छिपे जो,
वही धीर  राणा बचे भी  बचाए।
धर्म रक्षा हितैषी रहे वे,
महा वीर  राणा  उदै सिंह  छाए।२
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:17 PM] Babulal Bohara Sharma: .             अर्णव सवैया

अनिता भारद्वाज 'अर्णव' द्वारा निर्मित-
विधान -- २३ वर्ण प्रति चरण 
तगण ( राजभा×५ ) तगण गुरु गुरु
१२,११ पर यति, चारों चरण समतुकांत हो 
२२१ २१२ २१२ २१२, २१२ २१२ २२१ २२

.                _मीत_
हे मित्र याद आती तुम्हारी हमें,
नित्य आते सिखाने के बहाने।
वे स्वप्न भंग होते रहे रात के,
बैठ के छंद गाते जो सुहाने।
भूले नही पुरानी कहानी अभी,
याद आती रहेगी ही सताने।
आओ कभी हमारे यहाँ गेह में,
बात सारी सुहानी को जताने।
.                
आना प्रिये कभी तो हमारे यहाँ,
पोटली याद की संगी रहेगी।
गाएँ  सुनें वही गीत साथी वही,
बाँसुरी बीन भी वे ही सहेगी।
आवाज भी हमारी वही तो रहे,
गीत के बोल भी संगी कहेगी।
दोनो कहें सुने छंद भी संग ही,
मीत पीड़ा सुरों में ही बहेगी।
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:17 PM] Babulal Bohara Sharma: .          राधेगोपाल सवैया

राधा तिवारी 'राधेगोपाल' निर्मित--
विधान -- २४ वर्ण, प्रति चरण
११,१३ पर यति, चारों चरण समतुकांत हो।
२२१ १२१ १२१ १२, १ १२१ १२१ १२१ १२२

.      _हल्दीघाटी समर- छल_
आकाश ढँका रज पीत उड़ी,
कुछ देख नहीं सकते तम छाए।
मारें रजपूत विशेष किसे,
रिपु के सम ही मुगले दल साए।
पूछे तब आसफ खान कहे,
सुन वीर  बदायुँ  वृथा  भरमाए।
ऐसी तुम चाल चलो रण में,
रजपूत स्वत: सब ही कट जाए।१
.             
मारो रजपूत प्रवीर भले,
मुगलो हित लाभ रहे यह भारी।
इस्लाम बचे रजपूत मरे,
यह जीत रहे  मुगलों हितकारी।
मेवाड़ मिले न मिले हम को,
रजपूत मरे रण  हिन्दु  विकारी।
हल्दी थल हिंदु लहू शव हो,
सुन लो यह  बात बदायुँ हमारी।२
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ
[12/1, 10:20 PM] Babulal Bohara Sharma: .            विज्ञात बेरी सवैया

श्री संजय कौशिक 'विज्ञात' जी निर्मित -
विधान -- २३ वर्ण, प्रति चरण 
चारों चरण समतुकांत हो।
१२,११ वें वर्ण पर यति हो
२२१ १२२ २११ २११, २११ २११ २२१ २२

.        _राणा रण रंगी_
चित्तौड़  सहेजे  मानवता  मन,
चेतक  मित्र   बनाया  गुमानी।
मेवाड़  हितैषी   राग  भरे तन,
सूर   हकीम  सुहानी  कहानी।
घाटी  वन  सारे  पर्वत  में सब,
भील  सचेत  खड़े  देह  दानी।
राणा  प्रण धारे  तुंग  अड़ावल,
'विज्ञ' लिखे पढ़िए  छंद ज्ञानी।१
.                
राणा  रण  रंगी  थे चढ़ चेतक,
शत्रु विनाशक  ले  संग भाला।
श्वाँसे रिपु सेना की रुकती तब,
और  मुखों पर  आसन्न ताला।
आए वह  राणा भाग चलें सब,
शोर  करे अरि  सेना  रिसाला।
आड़ावल  की  घाटी मँगरो पर,
भील  सजे रण की  रंग माला।२     
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:20 PM] Babulal Bohara Sharma: .            सपना सवैया

अनिता मंदिलवार 'सपना' निर्मित-
विधान -- २४ वर्ण, प्रति चरण 
१२,१२ वर्णों पर यति हो।
चारों चरण समतुकांत हो।
२२२ १२२ १२२ १२२, १२२ १२२ १२२ २२२
.               _राधा_
राधे श्याम झूले सुहानी छटा है,
कहे राधिका जी कन्हैया हो मेरे।
आई गोपिकाएँ ठिठोली करें वे,
कन्हैया  सभी के हमारे  या तेरे।
कान्हा नित्य आते सवेरे जगे तो,
दही दूध  माँगे  नही दे  तो  हेरे।
राधा से सभी यों कहे गोपिकाएँ,
खड़ी वे सनेही कन्हैया को घेरे।२
.               
लाई बाँसुरी को छिपा कौन गोपी,
निहारे कन्हैया करे सोच साधे।
गोपी वे मनों में रही सोचती थी,
कन्हैया कहे चोर  मेरी है राधे।
कान्हा संग भी ग्वाल संगी सनेही,
हुए राधिके संग संगी थे आधे।
रोई राधिका कृष्ण आँसू छिपाए,
कन्हैया लगाए सनेही को काँधे।१
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:23 PM] Babulal Bohara Sharma: :             विज्ञात सवैया

श्री संजय कौशिक 'विज्ञात' जी निर्मित -
विधान:- २३ वर्ण प्रति चरण
यति १२,११, चारों चरण समतुकांत हो।
२१२ २२१ २२१ २२२, २१२ २११ २२१ २२ 
.                --+--
.           भारतीय स्थिति
आगरा में था  शहंशाह इस्लामी,
चाहता  भारत  का  शाह  होना।
मान आमेरी घटाया  बने स्वार्थी,
ब्याह की रीति  नए  बीज बोना।
राजपूतों  में  पड़ी  फूट  सामंती,
स्वार्थ हो सिद्ध भले मान खोना।
सैन्य शाही स्वार्थ  साधे बढ़े ऐसे,
मातृ भू  भाग्य  बचा  मात्र रोना।
.           _वंश राणा का_
वीर मेवाड़ी  चले  वंश राणा का,
मान   वीरोचित   चित्तौड़  भारी।
दुर्ग ऊँचा  शीश मेवाड़ की थाती,
आन  के  मान  लड़े  धीर  धारी।
ढाक  वाले  पर्वतों  से  घिरे ऊँचे,
दुर्ग  ही   दुर्ग  प्रजा   पीर   हारी।
शत्रु  काँपे नाम से  सिंह राणा से,
स्वप्न  में  जो  दिखते भीत कारी।
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:27 PM] Babulal Bohara Sharma: .        _सुवासिता सवैया_

चमेली कुर्रे नेताम 'सुवासिता द्वारा निर्मित-
विधान-  २४ वर्ण, प्रति चरण 
१३,११ वें वर्ण पर यति हो।
२१२ ११२ १२२ १२१ १, 
२१२ १२२ ११ २११
चारों चरण समतुकांत हो।

.           _सावन_

नेह सावन का सँजोए धरा यह,
देह हो  रही  है मन भावन।
मेघ अम्बर में  चढ़े हैं घटा जब,
भूमि  मेह  का नेह सुहावन।
मीत याद  विशेष आते रहें नित,
प्रीति को  सहेजें बन पावन।
ओढ़  चूनर  रंग  धानी धरा तल,
'विज्ञ' यों झुलाए यह सावन।
.             ------+-----
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:27 PM] Babulal Bohara Sharma: .          _जय सवैया_

नीतू ठाकुर 'विदुषी' जी द्वारा निर्मित-
विधान -- २३ वर्ण होते हैं
११,१२  वें वर्णों पर यति अनिवार्य है।
चारों चरण समतुकांत होंगे।
मापनी ~ 
गुरु +(रगण ×७)+ गुरु
२ २१२ २१२ २१२ २,
१२ २१२ २१२ २१२ २

