बादल
आ.श्री बलबीर सिंह
करुण की कविता:-
"झाँसी की रानी"
पर आधारित व
प्रेरित रचना.....
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बाबू लाल शर्मा
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*बादल*
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बादल आवारा,नाले पागल,
सुनलो वो ही अमर कहानी।
बिन बरसे ही लौट गये,क्यों,
उमड़ घुमड़ क्यूं की नादानी।👆
अल्हड़,आवारा हे बादल,
सन सत्तावन के बादल।
ओ लक्ष्मी बाई रण चण्डी,
के रण संगी, घोड़े बादल।👆
सन सत्तावन की बात करूं,
तू सुन ओ पागल दीवाने।
पीठ बिठा कर,पीठ दिखाई,
हे बादल,अडियल अनजाने।👆
ओ बादल अश्व सवारी के,
रण चण्डी झाँसी रानी के।
तू,क्यूँ चूका लिखते लिखते,
स्वर्णाक्षर अमर कहानी के।👆
रण कौशल तेरा अनोखा था,
फिर फिर शत्रु दल रोका था।
पर,ऐनवक्त यूं अड़ना,बादल,
देश धर्म संग धोखा था।👆
बादल तू थोड़ा दम भरता,
नाले को कूद-फाँद जाता।
पानी, मे पानी मिल जाता,
या इतिहास बदल जाता।👆
उस दिन तेरी पीठ सवारी,
क्या,सिर्फ छबीली रानी थी।
बालक को अपनी पीठबांध,
केवल रण चण्डी रानी थी।👆
बादल क्यूँ भूला उस पल तू,
सब हिन्दुस्तान पीठ पर था।
बादल बस यही समझ लेता,
भारत अरमान पीठ पर था।👆
क्षण भर के मात्र फैसले से,
भारत का भाग्य बदल जाता।
बादल बस इतना कर जाता,
नाले को कूद, फाँद जाता।👆
हे बादल उस एक घड़ीमात्र,
चेतक को याद ही कर लेता।
नाले तट ठिठके पैरों में,
थोड़ा उन्माद ही भर लेता।👆
चेतक भी थोड़ा झिझका था,
रण राणा प्रताप पीठ पर था।
चेतक घायल, परवाना था,
मेवाड़ी मान पीठ पर था।👆
लेकिन चेतक नाला कूद गया,
स्वामी की आन निभानी थी।
चेतक राणा की अमर कथा,
स्वर्णिम इतिहास लिखानी थी।👆
तेरी ठिठकन अकड़न की,
वो कसकआज तक मन में है।
जो होनी होती .. होती है,
पर चुभन आज भी मन में है।👆
बादल थोड़ा साहस करता,
नाले को कूद गया होता।
तेरा भी नाम अमर होता,
भारत इतिहास भिन्न होता।👆
हे नाले तूने क्यों नादानी की,
निजनीर क्षणिक रोका होता।
रणचंडी को पार किया होता,
अन होनी को रोका होता।👆
तेरा तो नीर सूखना था,
आँखों का पानी जाना था।
समय चूक फिर क्या रखा है,
यह तो अनुमान लगाना था।👆
हे नाले तुझको मां गंगा सा,
पावन सम्मान मिला होता।
तेरा जल नाम अमर होता,
भावि का लेख टला.. होता।👆
खूब लड़ी मर्दानी,गोरों से,
नाकों चने चबाए थे।
पर हालातों से कैसे जीते,
कुछ अपने ही हुए पराये थे।👆
सुन लो हे झाँसी महा रानी,
लक्ष्मी बाई ओ .....मर्दानी।
जब सब संगत विपरीत बने,
रचती अपनी भिन्न कहानी।👆
तुम क्यों ठिठकी झिझकी,
मालूम था मौत सामने थी।
तुम ही छलांग लगा देती,
जल जौहर धार सामने थी।👆
क्यों भूल गई रण़ चण्डी,
जौहर वाली उन बातों को।
पन्ना धाय की सुत कुर्बानी,
और क्षत्राणी आघातों को।👆
पद्मावत या कर्मवती के,
जौहर के जज्बातों की।
जल मे जौहर करती, या,
पतवार बनाती हाथों की।👆
क्या कहे-आप पार लगती,
या कुँवरमात्र ही बच पाता।
जो,नाले से पार उतरती तो,
यह, इतिहास बदल जाता।👆
इस ओर रक्त ही बहना था,
उसओर वो नाला बहता था।
जल का बल जो मिल जाता,
भारत भाग्य बदल जाता।👆
बादल तू नालेपार गया होता,
नाले बहना रोक दिया होता।
रानी तुम पार ...उतर जाती,
भारत इतिहास अलग होता।👆
बादल आवारा,नाले , रानी,
सिर्फ चूक नहीं तुम्हारी थी।.
सब कहाँ रहे थे तुम्हे छोड़़,
असली तो चूक हमारी थी।👆
भारत तो पूरा सुलगा था,
साथ साथ नहीं रहे कभी।
फूट हमारी हमको खा गई,
पीछे नब्बे साल .......तभी।👆
बादल आवारा, नाले पागल,
सुनलो वो ही अमर कहानी।
बिन बरसे ही लौट गये क्यों,
उमड़ घुमड़ क्यूँ की नादानी।👆
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सादर🙏
बाबू लाल शर्मा
सिकन्दरा,दौसा
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