नव अन्वेषित वर्णिक छंद

[1/15, 3:04 PM] Babulal Bohara Sharma: बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित छंद -

.              सरयू राजा छंद

विधान - १० वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो 
भगण तगण रगण गुरु 
२११  २२१  २१२  २

.         _रघुपति राजा_

राम लला की चली सवारी।
संग अयोध्या सजी हमारी।
रघुपति राजा चले  सनेही।
राम  निहारे  सिया विदेही।

आप चले तो सभी चलेंगे।
राम लला को सदा भजेंगे।
गाकर मैया  सुना प्रभाती।
मैं सुन गाऊँ सदा सँगाती।

राम सिया ने  रची कहानी।
प्रीति कथा जो रही रुहानी।
विज्ञ रचे जो सुने कभी तो।
आप पढ़ोगे  मिले तभी तो।
.          ------+-----
©~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[1/15, 3:04 PM] Babulal Bohara Sharma: बाबा कल्पनेश जी द्वारा निर्मित नवीन छंद -

.              कल्पहरि छंद

विधान - ११ वर्ण, प्रति चरण
चार,चरण, दो- दो समतुकांत हो।
यगण यगण सगण लघु लघु
१२२   १२२  ११२  १    १

.          _राम गुणागर_

सुनो राम जी सत्य दिवाकर।
मुझे ज्ञान दो छंद लिखा कर।
सिया राम  जैसा शुभ पावन।
रहे  भावना  भी  मन  भावन।

हरे राम  बोले  हर  मानव।
भगे नाम से  राक्षस दानव।
हनूमान  से  राघव  पायक।
भजे आपको हे सुखदायक।

लिखूँ छन्द मैं नित्य गुणागर।
सिया राम को शीश नवाकर।
रहे 'विज्ञ' के  छंद  सदा शुभ।
कृपा आप की मान महाप्रभु।
.            -----+-----
©~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[1/15, 3:04 PM] Babulal Bohara Sharma: बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा अन्वेषित मापनी आधारित छंद -

.          अनुपमा छंद

विधान - ११ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो
यगण यगण नगण लघु गुरु 
१२२  १२२  १११  १    २

.           शुभ मन हो

सियाराम जैसे सब जन हो।
वही भावना वे शुभ मन हो।
रहे  मर्त्य  सारे  सम अपने।
करें  सत्य जागे सब  सपने।

सदा सत्य बोलें शुभ करने।
श्रमी  कर्म  सारे भव भरने।
सखा राम के है हनुमत से।
डरे दुष्ट भागे  जन गति से।

प्रभो राम से लक्ष्मण लघु है।
वही वंश भ्राता  कुल रघु है।
लिखे 'विज्ञ' ने छंद बहुत से।
प्रभो संत साहित्य जुगत से।
.            ------+-----
©~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[1/15, 3:05 PM] Babulal Bohara Sharma: बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा अन्वेषित मापनी आधारित -
बाबा कल्पनेश द्वारा निर्मित नवीन छंद -

.             मनोकल्प छंद

विधान - १८ वर्ण, प्रति चरण
चार चरण, दो- दो समतुकांत हो।
१०,१८ वें वर्ण पर यति अनिवार्य है।
रगण यगण भगण त,गण जगण यगण
२१२  १२२ २११  २,२१  १२१  १२२

.         _पीड़ा में तन के, मध्य बसे हरि राया_

कल्पनेश जी देही मिलती, प्राण सुरक्षण जानो।
दैव दुर्लभम् काया इसका, सत्य परीक्षण मानो।
दैव  योग  से  काया  नर  की, देव सहाय करेंगे।
पीर  शम्भु  ही  देते  सब  को, घाव महेश भरेंगे।

योग- क्षेम सच्चे हैं  तब ही, दैहिक कष्ट सहे तो।
मोक्ष  देह  की  जाने अपनी, पीर  सनेह बहे तो।
बीज  कष्ट  पाते है  कितने, पेड़ बने  तब छाया।
दैव  कष्ट- पीड़ा में  तन के, मध्य बसे हरि राया।