.         _प्रीत कहानी_
.              
मीरा हुई कृष्ण की भक्त ऐसी,
सयानी वही  राधिका सी रही है।
राधा उदासी सही कष्ट भारी,
सखी सौत जैसे वही तो सही है।
कान्हा सनेही सभी मीत माने,
सदा ही वही मीत आँखे बही है।
है प्रीत भारी निभाना कहानी,
सहे 'विज्ञ' जैसी वही तो कही है।
.               ••••••••••
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:30 PM] Babulal Bohara Sharma: .          कोविद सवैया

परमजीतसिंह 'कोविद' कहलूरी निर्मित -
विधान- २२ वर्ण, प्रति चरण 
यति ११,११ वर्ण पर, चारों चरण समतुकांत हो।
२११ २२२ २११ २२, २११ २२२ ११२ २२
.         _रीति निभाना_
हे सजनी राधा सी तुम होना,
प्रेम करो ऐसा तन खो देना।
रीति निभाना संगी मनसे ही,
द्वेष हमारे हो मन खो देना।
प्रीत पली है ये मोहन वाली,
गीत वही गाने धन खो देना।
नीति नियंता होते दुख सारे,
मीत हमारे ही बन खो देना।१

 मौसम बासंती सा मन चाहे,
सावन आया है सजनी प्यारी।
मेघ धरा का चाहे तन रूखा,
बादल छाया है रजनी कारी।
आप बनोगी मेरी प्रिय राधे,
साजन मानो तो सजनी न्यारी।
लौट गई क्यों आधा वह मेला,
वापस आ जाओ पहने सारी।२
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:30 PM] Babulal Bohara Sharma: .              _साँची सवैया_

इन्द्राणी साहू 'साँची' द्वारा निर्मित -
विधान -- २३ वर्ण, १२,११ वर्ण पर यति
२२१ २२१ २२२ ११२, २२१ २२१ २२१  १२
चारों चरण समतुकांत हो 

.          _प्रीत भी पावनी_
हो स्वप्न मेरा चली आना तुम तो,
भारी निराशा हुई है सजनी।
आकाश तारे सदा से हैं रवि भी,
है साँझ होती रही है रजनी।
संगीत गूँजे तुम्हारे भाव सजे,
है वाद्य ये पायलें हैं बजनी।
संयोग होता मनो से ही मिलते,
काया हमारी हुई है वजनी।।१

 हे मीत मेरी कहानी को अपनी,
आवाज देना सुना हे सजनी।
आओ बताऊँ सुनो सारी रजनी,
बंशी बजाएँ सुनाएँ कथनी।
जानो हमारे सुनैनी दु:ख कहे,
होनी वही है करे जौ करनी।
है प्रीत भी पावनी आओ मिलने,
हे संगिनी पीर तो है हरनी।२
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:35 PM] Babulal Bohara Sharma: .             कुमकुम सवैया

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित -
विधान:-  २३ वर्ण, प्रति चरण 
चारों चरण समतुकांत हो।
सात सगण + लघु गुरु, १२,११ पर यति हो
मापनी- ११२ ११२ ११२ ११२,
११२ ११२ ११२ १२

.       _शुभ रीति चले_
जब देश रहे तब धर्म रहे,
यह बात विशेष विचार हो।
यह भूमि रहे गिरि सिंधु रहे,
नद नीर बहे न विकार हो।
तरु छाँव बचे फल फूल रहे,
वन जीव अनेक प्रकार हो।
जल वायु प्रदूषण मुक्त रहे,
मन में शुभ भाव प्रसार हो।१

शुभ रीति चले मन प्रीति पले,
जन मानस में सुचिता रहे।
मन द्वेष मिटे तन शुद्ध रहें,
हर मानव में शुभता बहे।
करना उपकार सदा उन का,
मन निर्मल हो निजता कहे।
श्रमशील रहे सब को सुख दें,
दुख ईश कृपा प्रभुता सहे।२
©~~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:35 PM] Babulal Bohara Sharma: .             कुमकुम सवैया

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित नवीन छंद--
विधान:-  २३ वर्ण, प्रति चरण 
चारों चरण समतुकांत हो।
सात सगण + लघु गुरु, १२,११ पर यति हो
मापनी- ११२ ११२ ११२ ११२,
११२ ११२ ११२ १२

.       _शुभ रीति चले_
जब देश रहे तब धर्म रहे,
यह बात विशेष विचार हो।
यह भूमि रहे गिरि सिंधु रहे,
नद नीर बहे न विकार हो।
तरु छाँव बचे फल फूल रहे,
वन जीव अनेक प्रकार हो।
जल वायु प्रदूषण मुक्त रहे,
मन में शुभ भाव प्रसार हो।१
शुभ रीति चले मन प्रीति पले,
जन मानस में सुचिता रहे।
मन द्वेष मिटे तन शुद्ध रहें,
हर मानव में शुभता बहे।
करना उपकार सदा उन का,
मन निर्मल हो निजता कहे।
श्रमशील रहे सब को सुख दें,
दुख ईश कृपा प्रभुता सहे।२
©~~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:35 PM] Babulal Bohara Sharma: .            तेजल सवैया

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित नवीन छंद--
विधान:- २४ वर्ण, प्रति चरण 
लघु  लघु + ( ७ सगण) + गुरु 
१२,१२ पर यति अनिवार्य, चारों चरण समतुकांत
११ ११२ ११२ ११२ १, १२ ११२ ११२ ११२ २

.         _समेकित भील लड़े भट झाला_
विगत कहे वह काल विशेष, कुलीन रहे कुल भी वह भाला।
सुजन कहें वह बात विचार, अनंत रहे कुल वो मतवाला।
रिपु मुगलों हित मान जलाल, सुधीर प्रताप निरोधक ताला।
समर किये रिपु से प्रण धार, समेकित भील लड़े भट झाला।१
( झाला - बीदा, झाला मान )
.               
सुभट प्रताप धरा हित मान, रहे तब भारत के अधिशाषी।
मुगल डरे जब वीर प्रताप, उमंग भरे रण का अभिलाषी।
मुगल जलाल डरे रिपु सैन्य, प्रवीर प्रताप लड़े अरि नाशी।
सजग धरा हित धर्म सुरक्ष, स्वदेश स्वतंत्र बना परिभाषी।२
©~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/1, 10:35 PM] Babulal Bohara Sharma: .                  महेश सवैया

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित नवीन छंद--
विधान:-- २४ वर्ण, प्रति चरण 
२२ + ( ७ × सगण ) + २
चारों चरण समतुकांत, १३,११ वें वर्ण पर यति हो।
२२ ११२ ११२ ११२ ११,
२ ११२ ११२ ११२ २

.             _मीरा_
मीरा प्रभु के शुभवंदन के हित,
आज  चली  पथ  में पथ हारी।
चित्तौड़ तजे  परिवार तजे सब,
कृष्ण छटा हरि  की हिय धारी।
वृन्दावन  मानस में चलती पथ,
सौम्य  पदाति  सुहागिन  नारी।
चाहे  हरि  दर्शन  छंद रचे शुभ,
'विज्ञ'  विवेक  वही   हितकारी।
.             _राधा_
राधा हँसती  रहती इठला कर,
कृष्ण  नचे  नट  से गिरि धारी।
गोपी  विहँसे  चुपके चुपके पर,
ताड़   गए   झट  से   बनवारी।
राधे  मुरली  कर  ले अधरों पर,
राग   भरे   वृष  भानु   दुलारी।
बंशी  बजती पर  तान नहीं वह,
'विज्ञ'  सुने  थक  के  वह हारी।
© ~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा,'विज्ञ'
[12/1, 10:35 PM] Babulal Bohara Sharma: .            एकता सवैया

