पन्ना धर्म निभाना है...
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*पन्ना धर्म* निभाना है
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सैनिक को,"माँ की पाती"
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*पुत्र* तुझे भेजा सीमा पर,
भारत माता का दर है।
लाडले बेटे,गाँठ बाँध सुन,
वतन हिफाजत तुझ पर है।💥
त्याग हुआ है देश में इतना,
जितना सागर में जल है।
अमर रहे गणतंत्र हमारा,
आजादी महंगा फल है।💥
आतंकी को गोली,मारो,
इसके ही वो काबिल है।
दिल्ली को वे तिरछे देखे,
दिल्ली तो अपना दिल है।💥
काश्मीर की केशर क्यारी,
अपनी मूल धरोहर है।
सूर्य पुत्र की रजधानी थी,
जिसमे *डल* पुन्यसरोवर है💥
काश्मीर के आतंकी तो,
बन्दूकों के काबिल है।
उनको सीधे स्वर्ग सिधाओ,
स्वर्ग सुखों से गाफिल है।💥
सीमाओं पर चौकस रहना,
नींद चुरा कर जगना है।
खटका हो तो उसके पीछे,
चौकस हो कर भगना है।💥
मेरी तुझेगर याद आए तो,
वतन की माटी छू लेना।
घरपरिवार की याद सँजोने,
कभी पत्र भी लिख देना।💥
पीठ दिखानी नही कभी भी,
सीना ताने रखना है।
जबतक तन में श्वाँस,तिरंगा,
हाथों थामे रखना है।💥
लोकतंत्र की माँ संसद है,
संवादी देवालय है।
संविधान प्रभुमूरत सा है,
लोकतंत्र विद्यालय है।💥
"मेरेदेशकीधरतीसोनाउगले"
बना रहे अफसाना है।
*विश्वगुरु* भारत है जग में,
*सोन चिड़ी* पैमाना है।💥
सम्प्रभुता मेरे भारत की,
सैनिक की.....मुस्तैदी है।
जनगणमन का गान,तिरंगा,
भारत माँ .बलि वेदी है।💥
मैने तुझको भेज दिया है,
भारत माँ .....की सेवा है।
भारत माँ .मेरी भी माँ है,
माँ की सेवा..ही मेवा है।💥
बेटा अपना शीश कटाकर,
वतन बड़ा कर जाना है।
पीठ दिखाके बचते,जिन्दा,
नहीं लौट कर आना है।💥
सीने पर गोली खा लेना,
अरमान तिरंगा रखना है।
लिपट तिरंगे घरआ जाना,
दूध न माँ का लजना है।💥
मैं रोउँ नहीं,आँसू न टपके,
माता वीर कहलाना है।
अंतिमपथ तक मेरे लाड़ले,
तुझको तो पहुँचाना है।💥
देश के खातिर पिता गये,
अब पति का भी परवाना है।
तुझको खोकर मेरे लाड़ले,
*पन्नाधर्म निभाना है।*💥
*पन्नाधाय* ने धरा धर्म हित,
चन्दन को कुर्बान किया है।
मैने उस बलिदान को बेटे
*पन्नाधर्म* सम्मान दिया है।💥
मैं अपना धर्म निभाउँगी,
मुझको तो देश बचाना है।
तू करले याद शहीदों की,
फिरअपना धर्म निभाना है💥
कितनी हीअबला सबलाएँ,
*पन्नाधर्म* पे टिकी हुई है।
उन ललनाओ के संयम पर,
वतन विरासत रुकी हुई है।💥
मैं भी एक बूंद सागर की,
जन्म का फर्ज चुकाना है।
तू भी पल में जल मिलजाना,
कोख का कर्ज चुकाना है।💥
सत्ताधारी अफसर , नेता से,
मुझको --कुछ नहीं कहना है।
देश को,, देश की जनता को,
सब खुद बखुद ही सहना है।💥
वे खुद समझे सम्मान करे,
या *उत्पीड़न* परिवारो को।
देश के खातिर गई पीढ़ीयाँ,
फौजी पहरे दारों को।💥
मेरा तो पैगाम तुम्हे बस,
*प्रीत की रीत* निभानी है।
देश प्रेम की बुझती लौ में,
फिर से *आग* लगानी है।💥
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सादर🙏🏻,
बाबू लाल शर्मा"बौहरा"
सिकन्दरा,दौसा,(राज.)
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