अब तो कोई मीत मिले...

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*अब तो...*.
कोई मीत मिले          
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कोयल जैसी ममता पाले
मीठे मीठे बोल दिये
गीतों के आवेश में मेरे
शिशु काक ने पाल दिये👆

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रीति निभाई कुरजाँ वाली
खुद के अंडे दूर किए
मन में रक्खे भाव प्रबल
पर दूजों के संदेश लिए।👆

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तृष्णा मेरी पिय मिलन सी,
जाने क्या क्या आस लिए
तृषित रही मनसा पपिहा सी
वर्षा जल की प्यास लिए।👆

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चातक जैसी चाहत रहती
स्वाति बिन्दु की चाह लिए
एक बूंद भी पी नहीं पाया
जाने कितने दाव किए।👆

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मोह में लिपट पतंगे जैसे
कितने सारे जलें दिए
एक एक पर उड़ता फिरता
दीप शिखा का मोह लिए।👆

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श्रद्धा मेरी शबरी जैसी
राम मिलन की आश लिए
मीठे खट्टे बेर रखें हैं
मन में दृढ विश्वास लिए।👆

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प्रीत मेरी चकवे चकवी सी,
दिन भर देखें,माने मौजे ।
मन पागल या निशा बावरी
रजनी भर फिर तारे खोजें।👆

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टें...टें..करता रहा जनम भर
टिटहरी से अंडे पाले
बच्चे अब जो बड़े हुए तब
वे चलतें है मुझसे चालें।👆

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प्रीत की रीति निभाकर देखी
रीति की प्रीत भी साथ लिए
प्रीति मिली न रीति बची
अब जलते जलते बुझें दिए।👆

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प्रीति प्रेत सी भटके तन मन
रीति प्रेम तृष्णा के संगत
चाहत ममता मोह चले सब
पद लक्ष्मी माया के पंगत।👆

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जीवन हुआ सुदामा जैसा
अब तो कोई मीत मिले
विदुर के जैसे मान फँसा हैं
छिलके खाती प्रीत मिले ।👆

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जीवन दीपक टिम टिम करता
मन चाहे तन ज्योति जले
तैने दरश दिया नहीं छलिया
तू रीति निभा,मत प्रीत छले।👆

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सादर ✍
बाबू लाल शर्मा
सिकंदरा,दौसा
©
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