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित नवीन छंद--
विधान:- २५ वर्ण, प्रति चरण 
 तगण + ( ७ सगण) + २
चारों चरण समतुकांत, १२,१३ वें वर्णो पर यति हो।
२२१ ११२ ११२ ११२, ११२ ११२ ११२ ११२ २

.             _मीरा_
मेवाड ससुराल बसी तन से,
रहती  पर  कृष्ण  रहे  मन मे हीं।
रानी  बन  रहे  मन में पति के,
यह भोज विचारित  स्वप्न ढहे ही।
चित्तौड़ नगरी ‌यह मान सभी,
डसता अहि कृष्ण नही शुभ देही।
मीरा विष पिए सम सोम सुधा,
रमती  भजती  वह  कृष्ण सनेही।१
रैदास  वह भक्त रहा  प्रभु का,
करते  सतसंग  मिली जब मीरा।
था संगम  सुदर्शन  भक्ति बहे,
दृग गंग  बहे  यमुना  सरि  नीरा।
संवाद  प्रभु दास किए  तुलसी,
मनपीर  कही वह  कृष्ण अधीरा।
वृंदावन  चली वह  तृष्ण बनी,
रचती  हरि छंद  कही  जग पीरा।२
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा,बौहरा,'विज्ञ'
[12/1, 10:35 PM] Babulal Bohara Sharma: .              पूजा सवैया

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित नवीन छंद--
विधान- २५ वर्ण, प्रति चरण 
गुरु+लघु+( ७× सगण )+ लघु +गुरु
चारों चरण समतुकांत, १२,१३ वें वर्ण पर यति
२१ ११२ ११२ ११२ १,
१२ ११२ ११२ ११२ १२

.   _खेत खिले खलिहान_
देश यह भारत भूमि महान,
हुए भगवान  यहाँ  नर  देह  में।
स्वर्ग सम दैविक सत्य विचार,
रखे शुभ मानस भरे हर गेह में।
रीति मन प्रीति रखे सद भाव,
निभा मनमीत  रहे सब  नेह में।
मेघ बन अंबर में चढ़ नीर,
सुधा बरसे  धरती  पर  मेह  में।१
पर्वत नदी वन पेड़ सजीव,
सभी हम मानव  हैं भगवान से।
सागर विशाल भरे तन नीर,
धरातल खेत खिले खलिहान से।
वीर हम भारत के हर पूत,
डरे कब  पातक  शत्रु समान  से।
प्रीति मय शांति सनेह विवेक,
रखे जग  हेतु  रहे जन  मान से।२
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, 'विज्ञ'
[12/1, 10:35 PM] Babulal Bohara Sharma: .            शान्ता सवैया

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित नवीन छंद--
विधान:-- २५ वर्ण प्रति चरण 
२२ + ( ७ × सगण ) + २२
चारों चरण समतुकांत, १३,१२ वें वर्ण पर यति हो
२२ ११२ ११२ ११२ ११,
२ ११२ ११२ ११२ २२

.   _वीर प्रताप एवं मानसिंह_
राणा वह वीर प्रताप धरा सुत,
था मुगलों पर घात रखे ताला।
मेवाड़ धरा हित पाल रहा प्रण,
लेकर वे  तलवार  लिए भाला।
चित्तौड़ तके प्रणवीर जिसे वह,
कंठ अड़ावल की पहने माला।
वे चेतक अश्व लिए रिपुनाशक,
पाथळ राष्ट्र सुरक्षक पी हाला।१
आमेर रहे मुगलो हित अर्पित,
मान बना सिर मौर लिए सेना।
सेनापति मान  सवार हुए गज,
चाहत  बैर  पुरातन  जो लेना।
सत्ता मुगलों हित मान करे रण,
और पराजय को छल से देना।
बाँटे रजपूत  उसी  नृप ने सब,
दूध फटे सम  जो बनते  छेना।२
©~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, 'विज्ञ'
[12/2, 6:02 AM] Babulal Bohara Sharma: .              विज्ञ सवैया

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित नवीन छंद--
 विधान:- २३ वर्ण, प्रति चरण
१२,११ वर्ण पर यति अनिवार्य है।
चारों चरण समतुकांत हो,
सगण × ७ + गुरु + गुरु
सगण सगण सगण सगण, सगण सगण सगण गुरु गुरु
११२  ११२  ११२  ११२, ११२   ११२  ११२   २  २ 
.             _कृपा करिए_
प्रभु दीन दयाल कृपा करिए,
शुभ ज्ञान भला सुखदा चाहूँ।
गुरु मात पिता परिवार जनो,
हित मीत सनेह सदा चाहूँ।
हम नित्य करें  उपकार प्रभो,
यह सीख मिले  वरदा चाहूँ।
इस देश धरा हित प्राण तजें,
मन 'विज्ञ' यही विपदा चाहूँ।१
.                
मन भाव लिखूँ कविता सपने,
अपने नवगीत  सुनाता हूँ।
नव सूर्य  विहान  सदा वसुधा,
पर  प्रीति सुरीति  रचाता हूँ।
मनभावुक  हो  मनमोहन का,
मनमोहक भाव बनाता हूँ।
कवि मान  रहे  यह  ध्यान रहे,
नित 'विज्ञ' विधान सजाता हूँ।
©~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/2, 6:53 PM] Babulal Bohara Sharma: .       मन चतुष्पदी छंद

बुद्धि प्रकाश महावर 'मन' द्वारा निर्मित-
विधान- कुल ५६ मात्रा का एक छंद
चारों चरण समतुकांत हो
चारों चरण क्रमशः १५,१५,१५,१६ मात्रा के हों।

.         _देश हमारा_ 

देश हमारा जग विख्यात।
कहूँ आप से सच मैं बात।
उन्नति करते हम दिन रात।
मानिए प्रियवर नव्य प्रभात।

मीत रहूँ  नित मै उदासी।
बने आप जब से प्रवासी।
आजा प्रियवर देश वासी।
आँखे है दर्शन की प्यासी।

रीति प्रीति के  बंधन तोड़।
चले गये तुम हम को छोड़।
केवल जग की  झूँठी होड़।
पैसा कमाओ लाख करोड़।

.            ----+----
©~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/2, 6:53 PM] Babulal Bohara Sharma: .                  युगल छंद

विधान- १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
६,६ वर्ण पर यति अनिवार्य है।
मगण रगण , मगण रगण 
२२२  २१२,  २२२  २१२   
वाचिक स्वरूप भी मान्य होगा 
 राधा तिवारी 'राधेगोपाल' द्वारा 
निर्मित नवीन छंद--

.                 _प्रभु जी_

दाता हो आप ही, 'शर्मा' की आन हो।
आया हूँ मै शरण, सेवक का मान हो।

माना है 'विज्ञ' मैं, छंदों का ज्ञान है।
अज्ञानी दास हूँ, तुम से ही भान है।

छंदों से प्रीति है, लिखता हूँ  रीति ही।
गीतों में भाव भर, चाहूँ बस भक्ति ही।

.                -------+------
©~~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/2, 6:55 PM] Babulal Bohara Sharma: .                वीणा छंद

पूनम दूबे 'वीणा'द्वारा निर्मित -
 विधान--  १४ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
६, ८ वर्ण पर यति हो।
यगण मगण, मगण तगण लघु गुरु 
१२२  २२२,  २२२  २२१   १    २  
 वाचिक स्वरूप भी मान्य होगा।

-               _बेटा' तेरा 'विज्ञ' रहे_

बजा माता वीणा, गीता वाली तान रहे।
कन्हैया हो दाता, राधा राधा 'विज्ञ' कहे।

लिखूँगा मैं माता, वे सारे ही  द्वंद भले।
भरो माँ भावो से, शर्मा गाता छंद चले।

बने वे संस्कारी, हिन्दी का साहित्य रचे।
सहे भारी पीड़ा, नेकी वाणी  'विज्ञ' बचे।

सजे हिन्दी भाषा, रानी ये संसार कहे।
गिरा वीणा वाली, बेटा' तेरा 'विज्ञ' रहे।
.               ------+-----
©~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/2, 6:55 PM] Babulal Bohara Sharma: .              विधा छंद
सरोज दुबे 'विधा' द्वारा निर्मित -
विधान-  १४ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
६,८ वर्णो पर यति हो।
रगण मगण, यगण यगण गुरु गुरु 
२१२  २२२, १२२  १२२   २   २

