मन
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बाबू लाल शर्मा
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*मन पंछी* उन्मुक्त उड़े..
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ये मन पागल,पंछी जैसे,
पंछी से भी तेज उड़े नित।
पल मे देश विदेशों विचरण
उन्मुक्त गगन उड़ जाए नित।।🤷♀
पल में अयोध्या,भ्रमण करे,
फिर सरयू में नहलाए मन।
पल में चित्र कूट जा पहुँचे,
अत्रि,अनुसुइयाश्रम पावन।।🤷♀
पल में शबरीआश्रम जाए,
वे बेर गुठलियाँ ढूँ ढे मन।
किष्किन्धा हनुमत मिलके,
सुकंठ ,कपिन् बतराए मन।।🤷♀
पल में सागर तट जाकर,
रामेश्वरम् को पूजे मन।
पल मे लंक,अशोक वाटिका,
मिलन विभीषण, पहुँचे मन।।🤷♀
पल में रामादल के संग,
रक्ष वंश का शमन करे।
अगले पल में राम संगति,
सियाराम जी के भजन करे।।🤷♀
पल मे हनुमत के संग मे,
संजीवन बूटी ले आया।
मन पल मे हीें रक्ष संहारे,
पुष्पक बैठ अयोध्या आया।।🤷♀
राजतिलक और रामराज्य,
के सपने देखत जागा मन।
मन पागल या निशा बावरी,
घर सोया तन ,भटके मन।।🤷♀
मै सोचू सपना आया है,
सपने मे खो जाता मन।
सपने में तन सोया लेकिन,
रामायण पढ़ आया मन।।🤷♀
मेरे मते मन,तन से अच्छा,
रीत की प्रीत निभाता मन।
प्रेमी,बैरी, कुटिल,पूज्यवर,
सबके मन तक जाता मन।।🤷♀
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सादर🙏
बाबू लाल शर्मा"बौहरा"
सिकंदरा,दौसा
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