कष्ट- रोग  व्यापे  जीवन में, वे  भगवान सनेही।
कृष्ण पार्थ देखो पांडव भी, थे हरि मर्त्य सदेही।
कष्ट  विश्व  के  जाने नर जो, मानस  पीर पराई।
साधु- सन्त  सारे  ही कहते, फाटत  पैर बिवाई।

'विज्ञ' छन्द गाते हैं रच के, पीर  मिटे  तन त्यागे।
नेह  पीर से  जोड़ें  सच वे, मानव  सत्य सुभागे।
कल्पनेश बाबाजी गुरुजी, विज्ञ कहे मन व्याधा।
'विज्ञ' छंद विज्ञानी हरि है, 'विज्ञ' भजे हरि राधा।
©~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[1/15, 3:05 PM] Babulal Bohara Sharma: .                  विज्ञात घनाक्षरी

संजय कौशिक विज्ञात जी द्वारा निर्मित -
विधान :-  ३२ वर्ण, प्रति चरण ( ८,८,८,८ )
 चरणान्त में ३ गुरु आते हैं। इसमें विज्ञात छंद की मापनी (२११ २१२ २२)अनुसार ८ वर्ण हों।
चारो चरण समतुकांत हो।
 अन्त्यानुप्रास अपेक्षित है।


छोड़ चुका गई बातें,
भोग रहा  नई  घातें,
स्वप्न  ढले  कई रातें, 
याद मुझे वही आई।

ढंग लगे वही प्यारा, 
गीत बने लगे न्यारा, 
भग्न हिया रहा हारा,
रीति बचे वही गाई।

मीत बना निरा खोया,
भान हुआ हिया रोया,
द्वन्द बढ़ा  हुआ ढोया,
'विज्ञ' खुशी कहाँ पाई।

गर्त वहाँ बड़ा देखा,
भाल पड़ी हुई रेखा,
भाग्य रचे महालेखा,
कौन कहे फटी काई।

©~~~~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[1/15, 3:05 PM] Babulal Bohara Sharma: .       विज्ञ घनाक्षरी 

बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा
 अन्वेषित घनाक्षरी छंद--
विधान - ३२ वर्ण (८,८,८,८)
चारों चरण, समतुकांत हो।
स्वरचित विराट छंद मापनी अनुसार -
तगण जगण लघु गुरु 
२२१  १२१   १   २

.     _विराट_

थी बात पुराण कहे,
संभ्रान्त  विवेक रहे,
वे कष्ट  अनेक  सहे,
प्रस्वेद भरा तन था।

संसार कहें हरि का,
संग्राम  धरोहर  का,
बैराठ  मनोहर  का,
संयोग  पुरातन था।

आए  वनवास  गहे,
वे  पार्थ  विराट  रहे,
कृष्णा  पचबंधु सहे,
संस्कार महाधन था।

थी  मौर्य युगीन कला,
खोजे मठ बौद्ध मिला,
गंगा  सम  बाण चला,
प्राचीन  घना  वन था।
.      ----+---
©~~~~ बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[1/15, 6:26 PM] Babulal Bohara Sharma: बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा अन्वेषित मापनी आधारित- 
५ छंद- मिश्रित रचना --
.             १.  जन्मेजय छंद (१५ वर्ण)
तगण जगण यगण मगण सगण 
 २२१ १२१ १२२ २२२ ११२
.           २. मर्यादा छंद ( ११ वर्ण )
मगण तगण रगण गुरु गुरु 
२२२ २२१ २१२ २२
.            ३. पितर छंद ( १७ वर्ण)
जगण नगण जगण रगण सगण गुरु गुरु 
१२१ १११ १२१ २१२ ११२ २२
.              ४. भोग छंद ( १४ वर्ण)
रगण यगण जगण तगण लघु गुरु 
२१२ १२२ १२१ २२१ १२
.              ५. नर नारायण छंद ( १६ वर्ण)
११२ २२२ २२२ २११ २११ २
सगण मगण मगण भगण भगण गुरु 