.         _कान्हा_
कृष्ण गाए गीता,
 सुने पार्थ योद्धा साथी।
युद्ध भारी होगा, 
लड़े अश्व सारे हाथी।१

कृष्ण झूला झूले, 
भुला राधिका रानी को।
क्रुद्ध राधा होती, 
गिराए भरे पानी को।२

श्याम की दीवानी, 
हुई सत्य मीरा बाई।
नित्य नाचे गाए, 
प्रभो को रिँझाने आई।३
.             -------+------
©~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/2, 11:20 PM] Babulal Bohara Sharma: .              योगिता छंद

विधान-  १५ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
 यगण यगण यगण, यगण यगण 
 १२२  १२२   १२२,  १२२ १२२
९, ६ वर्ण पर यति हो

.                   _कन्हाई_
सुनो हे सखे युद्ध ऐसा, विनाशी ठनेगा।
सभी के मरे पूत योद्धा, पिता शोक लेगा।
उठो हे लड़ो पार्थ प्यारे, मरे बन्धु सारे।
भिड़ेंगे बड़े शस्त्र  सारे,  बहे रक्त धारे।१

सदा ही करे राधिका से ,कन्हाई गुमानी।
कन्हाई गिरा दे भरे जो, हिला ठेल पानी।
चले तो गए कृष्ण- राधा, भगे ग्वाल सारे।
कभी तो वहाँ  नन्द  बाबा, खड़े ही निहारे।

रुहानी चली पंथ कान्हा, गई गीत गाती।
सयानी चढ़ी कृष्ण द्वारे, बनी संत आती।
उपासी करे भक्ति  मीरा, कहे लोग  बाई।
यहाँ जो प्रभो को रिँझाने, कृष्ण द्वार आई।
.             -------+------
©~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/2, 11:58 PM] Babulal Bohara Sharma: . ‌           देवेन्द्र छंद

विधान - - १४ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत
६, ८ वीं मात्रा पर यति हो।
यगण यगण, यगण जगण गुरु गुरु 
१२२  १२२, १२२  १२१   २   २

.      __हिंद मान हिन्दी__

हमारी रही माँ, सपूती सुमान्य माता।
प्रभो शंभु  गंगा, धरे धार  नीर आता।
हमारे घरों  की, करे वीर  नित्य  रक्षा।
हमारी  धरा से, मिटे शत्रु सैन्य कक्षा।

रहेगी  सदा  ही, सखे हिंद मान हिंदी।
विकासी धरा हो, रहे मात भाल बिंदी।
पड़ौसी  पिशाची, रहे पाक युद्ध साधे।
कन्हाई  बताते, रखें  आन  मान राधे।

मिटे  पातकी ये, मिटे दुष्ट नाश पंथी।
बहाएँ हमारी, सदा रीति- प्रीति ग्रंथी।
पहाड़ी  ढलानी, हरे  खेत  संग  धारा।
हमारे  पदो  के, बने   छन्द  सर्वहारा।
©~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/3, 12:12 AM] Babulal Bohara Sharma: .              आशीष छंद

सरोज दुबे 'विधा' द्वारा निर्मित -
विधान-  ९ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
 यगण यगण मगण
 १२२  १२२  २२२

  .      _कृष्ण_
हुआ  युद्ध ऐसा भारी है।
मरे पूत माता भी हारी है।
लड़े पार्थ योद्धा साथी भी।
भिड़े अश्व  सारे हाथी भी।

हिला राधिका रानी प्यारी।
गिरा खींच दे  पानी  सारी।
भगे कृष्ण  साथी भी सारे।
पिता  नन्द बाबा भी  हारे।

चले पंथ कान्हा को गाती।
चढ़ी कृष्ण के  द्वारे आती।
करे  भक्ति  वे  मीरा  बाई।
प्रभो को रिँझाने जो आई।
.             -------+------
©~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/4, 7:08 PM] Babulal Bohara Sharma: . ‌            दयाल छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित -
विधान - - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत
यगण रगण रगण यगण 
१२२  २१२ २१२ १२२

.      __सुभागे हिन्द__
रहे माँ वीर है भारती हमारी।
यहाँ है गंग का नीर कष्टहारी।
सुरक्षा देश की सैनिकों निभाना।
हमारी भूमि से शत्रु को मिटाना।१

सुभागे हिंद हिंदी बने रहें हैं।
सयाने ऊर्ध्वगामी तने रहे हैं।
पिशाची है पड़ोसी सधे निशाने।
बताए शक्ति  झूठे  वृथा बहाने।२
हमारी धीर है भारतीय सेना।
दिया विज्ञान है घात आज देना।
सहेजो देश को मानवीय आओ।
सवैये 'विज्ञ' के छंद गीत गाओ।३
©~~~~~~   बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/4, 7:09 PM] Babulal Bohara Sharma: .         वंशतरु छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित -
विधान- १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत
रगण यगण यगण यगण 
२१२  १२२  २१२ १२२

.     __क्रुद्ध बुद्ध होगा__
मात भारती है वीर धीर धारी।
संग आरती है देश की उतारी।
युद्ध  वीर  होते  भारतीय बेटे।
है शहीद की  ये आरती समेटे।१

थे शहीद तो है आज देश मेरा।
देश  प्रेम से ही मान  वेश तेरा।
काल मौत से ही शुद्ध युद्ध होगा।
राष्ट्र भक्ति धारो क्रुद्ध बुद्ध  होगा।२
सैन्य शक्तियाँ भी शस्त्र युक्त होवें।
राज्य  दाब  से भी बंध मुक्त होवें।
शत्रु  नाश वाले  व्यूह  फंद लाओ।
'विज्ञ' छंद सारे  मुक्त  द्वंद  गाओ।३
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/4, 7:10 PM] Babulal Bohara Sharma: .         कमलेश छंद 

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित -
विधान:-- १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत
रगण  यगण  यगण यगण 
२१२   १२२   १२२ १२२

.        __बचाइये__
मीत आप पानी बचाओ अभी से।
मेघ पुष्प  दानी  बताओ सभी से।
भावि हेतु आओ सभी यूँ  सहेजो।
मेह  नीर  साथी  बहे व्यर्थ में जो।१

पीढियाँ हमारी बचानी सभी है।
नीर तो जरूरी बचाना अभी है।
साथियों हमें वारि लाना पड़ेगा।
आपदा मिटा पार  पाना पड़ेगा।२
कुंडियाँ नई खोद लें गेह द्वारे।
मेह  नीर  पौधे  बचाने  हमारे।
मातृ भू कहे नीर धारी सुजानो।
नीर "विज्ञ" शर्मा बचाए सयानो।३
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/4, 7:11 PM] Babulal Bohara Sharma: .            मनता छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित -
विधान- १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत
रगण  रगण  यगण यगण
२१२  २१२  १२२  १२२

.       __जीवनी वायु लेना__
देश के खेत वीर सारे किसानी। 
मानवी वन्य जीव पाधे निशानी।
शंभु के आक पुष्प संगी उमा है। 
जाह्नवी स्नान पीर सारी क्षमा है।१

