आहिस्ता चल
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बाब लाल शर्मा©
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*आहिस्ता चल*
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ऐ वक्त जरा आहिस्ता चल,
कुछ कर्ज चुकानेे बाकी है।
जीवन के सफर में शेष रहे,
कुछ फर्ज निभाने बाकी है।
ऐ वक्त जरा .................👆
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जन्म लिया जिस धरती पर,
उसका ही भार है शेषअभी।
निज मातृभूमि की रक्षा का
दायित्व निभाना बाकी है।
ऐ वक्त जरा .................👆
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कुछ अपनेपन का कर्जा है,
कुछ इंसानी यह दर्जा है।
ये रूहानी कर्जे शेष रहे,
कुछ दर्द भी सहने बाकी है।
ऐ वक्त जरा..................👆
👉
कुछ देश धर्म का कर्जा है,
तोे पितृ कर्म भी करना है।
पिताधर्म अपना ही लिया,
तो नियम निभाने बाकी है।
ऐ वक्त जरा .................👆
👉
इस जग के गोरख धन्धो से,
खुद को सुलझाना शेषअभी।
कुछ मुझे सीखना शेष अभी,
औरों को सिखाना बाकी है।
ऐ वक्त जरा .................👆
👉
कुछ शौक,मौज भी करने है,
तो शोक , मौन भी रखने है ,
कुछ अपने कुछ सब के,
अभी स्वप्न संजोने बाकी है ।
ऐ वक्त जरा ..................👆
👉
इन निर्मल मन के लोगो हित ,
उन कपटी , दम्भी दुष्टों को।
कुछ सबक सिखाने शेषअभी,
कुछ नेह निभाने बाकी है।
जिन्दगी तू भी आहिस्ता चल,
कुछ फर्ज निभाने शेष अभी।
कुछ कर्ज चुकाने बाकी है।
ऐ वक्त........................👆
👉
हर कुल मे जन्मी कन्या को,
सम्मान दिलाना शेष अभी।
हर बेटी को सिखलाना है,
कुछ और भी कर्जा लेना है।
तो मूल चुकाना उसका भी,
फिर ब्याज चुकाना बाकी है।
ऐ वक्त जरा..................👆
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सादर🙏,
✍©
बाबू लाल शर्मा व.अ.
नि.सिकन्दरा,दौसा
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