शीर्षक --   _सहा राम ने हम सब ने भी_
.                         १
त्यागी  तपसी  वनवासी  जैसा भरम  रहा।
जीए  प्रभु जी  हम भी  तो ऐसे जन्म बहा।
पाए जग में  प्रभु जी  सीता का संग लला।
मै  जीवन  में  घर में  शांता  के  संग चला।
.                      २.
आभारी हूँ राम आप का मैं तो।
मर्यादा का रूप  मान ही ले तो।
भोगे हैं  संताप आपने  मैने भी।
जाने रिश्ते राग विज्ञ ने तैने भी।
.                     ३.
नहीं सुजन मनमीत थे सुजान निराला के।
रचे  मधुर  हरिवंश  मद्य के  मधुशाला के।
रहे हम  तुम  कबीर  सूर  भी  तुलसी ऐसे।
सहे  दुख विरह  कष्ट  आपने  हमने  कैसे।
रही  विपद  बन मित्र आपके  हरि मेरे भी।
कहे विरह तुलसी सदा तुम्हे  प्रभु मैने भी।
रहे  पितर  जन  दूर  आपके  हरि  मेरे भी।
निभे स्वजन कब पूर्ण विज्ञ से प्रभु तेरे भी।
.                        ४.
कर्म भाग्य प्रारब्ध भोगते आप हमीं।
देह  ताप  आकंठ  डूबते  नेह  कमी।
प्रीति प्रेम के भाव  खोजते आप रहे।
द्वन्द छन्द के घाव ढाब ते 'विज्ञ' सहे।
.                        ५ .
उपकारी मर्यादा मे, ही  जीवन  श्वाँस ढली।
निजता त्यागे गैरों के, ही संगति नाँव चली।
वनवासी औतारी हो,  नारायण  आप भले।
मन हारा दुर्भागी हूँ, "दाता हरि" 'विज्ञ' चले।
.                   ----+----
©~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
[1/15, 6:27 PM] Babulal Bohara Sharma: बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ द्वारा अन्वेषित मापनी आधारित- 
३ छंद मिश्रित रचना -

.           १. विज्ञभूल छंद (१२वर्ण, प्रति चरण)
२११ २२२ २२१ ११२ १२
भगण मगण तगण सगण लघु गुरु 
.           २.विज्ञक्षमा छंद (१६ वर्ण)
१२१ २११ २१२ १२१ १११ २
जगण भगण रगण जगण नगण गुरु 
.          ३. विज्ञनिशा छंद (१७ वर्ण)
 १२१ २११ २२१ १११ २११ २२
जगण भगण तगण नगण भगण गुरु गुरु 
.      _क्षमा आपसे चाहे कवि 'विज्ञ'_
.                       १.
भूल सभी से  होती है  प्रभु दया करे।
आप बड़े हैं त्राता  हो कवि क्षमा करे।
'विज्ञ' जिये है द्वंदी जीवन नित्य प्रभो।
छन्द लिखे मैने तो पाठक सत्य विभो।
.                        २.
क्षमा करें हरि  दोष विज्ञ से बहुत रहे।
लिखे सदा मनभाव छंद में वचन बहे।
उमा सिया शुभ शारदे दया कर क्षमा।
दया रखें भगवान विज्ञ पे विमल रमा।
.                        ३.
क्षमा करे परिवारी परिजन मीत हमारे।
तुम्हें भुलाकर मैने रच नव छन्द सँवारे।
धरा प्रभो हरि मैंने  समय चुराकर सारे।
जगा निशा भर  सोया कमतर दृग हारे।
.                    ----+----
©~~~~~~  बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ

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