देव जो पूज दूब  घी संग ढोके।
कामना शंभु मान वे विघ्न रोके।
कर्म  ये काट काटते  पेड़ पापी।
कष्ट में आज मर्त्य ये देह काँपी।२
पालिए नीम आम के  पेड़ जंगी।
जान लो कैर बेर को  मेड़  संगी।
कामना पेड़ की भली मान देना। 
मानवी प्राण जीवनी  वायु लेना।३
©~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/4, 7:12 PM] Babulal Bohara Sharma: .                   धर्मा छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित -
विधान.  -- १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो चरण सम तुकांत
९, ३ वर्ण पर यति हो
 रगण रगण रगण यगण
२१२  २१२  २१२ १२२

.         __देश की जवानी __
मैं सुनाऊँ कथा भारती, सुने तो।
वे शहीदी  महा  आरती, गुने तो।
 है हमारी सभी का यही, सनेही।
वे बताऊँ निभी जो सुनी, सुदेही।१

यों  कहें  साहसी पूत थे, हमारे।
वे सदा शांति के रूप को, सँवारे।
दूध की लाज सच्चे सदा, रखे थे।
नीर की शान अच्छे वही, सखे थे।२
होलिके से लड़े वीर थे, सभी वे।
जो चलाते सहे धीर थे, कभी वे।
वे कहे  केसरी वेश की, कहानी।
 ये वही  वीर हैं देश की, जवानी।३
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/4, 7:14 PM] Babulal Bohara Sharma: .              कुसुमदी छंद

पुष्पा शर्मा 'कुसुम' (अजमेर) द्वारा निर्मित -
विधान-- १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
रगण यगण, यगण रगण 
२१२  १२२, १२२ २१२
६,६ वर्ण पर यति रहे।

.        __ जानते त्रिलोकी__
मीत मान  लेना, हमारी  बात है।
झूल संग झूला, कन्हैया साथ है।
संग  गीत गाएँ, बजे बंशी सखा।
नृत्य रास झूमें, यहीं  रस्सा रखा।१

मीत ले  सुदामा, कन्हैया साथ में।
काष्ठ काट लाने, कुल्हाड़ी हाथ में।
कृष्ण मेघ  लीला, हुई  वर्षा  वहाँ।
शीत में  कँपे  वे, खड़े भीगे जहाँ।२
लिए काष्ठ  भीगे, हुए दोनो  चले।
कृष्ण के  सुदामा, सखे ऐसे भले।
बात मीत की थी, चने खाए तभी। 
जानते त्रिलोकी, सखे जाने सभी।३
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/4, 7:15 PM] Babulal Bohara Sharma: . ‌            सैन्य छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित -
विधान - - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत
६, ६ वर्ण पर यति हो
यगण यगण रगण रगण
१२२  १२२  २१२ १२२  

.      __युद्ध के बहाने __
हमारी यही माँ, सत्य भारती है।
यथा शंभु  गंगा, भार धारती है।
हमारे घरों की, आन को निभाना।
सुहानी  धरा से, शत्रु को  मिटाना।

रहेंगे  सदा  ही, छन्द भी हमारे।
विकासी धरा हो, हिन्द की मुरारे। 
पड़ौसी पिशाची, पाक के निशाने।
सदा ही बना ले,  युद्ध  के  बहाने।

मिटे  पातकी  ये, शत्रु  नाश पंथी।
बनाएँ सभी को, 'विज्ञ' सत्य ग्रंथी।
बढ़ा  लें  ढलाने, सैन्य  मित्र धारा।
लिखे है भले ही,  'विज्ञ'  सर्वहारा।
©~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/4, 7:15 PM] Babulal Bohara Sharma: .              संगी छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित -
विधान -- १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत
यगण यगण यगण रगण 
१२२  १२२  १२२  २१२  
६,६ वर्ण पर यति

.      __पुराने चित्र हो __
सहे कष्ट भारे, मुरारी साँवरे।
बताई कहानी, सुहाने भाव रे।
मुरारी  सुनाएँ, सहे पीड़ा सखे।
सुनेंगे बताएँ, छिपा के क्यों रखे।।

सुदामा हमारे, तुम्ही तो मित्र हो।
पढ़े  संग  साथी, पुराने  चित्र हो।
गरीबी बुरी  है, विधाता सत्य ही।
पुरा कर्म भोगे, सुनो तो मर्त्य ही।

वही मीत मेरे, सुदामा  संगी  रखे।
बड़े  कष्ट  पाए, भले  प्यारे  सखें। 
मिटे  दु:ख  सारे, सहारे  सत्य हों।
मिले 'विज्ञ' कान्हा, बहारें नित्य हो।
©~~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/4, 7:16 PM] Babulal Bohara Sharma: .              विज्ञात गुरु छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित -
विधान--  १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत
यगण रगण रगण रगण
१२२ २१२ २१२  २१२
६,६ वर्ण पर यति रहे।

.       __विदेही सखी__

कन्हैया राधिका, प्रीत की रीत थी।
कहानी प्रेम के, ज्ञान का  गीत थी।
सदा ही संग ज्यों, छाँव हो धूप हो।
सुना ही  मात्र है, सत्य हो  रूप हो।

सजाते रास भी, थी विदेही सखी।
लजाती  'विज्ञ' वे, ही सनेही रखी।
कभी तो  साँवरे, रूप सच्चा बना।
बजाए  बाँसुरी,  जाल  गूँथे  घना।
.                ----+---
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/4, 7:17 PM] Babulal Bohara Sharma: .            जानकी छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित -
विधान--  १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत
यगण रगण यगण रगण
१२२ २१२ १२२  २१२
६,६ वर्ण पर यति रहे।

.       __राधा- मीरा__

कन्हैया राधिका, सदा  संगी  रहे। 
विदेही  प्रीति में, वहीं  मीरा  दहे।
सलोना साँवरा, सखी राधा  रही।
सुभागी तो रही, कभी मीरा नहीं।

सुहानी शक्ति थी, कन्हैया राधिका।
वहीं  मीरा  रही, सयानी  साधिका।
भजे राधा सभी, दुलारी  कृष्ण की।
बनी मीरा  सदा, कहानी  तृष्ण की।

 .                ------+-----
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/4, 7:18 PM] Babulal Bohara Sharma: .                मुक्ति छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित -
विधान -- १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण का छंद है 
 दो- दो चरण सम तुकांत हो
यगण रगण, मगण रगण
१२२  २१२,  २२२  २१२
६,६ वर्ण पर यति हो

.          _सताती रात __
घटा छाए कभी,  काले मेघा रहे।
सनेही  स्वप्न  में, आए यादें कहे।
पुरानी बात वो, किस्से सारे यहाँ।
कहे संगी सुने,  वे बाते भी जहाँ।

कहानी जो कहे, वे सारी रात ही।
रुके साथी नहीं, बोले  विज्ञात ही।
कभी रोका उन्हें, तो वे आए नहीं।
सताती रात भी,  यादें  जाए बहीं।
.             -------+------
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/5, 8:19 AM] Babulal Bohara Sharma: .                विपुला छंद

आरती श्रीवास्तव 'विपुला' द्वारा निर्मित -
विधान -  १४ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
६,८ वर्ण पर यति रहे। वाचिक भी मान्य है
तगण मगण, रगण मगण लघु गुरु
२२१  २२२,  २१२ २२२   १   २

.            _गीत गाऊँ मैं आप के_
हे  शारदे माता, गीत गाऊँ  मैं आप के।
वीणा बजाओ  तो, कष्ट हारे संताप के।

हे ज्ञान दायी  माँ, 'विज्ञ' बेटे को ज्ञान दो।
साहित्य को जानूँ, मात ऐसा तो भान दो।

विज्ञान छंदो का, सीख लूँ  माँ वे सीख दो।
आया तुम्हारे द्वारे, दास को ऐसी भीख दो।

विज्ञात जी देते, ज्ञान छन्दो वाला हमें।
हो ज्ञान छंदों का, सीखते हैं  गाते  रमें।

मैं 'विज्ञ' अज्ञानी, मात हिन्दी  है भारती।
वे छंद भी गाऊँ, जो लगे माँ की आरती।
.                ------+----
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/5, 6:54 PM] Babulal Bohara Sharma: .            कृष्णराज छंद

कृष्ण कुमार सैनी 'राज' द्वारा निर्मित-
विधान-- १२ वर्ण प्रति चरण 
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
रगण रगण जगण यगण
२१२ २१२  १२१  १२२

.          _संग संग रहेंगे_
जो बजे बाँसुरी नही रुकती है।
यूँ नचे राधिका नहीं थकती है।
कृष्ण है साँवरा कहे हम गोरी।
कृष्ण चालाक मानिए हम भोरी।

राधिका से  कहे वहीं  बनवारी।
प्रीति मेरी तुम्ही कहो मत गारी।
साथ  दोनो  रहें  कहूँ कब चेरी।
मै तुम्हारा रहो  सखी  तुम मेरी।

राधिका कृष्ण संग संग रहेंगे।
प्रीति में कष्ट दु:ख संग सहेंगे।
मानते कृष्ण राज जीवन राधा।
कृष्ण राधा  बिना शरीर आधा।
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/5, 6:54 PM] Babulal Bohara Sharma: .          मदन छंद

मदनसिंह शेखावत द्वारा निर्मित -
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
नगण रगण सगण भगण
१११  २१२  ११२  २११

.          _हर माँ ईश्वर_
विमल साधना करते जो जन।
शुभद कामना  रखते जो मन।
जगत मान दे  गुण  गावे जब।
सुफल  जीवनी  रहती है  तब।

कपट द्वेष को नर पालो मत।
सरल भाव मानस में हो सत।
चरण मात के पितु के स्वर्गिक।
गुरु विशेष  हो  सब  नैसर्गिक।

शिव समान ही पितु पूजा कर।
चरण  पूज्य  है  हर  माँ  ईश्वर।
शपथ शम्भु  की रह ठाला मत।
मदन  सिंह  यूँ  कह  शेखावत।
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/5, 11:10 PM] Babulal Bohara Sharma: .            भोमिया छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित -
विधान - १६ मात्रा,प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
चरणांत में २१२ अनिवार्य है

. _बीत पीढ़ियाँ गई युद्ध में_
त्याग दधीचि समान देह का।
कर्म निभा कर धरा  नेह का।
राष्ट्र भक्ति का बीज बो दिया।
मातृ भूमि हित लड़े भोमिया।

बीत पीढियाँ  गई युद्ध  में।
कैसे  मानस  रमें  बुद्ध  में।
जन्म लिया तब भरी भावना।
मात पिता की  सदा कामना।

देश धरा हित प्राण दान दे।
मान वीर गति कर्म ज्ञान दे।
शान  बढ़ाई  सदा  देश की।
केशरिया उस शुभ्र वेश की।
©~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/5, 11:10 PM] Babulal Bohara Sharma: .            कृष्णराज छंद

कृष्ण कुमार सैनी 'राज' द्वारा निर्मित-
विधान-- १२ वर्ण प्रति चरण 
चार चरण, दो-दो समतुकांत हो
रगण रगण जगण यगण
२१२ २१२  १२१  १२२

.          _संग संग रहेंगे_
जो बजे बाँसुरी नही रुकती है।
यूँ नचे राधिका नहीं थकती है।
कृष्ण है साँवरा कहे हम गोरी।
कृष्ण चालाक मानिए हम भोरी।

राधिका से  कहे वहीं  बनवारी।
प्रीति मेरी तुम्ही कहो मत गारी।
साथ  दोनो  रहें  कहूँ कब चेरी।
मै तुम्हारा रहो  सखी  तुम मेरी।

राधिका कृष्ण संग संग रहेंगे।
प्रीति में कष्ट दु:ख संग सहेंगे।
मानते कृष्ण राज जीवन राधा।
कृष्ण राधा  बिना शरीर आधा।
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/5, 11:10 PM] Babulal Bohara Sharma: .          मदन छंद

मदनसिंह शेखावत द्वारा निर्मित -
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
नगण रगण सगण भगण
१११  २१२  ११२  २११

.          _हर माँ ईश्वर_
विमल साधना करते जो जन।
शुभद कामना  रखते जो मन।
जगत मान दे  गुण  गावे जब।
सुफल  जीवनी  रहती है  तब।

कपट द्वेष को नर पालो मत।
सरल भाव मानस में हो सत।
चरण मात के पितु के स्वर्गिक।
गुरु विशेष  हो  सब  नैसर्गिक।

शिव समान ही पितु पूजा कर।
चरण  पूज्य  है  हर  माँ  ईश्वर।
शपथ शम्भु  की रह ठाला मत।
मदन  सिंह  यूँ  कह  शेखावत।
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/5, 11:10 PM] Babulal Bohara Sharma: .             वीनू छंद

वीनू शर्मा द्वारा निर्मित --
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत
भगण भगण भगण रगण 
२११   २११   २११  २१२

.          _माँ शारदे_
मात मुझे स्वर दे नव ज्ञान दे।
'विज्ञ' रचे कविता शुभ शारदे।
गीत लिखूँ शुभदा भव छंद भी।
कष्ट मिटे जन का हर द्वन्द भी।

वर्ण वही  लिखवा  नव गीत के।
शिल्प सधी कविता मय प्रीत के।
पावन  हो  कर  लूँ  हर  साधना।
चाह यही सब की  शुभ कामना।

काव्य बने सब के हित गान हो।
भारत भाग्य विधायक ज्ञान हो।
सत्य समीक्षक हो तुम 'विज्ञ' की।
मात यही  विनती  इस  अज्ञ की।
©~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/5, 11:10 PM] Babulal Bohara Sharma: .            किरण छंद

दिनेश कुमार शर्मा द्वारा निर्मित -
विधान - १२ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
रगण रगण तगण रगण 
२१२  २१२ २२१  २१२

.         _धारे शस्त्र युद्ध हो_
बावरा 'विज्ञ' गाता गीत छंद का।
मानवी कष्ट  वाले नित्य द्वंद का।
सैन्य सम्मान दाता वीर  देश की।
भाव हो कर्म धारी  शुभ्र वेश की।

मान दो मान लो  संसार जान ले।
उच्च विज्ञान के संस्कार ज्ञान ले।
हिन्द का गीत हिन्दी  छंद में रचे।
सिंधु सा  धीर धारी  आदमी बचे।

विज्ञ' के छंद होंगे रीत प्रीत के।
युद्ध में क्रुद्ध होवे जो प्रतीत के।
छंद से  वीर धारे  शस्त्र युद्ध हो।
मौन को तोड़ संगी क्रुद्ध बुद्ध हो।
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/5, 11:10 PM] Babulal Bohara Sharma: .            गजेन्द्र छंद

गजेन्द्र हरिहारनो 'दीप' द्वारा निर्मित -
विधान - १२ वर्ण प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत 
रगण भगण भगण रगण
२१२  २११  २११  २१२

.       _शत्रु के शीश कटे_
भारती भाल रहा जग जीत है।
देश की शान बढ़े  वह  गीत है।
दीप की मात सुने शुभ कामना।
वीर हो  सैन्य  सदा भर भावना।

युद्ध में शस्त्र धरे कर चाहिए।
शत्रु को नष्ट करे  सिर लाइए।
गीत भी वीर यहाँ  पर गा रहे।
शत्रु का  रक्त  प्रवीर  बहा रहे।

'विज्ञ' के छन्द विशेष दहाड़ते।
शत्रु का वक्ष यहाँ भट फाड़ते।
देश के धीर जनों रण में बढ़ो।
शत्रु के शीश कटे असि ले बढ़ो।
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/6, 1:31 PM] Babulal Bohara Sharma: .            चिरंजी छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ, द्वारा निर्मित--
विधान:-- १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
सगण भगण भगण सगण
११२   २११  २११  ११२

.    _हरि माखन चखना_
मन मेरा उलझा हरि तुम से।
तुम भी प्रीत करो प्रभु हम से।
बन मीरा गुण मै हरि भजती।
रमती संगति  मै  प्रभु  रटती।

बन के जोगिन  मैं अब  भटकी।
कित हो कृष्ण कहाँ दधि मटकी।
तुम राधा हित  ज्यों  वन  वन में।
मन  कान्हा  यह  तो  भगवन में।

छलिया थे अब  भी  छल  करते।
इस  मीरा  हित  क्यों  हठ  धरते।
सब भक्तो  हित  ही  मन  रखना।
तब  ही  हे  हरि  माखन  चखना।
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/6, 10:17 PM] Babulal Bohara Sharma: .            गोपाल छंद

गोपाल सौम्य सरल द्वारा निर्मित -
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
भगण सगण भगण भगण
२११   ११२  २११  २११

.        _राम धनुष धारी_
राम स्वजन सीतामय लक्ष्मण।
सन्त  चरण धारे  सिर तत्क्षण।
राक्षस  डर  के  दूर  भगे  तब।
राम  धनुष  धारी  तकते  जब।

दैत्य असुर चिन्तातुर हो कर।
दुष्ट  कुटिल भागें लग ठोकर।
बाण धनुष रामानुज लक्ष्मण।
सत्य सजग आवास सुरक्षण।

यज्ञ  यजन  रक्षा  करते  प्रभु।
संत  सहज माला जपते विभु।
सौम्य सरल  सीता वर दायक।
'विज्ञ' रचित विज्ञान विधायक।
©~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/6, 10:17 PM] Babulal Bohara Sharma: .          मधुबाला छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित -
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो - दो समतुकांत हो।
सगण भगण मगण सगण
११२   २११  २२२  ११२

.       _भगते मान बदायूँ_
गढ़  चित्तौड़  रहा  है  शान यहाँ।
मुगलों का वह साया आज कहाँ।
रज मेवाड़  उठा  टीका कर  लो।
मन में चेतक  राणा को  भर लो।

गिरि आड़ावल  हल्दी रंग रहा।
जब शाही मुगलो का रक्त बहा।
रण में  लाल हुई  घाटी रज थी।
भगते  मान  बदायूँ   वीर  रथी।

वह मेवाड़ धरा जो भारत की।
वह है सत्य मसीही आरत की।
मधु बाला रहती है 'विज्ञ' वहाँ।
बहिना बन्धु दुलारी और कहाँ।
©~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/6, 10:17 PM] Babulal Bohara Sharma: .         सीतारानी छंद

विधान-- १२ वर्ण, प्रति चरण 
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
मगण भगण भगण मगण
२२२   २११  २११  २२२

.           _सीता रानी_
सीता रानी सब को वर देती है।
वो दातारी हम से  कब लेती है।
राजा जी  राम  रहे धनुवा धारी।
साथी  देते वर दान  कृपा सारी।

भू की बेटी मिथिला तनया सीता।
गौरा की भक्ति विशेष  करे मीता।
लंका में शील रखा व्रत पाला जी।
लांघा था सिंधु बली हनु बालाजी।

सीता रानी गहना  मनुजातो का।
सोने का भूषण मानस गातो का।
गाथा  रामायण  में पढ़ के जानो।
बातें है या सच 'विज्ञ' लिखा मानो।
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/6, 10:17 PM] Babulal Bohara Sharma: .            मन्नो छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित नवीन छंद -
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
तगण सगण जगण नगण
२२१  ११२   १२१  १११

.            _बहिन_
मन्नो बहिन तीसरे पग पर।
सीधी सरल देह  सुन्दरतर।
गाए भजन गीत भी जब तब।
माने सुजन बात भी अब सब।

मुन्नी प्रथम नाम था घर पर।
बोले पितर लाड़ में पड़ कर।
जीजा सरल साँवरे जन मन।
दो हैं सुत समान वे हरि धन।

लक्ष्मीवत दुई सुता रति मति।
माने  सुजन  धैर्य  में भरसक।
आती सहज  मात के घर दर।
'विज्ञ' विनय भाव  है हरि हर।
©~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/6, 10:17 PM] Babulal Bohara Sharma: .              प्रेम छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित नवीन छंद -
विधान-- १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
रगण जगण नगण भगण
२१२  १२१   १११  २११

.           _मानुषी_
मानते  विशेष सहज हो मन।
जानते किसान विपद में तन।
साधना समान श्रम करे जब।
बीज खेत सा मन रखते तब।

है किसान मात्र वह जहाँ पर।
कर्म धार गीत भजन गा कर।
प्रेम नाम है  बहिन  बड़ी यह।
मानुषी खड़ी कठिन घड़ी वह।

मानवीय  पीर सह  रही गति।
मर्द के समान सब वही  मति।
पुत्र  पुत्रियाँ  सब  सुख  ईश्वर।
'विज्ञ' कामना प्रभु दुख ले हर।
©~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/6, 10:17 PM] Babulal Bohara Sharma: .           सुरेश छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ, द्वारा, निर्मित नवीन छंद -
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
नगण भगण रगण सगण
१११  २११  २१२  ११२

.        _कठिन निर्णय_
गरल पी शिव  पीर ही हरते।
सुर सभी शुभकामना करते।
दिन दिनेश जगेश कष्ट हरो।
विगत घात विनाश घाव भरो।

यदि विनाशक रंगती थकते।
गरल के घट मद्य भी रुकते।
सुजन सावन मान भारत में।
कठिन निर्णय ठान आरत में।

गगन  गौतम चन्द्र ये धरती।
छल रहे सुर क्या त्रिया करती।
यदि सुरेश दगा नही करते।
चरण राघव भी नहीं धरते।
©~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/6, 10:17 PM] Babulal Bohara Sharma: .            जगदीश छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित नवीन छंद -
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
सगण जगण तगण यगण
११२   १२१  २२१  १२२

.        _देव हमारे_
भगवान हो जगन्नाथ तुम्ही तो।
प्रभु भाव ठानते आप कहीं तो।
नव गीत नित्य गाते हम सारे।
घर द्वार सज्ज होते सब  हारे।

रघुवीर राम से सत्य दुहाई।
करते सुरीति संसार भलाई।
यह देश वेश संस्कार सभी का।
भव भारतीय संसार अभी का।

जगदीश आदि हो देव हमारे।
परिवार आप ही सत्य सँवारे।
जगदीश ईष्ट सच्चा यदि नाता।
यह 'विज्ञ' छंद गाता सुन पाता।
©~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/6, 10:43 PM] Babulal Bohara Sharma: .             अर्चना छंद

अर्चना पाठक 'निरंतर' द्वारा निर्मित -
विधान-- १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
रगण सगण तगण नगण
२१२  ११२  २२१  १११

.        _जन्म सुफल_
प्रीति पावन भावों में प्रियवर।
छन्द मानस दे सौगात रघुवर।
साधना कब होगी सत्य सुफल।
कामना  कर  गाऊँ  मैं हर पल।

अर्चना शिव भोले की बम बम।
हे  गणेश उमा  हो सत्य  कदम।
बोलिए कब होगा जन्म मिलन।
मानवी यह  छाया या  तन मन।

स्वप्न संगति में सौगात विपद।
धारणा बनती पी लें मन मद।
'विज्ञ' की मन आराध्या हर पल।
संगिनी कब होगा  जन्म सुफल।
©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/7, 11:13 AM] Babulal Bohara Sharma: .        भोलानंदी छंद

राधा तिवारी 'राधेगोपाल' निर्मित--
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
मगण तगण यगण सगण
२२२  २२१  १२२  ११२

.             _छलिया_
राधा रानी ले मुरली को दौड़ पड़े।
कान्हा ग्वालों संग तके पन्थ खड़े।
आगे पीछे मीत अकेले छलिया।
कैसे भोले  आज लगे साँवरिया।

गायों को ले हाँक चलो तो वन में।
ग्वालों को आदेश करे 'वो' मन में।
राधा से  हो  रास  वहाँ  संगतियाँ।
कान्हा को विश्वास मिलेगी रतियाँ।

भोले ग्वाले मित्र छली की मुरली।
लें  राधा से  छीन मनों में भर ली।
आए साथी हाँक चले गोधन वे।
कान्हा- राधा रास रचाए वन में।
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/7, 11:13 AM] Babulal Bohara Sharma: .            सुमा छंद

कैलाश चन्द्र प्रजापति 'सुमा' निर्मित--
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
जगण मगण सगण सगण
१२१  २२२  ११२  ११२

.  _उमा के नाथ कृपा करना_ 
किसे मिली सौगात किसे सपने।
सहे  जिन्होने  कष्ट  बचे  अपने।
रहे  विधाता  बाम  बहे  दृग भी।
बसे वहीं  थे  द्वंद  सुने  जग भी।

उमा बसे कैलासन शम्भु जहाँ।
रहा अकेला 'विज्ञ' विचार यहाँ।
रचूँ  यथा  विज्ञान विचार  सखे।
बना  अनेकों  छंद  विधान रखे।

सुनो उमा के नाथ कृपा करना।
लिखूँ यथा मै ज्ञान तुम्ही भरना।
सभी सुने जो बात कथा अपने।
बचे तुम्ही से 'विज्ञ' मिले सपने।
©~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/7, 11:13 AM] Babulal Bohara Sharma: .           सलमान छंद

सलमान सिकंदरा द्वारा निर्मित -
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
सगण सगण तगण यगण
११२  ११२  २२१  १२२

.       _विज्ञ' महा छंदी_
यह देश सुहाना है अपना है।
यह श्रेष्ठ  रहे  मेरा  सपना है।
सब से  पहले हो  देश  हमारा।
गुरु है जग का माने जग सारा।

यश भी लहराएँगे, सच मानो।
हम वीर  रचें गाथा यह जानो।
यदि युद्ध ठनेगा तो लड़ना भी।
यह देश बचाने को अड़ना भी।

तब गीत नये  गाएँ सुन लेना।
नव छंद बनाओ तो धुन देना।
सलमान हँसाएगा  सब जाने।
यह 'विज्ञ' महा छंदी जग माने।
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/7, 11:13 AM] Babulal Bohara Sharma: .             तूफानी छंद

दिनेश प्रजापति 'तूफानी' द्वारा निर्मित -
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
नगण  रगण  तगण  यगण
१११   २१२  २२१  १२२

.       _सुन महेश कैलासी_
विनय  शम्भु बर्फानी  सुन मेरी।
अब  कृपा  चहेता हूँ  प्रभु तेरी।
सुन महेश  कैलासी  मन गाथा।
नमन विज्ञ का बाबा यह माथा।

नव रचे  लिखे को छन्द बनाओ।
सब हरो मिले जो  द्वंद मिटाओ।
'फलित छंद' विज्ञानी  कर दाता।
अभय दान दो  बाबा तुम ज्ञाता।

रचित 'विज्ञ' की गाथा पढ़ना है।
उदिय 'ग्रन्थ' को बाबा करना है।
शिव गणेश तूफानी  गति  देना।
त्रुटि मिटे यथा जानो यति लेना।
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/7, 1:37 PM] Babulal Bohara Sharma: .           मीनाक्षी छंद

मीनाक्षी पारीक द्वारा निर्मित नवीन छंद -
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
मगण मगण भगण मगण 
२२२  २२२  २११  २२२

.        _थी तन आधा वे_
राणा की संगी ऐसी परिपाटी थी।
मेवाड़ी गाथाएँ थी गिरि घाटी थी।
चित्तौड़ी पाबन्दी मेड़तणी त्यागी।
वे  दुर्भागी या  वृन्दावन सौभागी।

संतो को सौगाती वे पद भी गाती।
'मेरे कान्हा  गोपाला' रटती जाती।
वीणा बाजे संतो के दल टोली भी।
सारे गा मा पा धानी सुर बोली भी।

गोपी ग्वाले वाले स्वांग बने राधा वे।
राधा से ही कान्हा थी तन आधा वे।
गाथाएँ  मीरा  की  'विज्ञ'  बताते हैं।
छन्दों   में  गाते  वृन्दावन  आते  हैं।
©~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/7, 6:53 PM] Babulal Bohara Sharma: .            गणेश छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित नवीन छंद -
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
जगण जगण जगण रगण
१२१   १२१  १२१  २१२

.   _पितामह आप गणेश_ 
गणेश महेश समान पूज्य है।
दिनेश सुरेश  जगेश तुल्य है।
पितामह आप गणेश कर्म से।
बने शुभ काम त्रिनेत्र धर्म से।

बढ़े कुल वंश  प्रताप आप के।
गजानन  पुन्य जगेश  ताप के।
घटे यह भूमि  सनेह  शून्य हो।
कपूत अकूत अभाव पुण्य हो।

किसान रहे घर  भूमि हीन  से।
हुए  परिवार  अभाव  दीन  से।
कृपालु  कृपा करिए गणेश जी।
सुनो अरदास' उमा- महेश जी।
©~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/7, 6:53 PM] Babulal Bohara Sharma: .            जननी छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित छंद -
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
भगण मगण सगण तगण
२११  २२२  ११२  २२१

.        _हो कुलदेवी सत्य_
माँ  जननी  माता  महतारी  मात।
जन्म दिया है  पालन भी सौगात।
पावन थी माँ झूठे जग वाले मर्त्य।
एक तुम्ही तो  हो  कुलदेवी  सत्य।

नाम  तुम्हारा वंश  तुम्हारा  संग।
देख लिया सारा  जग काला रंग।
संग  पिता माता घर  खेती काम।
खूब निभाती आप बिना विश्राम।

गंग  तुम्ही  माता  धरती का मर्म।
माँ शुक ली ने साथ निभाए धर्म।
आप  सपूती मात  पिता थे शुद्ध।
प्रीति निभाना 'विज्ञ' बनाना बुद्ध।
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा
[12/7, 6:53 PM] Babulal Bohara Sharma: .            पिता छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित छंद -
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
यगण नगण नगण यगण
१२२  १११  १११  १२२

  _पिता गये वह समय गया_
पिता सत्य दिनकर सम जानो।
सदा  मात  हिमकर  पहचानो।
कहे तात पितु कुल जन दादा।
सदा  कर्म  रत  रहित विवादा।

रखा बंधु निज अनुज सँगाती।
निभा  नेह श्रम रच कर  थाती।
रहे  शुद्ध  मन   परिजन   सारे।
पिता  संग  जब  तक  रखवारे।

करें याद दिन  बचपन वाले।
ढली उम्र अब पचपन  ताले।
पिता गए वह  समय गया है।
अरे 'विज्ञ' यह जगत नया है।
©~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[12/7, 8:25 PM] Babulal Bohara Sharma: .                दुर्गा छंद

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा निर्मित छंद -
विधान - १२ वर्ण, प्रति चरण 
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
मगण नगण रगण सगण
२२२  १११  २१२  ११२

.    _ हे दुर्गा तुम पिता मही_
हे दुर्गा  तुम  पितामही  सम हो।
संहारो दनुज मात क्या कम हो।
हे माता  तुम  कहाँ  नही  रहती।
जो  चाहूँ  वह कृपा  नहीं करती।

माता प्राण तन कष्ट त्राण करो।
हे माता अभय विज्ञ प्राण करो।
गाऊँ  छन्द  नवगीत भी रचता।
तेरी भक्ति तप  नित्य मै करता।

गाते  पूर्वज कथा  सदा व्रत में।
पूजें आरत  तुम्हे  अदावत  में।
भूले 'विज्ञ' यह  मानता कब मैं।
माँ दुर्गा चरण  चाँप  दूँ अब मैं।
©~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ

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